पद्मश्री भारत भूषण बता रहे कैसे करें किसानी

पद्मश्री भारत भूषण बता रहे कैसे करें किसानी
पद्मश्री भारत भूषण बता रहे कैसे करें किसानी

एक साधारण किसान, जिसने जैविक खेती में कारगर प्रयोग कर नागरिक अलंकरण पद्मश्री तक का सफर तय किया। जिसे उन्नत कृषि तकनीकों के विकास के लिए गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय उत्तराखंड ने डॉ. ऑफ साइंस की मानद उपाधि से नवाजा, आज देश-विदेश के किसानों के लिए गुरु का काम कर रहा है। किसान के लिए कम लागत से ज्यादा मुनाफा कमाना बड़ी चुनौती है। पर जिला बुलंदशहर, उप्र की तहसील स्याना के गांव बीहटा निवासी किसान भारत भूषण त्यागी ने यह कर दिखाया है। खुद तो किया ही साथ में साठ हजार किसानों को भी सिखाकर तरक्की की राह दिखाई। स्थिति यह है कि देश-विदेश से कृषक उन तक पहुंचते हैं। प्रशिक्षण लेने के लिए आने वाले प्रशिक्षुकों को वे अपने यहां रहने-खाने की मुफ्त सुविधा देते हैं। उद्देश्य साफ है कि किसानों को आत्मनिर्भर बनाना है।

गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कर चुका है डॉ. ऑफ साइंस की मानद उपाधि से सम्मानित।                                                                             उन्नत कृषि के लिए वर्ष 2019 में पद्मश्री सम्मान से नवाजे गए बुलंदशहर, उप्र निवासी भारत भूषण त्यागी ने विकसित की है जैविक-सामूहिक कृषि की कारगर पद्धति।

यूं तो भारत भूषण त्यागी ने भी खेती की शुरुआत कीटनाशक दवाइयों और रसायनिक खाद से की थी। किंतु दो साल बाद ही उन्हें आभास हो गया कि यह खेती उन्हें कभी आगे नहीं बढ़ने देगी। उन्हें समझ आ गया कि खेती को मैनेजमेंट की दृष्टि से देखना होगा। प्रकृति के अनुरूप अभ्यास अपनाना होगा। मिट्टी की उत्पादन क्षमता के अनुरूप इंतजाम करने होंगे। जहां जैसी जलवायु है वहां के अनुसार काम करना होगा। उन्होंने प्रकृति की उत्पादन व्यवस्था का शोध किया। समझ आया कि चार कंपोनेंट जरूरी हैं- उत्पादन, प्रसंस्करण, प्रमाणीकरण और बाजार। इनकी समझ किसान को भलीभांति होना चाहिए। त्यागी बताते हैं कि किसान को उत्पादन से लेकर बाजार तक अपनी पहुंच बनानी होगी। उत्पादन से ज्यादा आय बढ़ाने पर जोर देना होगा। यह सामूहिक प्रयास से संभव है। संगठित होकर खेती करें तो उसका ज्यादा लाभ मिलेगा। रसायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं से बचना होगा। ये सब चीजें लोगों को रोगी बना रहे हैं। हमें स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण करना है। इसी सोच को लेकर वह आगे बढ़े। उन्होंने बताया, जैविक खेती के लिए खेत को तीन भागों में बांटना जरूरी है। पहला बफर जोन, जिसे बाउंड्री या कवच भी कह सकते हैं। यह कवच बाहर से आने वाले कीट-पतंगों से लेकर बाहरी पानी से भी बचाव करेगा।

दो मीटर के इस कवच एरिया में लेमन ग्रास, दो मीटर के बाद बकायन के पौधे, केले के पौधे, लहसुन, प्याज उपजाए जा सकते हैं। फिर छह मीटर और तीन मीटर का डायाग्राम बनाकर इसमें छह मीटर वाले क्षेत्र में साल भर में दो बार फसल बोई जाए और तीन मीटर वाले क्षेत्र में एक वर्ष में तीन से चार बार फसल बोने की व्यवस्था की जाए। देसी गाय के गोबर को खेतों में खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं। इससे खेतों में कीड़ा भी नहीं लगता है। फसल अच्छी होती है। खेत से कच्चे उत्पाद को बाजार के अनुरूप तैयार करें। जैसे हल्दी को पीसकर, अनाजों का दलिया बनाकर, सरसों का तेल निकालकर..। अच्छी पैकिंग करें। इसके बाद उसे बाजार पहुंचाएं। इससे किसान को इन जैविक उत्पादों का बेहतर दाम मिलेगा। अनेक फसलों के बारे में पहला काम समझ विकसित करने का है। किस समय पर, कितनी दूरी पर, यह विज्ञान समझ में आ जाएगा तो काम आसान हो जाएगा। कई फसलों को साथ-साथ लगाना जमीन के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। कीट और खरपतवार किसान का दुश्मन नहीं है यह प्रकृति की व्यवस्था है। हमें नियंत्रण को समझना होगा।

त्यागी कहते हैं कि अपनी खेती आज भी आठ एकड़ ही है, पर आस-पास के किसानों के साथ मिलकर इस समय 45 एकड़ जमीन पर उन्नत जैविक कृषि कर रहे हैं। इनका मानना है कि छोटे किसानों के लिए जैविक खेती सबसे अच्छा विकल्प है। यदि किसानों के पास जमीन कम है तो कई किसानों को जोड़कर 50 एकड़ में खेती की जा सकती है। पहले उत्पादन कुछ कम हो सकता है, लेकिन दो वर्ष बाद उत्पादन बढ़ जाता है।

 

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Post By: Shivendra
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