पेयजल और ग्रामीण स्वच्छता को प्राथमिकता

ग्रामीण स्वच्छता
ग्रामीण स्वच्छता


आर्सेनिक की अधिकता वाले पानी को पेयजल में इस्तेमाल किये जाने से त्वचा, खून और फेफड़े के कैंसर तथा बच्चों में कार्डियो वैस्कुलर सिस्टम प्रभावित होता है। फ्लोराइड की अधिकता से दाँत और हड्डियों की बीमारी होती है। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार की कोशिश है कि लोगों को शुद्ध पानी उपलब्ध कराया जाये ताकि वे विभिन्न बीमारियों से प्रभावित न हो। ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल उपलब्ध कराने के लिये एक रणनीतिक योजना 2011-22 तैयार की गई थी जिसके अन्तर्गत सभी ग्रामीण घरों में एक मीटर के जरिए पर्याप्त मात्रा में नल-जल की आपूर्ति करने का लक्ष्य रखा गया है। ग्रामीण भारत स्वच्छता कवरेज अक्टूबर 2014 के 42 प्रतिशत से बढ़कर वर्तमान में 60 प्रतिशत तक पहुँच चुका है। देश भर में स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत 3.47 करोड़ से अधिक घरेलू शौचालय बनाए जा चुके हैं। वित्तवर्ष 2017-18 में खुले में शौचमुक्त क्षेत्रों में पाइप युक्त शुद्ध जलापूर्ति को प्राथमिकता दी जाएगी।

स्वच्छ भारत मिशन के लिये वित्तवर्ष 2016-17 में रु. 11,300 करोड़ का प्रावधान किया गया था लेकिन इसमें लगभग 12800 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। वर्ष 2017-18 में इसमें रु. 16248 करोड़ का प्रावधान किया गया है।

राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम हेतु वित्तवर्ष 2016-17 में रु. 6000 करोड़ (संशोधित) का प्रावधान रखा गया है जिसे 2017-18 में बढ़ाकर रु. 6050 करोड़ कर दिया गया है। राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल के उपमिशन के हिस्से के रूप में अगले 4 वर्षों के लिये आर्सेनिक एवं फ्लोराइड प्रभावित 28000 से अधिक बस्तियों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने का प्रस्ताव किया गया है।

 

 

स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण)


भारत में ग्रामीण स्वच्छता को लेकर प्रयास स्वतंत्रता के बाद ही प्रारम्भ हो गए थे। प्रथम पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत वर्ष 1954 में पहली बार ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम लागू किया गया था। लेकिन वर्ष 1981 की जनगणना से यह बात सामने आई कि केवल 1 प्रतिशत घरों में ही शौचालय की सुविधा उपलब्ध थी। संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में 1981-90 के दशक को शुद्ध पेयजल एवं स्वच्छता का दशक घोषित किया गया। इसी के साथ भारत में, केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम वर्ष 1986 में ग्रामीणों के जीवन-स्तर में सुधार करने तथा महिलाओं को निजता और सम्मान प्रदान कराने के लिये प्रारम्भ किया गया। गरीबी-रेखा से नीचे के परिवारों द्वारा निजी पारिवारिक शौचालय बनवाए जाने और उसका इस्तेमाल किये जाने की उनकी उपलब्धियों को मान्यता देने के लिये उन्हें वित्तीय प्रोत्साहन दिये गए। ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबन्धन के तहत क्रियाकलाप शुरू करने के अलावा विद्यालय शौचालय इकाइयों, आँगनबाड़ी शौचालय और सामुदायिक स्वच्छता परिसरों के निर्माण के लिये भी सहायता का विस्तार किया गया। स्वच्छता के विचार को विस्तारित कर 1993 में इसमें व्यक्तिगत स्वच्छता, गृह स्वच्छता, सुरक्षित पेयजल तथा कूड़े-कचरे, मानव मलमूत्र और नाली के दूषित पानी के निस्तारण को भी शामिल किया गया है।

