पानी से बदलती कहानी

Apna talab abhiyan
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अपना तालाब अभियान की पहल पर ‘इत सूखत जल सोत सब, बूँद चली पाताल। पानी मोले आबरू, उठो बुन्देली लाल’ का नारा लगाते हुए लगभग 4 हजार लोग फावड़ों और कुदालों के साथ खुद ही तालाब की सफाई के लिये कूद पड़े। लोगों ने महज दो घंटे में ही तालाब की अच्छी खासी खुदाई कर डाली। पूरे 46 दिन तक काम चला और 21 हजार लोगों ने मिलकर सैकड़ों एकड़ में फैले जय सागर तालाब को नया जीवन दे दिया। खर्च आया महज 35 हजार रुपए। सरकारी आकलन से पता चला कि लोगों ने करीब 80 लाख रुपए का काम कर डाला था।

अच्छे-अच्छे काम करते जाना। राजा ने कूड़न किसान से कहा था। कूड़न अपने भाइयों के साथ रोज खेतों पर काम करने जाता दोपहर को कूड़न की बेटी आती, खाना लेकर। एक दिन घर वापस जाते समय एक नुकीले पत्थर से उसे ठोकर लग गई। मारे गुस्से के उसने दरांती से पत्थर उखाड़ने की कोशिश की। लेकिन यह क्या? उसकी दरांती तो सोने में बदल गई। पत्थर उठाकर वह भागी-भागी खेत पर आती है और एक साँस में पूरी बात बताती है। एक पल को उनकी आँखे चमक उठती हैं, बेटी के हाथ पारस पत्थर लगा है। लेकिन चमक ज्यादा देर नहीं टिक पाती। लगता है देरसबेर कोई-न-कोई राजा को बता ही देगा। तो क्यों न खुद राजा के पास चला जाए। राजा न पारस लेता है न सोना। बस कहता है,‘इससे अच्छे-अच्छे काम करते जाना। तालाब बनाते जाना।’

अनुपम मिश्र की पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ का यह शुरुआती हिस्सा दरअसल समाज को मिले उस पारस पत्थर की कहानी है जिसे हम तालाब कहते हैं। मध्य प्रदेश के देवास जिले के तालाब रूपी पारस पत्थर का स्पर्श इन दिनों उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के किसानों की जमीन को सोना बना रहा है।

महोबा जिला मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर दूर चरखारी विकासखण्ड में एक गाँव है सूपा। इस गाँव के किसान जगमोहन बताते हैं कि शुरू में अपने बच्चों को शहर रोजी-रोटी के लिये जाने से रोक नहीं सकता था। इसकी वजह थी पानी की समस्या। जो खेती के लिये बड़ा संकट था। लेकिन यह मायूसी लम्बी नहीं रही। आस-पास के किसानों को खेत में तालाब बनाकर लाभ कमाते देख जगमोहन ने भी हिम्मत जुटाई और अपने खेत में तालाब तैयार किया। अब जगमोहन के परिवार में शायद किसी को अपने पुरखों की ज़मीन छोड़कर महानगरों की खाक छाननी पड़े। उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड इलाके का महोबा जिला क्षेत्र के किसानों के विकास की नई तस्वीर बन कर उभर रहा है। विकास के इस पौधे को पानी मिल रहा है। जल संरक्षण के देवास मॉडल से।

Visit for Apna Talab Abhiyan Work, 14 august 2014, Mahobaबुन्देलखण्ड में पानी की दिक्कत आज से नहीं है। ब्रिटिश शासकों ने बहुत पहले ही इस इलाके की आबादी को दूसरी जगह स्थानान्तरित करने का सुझाव दिया था। पर आज महोबा जिले में करीब 600 किसानों ने खुद का तालाब बना लिया है। इन तालाबों से इलाके के लोगों की उपज 8 से 10 गुना तक बढ़ी है। इससे भूजल स्तर भी बढ़ा है। यही नहीं हजार नए तालाबों के बनाए जाने की योजना भी बनी है। इन किसानों की कामयाबी ने इलाके के दूसरे किसानों को भी तालाब खुदवाने के लिये प्रेरित किया है। यह सब कुछ हुआ बारिश जल संरक्षण के देवास मॉडल से।

