पानी सहेजने का पाठ पढ़ाता रेनबो ड्राइव


इलेक्ट्रानिक सिटी और व्हाइट फील्ड के बीच ​का इलाका बंगलुरु का आईटी कॉरीडोर कहलाता है, सरजापुर इसी कॉरीडोर के बीच में तेजी से विकसित हुआ इलाका है। दस-पन्द्रह साल पहले तक यहाँ धान के खेत और नारियल के बाग हुआ करते थे लेकिन आज ऊँची इमारतें, मॉल, ढेरों अपार्टमेंट क्लस्टर, विला और गेटेड कम्यूनिटी वाले रिहायशी टाउनशिप हैं।

सरजापुर रोड पर स्थित 'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी भी इन्हीं में से एक है लेकिन इन सबसे बहुत अलग है, 360 प्लाट वाले इस रिहायशी कॉलोनी के 250 घरों में जो लोग रहते हैं वो बगैर बंगलुरु नगर निगम से पानी लिये हुए या बगैर पानी का टैंकर मंगवाए ना सिर्फ पानी की अपनी-अपनी जरूरतों के मामले में आत्मनिर्भर हैं बल्कि अति​रिक्त पानी दूसरों को भी देते हैं। और ये सम्भव हुआ है उनके पानी बचाने, संग्रह करने और पुनः इस्तेमाल लायक साफ करने से।

बंगलुरु जैसे महानगर में जहाँ हमेशा पानी की किल्लत रहती है 'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी जैसे उदाहरण सभी के लिये अनुकरणीय है। इस बारे में और जानकारी देते हुए 'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी के निवासी और जल संरक्षण में सक्रिय केपी सिंह बताते हैं, ‘मुझसे पहले इस अभियान से जयवंत जुड़े थे मैंने उन्हीं से प्रेरित होकर जल आत्मनिर्भरता को एक मिशन और चुनौती के तौर पर लिया, 2006 से यह महसूस किया कि कावेरी का पानी बंगलुरु के लिये पर्याप्त नहीं है, उन दिनों कर्नाटक-तमिलनाडु में कावेरी के पानी को लेकर फिर विवाद चल रहा था और जिस तरह से बंगलुरु शहर बढ़ रहा था मुझे लगने लगा कि कावेरी के पानी पर निर्भर रहना अक्लमन्दी नहीं है। जब हमने अपनी जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये वर्षाजल संग्रहण की शुरुआत की तो लोगों को भरोसा नहीं हुआ, उन्होंने कहा भी कि कावेरी का पानी तो आ ही जाएगा, लेकिन हमने लोगों के बीच अभियान चलाया, बार-बार उन्हें बताते रहे। जल प्रबन्धन को हमनें तीन चरणों में बाँटा जल संरक्षण, जल संग्रहण और इस्तेमाल पानी का पुनः इस्तेमाल। लोगों के पानी के इस्तेमाल करने की आदत को किफायती बनाया, 50 लीटर पानी इस्तेमाल करने वाले लोग 20 लीटर में काम चलाना सीख गए। ​हमने पानी के इस्तेमाल के लिये हर घर में मीटर लगाया, पानी की मात्रा के लिये अलग स्लैब बनाया, जल सन्तुलन बनाने की कोशिश की इसके तहत ये सुनिश्चित किया कि हम जितना पानी धरती से निकाल रहे हैं उतना ही वापस भी डालें। कुल 35 एकड़ में फैले रेनबो ड्राईव में हमने कॉलोनी के हर घर में 250 से ज्यादा रीचार्ज कुआँ बनाया है, स्ट्राम वाटर ड्रेनेज बनाया है, एक कॉमन स्ट्रक्चर बनाया और अब जितना पानी धरती से लेते हैं उतना ही वापस डाल भी रहे हैं। कुल मिलाकर जल के मामले में हम पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो चुके हैं।’

