पानीपत का पानी (भाग 2)


पानीपत. शहर के डाई हाउस संचालक चोरी-छिपे जहरीले पानी को भू-गर्भ में पहुंचाकर पानी को विषैला बना रहे हैं। प्रतिदिन लगभग 32 लाख लीटर जहरीला पानी जमीन के अंदर पहुंचा रहे हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जन स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई कुछ ही डाई हाउसों तक चलकर दम तोड़ जाती है। अधिकारियों की अनदेखी से शहर का पेयजल दिनोंदिन विषैला होता जा रहा है।

पांच बार होता है प्रोसेस
किसी कपड़े या धागे को डाई करने के लिए पांच बार प्रोसेस से गुजारना पड़ता है। सबसे पहले कच्च माल डालकर एक राउंड लगाया जाता है। दूसरे राउंड में साबुन से वाश कर साफ पानी से धोया जाता है। तीसरे राउंड में कपड़े या धागे में रंग दिया जाता है। चौथे राउंड में शेड फाइनल होने पर रंग दिया जाता है। पांचवें राउंड में कलर फिक्स किया जाता है। एक मशीन में एक बार दो सौ लीटर पानी डाला जाता है। पांच राउंड में एक मशीन एक हजार लीटर पानी बाहर निकालती है।

 

 

कैसे हो रहा है पानी विषैला


शहर में इस समय करीब 15 सौ डाई हाउस हैं, इनमें तीन सौ बड़े और करीब 12 सौ छोटे डाई हाउस हैं, जबकि पानीपत डायर्स एसोसिएशन के पदाधिकारी लगभग नौ सौ डाई हाउस होने की बात कहते हैं। बताया जाता है कि बड़े डाई हाउसों में करीबन 10 और छोटों में दो डाई मशीन हैं।

ईटीपी लगाना है जरूरी
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नियमों में डाई हाउस में ईटीपी लगाना जरूरी है। डाई हाउस की परमिशन लेते समय डायर्स को ईटीपी के सहयोग से केमिकलयुक्त पानी को साफ कर निकालने की सलाह दी जाती है। बिना ईटीपी लगे डाई हाउसों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड परमिशन नहीं देता, लेकिन शहर के लगभग 350 डाई हाउसों में ही ईटीपी लगे हुए हैं। बाकी नियमों की धज्जियां उड़ाने में लगे हैं। इनके कारण भूमिगत पानी लगातार विषैला होता जा रहा है।

इन क्षेत्रों में डाई हाउस
शहर के तहसील कैंप, नूरवाला, बिचपड़ी, हरिसिंह कालोनी, वार्ड 10-11, सनौली रोड, बबैल क्षेत्र, माडल टाउन इंडस्ट्रीयल एरिया, काबड़ी रोड, आजाद नगर, कच्च कैंप, सेक्टर 24-25, 29 आदि क्षेत्रों में खुले रूप से नालियों में डाई हाउस केमिकलयुक्त पानी फेंक रहे हैं।

नहीं हो पाए शिफ्ट
रि हायशी क्षेत्र से डाई हाउस को बाहर निकालने के लिए हुडा सेक्टर-29 पार्ट-टू में वर्ष 2003 में प्लाट काटे गए। जिला प्रशासन के नियमानुसार 2006 तक डाई हाउसों को नए सेक्टर में शिफ्ट करना था, लेकिन इनकी शिफ्टिंग का मामला आज तक हल नहीं हो पाया है। मामला कोर्ट में विचाराधीन है। डाई हाउस संचालक जहां सेक्टर में बिजली, पानी की सुविधा न होने की बात कर रहा है, वहीं हुडा और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सेक्टर में सभी सुविधा होने का दावा कर रहा है।

बगैर ईटीपी लगाने वालों को एसोसिएशन का सदस्य नहीं बनाया जाता, यदि किसी कारणवश जो बन भी गए हैं, उन्हें एसोसिएशन समय-समय पर ईटीपी लगवाने की सलाह देती है। डायर्स सेक्टर 29 पार्ट-2 में डाई हाउस शिफ्ट करने को तैयार है, विभाग ही डाई हाउसों की अनदेखी कर रहा है। - यशपाल मलिक, अध्यक्ष, पानीपत डायर्स एसोसिएशन।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड समय-समय पर डाई हाउसों का निरीक्षण करता है। विभाग की टीम बारीकी से डाई हाउस के पानी निकासी की जांच करती है। किसी प्रकार की कमी मिलने पर विभागीय कार्रवाई की जाती है। गंभीर मामला मिलने पर डाई हाउस को सील भी किया जाता है। - रणबीर सिंह, एसडीओ, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पानीपत

विषैला पानी फसल पर विपरित असर डालेगा। पानी के अधिक जहरीला होने से फसल जल सकती है। ऐसे में किसानों को पानी को टेस्ट कर ही इस्तेमाल करना चाहिए। अपने स्तर पर पानी का प्रयोग खेतों में नहीं प्रयोग करना चाहिए। - डा. ओमप्रकाश राठी, एपीपीओ, सहायक पौधा संरक्षण अधिकारी, कृषि विभाग, पानीपत।

डाई हाउस से केमिकल युक्त पानी निकलता है। इसमें कार्सिनो जेनिक मिला रहता है जो एक खतरनाक केमिकल है। इस मिलावटी पानी को लगातार पीने से कैंसर हो सकता है। - डा. रमेश छाबड़ा, वरिष्ठ फिजीशियन छाबड़ा हास्पिटल

 

 

 

 

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