साल 1990 के दशक में देवास पानी की कमी से जूझ रहा था। बुन्देलखण्ड की तरह वहाँ भी लोग पानी की समस्या से परेशान थे। देवास में पानी का संकट सरकार की साल 1960 के दशक में खेती के लिये नलकूप और पम्प लगाने के कर्ज ने पैदा किया था। नतीजतन खेती और औद्योगिक गतिविधियों में भूजल का खूब दोहन हुआ। हालात यहाँ तक पहुँच गया कि जल स्तर हद से ज्यादा गिर गया। अब आलम यह हो गया कि 7 इंच के बोरवेल से बमुश्किल आधा एक इंच की जलधारा निकल पाती। औद्योगिक इकाइयाँ ठप हो गईं। खेती सूखे के चलते जवाब दे गई। जल स्तर 500-700 फीट नीचे जा चुका था। हालात बदतर हो गए कि साल 1990 में इन्दौर से ट्रेन की मदद से 50 टैंकर पानी देवास भेजा गया। जिससे लोगों को पीने का पानी नसीब हो सके। साल 2006 में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी उमाकान्त उमराव की तैनाती देवास के कलेक्टर पद पर हुई। पानी की विकराल समस्या ने उनका ध्यान खींचा। उमराव कहते हैं, ‘तमाम ग्रामीण मेरे पास मुलाकात के लिये आते और उन सबके पास कहने को एक ही बात होती। पानी का कुछ कीजिए’

उमराव ने इलाके में पानी के कमी की वजह तलाशने की कोशिश की। इसमें नलकूपों के जरिए अधिकांश भूजल का दोहन होने की बात पता चली। पर इसके बाद इलाके में पूरी मानसूनी बारिश होने के बावजूद भी भूजल रिचार्ज नहीं हो पा रहा है। उमराव ने फैसला किया कि इलाके के किसानों को पानी के लिये अपने खेतों के दसवें हिस्से में तालाब खोदने की बात सुझाई। जिससे बारिश का जल बचाया जा सके। उमराव अधिकारियों के साथ गाँव जाते और किसानों से बात करते। निपानिया गाँव के किसान पोप सिंह राजपूत को उमराव ने अपनी गारंटी पर 14 लाख रुपए का बैंक कर्ज दिलवाया। इससे राजपूत ने 10 बीघे का विशालकाय तालाब बनवाया। नतीजतन पहले सिर्फ सोयाबीन की फसल लेने वाले राजपूत अब साल में दो फसल लेने लगे। बाद में राजपूत ने बैंक का कर्ज चुका दिया और कुछ साल बाद दस बीघा खेत भी खरीद लिया।

उमाकान्त उमराव की ख्याति बहुत तेजी से फैल रही थी। मध्य प्रदेश के वाटरमैन वह बन चुके थे। इस बीच देवास के किसानों की पानी की कहानी उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के सामाजिक कार्यकर्ताओं तक पहुँची। महोबा में हालात इतने बुरे थे कि साल 2008 में एक महिला ने पीने के पानी के बदले अपनी अस्मत का सौदा करने की खबर सामने आ चुकी थी। ‘आबरू के मोल बिकने लगा पानी’ नाम से इस खबर ने लोगों को झकझोर दिया था। पानी के संकट से इलाके की बड़ी आबादी पलायन को मजबूर थी। इस खबर ने सामाजिक कार्यकर्ता पुष्पेंद्र भाई और उनके 21 युवा साथियों ने इलाके में मर चुके पुराने तालाबों को नए सिरे से जीवित करना शुरू किया। इस काम में उनकी मदद की देवास मॉडल ने।