यह कॉलोनी 18 साल पुरानी है और इस कॉलोनी के 16-17 साल पुराने बोरवेल अभी भी 150 फीट की गहराई पर 2 लाख लीटर पानी देते हैं। जबकि इसी सरजापुर आउटर रिंग रोड के आस-पास 800 से 1600 फीट नीचे जाने पर पानी मिल पाता है। के पी सिंह बताते हैं 'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी कॉलोनी के ठीक बाहर जो दूसरे रिहायशी प्लॉट हैं वहाँ 1200 फीट पर भी पानी नहीं मिला जबकि 'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी से उसकी दूरी 1 किलोमीटर भी नहीं होगी।

'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी कॉलोनी के केन्द्रीय इलाके में जल संरक्षण किया जाता है गेट के पास के इलाके में रिचार्ज कुएँ नहीं बनाए गए हैं, इसकी वजह एक तो उस ओर जमीन की ढाल का 5 फीट नीचे होना है और दूसरी वजह वहाँ एक वाटर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का होना है। ऐसे में वहाँ जमीन के भीतर पानी रिचार्ज करने से उसके दुषित होने की पूरी सम्भावना है। वैसे भी हाल ही में किये गए एक अध्ययन में ये पता चला है कि बंगलुरु के 52 प्रतिशत बोरवेल का पानी पीने लायक नहीं है, उनसे ​मिलने वाले जल में 8.4 प्रतिशत तक ईकोलाई बैक्टीरिया पाये गए हैं।

जाहिर है ऐसे में केवल बारिश के पानी से भूजल रिचार्ज ​करना जरूरी नहीं बल्कि ये सुनिश्चित करना भी कि अन्दर प्रदूषित जल ना जाये। के पी सिंह ने ये भी बताया कि 'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी में जो भूजल उपयोग हो रहा है वो पूरी तरह से सुरक्षित और प्रदूषण मुक्त है, सीधे नल से बगैर आरओ ट्रीटमेंट के इस पानी को पिया जा सकता है। वो ये भी बताते हैं कि हम लगातार पानी की गुणवत्ता जाँच कराते रहते हैं लोग पानी की गुणवत्ता को लेकर कभी भी आश्वस्त हो सकते हैं। इसके अलावा विश्वनाथ जी की जल संरक्षण के लिये काम करने वाली संस्था बायोम की ओर से भूजल स्तर की जाँच करने के लिये उपकरण लगाए गए हैं ​जिससे जमीन में कितना पानी संग्रहित हो रहा है ये पता चलता रहता है।

के पी सिंह बताते हैं कि ये पूरा कार्यक्रम लोगों के फंडिग से बना इसके लिये लोगों को तैयार करना पड़ा उनसे पहले जयवंत इस अभियान से जुड़े थे और उन्होंने जल संरक्षण को लेकर 'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी के लोगों को संवेदनशील और जिम्मेदार बनाने का काम बखूबी किया उनकी कोशिशों से ही लोग इस प्रणाली पर शुरुआती खर्च करने और उसे अपनाने को तैयार हुए।

नतीजा आज 'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी न केवल पानी के मामले में आत्मनिर्भर है बल्कि आस-पास को पानी दे भी रहा है। यह एक प्रक्रिया के तहत हुआ पहले हमने जल संरक्षण किया इससे जल सन्तुलन बना यानी जितना इस्तेमाल कर रहे हैं उतना ही वापस भी कर रहे हैं आखिरी चरण में हमने कॉलोनी के घरों में इस्तेमाल किये गए 2 लाख लीटर जल का संशोधन कर उन्हें फिर इस्तेमाल लायक बनाने की शुरुआत की, वाटर ट्रीटमेंट की शुरुआत की और इस प्रक्रिया से हासिल जल, हमारा सरप्लस वाटर था। वो कहते हैं, हमारे पास पहले से दो पारम्परिक इलेक्ट्रोमैकेनिकल प्लांट थे, जिनका इस्तेमाल किया गया हमने ग्रीन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाया जो बिना किसी मशीन और बगैर बिजली के केवल पौधों के द्वारा पानी का संशोधन करता है। ये अपने आप में बेहतरीन तकनीक है जिसे पूरे देश में अपनाया जाना चाहिए, इससे पहले 'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी में ही सीवेज ट्रीटमेंट पर एक लाख का खर्च आता था अब एक पैसा भी नहीं खर्च होता।

