क्या आप कल्पना भी कर सकते हैं कि पथरीली जमीन और चट्टानों से घिरे पहाड़ पर भी कोई पेड़-पौधे पनप सकते हैं। लेकिन यह सम्भव हुआ है और करीब साल भर पहले लगाए ये पौधे अब अच्छी बारिश के बाद बड़े-बड़े हो चुके हैं। वन विभाग के अमले ने यहाँ पहले जूट बिछाकर उस पर पौधे रोपे। फिर टपक सिंचाई से उन्हें लगातार पानी दिया और देखभाल की तो पौधे लहलहा उठे। अब इससे ओंकार पर्वत की छटा सुहानी हो गई है।
मध्य प्रदेश में खण्डवा जिले के नर्मदा नदी के किनारे प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर मन्दिर जिस पहाड़ पर स्थित है, वह अब से पहले तक वीरान और बंजर हुआ करती थी लेकिन अब नदी के उस पार दूर से ही यह हरी-भरी नजर आने लगी है।
नजदीक जाने पर नजर आता है कि करीब दो हेक्टेयर क्षेत्र में जंगल की तरह बाँस, कई फलदार पौधे और अन्य पौधे लहलहा रहे हैं। जिस बंजर पहाड़ी पर कभी घास तक नहीं उगती थी, वहाँ इस हरे-भरे जंगल को देखना सुखद आश्चर्य से भर देता है।
हरा-भरा हो गया है यहाँ का प्राकृतिक वैविध्य
यहाँ का हरा-भरा प्राकृतिक वैविध्य अब देखने लायक है। यहाँ दो पहाड़ों के बीच से नर्मदा नदी बहती है। एक पहाड़ी पर ओंकारेश्वर बसा है तो नदी के पार दूसरे पर ज्योतिर्लिंग मन्दिर है, जहाँ हर दिन हजारों और पर्व-त्यौहारों पर लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं। लेकिन बंजर और सूनी वीरान पहाड़ देखकर बड़ा बुरा लगता था।
अब इसके एक बड़े हिस्से को हरा-भरा बनाने पर भी विचार हो रहा है। दो हेक्टेयर क्षेत्र में यह नवाचार सफल होने के बाद अब पास की राजस्व भूमि पर भी इसी तरह से जंगल लगाने की योजना है। यदि ऐसा हुआ तो यह पहाड़ एक बार फिर हरियाली का बाना ओढ़ सकेगा।
दो हजार से ज्यादा पेड़ लहलहाए, घास भी होने लगी
सतपुड़ा और विन्ध्याचल पर्वत शृंखला के बीच कावेरी और नर्मदा नदी से घिरे ओंकार पर्वत का अपना धार्मिक महत्त्व है और लोग इसकी परिक्रमा करते हैं लेकिन बीते कुछ सालों से इस पर पेड़-पौधे लगभग खत्म होते जा रहे थे।
समुद्र सतह से करीब 242 मीटर ऊँचाई पर होने से यहाँ गर्मियों में पेड़-पौधों का जीवित रहना मुश्किल होता है और दूसरा जमीन पथरीली और चट्टानी होने से भी नए पौधे नहीं लगाए जा सकते थे। लेकिन वन अधिकारियों ने यहाँ जियो टेक्सटाइल पद्धति अपनाकर 2100 पौधे रोपे, जो अब पनपकर बड़े हो चुके हैं। अगले तीन सालों में ये पेड़ के रूप में बदल जाएँगे।
क्या है जियो टेक्सटाइल पद्धति
यह एक तरह की मिट्टी के कटाव को रोकने और पथरीली या चट्टानों वाली जमीन पर पौधों को रोपने की अधुनातन पद्धति है। इसके जरिए एक तरफ ढलान वाली जगह से तेज बारिश के साथ हर साल बहने वाली मिट्टी को कटने से रोका जा सकता है वहीं दूसरी तरफ इससे ढलानों और पथरीली जगह (खास तौर पर पहाड़ी और नदियों के किनारों पर) पौधरोपण सम्भव हुआ है।
इसमें सबसे पहले जगह की सफाई कर उसकी पथरीली परत को हल्का खोदकर तैयार करते हैं और फिर उस पर जूट या नारियल की भूसी से बने कार्बनिक कपड़ों (कायर फाइबर) का जाल बिछाया जाता है। (कायर फाइबर या जूट के आपसी जुड़ाव के कारण यह पानी को अवशोषित कर जरूरत से ज्यादा पानी को बाहर निकाल देता है। अतिरिक्त पानी तेजी से नहीं निकलता, इसलिये मिट्टी नहीं कटती।) इसमें पौधे लगाकर उन्हें बढ़ने दिया जाता है।
