पानी संकट का वर्तमान-भूत-भविष्य

विश्वव्यापी जल संकट
विश्वव्यापी जल संकट

जल की कमी समस्त देशों और महाद्वीपों के दायरों को लांघ कर विश्वव्यापी समस्या बन गई है। धरातल का दो-तिहाई हिस्सा जल से घिरा है, लेकिन इसका दो-तीन प्रतिशत ही इस्तेमाल किया जाता हैं। अंतरराष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान, कोलंबो सहित अनेक एजेंसियों का अनुमान है कि भविष्य में जल की कमी बड़ी समस्या होगी।

हमारी पृथ्वी पर जीवन मौजूद है, और ब्रह्मांड में ऐसा संयोग एक विरल घटना है। पृथ्वी पर जीवन होने के पीछे कुछ अहम कारण जिम्मेदार होते हैं। यहां पर जल का होना इनमें से एक प्रमुख कारण है। एक समय था जब भारत के गांवों में जल के पर्याप्त स्रोत हुआ करते थे। गांव जल संरक्षण से जुड़े परंपरागत ज्ञान के केंद्र थे। लेकिन औद्योगिक विकास और नगरीकरण के दबाव के कारण जल के स्रोत नष्ट होते चले गए। आज जल की कमी समस्त देशों और महाद्वीपों के दायरों को लांघ कर विश्वव्यापी समस्या बन गई है। धरातल का दो-तिहाई हिस्सा जल से घिरा है, लेकिन इसका दो-तीन प्रतिशत ही इस्तेमाल किया जाता हैं। अंतरराष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान, कोलंबो सहित अनेक एजेंसियों का अनुमान है कि भविष्य में जल की कमी बड़ी समस्या होगी।

वर्तमान समय में मानव समाज भूजल के गिरते स्तर की वजह से गंभीरतम जल-संकट की चपेट में है। पीने के पानी की कमी और बढ़ते भूजल प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य संबंधी कई घातक बीमारियां तथा जलसंकट जैसी विकराल समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। जलप्रदूषण के दो प्रकार के स्रोत हैं। बिंदु स्रोत एवं गैर-बिंदु स्रोत। नालियां, सीवरेज लाइन उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट धर्मल पावर प्लांट से निकलने वाली गर्म पानी की नालियों आदि बिंदु स्रोत होते हैं। खेती और गांवों से निकलने वाली रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों तथा जैव अपघटनीय अपशिष्टों का अपवाह आदि गैर-बिंदु स्रोत होते हैं। 

भारत में अपवाह जल प्रदूषण का प्रमुख कारण है। प्रदूषण स्रोतों से निकलने वाले जैविक एवं अजैविक, दोनों प्रकार के प्रदूषक जल निकायों को दूषित करते हैं एवं जल प्रदूषण के कारण बनते हैं। सामान्यतः जल प्रदूषण तीन प्रकार के होते हैं सतही, उपसतही और समुद्री जल प्रदूषण। जल प्रदूषण पानी और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र की गुणवत्ता को खराब करता है। जल प्रदूषण जलजनित रोगों का कारण बनता है और ये रोग मृत्यु के भी प्रमुख कारण बनते हैं।

दूषित पानी पीने से ज्यादा लोग मरते हैं

संयुक्त राष्ट्र की ‘सिक वॉटर' शीर्षक नाम की रिपोर्ट के अनुसार अब दूषित पानी से मरने वाले लोगों की संख्या युद्ध और विभिन्न प्रकार की हिंसाओं में मरने वाले लोगों की संख्या से अधिक है। दूषित पानी से प्रति वर्ष पांच वर्ष से कम उम्र के 18 लाख बच्चों की मौत होती है। पांच वर्ष से कम उम्र का एक बच्चा पानी से संबंधित बीमारियों से प्रत्येक 20 सेकेंड में मर जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 20 लाख टन कचरे को नदियों एवं समुद्रों में प्रति दिन डिस्चार्ज किया जाता है, जिससे बीमारी फैलती है, और पारिस्थितिकी तंत्र को दुष्प्रभावित करती है। रिपोर्ट के अनुसार पशुपालन, औद्योगिक इकाइयों, कृषि अपशिष्टों और अन्य कचरे के साथ-साथ उर्वरक अपवाह का कॉकटेल मुख्य जल प्रदूषक होता है। इसी कॉकटेल के कारण सभी प्रकार के जल प्रदूषण होते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 84 प्रतिशत भारतीय, जिनकी पहुंच में स्वच्छ पानी नहीं है, ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों की संयुक्त राष्ट्र द्वारा की गई समीक्षा में पाया गया है कि भारत के 35 राज्यों (केंद्रशासित प्रदेशों सहित) में से 7 राज्यों में स्थित गांवों ने सुरक्षित जल के स्रोत का लक्ष्य प्राप्त किया है। अधिकांश शहरों और 19000 से ज्यादा गांवों के भूजल में फ्लोराइड, नाइट्रेट, कीटनाशक आदि स्वीकार्य सीमा से अधिक मौजूद पाए गए। इस लिहाज से जल की गुणवत्ता चुनौतीपूर्ण है, और इससे यह तथ्य उजागर होता है कि 21 प्रतिशत संचारी रोग जल से ही उत्पन्न होते हैं, और जल के संक्रमण से होने वाली 75 प्रतिशत मौतें 5 साल से कम उम्र के शिशुओं को अपनी चपेट में लेने से होती हैं। हम जानते हैं कि पौधों, जंतुओं, मनुष्य और अन्य जीव स्वरूपों के सेहतमंद जीवनयापन के लिए पानी बेहद आवश्यक होता है। बढ़ती मानव आबादी ने पर्यावरण और जीव अस्तित्व के समक्ष चुनौती उत्पन्न की है। भूजल स्तर में गिरावट, जल स्रोतों का संदूषण और पानी का बेतहाशा दोहन जल संसाधनों से संबंधित कुछ समस्याएं हैं। ऐसी परिस्थिति में सुरक्षित और साफ पानी की उपलब्धता विकट चुनौती है।