पानी के वितरण में सात-आठ हजार जरूर खर्च हो जाते हैं लेकिन बगल का एक आर्गेनिक फार्म 'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी से पानी खरीदता है, जो कॉलोनी के लिये अतिरिक्त आमदनी बन जाता है। साथ ही बगैर एक पैसा खर्च ​किये हुए एक लाख लीटर संशोधित जल हम लोगों को हर महीने वापस कर देते हैं, ये अपने आप में कमाल की बात है।

2006 में जब यहाँ जल संरक्षण की शुरुआत की गई तब 18 हजार रुपए प्रति घर से लिये गए अब वो रकम 25 हजार हो गई है। इस रकम से रिचार्ज ​कुआँ, ड्रेनेज सिस्टम बनाया जाता है। 'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी में लगभग 380 प्लॉट हैं जिनमें से 260 पर मकान बन चुके हैं और आबादी लगभग डेढ़ हजार तक है।

इतनी आबादी पर प्रतिदिन हम लोग सवा लाख लीटर जल वितरित करते हैं और एक महीने में लगभग चालीस लाख लीटर। के पी सिंह ये भी ध्यान दिलाते हैं कि 'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी में लोगों ने आपसी समझ और दूरदर्शिता से जल संरक्षण को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाया है लेकिन यही बात औरों पर नहीं लागू होता।

बंगलुरु को फिलहाल 1400 करोड़ लीटर पानी मिलता ​है जिसमें 35 प्रतिशत आपूर्ति के दौरान लीकेज में बर्बाद हो जाता है, कुछ उद्योगों को दिया जाता है और अन्त में प्रति व्यक्ति यहाँ के लोगों को 75 लीटर पानी रोज ​मिलता है जो कि महानगरों में प्रति व्यक्ति जल आपूर्ति के राष्ट्रीय मानक 150 लीटर से भी कम है।

बंगलुरु के कावेरी नदी का पानी इस शहर का जीवन है लगभग 80 फीसद पानी कावेरी से ही लिया जाता है। लेकिन पानी के बँटवारे को लेकर तमिलनाडु से अक्सर विवाद रहता है। शायद यही वजह है कि बंगलुरु में पानी के अध्ययन और संरक्षण से जुड़े कई लोग कहने लगे हैं कि अगले दस साल में केवल पानी की कमी के कारण इस शहर की आधी आबादी को यहाँ से हटाना पड़ सकता है।

जाहिर है संकट बहुत गहरा है, जबकि बंगलुरु में सलाना औसत बारिश 900 एमएम तक होती है यानी झीलों, टैंको को पुर्नजीवित कर और वर्षाजल संग्रह करके पानी की कमी से निपटा जा सकता है साथ ही भूजल को लगातार रीचार्ज भी किया जा सकता है।

गौरतलब है कि फिलहाल यहाँ 3 लाख से ज्यादा बोरवेल हैं जो भूजल स्तर जितना रिचार्ज होता है उससे तीन चौथाई से भी ज्यादा पानी निकाल लेते हैं। सरजापुर इलाके में ही 15 साल पहले तक 100 फीट पर पानी मिल जाता था और 10 साल पहले तक 300 फीट पर तथा आज 1000 फीट जाने पर भी पानी नहीं मिलता। इसके बावजूद बोरवेल की खुदाई और वर्षाजल संग्रह से सम्बन्धित सरकारी नियम कानून होने के बावजूद उन्हें सख्ती से लागू नहीं किया जा रहा। 'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी के मामले में ही भूजल ​रिचार्ज रेनबो कॉलोनी में किया गया लेकिन साथ के दूसरे प्लॉट के मालिक ने अपने प्लाट पर बगैर लाइसेंस, बगैर भूजल रिचार्ज किये हुए बोतलबन्द प्लांट बिठाकर व्यवसाय शुरू कर दिया।

