पानी साफ करने का सरल उपाय

दूषित पानी साफ करने के कई उपायों में रेत फिल्टर तकनीकी काफी उपयोगी साबित हुई है। इस तकनीकी का प्रयोग केन्या के मचाकोस जिले में सफलतपूर्वक हुआ, जहां पानी के प्रदूषण ने इस सरल और सस्ती तकनीकी को और विकसित किया। मचाकोस जिला केन्या के पूर्वी प्रांत का एक सूखाग्रस्त क्षेत्र है। यहां सन् 1998 से सूखा पड़ा हुआ है और अधिकांश फसल उगने से पहले ही सूख जाया करती है। इस स्थिति में अनेकों किसानों ने अपने खेत में छोटे-छोटे बांध बनाए हुए हैं, जिससे बहते पानी का संग्रहण किया जा सके। इस पानी का सिंचाई और पेयजल, दोनों तरह से उपयोग किया जाता है। स्वाभाविक है कि यह ठहरा पानी कुछ समय बाद काफी प्रदूषित हो जाता है। ईंधन की कमी के कारण इस पानी को उबालकर पीना भी संभव नहीं हो पाता है, जिससे जल-जनित बीमारियां फैलने लगती हैं।

इन्हीं सब स्थितियों को देखते हुए स्विस गैर सरकारी संगठन मिडेयर ने जुलाई 1999 से लेकर जून 2000 के बीच मचाकोस जिले में रेत फिल्टर परियोजना चलाई।

यह पानी की स्वच्छता की सबसे पुरानी तकनीकी है, जिससे काफी अच्छे ढंग से तैयार किया गया है। इसे सबसे पहले कनाड़ा के कालगारी विश्वविद्यालय में विकसित किया गया। इसके नए ढांचे में फिल्टर के सबसे ऊपर टोंटी लगाई जाती है, जिससे ठहरा पानी अपने आप रेत की सतह से 5 सेंटीमीटर ऊपर आ जाता है। इससे जैविक परत बनने के लिए उचित वातावरण प्राप्त होता है, जिसमें कई तरह के जीवाणु होते हैं, जो रोगाणु बैक्टीरिया को नष्ट करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

यद्यपि रेत के फिल्टर में जटिल भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रक्रियाएं शामिल हैं, लेकिन इस धीमे रेत फिल्टर को बनाने में इसका कोई झंझट नहीं है (बस एक घंटे का समय लगता है) जिसमें कंक्रीट और धातु के सांचे की जरूरत पड़ती है। इसका रखरखाव करना भी आसान है।

इसे तब ही अमल में लाया जाना चाहिए जब पानी का बहाव तेज हो। इसके लिए 5 सेमी तक रेत की सतह को साफ करने की जरूरत पड़ती है। पानी के फिल्टर के लिए आदर्श रूप से 0.2 से 0.3 मिली मीटर अन्न के दाने जितनी मोटी रेत को उपयोग में लाया जाता है, लेकिन इसके लिए खदान के रेत, धान की फूस तथा अन्य तरीकों को भी फिल्टर सामग्री के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है।

अच्छी तरह से काम करने वाले रेत फिल्टर से परजीवी और ठोस चीजें साफ हो जाती हैं और एक आदर्श स्थिति में 99 प्रतिशत तक रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। इसकी कम से कम तीन सप्ताह के बाद ही जांच की जाती है, जिससे इसमें जैविक परत बनने के लिए पर्याप्त समय और अवसर बना रहे। इस पर अब तक किए गए प्रयोगों के काफी उत्साहजनक नतीजे सामने आए हैं। 17 मामलों को छोड़कर बाकी सब रेत फिल्टर में प्रति 100 मिली लीटर पानी में 10 से कम ई-कोलाई बैक्टीरिया उत्पन्न होता है, जो कि अफ्रीका के ग्रामीण क्षेत्र के लिए एक स्वीकृत मानक है।

इसका फिल्टर धातु के अलावा प्लास्टिक या स्थानीय तौर पर उपलब्ध किसी भी सामग्री से तैयार किया जा सकता है, बशर्ते इसमें निर्माण संबंधी बुनियादी बातों का पूरा ख्याल रखा जाए, जैसे : रेत परत की कितनी गहराई और बहाव की गति हो और रेत से कितने ऊपर जल का स्तर हो। कई लोग कंक्रीट के फिल्टर को ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि यह टिकाऊ होता है और इससे ठंडा पानी प्राप्त होता है।

अगर इस तरह का रेत फिल्टर बनाया जाए, जिसमें साफ रेत डाली जाए, तो शुरुआत में उसमें से प्रति मिनट 1 लीटर पानी मिलेगा, लेकिन अनाज के दाने जितने कंक्रीट में काफी कम समय में ज्यादा पानी प्राप्त होता है।

स्रोत : अद्रियान मोल 2001, द सक्सेस आफ हाउसहोल्ड सैंड फिल्ट्रेशन इन वॉटरलाइन्स, आईटीडीजी पब्लिशिंग लंदन, यूके, वॉल्यृम 20 संख्या 1, पेज 27

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