पाठ्यक्रम में शामिल हो गंगा

मंदिरों, आश्रमों का चढ़ावा, घर के हवन की बची सामग्री और राख, दुकानदारों के चमड़ा और प्लास्टिक जड़ित बही-खाते सब गंगा में बहा दिए जाते हैं। अपने परिजनों की लाशों को गंगा में स्नान कराने वालों की संख्या कम नहीं है। एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट, मृत प्रियजन की चमड़े की बेल्ट, पर्स आदि गंगा में आम बहते मिल जाते हैं। आज गंगा मंत्री उमा भारती गंगा में थूके जाने पर जुर्माने की बात कहती हैं, लेकिन अंग्रेजों द्वारा बनाए 1916 के एक कानून के मुताबिक, गंगा में कुल्ला करना, साबुन लगाकर नहाना, रगड़कर नहाना या मंजन करना पूरी तरह निषिद्ध है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था, इसमें कोई अद्भुत बात नहीं है कि भारत की जनता की कल्पना पर गंगा की अमिट छाप है। फिर गंगा के बिना हरिद्वार की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब से बनारस में गंगा मैया के उद्धार की बात कही है तब से गंगा तट पर बसे बनारस को जितनी उम्मीदें हैं, शायद उससे कई गुणा उम्मीदें हैं, हरिद्वार में रहने वालों को हैं।

चाय, पान की दुकान से लेकर ढाबे, स्टेशन, आश्रमों, सरकारी दफ्तरों बड़े सेठों की दुकानों पर मोदी के गंगा मुक्ति अभियान के चर्चे हैं। हरिद्वार वालों का कहना है कि असली गंगा तो हरिद्वार में ही है। आगे तो गंगा का स्वरूप लगातार बिगड़ता जाता है। मायापुर से ही गंगा में सीवरेज का मुह खोल दिया गया है। बकौल टिकौला यहां प्रशासन ने ही 12 इंच के सीवरेज के पाइप का मुंह गंगा में खोल दिया है। लोक विज्ञान संस्थान देहरादून के वैज्ञानिक अनिल गौतम भी कहते हैं, हरिद्वार के बाद इलाहाबाद और बनारस में गंगा नहीं है। साधु-संत और बाकी सब लोग गंगा के भुलावे में स्नान करते हैं।

उत्तर प्रदेश के किसानों के खेतों की सिंचाई करने के लिए ऋषिकेश के बाद डायवर्जन बना दिया गया है। इससे हरिद्वार में गंगा का प्रवाह प्रभावित हुआ है। गौतम कहते हैं, निश्चित रूप से किसानों को पानी दिया जाना चाहिए, लेकिन हमें हर वर्ष 10-20 प्रतिशत गंदे पानी को संशोधित कर किसानों को देने की योजना बनानी चाहिए। राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को इस पर ठोस पहल करनी चाहिए।

मूल रूप से हरिद्वार निवासी सामाजिक कार्यकर्ता और वरिष्ठ पत्रकार दुर्गाशंकर त्रिपाठी कहते हैं, वस्तुत: गंगा को बचाने का धर्म उन गंगा पुत्रों का है जो इसके किनारे रहते हैं, जिनका जन्म गंगा तटों पर हुआ है और जिनकी रोजी-रोटी चलती है गंगा के सहारे। आश्रमों के महंतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कम-से-कम उनके आश्रम में तो सीवेज, सीवरेज की समुचित व्यवस्था हो।

मंदिरों, आश्रमों का चढ़ावा, घर के हवन की बची सामग्री और राख, दुकानदारों के चमड़ा और प्लास्टिक जड़ित बही-खाते सब गंगा में बहा दिए जाते हैं। अपने परिजनों की लाशों को गंगा में स्नान कराने वालों की संख्या कम नहीं है। एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट, मृत प्रियजन की चमड़े की बेल्ट, पर्स आदि गंगा में आम बहते मिल जाते हैं।