दरअसल, इन सब पक्षों पर बहुत गम्भीरता से ध्यान दिये जाने की जरूरत है, हमारे जैसे लोग जीने के लिये, पर्यावरण के लिये पानी बचा रहे हैं और कुछ लोग केवल व्यवसाय करने के लिये। ठीक इसी तरह बोरवेल की मंजूरी देने का मामला भी है, लोग पैसे देकर कहीं भी बोरवेल खोदने की मंजूरी ले लेते हैं।

गौरतलब है कि बंगलुरु में पिछले दस सालों में जिन इमारतों में जलबोर्ड का पानी नहीं आता वहाँ टैंकर से रोजाना पानी मँगवाया जाता है लेकिन 'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी इस मामले में अलग रहा है, धान की खेती वाले जमीन पर बनी इस कॉलोनी में शुरू से भूजल स्तर ऊँचा था 80 फीट पर ही पानी मिल जाता था।

शुरुआत के कुछ सालों में यहाँ वर्षाजल संग्रह को नहीं अपनाया गया था और बोरवेल से केवल पानी लिया जा रहा था तब बाद के सालों में भूजल स्तर 80 फीट से बढ़कर 120 फीट और फिर उससे भी ज्यादा नीचे हो गया।

दरअसल, बंगलुरु का दूसरा नाम 'गार्डन सिटी' है। लेकिन 1970 में एक ब्रिटिश कैप्टन ने इस शहर को हजार झीलों का शहर भी कहा था और ये बिल्कुल सच है। 2001 में बैंगलोर मेट्रोपोलिटीन रीजन डेवलपमेंट अॅथारिटी यानि बीएमआरडीए के द्वारा संग्रहित सेटेलाईट आँकड़ों से भी ये पता चला कि बंगलुरु में 2,789 झील हुआ करती थीं जिनका आकार 2 हेक्टेयर से 50 हेक्टेयर तक और कुल क्षेत्रफल 18260.48 हेक्टेयर था।

इसे हरियाली का शहर बनाने में यहाँ के झीलों और टैंकों का बहुत बड़ा योगदान था। लेकिन सूचना क्रान्ति और भारत का 'सिलीकॉन वैली' बनने की कीमत इस शहर ने अपने झीलों और टैंक बन्धों को खोकर चुकाई है। अनुमानत: अब यहाँ 200 से भी कम झील या टैंक बन्ध बच गए हैं और वो भी गन्दे नाले या सीवर में तब्दील होकर।

हैरत करने वाली बात तो ये है कि गायब हुई झीलों में 28 का इस्तेमाल तो बंगलुरु विकास प्राधिकरण के द्वारा रिहायशी कॉलोनी बनाने के लिये किया गया है और बाकी बिल्डर माफिया, स्लमों और डम्पिंग ग्राउंड के हिस्से में चली गई। जबकि बंगलुरु बसाने वालों ने शहर के भूगोल, जलवायु और जरूरत को ध्यान में रखकर ही इसे झीलों का शहर बनाया था, बंगलुरु के पास साल भर पानी वाली अपनी कोई नदी नहीं है, पहाड़ी, पठारी धरातल के कारण बारिश का पानी यहाँ रुक नहीं सकता था इसलिये झीलों और टैंक बन्धों में साल भर इस्तेमाल का पानी जमा होता था और इससे भूजल भी रिचार्ज होता रहता था।

2001 में 53 लाख जनसंख्या वाले इस शहर की आबादी 2016 में एक करोड़ से ज्यादा हो जाने की सम्भावना है साथ ही पानी की जरूरत भी लेकिन पानी की उपलब्धता उसी अनुपात में नहीं बढ़ने वाली। ऐसे में 'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी कॉलोनी के जल संरक्षण की कहानी अपने आप में बहुत प्रेरक और हर जगह लागू किये जाने योग्य है हालांकि बकौल के पी सिंह इन लोगों के इस प्रयास को तारीफ जरूर मिली है लेकिन सरकार की ओर से ना तो कोई मान्यता और ना ही कोई अनुदान मिला है। लेकिन प्रदूषण नियंत्रण आयोग के अध्यक्ष और बीडब्ल्यूएसएसबी के अधिकारी हमारे पास जल संरक्षण का तौर तरीका देखने आये थे।