गरीबी-रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे परिवारों के लिये स्वच्छ शौचालयों का निर्माण, शुष्क शौचालयों का फ्लश शौचालयों में उन्नयन, महिलाओं के लिये ग्राम स्वच्छता भवनों का निर्माण, स्वच्छता बाजारों तथा उत्पादन केन्द्रों की स्थापना, स्वास्थ्य शिक्षा और जागरुकता के लिये सघन अभियान चलाना आदि भी इस कार्यक्रम के अंग हैं। केन्द्र, राज्य सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों और अन्य निष्पादन संस्थाओं के अनुभवों को देखते हुए तथा ग्रामीण स्वच्छता पर आयोजित द्वितीय सेमिनार की अनुशंसाओं को ध्यान में रखते हुए नौवीं पंचवर्षीय योजना के ढाँचे को 1 अप्रैल, 1999 को पुनःनिर्मित किया गया। नए बने कार्यक्रम में धन के गरीबी-आधारित राज्यवार आवंटन को नकार कर माँग-आधारित प्रक्रिया को चरणबद्ध तरीके से लागू करने की बात कही गई है।

सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान प्रारम्भ किया गया और आवंटन आधारित कार्यक्रम को चरणबद्ध प्रक्रिया द्वारा 31 मार्च, 2002 तक समाप्त कर दिया गया। 1 अप्रैल, 2012 को सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के एक हिस्से के रूप में, भारत निर्माण योजना के अन्दर ‘निर्मल भारत अभियान’ प्रारम्भ हुआ। इसके अन्तर्गत निर्मल ग्राम पंचायत विकसित करने की योजना थी। निर्मल भारत अभियान को मनरेगा के साथ जोड़ा गया और विभिन्न क्षेत्रों में स्वच्छता को लेकर प्रगति देखी गई।

इस कार्यक्रम में बस्तियों के बीच पक्की नालियों का निर्माण किया गया। इससे कई तरह के फायदे हो रहे हैं। एक तो गलियों में प्रदूषण नहीं फैलता। लोगों को गन्दे पानी में से होकर नहीं आना-जाना पड़ता। दूसरी तरफ, गन्दा पानी हमारे पेयजल स्रोत को प्रभावित नहीं करता है। सरकार की पहल पर ग्राम पंचायत-स्तर पर स्वास्थ्य एवं साफ-सफाई निगरानी समितियों का गठन किया गया है। ये समितियाँ ग्रामीण स्वास्थ्य एवं सफाई व्यवस्था सुधार में अहम भूमिका निभा रही हैं। इन समितियों की बदौलत ग्रामीण भारत की स्थिति में पहले की तुलना में काफी सुधार हुआ। सुधार के बाद भी सार्वभौमिक स्वच्छता का लक्ष्य काफी दूर था।

स्वच्छता अभियान को तीव्रता प्रदान करने के लिये सार्वभौमिक स्वच्छता कवरेज के लक्ष्य को हासिल करने के लिये इसके प्रयासों में तेजी लाने तथा स्वच्छता पर ध्यान केन्द्रित करने हेतु प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर, 2014 को ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का शुभारम्भ महात्मा गाँधी की 145वीं जयन्ती पर किया। इस मिशन का उद्देश्य महात्मा गाँधी की 150वीं जयन्ती के लिये एक उपयुक्त श्रद्धांजलि के रूप में 2019 तक स्वच्छ भारत के लक्ष्य को प्राप्त करना है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में साफ-सफाई के स्तर में सुधार लाना है।

स्वच्छ भारत अभियान को स्वच्छ भारत मिशन और स्वच्छता अभियान भी कहा जाता है। यह एक राष्ट्रीय-स्तर का अभियान है और भारत सरकार द्वारा चलाया जा रहा है जोकि शहरों और गाँवों की सफाई के लिये आरम्भ किया गया है। इस अभियान में शौचालयों का निर्माण, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, गलियों व सड़कों की सफाई, देश के बुनियादी ढाँचे को बदलना आदि शामिल हैं। इसके उद्देश्यों में शामिल हैं-