आज गंगा मंत्री उमा भारती गंगा में थूके जाने पर जुर्माने की बात कहती हैं, लेकिन अंग्रेजों द्वारा बनाया कानून जो आज भी लागू है के मुताबिक 1916 के एक कानून के मुताबिक, गंगा में कुल्ला करना, साबुन लगाकर नहाना, रगड़कर नहाना या मंजन करना पूरी तरह निषिद्ध है।

हरिद्वार के खड़खड़ी में दो दशक से चाय की दुकान चलाने वाले पप्पू भाई के मुताबिक लोगों ने गंगा को सर्विस स्टेशन बना दिया है। यहां लोग अपनी गाड़ी धोते हैं। यहां एक दशक के अधिक समय से शवदाह गृह बना हुआ है, लेकिन यह लंबे अरसे से बेकार पड़ा है। गंगा के एकदम ऊपर ब्रह्मकुंड से ऊपर शमशान घाट है, वहां से सारी हड्डियां, अधजले शव, राख सीधे गंगा में आकर गिरते हैं। यात्रियों को गंगा में कपड़े बहाने से कोई नहीं रोकता। हालांकि तीर्थ पुरोहित सभा के पदाधिकारी बार-बार गंगा की पवित्रता बनाए रखने की बात लाउडस्पीकर से दोहराते रहते हैं।

शहर की 3 लाख से अधिक आबादी खुले में शौच जाती है। पहाड़ के ऊपर मनसा देवी मंदिर, कांगड़ा मंदिर, नाईसोता और ललतारा पुल के पास बसी वाल्मिकी बस्ती का शौच आदि सीधा गंगा में गिरता है। यहां के तीर्थ पुरोहित, हलवाई, हज्जाम और पुराने कारोबारी गंगा की पवित्रता और गंगाजल की गुणवत्ता कम होने की बात करने वालों पर सवाल उठाते हैं। तीर्थ पुरेहित यतींद्र टिकोला गंगा सभा के कोषाध्यक्ष हैं। बकौल टिकोला निश्चित रूप से गंगा जल थोड़ा प्रभावित हुआ है, लेकिन इतना नहीं जितना कि शोर मचाया जा रहा है।

बकौल टिकोला हां गंगा में जल प्रवाह कम होने के कारण हरिद्वार में गंगा पर प्रभाव पड़ा है। पंडित मदन मोहन मालवीय ने गंगा के लिए अंग्रेजों से संघर्ष के बाद जिस गंगा को अविछिन्न रखा था, बिजली परियोजनाओं के नाम पर बन रहे टनलों से अवरुद्ध हो रही है। अंग्रेजों ने जो गंगा के विरुद्ध नहीं किया वह स्वतंत्र भारत की सरकारों ने कर दिया।

आजादी से पहले तक गंगा तट पर भवन निर्माण की अनुमति नहीं थी। किसी भी यात्री को यहां रात्रि में ठहराव की अनुमति नहीं थी। यहां तक कि पंडे-पुरोहित भी शाम को अपने कनखल, ज्वालापुर के ठिकानों पर चले जाते थे।

दुर्गाशंकर भाटी के मुताबिक, कविता-कहानियों के माध्यम से पहली कक्षा से ही पढ़ाया जाना चाहिए। जागरूकता ही गंगा शुद्धि का एकमात्र उपाय है। गंगा का बीता हुआ कल, आज से आने वाले कल के लिए क्या कीमत चाहता है, यह हम सबको सोचना होगा।

कांवड़ गंगा में बहाने पर प्रतिबंध लगे


हर साल यहां लाखों कांवड़िए आते हैं। सावन माह में कांवड़ मेला अब अपने चरम पर रहा। कश्मीर से कन्याकुमारी तक के कांवडि़एं यहां आए। इनकी कांवड़ में शीशा, प्लास्टिक, कपड़ा और प्लास्टिक सब लगा था। कांवड़ों के साथ साल भर का मंदिरों, घरों का चढ़ावा, हवन की सामग्री, कपड़े और दूसरा सामान गंगा में प्रवाहित करके चले गए। लाखों लोग एक-एक दिन में गंगा में गोते लगाते थे। इस सबका कहर मछलियों पर टूटा, मछलियां कम हो जाएंगी, उनका प्रजनन प्रभावित होगा।

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