वर्षाजल संग्रहण के लिये बनी नालीसरकार की ओर से विश्व पर्यावरण दिवस पर हमें कान्तिवीरा स्टेडियम में बुलाया गया था, वहाँ हमें नि:शुक्ल एक स्टॉल दिया गया था ताकि हम ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को जल संरक्षण के बारे में बता सकें। हालांकि बंगलुरु की कई कम्यूनिटी और इमारतों के लोगों ने इसमें रुचि दिखाई और अपने यहाँ इसी तरह से जल संग्रह की कोशिश करना चाहते हैं, ये कम महत्त्वपूर्ण बात नहीं है।

पूरा देश यहाँ तक कि विदेशों में भी हमारा काम मीडिया के मार्फत पहुँचा, अक्सर लोग यहाँ पूरी पक्रिया देखने समझने आते हैं, लगभग हर साल मैं 5-6 विदेशी विश्वविद्यालयों में इस विषय पर व्याख्यान देने का जाता हूँ और 8-10 बच्चे इस विषय पर शोध करने आते हैं। वैसे सरकार से संवाद या कुछ सहुलियत मिलने से हम इसे और बेहतर और उपयोगी तथा कम खर्चीला बना सकते हैं।

मसलन बारिश वाले दिन हम एक लाख लीटर पानी जमीन के भीतर नहीं डाल पाते क्योंकि इससे भूजल के दूषित होने का खतरा है, प्रदूषण नियंत्रण आयोग से मिलकर हम ये उपाय निकाल सकते हैं या सुनिश्चित कर सकते हैं कि वो पानी कहीं और भूजल को रिचार्ज कर सके।

वर्षाजल संग्रह से जुड़े और बायोम एनवायरनमेंटल सोल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक विश्वनाथ से बातचीत।

एस. विश्वनाथ'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी कॉलोनी के जल संग्रह कार्यक्रम की प्रेरणा आप ही रहे हैं?
ऐसा नहीं है, अगर वो लोग ये कह रहे हैं तो उनकी बड़प्पन है। केपी सिंह से पहले जयवंत हुआ करते थे उन्हें बायोम की हमारी टीम ने परामर्श दिया था। हमारी संस्था बायोम ट्रस्ट वर्षाजल संग्रह और सीवेज वाटर ट्रीटमेंट जैसे मामलों में तकनीकी परामर्श मुहैया कराती है। शुरुआत करने का निर्णय तो लोगों या समुदाय को ही लेना पड़ता है, हाँ इतना जरूर कह सकता हूँ कि अगर पानी के संरक्षण, संग्रहण और संशोधन में आपकी दिलचस्पी है तो बायोम ट्रस्ट आपकी हर तकनीकी मदद करने को तैयार है साथ ही वित्तीय मामलों में भी सुझाव देकर हल निकाल सकता है।

आपने कब से जल संरक्षण के लिये काम करना शुरू किया और कर्नाटक के अलावा और कहाँ लोग आपकी और आपके संस्था की मदद ले सकते हैं?
हम लोग 1990 से काम कर रहे हैं और केवल कर्नाटक ही नहीं देश के बाकी हिस्सों में भी अपनी परामर्श सेवाएँ दे रहे हैं। हम लोगों ने राजस्थान और बिहार में भी कुछ योजनाओं पर काम किया है।

बंगलुरु में अब जितनी भी इमारतें, अपार्टमेंट हब बन रहे हैं क्या उनमें वर्षाजल संग्रह के पूरे इन्तजाम होते हैं।
बहुत से ले-आउट में ऐसी परियोजनाओं पर काम हो रहा है, लोगों में पहले के मुकाबले बहुत जागरुकता आई है। वर्षाजल संग्रह न सिर्फ पानी के मामले में आत्मनिर्भरता के लिये जरूरी है बल्कि इससे खर्च में भी कमी आती है। औसत बंगलुरु निवासी प्रति महीने डेढ़ से दो हजार की राशि पानी के टैंकरों पर खर्च कर देता है, वर्षाजल संग्रह से इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी।