1. सरकारी, शिक्षाजगत, व्यापार और ईएनवीआईएस सहित गैर-सरकारी संगठनों के सूचना प्रयोगकर्ताओं, वाहकों और प्रदाताओं के साथ सम्पर्क स्थापित करना।

2. ग्रामीण क्षेत्रों में सामान्य जीवनस्तर में सुधार करना।

3. देश में सभी ग्राम पंचायतों द्वारा निर्मल स्थिति प्राप्त करने के साथ 2019 तक स्वच्छ भारत मिशन के लक्ष्य को हासिल करने के लिये स्वच्छता कवरेज में तेजी लाना।

4. जागरूकता सृजन और स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से स्थायी स्वच्छता सुविधाओं को बढ़ावा देने वाले समुदायों और पंचायती राज संस्थाओं को प्रोत्साहित करना।

5. पारिस्थितिकीय रूप से सुरक्षित और स्थायी स्वच्छता के लिये किफायती तथा उपयुक्त प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना।

 

 

 

 

 

 

 

स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) एक नजर में

सम्पूर्ण भारत में शौचालय

61.05 प्रतिशत

खुले में शौचमुक्त राज्य

3

खुले में शौचमुक्त गाँव

1,63,894

‘नमामि गंगे’ के तहत खुले में शौचमुक्त गाँव

3006

खुले में शौचमुक्त ग्राम पंचायतें

74673

खुले में शौचमुक्त जिले

96

*ये आँकड़े फरवरी 2017 तक है।

 

6. ग्रामीण क्षेत्रों में सम्पूर्ण स्वच्छता के लिये ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबन्धन पर विशेष ध्यान देते हुए, समुदाय प्रबन्धित पर्यावरणीय स्वच्छता पद्धति विकसित करना।
 

राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम


राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय द्वारा संचालित होता है। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय, जो पहले पेयजल और स्वच्छता विभाग के रूप में ग्रामीण विकास मंत्रालय के अन्तर्गत था, अब एक अलग मंत्रालय के रूप में कार्य कर रहा है। इसकी शुरुआत त्वरित ग्रामीण पेयजल आपूर्ति कार्यक्रम (एआरडब्ल्यूएसपी) 1972-1973 के रूप में हुई थी। इसकी कवरेज में तेजी लाने के लिये 1986 में पेयजल प्रौद्योगिकी मिशन शुरू किया गया था। वर्ष 1991-92 में इस मिशन का नाम राजीव गाँधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन रखा गया था तथा वर्ष 1991 में पेयजल और स्वच्छता पर ध्यान केन्द्रित करने के लिये ग्रामीण विकास मंत्रालय के अन्तर्गत पेयजल आपूर्ति विभाग (डीडीडब्ल्यूएस) का गठन किया गया था। पहली प्रमुख क्षेत्र सुधार परियोजना (एसआरपी) उसी वर्ष शुरू की गई थी। बाद में, वर्ष 2010 में इसका नाम बदलकर पेयजल और स्वच्छता विभाग रखा गया था, तथा सरकार द्वारा इस क्षेत्र को अत्यधिक महत्त्व दिये जाने को ध्यान में रखते हुए इसे मंत्रालय का दर्जा दिया गया था। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय देश में पेयजल और स्वच्छता कार्यक्रमों की समग्र नीति, योजना, वित्तपोषण और समन्वय के लिये नोडल विभाग है। पेयजल आपूर्ति विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 1 अप्रैल, 2009 को राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। यह कार्यक्रम विभिन्न स्टेक होल्डरों के पूर्व प्रयासों से प्राप्त अनुभवों पर आधारित है एवं वर्तमान में संचालित समस्त ग्रामीण पेयजल योजनाओं को समेकित कर एक एकल (एकीकृत) कार्यक्रम के रूप में आरम्भ करने का प्रयास किया गया है।