अपना तालाब अभियान के संयोजक पुष्पेंद्र भाई की पहल पर ‘इत सूखत जल सोत सब, बूँद चली पाताल। पानी मोले आबरू, उठो बुन्देली लाल’ का नारा लगाते हुए लगभग 4 हजार लोग फावड़ों और कुदालों के साथ खुद ही तालाब की सफाई के लिये कूद पड़े। लोगों ने महज दो घंटे में ही तालाब की अच्छी खासी खुदाई कर डाली। पूरे 46 दिन तक काम चला और 21 हजार लोगों ने मिलकर सैकड़ों एकड़ में फैले जय सागर तालाब को नया जीवन दे दिया। खर्च आया महज 35 हजार रुपए। सरकारी आकलन से पता चला कि लोगों ने करीब 80 लाख रुपए का काम कर डाला था।
 

उत्तर प्रदेश के जल संकट ग्रस्त बुन्देलखण्ड इलाके में पानी की कमी दूर करने की नई राह नजर आई है। देवास का यह प्रयोग देश में पानी की कमी से जूझ रहे अन्य क्षेत्रों के लिये नजीर है।

साल 2013 में पुष्पेंद्र भाई इंडिया वाटर पोर्टल के सम्पादक केसर सिंह के सम्पर्क में आए। केसर ने पुष्पेंद्र को मध्य प्रदेश के देवास जिले में पानी के संरक्षण की जानकारी दी। पुष्पेंद्र भाई ने महोबा के तत्कालीन कलेक्टर अनुज कुमार झा से इस बारे में बात की। युवा कलेक्टर ने इस योजना में भरपूर रुचि दिखाई। देवास दौरे के लिये 15 अप्रैल 2013 को एक पत्र जारी किया 22 अप्रैल 2013 को एक दल देवास गया। महोबा के तत्कालीन उप कृषि निदेशक जीसी कटियार के अगुवाई में इस दल में उपसम्भागीय कृषि प्रसार अधिकारी वी.के. सचान, सहायक अभियन्ता लघु सिंचाई अखिलेश कुमार, खण्ड विकास अधिकारी पनवाड़ी दीनदयाल समेत दूसरे अधिकारी और किसान सहित स्वयंसेवी संगठन के अरविंद खरे, पंकज बागवान और पुष्पेंद्र भाई भी शामिल थे।

देवास में दल ने बदलाव की कहानी देखी। देवास में गाँव के तालाबों के क्रमबद्ध बनाए जाने और तालाब निर्माण की खुद की पहल देखकर दल की उम्मीदें जगीं। दल ने उन ग्राम पंचायतों को भी देखा जहाँ हर किसान परिवार का अपना तालाब था। इनमें से तीन ग्राम पंचायतों को जल संरक्षण और भूगर्भ जल पुनर्भरण कार्य के लिये भारत के राष्ट्रपति ने सम्मानित भी किया है। क्षेत्रीय किसानों की समृद्धि, संसाधन और फसलों को देखकर आश्चर्य हुआ। फसल की पैदावार का असर परिवार के घर, गाड़ियों सहित दूसरे क्षेत्रों में भी दिखा। भोपाल में उमाकान्त उमराव से मुलाकात के बाद यह तय था कि बदलाव की बयार अब महोबा में भी बहेगी। जल संकट दूर होगा।