अब तक हमलोगों ने 15-20 हजार निजी घरों में वर्षाजल संग्रह करने में मदद की है और 'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी जैसे दस-बारह ले-आउट में भी। इसके अलावा बंगलुरु जल आपूर्ति और सीवेज आयोग ने वर्षाजल संग्रह को अनिवार्य कर दिया है तो दूसरी ओर प्रदूषण नियंत्रण आयोग ने वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट को भी अनिवार्य कर दिया है। इन दोनों समितियों में मैं सलाहकार था, भूजल समिति में भी बतौर सदस्य मुझे शामिल किया गया है। हम नीतियों के स्तर पर भी बदलाव के लिये लगातार ऐसी ही कोशिशें करते रहे हैं, करते रहेंगे। कह सकते हैं जल संरक्षण के दौरान जो भी बातें, समस्या हम वास्तविक तौर पर अनुभव करते हैं उन्हें ही नीतियों में लाने की कोशिश करते हैं।

आपने इस क्षेत्र में बहुत काम किया है, बंगलुरु में वर्षाजल संरक्षण के मामले में जितनी कोशिश लोगों और सरकार के स्तर पर हुई है क्या आप उससे सन्तुष्ट हैं?
दरअसल हम सौ प्रतिशत परिणाम की उम्मीद करते हैं इसलिये सन्तुष्ट हूँ ये नहीं कह सकता, वैसे कोशिश और लोगों की भागीदारी काफी अच्छी है इससे जरूर एक किस्म की सन्तुष्टी होती है, जल संरक्षण और संग्रह के काम में और तेजी आनी चाहिए साथ ही हर तरह के घरों व इमारतों को इसके दायरे में लाया जाना चाहिए, ये ज्यादा अच्छा होगा।

कोई अगर अपने घर में वर्षाजल संग्रह तकनीक का इस्तेमाल करना चाहे तो उसे कितना खर्च करना पड़ेगा?
नया घर बनाने पर 6 हजार खर्च कर कोई भी वर्षाजल संग्रह शुरू कर सकता है और मात्र 6 हजार खर्च करने पर हजारों की लागत वाले लाखों लीटर पानी बचा सकता है। इसके अलावा अगर ग्रे वाटर और वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट भी करना हो तो आठ से दस हजार में हो जाएगा। किसी भी घर के निर्माण में औसतन 15-20 लाख तक खर्च होता है मात्र 6 से 10 हजार में आप पानी के मामले में आत्मनिर्भर हो सकते हैं।

बंगलुरु का भूजल स्तर कैसा है
शहर के बाहरी इलाकों में भूजल स्तर काफी नीचे गिर चुका है, 800 से 1600 फीट तक, इन इलाकों पर तुरन्त ध्यान दिये जाने की जरूरत है। 'रेनबो ड्राइव' कॉलोनी में ही 100 फीट पर पानी मिल जाता है तो उसकी वजह वहाँ की जमीन का सालाना एक करोड़ लीटर से ज्यादा पानी से रिचार्ज होना है, यहाँ भी भूजल रिचार्ज नहीं होता तो इतनी कम गहराई पर पानी नहीं मिलता। बंगलुरु के बाहरी इलाकों के कुओं में 20 फीट पर पानी होता था अब भी भूजल रिचार्ज से तस्वीर सुधर सकती है। सरजापुर में ही पिछले पाँच साल में भूजल में तेजी से गिरावट हुई है।

जल संरक्षण के लिये कोई सुझाव देना चाहेंगे?
नीतियों में जल संरक्षण को लाना होगा, कानून बनना चाहिए और सख्ती से उसका पालन होना चाहिए। इसके अलावा सरकार और समाज दोनों को इसे अपने अस्तित्व के बरकरार रहने की शर्त के तौर पर लेना होगा। सारी चीजें सरकार के भरोसे नहीं होनी चाहिए, ऐसी पहल समाज और लोगों की ओर से होनी चाहिए हमारी नदियाँ, तालाब, झीलें तभी साफ हो सकती हैं जब सरकार से ज्यादा बड़ी लोगों की इच्छाशक्ति होगी।

 

 

 

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