विश्व आर्द्रभूमि दिवस, 2 फरवरी 2016 पर विशेष
पौंग बाँध वेटलैंड, जिसे महाराणा प्रताप सागर भी कहा जाता है, हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में स्थित है। यह मानव निर्मित जलाशय है, जो ब्यास नदी पर बहुउद्देशीय परियोजना के निर्माण से बना है।
पौंग बाँध में 1975 में पानी भरा गया, जिससे 41 किलोमीटर लम्बी और अधिकतम 19 किलोमीटर चौड़ी झील जलाशय का निर्माण हुआ। इसके निर्माण के लिये भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड ने 28000 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया।
इस परियोजना का कुल जलागम क्षेत्र 12,650 वर्ग किलोमीटर है। पौंग बाँध क्षेत्र को 1983 में वन्य प्राणी अभयारण्य घोषित किया गया। इसके प्रबन्धन की योजना दिसम्बर 1984 में पास हुई।
1994 में इसे राष्ट्रीय महत्त्व का वेटलैंड और रामसर स्थल घोषित किया गया। इसका 307 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र अभयारण्य है और अभयारण्य के चारों ओर 440 मीटर समुद्र तल से ऊँचाई तक का क्षेत्र बफर ज़ोन घोषित किया गया है।एक लाख से भी ज्यादा स्थानीय और प्रवासी पक्षी यहाँ बसेरा करते हैं। यहाँ 220 से ज्यादा पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं। 27 प्रजाति की मछलियाँ इस जलाशय में पाई जाती हैं। ये मछलियाँ पक्षियों को भोजन उपलब्ध कराने के साथ-साथ स्थानीय मछली पकड़ने वाले समुदायों के लिये आजीविका का मुख्य साधन भी हैं।
मछली प्रबन्धन के लिये कई सहकारी सभाओं के माध्यम से व्यवस्था संचालित होती है। सरकार मत्स्य पालन विभाग के माध्यम से इस जलाशय में हर साल मछलियों का बीज डालकर मछलियों की पैदावार बढ़ाने का प्रयास करती है।
प्रदेश के बीज उत्पादन केन्द्रों के अलावा कुरुक्षेत्र मछली बीज उत्पादन केन्द्र से भी बीज ला कर जलाशय में डाला जाता है।
वेटलैंड पारिस्थितकीय दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण स्थल होते हैं। ये शुष्क भूमि और जल के बीच की महत्त्वपूर्ण कड़ी होते हैं। इन्हें जीवन की नर्सरी भी कहा जाता है। क्योंकि इनमें शुष्क भूमि, दलदलों, और पानी में पनपने वाली जैव विविधता एक साथ देखी जा सकती है। साथ ही जलीय वनस्पति, शैवाल और सूक्ष्मजीवियों के पेचीदा सहकार्य से ये जल शुद्धिकरण का भी महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं।
वेटलैंड की भूमि विशेष स्पंज कार्य करती है। जो पानी की बहुतायत के समय पानी को सोख लेती है और कमी के समय उसे छोड़ती रहती है। बाढ़ नियंत्रण और गाद नियंत्रण का महत्त्वपूर्ण कार्य भी वेटलैंड करते हैं।
भूक्षरण रोकने और प्राणी एवं वानस्पतिक विविधता द्वारा प्राणी जगत की एक दूसरे पर निर्भरता की अद्भुत व्यवस्था के दर्शन यहाँ हो सकते हैं। पानी में बहकर आये उपजाऊ तत्वों को रोक कर ये इनके पुनःचक्रीकरण की भूमिका भी निभाते हैं। भूजल का पुनःभरण करने के साथ ये मनोरंजन स्थलों के रूप में भी सेवा देते हैं।
वर्तमान समय में वेटलैंड कई तरह के खतरों से भी घिरते जा रहे हैं। खासतौर पर ठोस और तरल कचरे और अपशिष्टों के इनमें डाले जाने के कारण ये प्रदूषित होते जा रहे हैं या मलबे के करण भर कर सिकुड़ते जा रहे हैं। इनके जलागम क्षेत्रों में कृषि में प्रयोग होने वाले रसायनों और जहरीले पदार्थों के वेटलैंड क्षेत्रों में पहुँच जाने से वेटलैंड प्रदूषित होते जा रहे हैं।
पौंग बाँध क्षेत्र भी इन खतरों से सुरक्षित नहीं है। इसके अलावा बरसात के बाद जलाशय का पानी उतर जाने के बाद काफी जमीन बाहर आ जाती है। उसमें लोग गेहूँ की फसल ले लेते हैं। बाँध प्रशासन इसे भूक्षरण का कारण मानता है। इस मुद्दे को लेकर जनता से टकराव की स्थितियाँ भी बनती रही हैं। किन्तु ऐसा कोई प्रत्यक्ष प्रभाव देखने में नहीं आया है।
जहाँ पुनर्वास का काम दीर्घकालीन जनहित को ध्यान में रखे बिना किया गया हो, पुनर्वास के लिये भूमि आवंटन कार्य आज तक लम्बित पड़ा हो, 16 हज़ार परिवारों की भूमि औने-पौने दामों में छीनकर उन्हें सतत आय की व्यवस्था में कोई योगदान न किया गया हो, वहाँ साल में एक आध फसल प्राप्त कर लेना निसन्देह स्थानीय लोगों के लिये एक बड़ा सम्बल है, जिसे जारी रहना चाहिए।
कुछ घटनाएँ प्रवासी पक्षियों के शिकार की भी कभी-कभार होती रहती हैं। अधिकांश प्रवासी पक्षी मछलियों को अपना भोजन बनाते हैं, जिसके कारण मछुआरों के विरोध के स्वर भी कभी-कभी उभरते रहते हैं।
इस तरह के छोटे-छोटे टकरावों को इस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देकर रोज़गार पैदा करके हल किया जा सकता है। इस दिशा में काफी कुछ करने की ज़रूरत है। इस क्षेत्र के युवाओं को पर्यटन उद्यमियों के रूप में प्रशिक्षण देकर और आर्थिक सहायता देकर रोज़गार के नए अवसर पैदा किये जा सकते हैं।
भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड से हिमाचल को राज्य पुनर्गठन के समय निर्धारित 7.19% हिस्सा इस परियोजना से पैदा की जा रही बिजली में से मिलना चाहिए।
उच्चत्तम न्यायालय द्वारा हिमाचल प्रदेश के हक़ में यह फैसला हो जाने के बावजूद पिछला बकाया और वार्षिक हिस्सा हिमाचल प्रदेश को नहीं मिल रहा है। इसमें केन्द्र सरकार के दखल से हिमाचल का हिस्सा प्राप्त करने के प्रयास होने चाहिए।
इस राशि को स्थानीय पर्यटन आधारित उद्यमिता विकास के प्रोत्साहन पर खर्च करके मानव और वन्य प्राणी टकराव को भी कम किया जा सकता है, जिससे इस वेटलैंड का न्याय पूर्ण लाभ स्थानीय प्रभावित समुदायों और हिमाचल सरकार को भी मिल सकता है। इस वेटलैंड की दीर्घकालीन बेहतरी के लिये भी यह अनुकूल कदम साबित होगा।
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