दो-तीन सालों में जूट या फाइबर सड़कर मिट्टी में मिल जाता है, तब तक पौधे बड़े हो जाते हैं, घास आने लगती है और इनकी जड़ें मिट्टी को थामने लगती है। भू-स्खलन और खनन से प्रभावित इलाकों में भी यह उपयोगी है। इन दिनों इसे कई जगह इस्तेमाल किया जा रहा है।
हर साल बहती है 60 अरब टन मिट्टी
भू-वैज्ञानिक बताते हैं कि अकेले भारत में नदियों के किनारे, पहाड़ी क्षेत्र और अन्य स्थानों से बड़ी संख्या में मिट्टी का कटाव होता है। हर साल धरती की ऊपरी परत की करीब 60 टन मिट्टी बह जाती है। इससे देश को करीब सवा दो लाख करोड़ रुपए का नुकसान होता है। जियो टेक्सटाइल पद्धति मिट्टी के कटाव को रोकने का एक प्रभावी उपाय साबित हुआ है।
अब तो इसका उपयोग जल-जमाव वाली जगह पर सड़क बनाने में भी होने लगा है। यह सिर्फ दो सालों में नष्ट होकर मिट्टी का रूप हो जाता है। कीचड़युक्त सड़कों को मजबूत बनाने में अब इसका उपयोग हो रहा है। वर्ष 2012-13 में भारत से एक हजार 116 करोड़ कायर फाइबर का निर्यात हुआ है। जो अब लगातार बढ़ता जा रहा है।
12 प्रजातियों के पौधे रोपे ओंकार पर्वत पर
वन विभाग के एसडीओ एचएस ठाकुर ने बताया कि यहाँ पथरीली जमीन को कुछ खोदकर जूट का जाल बिछाया और उस पर बड़, पीपल, बेल, इमली, अशोक, महुआ, जामुन, करंज, सीताफल, खमेर, नीम और गुलमोहर जैसे पौधों के साथ बाँस भी लगाए हैं। इससे पहाड़ी के ढलान पर मिट्टी के कटाव रोकने में भी बड़ी मदद मिली है। दो सालों में यह जूट अपने आप नष्ट होकर मिट्टी में बदल जाएगा। तब तक पौधे मिट्टी को पकड़ लेंगे।
पहाड़ का पर्यावरणीय महत्त्व भूले लोग
स्थानीय रहवासी मनीष पाराशर बताते हैं कि इस पहाड़ का धार्मिक महत्त्व तो लोगों को याद रहा लेकिन लोग इसके पर्यावरणीय महत्त्व को धीरे-धीरे भूलते चले गए। यहाँ के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले ऐसी स्थिति नहीं थी। पर बीते करीब 30-40 सालों में धीरे-धीरे यहाँ की हरियाली खत्म होती गई और यह पहाड़ बंजर हो गया।
पहले यहाँ की मिट्टी का कटाव नहीं होता था। पर जीवनशैली में आये बदलाव और पेड़ों के कम होते जाने से लगातार तेज बारिश के साथ ढलान की मिट्टी कटने लगी और अब बीते 15-20 सालों से हालात यह हो गए थे कि पूरा पहाड़ ही बंजर बन गया था। पथरीली जमीन और चट्टानें होने से कोई यहाँ पौधे रोपने के बारे में सोच भी नहीं सकता था, पर अब वन विभाग ने यहाँ अच्छा काम किया है।
ओंकारेश्वर में यह नवाचार बहुत मुश्किल था लेकिन वन अमले की मेहनत से यह बंजर पहाड़ी हरियाली से भर गई है। इस बार बारिश में मिट्टी का कटाव भी रुका है और घास भी लग सकी है। अब तो दूर से ही यहाँ हरियाली नजर आती है। बीते साल यहाँ अच्छी बारिश नहीं होने के बाद भी पौधे अब तक अच्छी स्थिति में हैं। इस बार बारिश अच्छी होने से उम्मीद बढ़ गई है। पहली ही बारिश ने यहाँ सुहाना कर दिया है। बारिश से पौधे खिल उठे हैं...ईश्वरराव शिंदे, उप वन परिक्षेत्र अधिकारी, कोठी, ओंकारेश्वर
हमने यहाँ दो हजार से ज्यादा पौधे रोपे थे, उनमें ज्यादातर जीवित हैं। कुछ तो तीन-से-आठ फीट तक बढ़ गए हैं। अब हम इसे आसपास भी बढ़ाना चाहते हैं। पास में राजस्व की जमीन हैं, हम उनसे भी बात करेंगे। अब हम इस नवाचार को अन्य स्थानों पर भी लागू करने का विचार कर रहे हैं... एसएस रावत, वन संरक्षक, मप्र वन विभाग
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