महोबा वापसी के बाद तालाब खुदवाना हुआ। इस समय महोबा में निजी करीब 600 से ज्यादा तालाब हैं। करीब हजार से ज्यादा तालाबों की सूची तैयार है। जहाँ काम हो रहा है। इस बीच जिला प्रशासन ने भी राज्य सरकार को 500 तालाब बनाने का एक प्रस्ताव भेजा जिसमें बाकायदा देवास मॉडल को अपनाने का ज़िक्र भी था। किसी वजह राज्य सरकार इस दिशा में आगे नहीं बढ़ी तो जिलाधिकारी ने अपने स्तर पर राह निकाली। मसलन स्थानीय भूमि संरक्षण विभाग के पास मेढ़ बनाने के लिये जो पैसा आता था उसकी मदद से तालाब बनाए गए। तालाब से निकली मिट्टी से मेढ़ बना दी गई। इससे दोनों काम पूरे हो गए। अपना तालाब अभियान समिति महोबा एवं क्षेत्रीय किसानों ने महोबा के मुख्य विकास अधिकारी को प्रस्ताव भेजा कि कृषि विभाग को क्षेत्र में 24 चेकडैम बनाने की 3.60 करोड़ रुपए की राशि भी तालाब के लिये दे दी जाए। इसमें फायदे को समझाया गया कि 24 चेकडैमों के निर्माण से जहाँ लाख-सवा लाख घन मीटर वर्षाजल से करीब 150 हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई की जा सकेगी। वहीं इतनी ही धन राशि से 500-600 किसानों के खेतों पर तालाब बनाकर 7 से 8 लाख घनमीटर वर्षा जल एकत्रित कर एक हजार हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि की सिंचाई हो सकती है।

अधिकारियों के सामने चरखारी विकासखण्ड के किरतपुरा- काकुन गाँव का उदाहरण दिया गया जहाँ 26 तालाबों से किसानों ने सूखे के दौरान साल में भी पिछले सालों की तुलना में पाँच गुना तक अधिक अन्न उपजाया। काकुन 80 तालाबों के साथ अब भूगर्भ जल का इस्तेमाल नहीं करने वाला गाँव बनने वाला है। इलाके के गाँवों में तालाब बनाने में जिलाधिकारी अनुज कुमार झा ने भी श्रमदान किया। इसे लेकर गाँव वालों में अनुज झा के लिये सम्मान भी है। इसका अन्दाजा दो बार से रुक रहे अनुज झा के तबादले से भी पता चलता है। फिलहाल अनुज कुमार झा कन्नौज के जिलाधिकारी हैं लेकिन देवास मॉडल को आधार बनाकर उन्होंने महोबा में जिस जल यज्ञ की शुरुआत की थी वह उम्मीदों के मुताबिक प्रगति कर रहा है।

Bhagirath Krishak Abhiyan (3)
 

सफलता का प्रतीक गोरवा गाँव
पानी से किस्मत बदलने का नाम है देवास जिले के टोंक खुर्द तहसील का गोरवा गाँव। करीब 1500 की आबादी वाले इस गाँव में साल 2006 तक पानी का संकट बहुत बड़ा था। उस वक्त गाँव के 1-2 सम्पन्न किसानों के पास ट्रैक्टर थे। पर गाँव के लोगों की खेती से उपज इतनी ही थी जिससे कि बमुश्किल पेट पाला जा सके। लेकिन उमाकान्त उमराव से मुलाकात ने गोरवा वालों की तकदीर बदल दी। आज गाँव के करीब हर किसान का तालाब है। तालाब भी ऐसे नहीं कि बस यूँ ही खोद लिया हो बाक़ायदा वैज्ञानिक मॉडल से बना हुआ। गाँव की ऊँची-नीची जमीन में खुदे तालाब ऐसे खोदे गए हैं कि एक तालाब भरने के बाद पानी खुद अगले तालाब का रुख कर ले। यह उमराव कि सिविल इंजीनियरिंग का नतीजा था। गाँव के पूर्व सरपंच राजा राम पटेल बताते हैं कि आज गोरवा गाँव में करीब 150 ट्रैक्टर हैं। यह खेती और तालाब खोदने में मदद करते हैं। आस-पास के गाँवों की भी हम तालाब खोदने में मदद करते हैं। राजाराम बताते हैं कि उमाकान्त उमराव को हर नए तालाब खोदने पर लोग याद करते हैं और वह आते भी हैं। दूसरे आईएएस अधिकारियों से उलट उमराव खुद आगे आकर खेतों में कुदाल चलाते हैं और हमारा हाल भी फोन से पूछते हैं। ऐसे में वह किसानों को प्रेरणा देते हैं। गोरवा के दो किसानों को जल संसाधन मंत्रालय की ओर से भूमि जल सम्वर्धन पुरस्कार भी मिला है।