एनआरडीडब्ल्यूपी का मुख्य उद्देश्य भारत के समस्त ग्रामीण नागरिकों हेतु पेयजल सुरक्षा सुनिश्चित करना है। पेयजल सुरक्षा से तात्पर्य है कि प्रत्येक ग्रामीण को हर समय एवं (बाढ़ व सूखे सहित) सभी परिस्थितियों में पीने, भोजन बनाने एवं अन्य घरेलू आवश्यकताओं तथा मवेशियों हेतु पर्याप्त जल उपलब्ध हो। गाँव में रहने वाले लोगों की एक महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी है कि वे यह तय करें कि उनके पास कितना पानी उपलब्ध है व उसका उपयोग वे किस प्रकार करते हैं तथा पेयजल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये उन्हें कौन से उपाय करने चाहिए। इसके महत्त्व को समझते हुए इस बात के प्रबन्ध किये गए हैं कि राज्य सरकारें पेयजल सुरक्षा हेतु नियोजन, क्रियान्वयन, संचालन, रख-रखाव एवं प्रबन्धन की जिम्मेदारी पंचायती राज संस्थाओं को सौंप दें। पेयजल सुरक्षा के लिये इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये समुदाय का नेतृत्व एवं प्रतिनिधि के रूप में ग्राम पंचायतों को आगे आना चाहिए। ग्राम पंचायतों को ग्रामजल एवं स्वच्छता समिति के माध्यम से समाज को प्रेरित एवं शिक्षित करना चाहिए एवं यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पेयजल सुरक्षा हेतु उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण एवं तकनीकी सहयोग प्राप्त हो। ग्रामसभा निर्णय लेने एवं योजनाओं की स्वीकृति (अनुमोदन) का एक मुख्य मंच है।

भारत में कुल 1714431 बस्तियों तक पेयजल उपलब्ध कराया जाना है जिनमें से वर्ष 2016-17 के लिये लक्षित (मंत्रालय के अनुसार) बस्तियों की संख्या 56835 थी इसमें अब तक की उपलब्धि 38503 रही है। जल गुणवत्ता प्रभावित बस्तियों की संख्या 01.04.2016 तक 71077 थी, जिसमें से 2016-17 के लिये लक्षित (मंत्रालय के अनुसार) संख्या 12812 था और उपलब्धि 3056 बस्तियों की रही है। आंशिक रूप से कवर बस्तियों की संख्या 01.04.2016 तक 336774 थी जिसमें 2016-17 के लिये लक्षित (मंत्रालय के अनुसार) संख्या 44023 थी और उपलब्धि 15686 की रही है। पूरी तरह से कवर बस्तियों की संख्या 01.04.2016 तक 1306580 थी, जबकि 2016-17 के लिये लक्षित (मंत्रालय के अनुसार) संख्या 26978 थी, जिसमें से अब तक की उपलब्धि 19761 बस्तियों तक रही है। नए बजट में न केवल पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने का प्रावधान रखा गया है बल्कि उसकी गुणवत्ता को भी बेहतर करने का प्रयास है। साथ ही प्रदूषित भूजल वाले क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल को प्राथमिकता दी जाएगी। ग्रामीण इलाके में पक्की नालियाँ, पीने के लिये शुद्ध पेयजल एवं साफ-सफाई व्यवस्था को बखूबी देखा जा सकता है। एक अध्ययन के मुताबिक बीस राज्यों की सात करोड़ आबादी फ्लोराइड और एक करोड़ लोग सतह के जल में आर्सेनिक की अधिक मात्रा घुल जाने के खतरों से जूझ रहे हैं। इसके अलावा, सुरक्षित पेयजल कार्यक्रम के तहत सतह के जल में फ्लोराइड, टीडीसी, नाइट्रेट की अधिकता भी बड़ी बाधा बनी हुई है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब साठ फीसदी बीमारियों की मूल वजह जल प्रदूषण है। जल प्रदूषण का मुख्य कारण मानव या जानवरों की जैविक या फिर औद्योगिक क्रियाओं के फलस्वरूप पैदा हुए प्रदूषकों को बिना किसी समुचित उपचार के सीधे जलधाराओं में विसर्जित कर दिया जाना है।