मुख्य स्रोत भूजल

हमारे देश में पानी का मुख्य स्रोत भूजल होता है. और देश की करीब 85 प्रतिशत आबादी पानी के लिए इसी स्रोत पर निर्भर होती है। इसके अलावा, ग्रामीण जलापूर्ति का शेष 15 प्रतिशत भूसतह जल स्रोत से प्राप्त होता है। सतह के पानी की अपेक्षा भूजल के प्रदूषित होने का अधिक जोखिम होता है। भूजल में गुणवत्ता के मुख्यतः दो प्रकार के मुद्दे होते हैं। पहला, भूगर्भीय निर्माण प्रक्रिया द्वारा इनका संदूषण जैसे फ्लोराइड, आर्सेनिक, आयरन आदि की अधिकता और दूसरा, मानवीय गतिविधियां जैसा रासायनिक उर्वरकों के हस्तक्षेप के कारण भूजल में प्रदूषण।

चार बिलियन लोग परेशान

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार लगभग 4 बिलियन लोग वर्ष में कम से कम एक महीने के लिए पानी की भारी कमी का अनुभव करते हैं, और लगभग 1.6 बिलियन लोग (विश्व की आबादी का लगभग एक चौथाई) स्वच्छ, सुरक्षित जल आपूर्ति तक पहुंचने में समस्याओं से ग्रसित हैं। आईपीसीसी के एक अध्ययन में कहा गया है कि 2025 तक प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता एक हजार घन मीटर से भी कम हो सकती है। इससे स्पष्ट होता है कि जल संकट कितना भयंकर रूप धारण करने जा रहा है। वर्तमान भारत में विश्व की लगभग 18 प्रतिशत जनसंख्या निवास कर रही है। हालांकि वैश्विक जल संसाधन का मात्र 4 प्रतिशत ही भारत में विद्यमान है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा संपूर्ण देश में पहली बार जल निकायों की गणना संचालित की गई जिसमें प्राकृतिक और मानव निर्मित जल निकायों जैसे-तालाब, टैंक, झील आदि के साथ-साथ जल निकायों पर अतिक्रमण से जुड़े आंकड़े भी शामिल है।

बेंगलुरु में पानी की यह स्थिति है कि लोग एक-एक बूंद के लिए तरस रहे हैं। पैसा खर्च कर बड़ी इमारतें तो बना ली गई है, आलीशान बाथरूमों का निर्माण भी हुआ है, लेकिन उनके शावरों से पानी आना ही बंद हो चुका है। हालात ऐसे हैं कि लोग ऑफिस तक जाने की स्थिति में नहीं है, वर्क फ्रॉम होम की मांग की जा रही है। टैंकरों के जरिए पानी पहुंचाया जा रहा है, पानी की बर्बादी पर 5000 रुपये तक जुर्माना भी लगाया जा रहा है। बेंगलुरु को 145 लीटर करोड़ पानी कावेरी नदी से मिलता है, 60 करोड़ लीटर पानी वोरवेल से आता है। अब ये दोनों स्रोत सूख रहे हैं, और आईटी हब में हाहाकार मच गया है। बेंगलुरु की स्थिति देखने से पता चलता है कि उससे ज्यादा भयावह स्थिति देश के दूसरे राज्यों में हो सकती है। कई अध्ययनों से संकेत मिलता है कि भारत जल संकट की तरफ तेजी से बढ़ रहा है।

बढ़ता जल प्रदूषण उपलब्ध जल स्रोतों को प्रदूषित करके जल संकट को बढ़ा देता है, जिससे वे उपभोग के लिए असुरक्षित हो जाते हैं। इससे पहले से ही सीमित स्वच्छ जल की उपलब्धता और कम हो जाती है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ जाती हैं।  भारत विश्व में भूजल का सबसे अधिक निष्कर्षण करता है। विश्व में वर्तमान समय में दो अरब से अधिक लोग स्वच्छ पेयजल की कमी का सामना कर रहे हैं। अनुमान है कि 2050 तक प्रत्येक चार में से एक व्यक्ति स्वच्छ पेयजल की गंभीर कमी का सामना करने को विवश होगा। भविष्य में भूजल संरक्षण के लिए हमें खेती में सिंचाई जल का विवेकपूर्ण उपयोग करना होगा जिससे जलसंकट जैसी गंभीर समस्याओं से मुक्ति मिल सके। भारत में पहली बार केरल सरकार ने 17 अप्रैल, 2023 को जल के संकट से निजात पाने के लिए जल बजट अपनाया। जल संरक्षण और जल की समस्या को दूर करने के लिए हम प्रत्येक वर्ष (1993 से) 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाते हैं। इस अवसर पर पानी बचाने से लेकर सभी लोगों को स्वच्छ जल उपलब्ध कराने की बात होती है। कह सकते हैं कि प्रदूषण को नियंत्रित कर जल का बचाव करना आवश्यक है। भूजल बचा रहा तो पानी की किल्लत से बचे रहेंगे।

लेखक डॉ. रमा शंकर यादव, श्री गणेश राय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, डोभी, जौनपुर में भूगोल विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। 

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Post By: Kesar Singh
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