 

 

क्या है देवास मॉडल
सामान्य तौर पर देवास मॉडल में कुछ भी खास नहीं है। तालाब किसानों ने खुद ही अपने खेतों में बनाए हैं। सवाल सीधा है हमारा भूजल बरकरार नहीं रहेगा तो फिर हमारे सामने पानी का दूसरा विकल्प क्या है? दूसरा सवाल यह भी है कि पूरी बारिश के बावजूद हमारा भूजल स्तर बरकरार क्यों नहीं रह पाता। इसके लिये गाँव में खोदे गए देवास के तालाब भूजल रिचार्ज का अहम जरिया बने। बारिश की भारी कमी वाले कुछ क्षेत्रों को छोड़ दें तो पूरे देश में वर्षाजल हमारी सिंचाई की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये काफी है। हर 100 लीटर वर्षाजल में महज 10 से 15 लीटर पानी ही नदियों और बाँधों में जा पाता है। अगर हम इन 100 लीटर में से 20 से 30 लीटर पानी को नदी और भूजल तक पहुँचा सके तो यह भूजल स्तर के लिये कारगर होगा। इजराइल जैसे देश में यह स्तर प्रति 100 लीटर में 62 लीटर है। उमराव ने इसके लिये कई मॉडलों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि पानी की खपत तीन तरीके से होती है। एक दैनिक उपयोग, दूसरा औद्योगिक और तीसरा खेतों में सिंचाई। सबसे ज्यादा करीब 90 फीसद तक पानी का सिंचाई में इस्तेमाल होता है। उमराव बताते हैं कि मुझे ऐसे वर्षाजल प्रबन्धन का मॉडल की तलाश थी जिससे किसानों की इच्छा पूरी हो सके। इसका सीधा फायदा किसानों को मिले। इससे पहले सरकारी नारे ‘जल ही जीवन है’ से अलग हट हमने इसे ‘जल बचाइए, लाभ कमाइए’ में बदला। इसकी वजह थी की फायदे की बात जल्दी समझ में आती है। नतीजा दिख रहा है। आज देवास और आस-पास के मालवा क्षेत्र में 12 हजार से ज्यादा तालाब खुद चुके हैं। प्रदेश सरकार तालाबों की सफलता को देखते हुए 2007 में बलराम तालाब योजना शुरू की। इसके तहत किसानों को 80 हजार से 1 लाख तक की आर्थिक मदद दी जाती है।

 

 

 

 

तालाब ने भर दी झोली
देवास जिले के कई इलाके में करीब 80 फीसद लोगों के खुद के तालाब हैं। इन तालाबों से न केवल पैदावार में इज़ाफा हुआ है बल्कि किसान मछली पालन भी कर रहे हैं। इससे इन्हें अतिरिक्त आय का जरिया भी मिला है। हिरण इन तालाबों से पानी पीते हैं। प्रवासी पक्षी यहाँ आ रहे हैं। इनके लिये किसानों ने तालाबों के बीच-बीच में टापू बना दिये हैं। जिससे इनकी संख्या बढ़ सके। तालाबों से किसानों की पैदावार भी बढ़ी है उपजाऊ मिट्टी अब बहकर तालाब में जाती है। किसान वापस इसका खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं। पानी की मौजूदगी से कई नगदी सब्जियों की बुआई हो रही है। किसान इन तालाबों से खुश है। उम्मीद है कि नए तालाब बनते रहेंगे।

 

 

 

 

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