राज्यसभा में फरवरी 2017 में पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री ने एक प्रश्न के उत्तर में सूचना दी कि पूरे देश में 66,663 बस्तियाँ आर्सेनिक एवं फ्लोराइड प्रदूषण से प्रभावित हैं। लेकिन सरकार 2022 तक 80 प्रतिशत घरों तक नल-जल उपलब्ध कराने के लिये प्रतिबद्ध है। 6 फरवरी, 2017 को राज्यसभा में पेयजल मंत्री ने कहा कि जहाँ खनन होता है उन राज्यों के लिये एक विशेष योजना विकसित की गई है और कहा कि विभिन्न राज्यों में पीने के पानी में सुधार के लिये रु. 800 करोड़ की विशेष धनराशि प्रदान की गई है। रु. 100 करोड़ की विशेष सहायता भी पश्चिम बंगाल और राजस्थान, जो आर्सेनिक और फ्लोराइड के कारण सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में हैं और सरकार उन्हें हटाने की दिशा में काम कर रही है, को प्रदान की गई है। साथ ही उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों के लिये स्वच्छ पेयजल सुनिश्चित करने के लिये रु. 25,000 करोड़ रुपए की एक विशेष योजना तैयार की है, जिसमें से रु. 1250 करोड़ इस वर्ष के लिये निर्धारित किये गए हैं और रु. 760 करोड़ पहले ही राज्यों को जारी किये गए हैं। 9113 स्वच्छ पेयजल स्टेशनों की स्थापना की तरह छोटे सुधार भी किये जा रहे हैं। साथ ही देश भर में एक लाख स्कूलों में आरओ 1000 लीटर प्रतिदिन पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिये शुरू किये गए हैं।

ब्यूरो ऑफ इण्डियन स्टैंडर्ड के मुताबिक एक लीटर पानी में 0.05 मिलीग्राम आर्सेनिक तक किसी तरह की दिक्कत नहीं होती है, लेकिन इससे अधिक होने पर मानव जीवन के लिये नुकसानदायक होता है। आर्सेनिक की अधिकता वाले पानी को पेयजल में इस्तेमाल किये जाने से त्वचा, खून और फेफड़े के कैंसर तथा बच्चों में कार्डियो वैस्कुलर सिस्टम प्रभावित होता है। फ्लोराइड की अधिकता से दाँत और हड्डियों की बीमारी होती है। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार की कोशिश है कि लोगों को शुद्ध पानी उपलब्ध कराया जाये ताकि वे विभिन्न बीमारियों से प्रभावित न हो। ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल उपलब्ध कराने के लिये एक रणनीतिक योजना 2011-22 तैयार की गई थी जिसके अन्तर्गत सभी ग्रामीण घरों में एक मीटर के जरिए पर्याप्त मात्रा में नल-जल की आपूर्ति करने का लक्ष्य रखा गया है। पेयजल की आपूर्ति को राष्ट्रीय पेयजल मानकों के अनुसार किया जाएगा। हर ग्रामीण व्यक्ति को पीने, खाना पकाने और दूसरे अन्य कार्यों के लिये जिसमें घरेलू जरूरतों के साथ-साथ पशुधन भी शामिल हैं, के लिये पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की जाएगी। साथ ही प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भी निर्बाध जलापूर्ति हो पाएगी। वर्ष 2022 तक देश में हर ग्रामीण व्यक्ति को अपने घर के भीतर कम-से-कम 70 एलपीसीडी पानी उपलब्ध होगा। राज्य अपनी सुविधानुसार इसे 100 एलपीसीडी या उससे भी अधिक कर सकते हैं।

इसमें यह भी प्रस्तावित है कि वर्ष 2017 तक देश के कम-से-कम 55 प्रतिशत ग्रामीण घरों तक नल-जल पहुँचाया जाएगा। कम-से-कम 35 प्रतिशत घरों तक सीधे नल की सुविधा होगी, 20 प्रतिशत से कम लोगों को ही सार्वजनिक नल का उपयोग करना पड़ेगा, जबकि हैण्डपम्प का उपयोग करने वालों की संख्या को 45 प्रतिशत से नीचे लाने का लक्ष्य है। यह भी लक्ष्य रखा गया था कि ग्रामीण घरों, विद्यालयों एवं आँगनबाड़ी में शुद्ध पेयजल की आपूर्ति हो सके। पानी की खराब गुणवत्ता से निपटने के लिये सरकार ने वरीयता क्रम में आर्सेनिक और फ्लोराइड प्रभावित बस्तियों को ऊपर रखा है। इसके बाद लोहे, खारेपन, नाइट्रेट और अन्य तत्वों से प्रभावित पानी की समस्या से निपटने का लक्ष्य बनाया गया है। एक बार जिन बस्तियों को पेयजल आपूर्ति की उपलब्धता सुनिश्चित की जा चुकी है उन्हें पुनः ऐसी समस्या का सामना न करना पड़े, इसके लिये जलस्रोतों के संरक्षण को विशेष महत्त्व दिया गया है। गाँवों और बस्तियों में पेयजल सुरक्षा-स्तर बहाली के लिये वर्षाजल, सतही जल तथा भूजल के उचित उपयोग की व्यवस्था की गई है। गाँवों में पेयजल उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये प्रबन्धन, कार्यान्वयन और मरम्मत का ग्रामीण-स्तर पर विकेन्द्रीकृत, माँग आधारित और समुदाय प्रबन्धित योजना ‘स्वजलधारा’ प्रारम्भ की गई थी। वर्तमान बजट इन लक्ष्यों को पाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

ग्रामीण स्वच्छता एवं पेयजल आपूर्ति में कई संस्थानों की सहभागिता होती है जैसे ग्रामसभा, ग्राम पंचायत, इत्यादि। लेकिन इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य पानी समिति/ग्राम जलापूर्ति समिति का है। ग्राम जलापूर्ति समिति ग्राम पंचायत की एक स्थायी समिति है एवं ग्राम पेयजल सुरक्षा हेतु नियोजन, क्रियान्वयन, संचालन रख-रखाव एवं प्रबन्धन के लिये उत्तरदायी है जिसमें एक प्रमुख दायित्व है जल गुणवत्ता मॉनीटरिंग तथा निगरानी। रोगाणु संक्रमण, अस्वच्छताजनित अनेक रोगों जैसे डायरिया (दस्त) पेचिश, हैजा, टायफाइड आदि का कारण हैं। भूजल स्रोतों में फ्लोराइड एवं आर्सेनिक की अधिकता से फ्लोरोसिस एवं आर्सेनिक डर्मेटायटिस रोग भी उत्पन्न होने लगे हैं। वर्तमान बजट में इन सभी समस्याओं के समाधान का भी प्रयास किया गया है।

वर्तमान बजट के प्रावधानों से उम्मीद है कि देश में स्वच्छ भारत अभियान (ग्रामीण) एवं राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम को और तेजी मिलेगी। स्वच्छता का लक्ष्य 2019 तक प्राप्त किया जा सकेगा। साथ ही, ग्रामीण भारत में प्रति व्यक्ति 70 एलपीसीडी जल 2022 तक सुनिश्चित किया जा सकेगा।

(लेखक स्वास्थ्य जागरूकता पर कार्य कर रही संस्था ‘स्वस्थ भारत’ के संस्थापक सदस्य हैं।)

ई-मेल : dhimesh.dubey@outlook.com
 

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