अगर बरसात के बाद नदी-नालों से बहने वाले पानी का प्रभावी तरीके से संग्रहण किया जाय तो पानी कई गुना और ज्यादा मिलने लगेगा।
राजीव गांधी जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन मिशन, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, मध्य प्रदेश शासन द्वारा ‘जल अभियान: सहभागिता से पानी का संरक्षण व संवर्धन’ नामक एक पुस्तक निकाली गई है, जिसमें पानी और मिट्टी के संरक्षण व संवर्धन के लिए उपचार विधियों, तकनीकों व संरचनाओं संबंधी विकल्प और सुझाव दिए गए हैं। हमारा यह लेख इस पुस्तक में बताई गई तकनीकों पर आधारित है।
जल संग्रहण और भूजल भण्डारण की प्रक्रिया को तेज करने के लिए एक नई तकनीकी को मान्यता दी गई, जिसे बोरी बांध के नाम से जाना जाता है। इससे भूजल पुनर्भरण में तो मदद मिलती ही है, साथ ही इससे सिंचाई हेतु पानी के सतही स्रोत का भी भरपूर उपयोग किया जा सकता है।
इस तकनीक के तहत खाली बोरियों (जैसे सीमेंट या खाद) का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें रेत या स्थानीय तौर पर उपलब्ध सामग्रियों को उपयोग में लाया जा सकता है। इसके ढांचे का निर्माण जल ग्रहण क्षेत्र के आकार पर निर्भर करता है, जिसे स्थानीय आवश्यकता के अनुसार ढाला जा सकता है।
चित्रों में बोरी बांध के निर्माण संबंधी हिदायतें दी गई हैं। बोरी बांध का उपयोग गांव से बहने वाले नालों के लिए किया जाता है, जिनका जल ग्रहण क्षेत्र 0.25 से 10-12 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है, ऐसा ही स्थल बोरी बांध के लिए उपयुक्त होगा।
जल संग्रहण की इस तकनीक के कई फायदे हैं, जैसे बोरी बंधान सस्ता होने के साथ कम समय में बनाया जा सकता है और इससे जल संग्रहण करने में कई गुना फायदा होगा। अर्थात बोरी बंधान निर्माण की दस हजार की औसत लागत से 28,316 घन मीटर पानी का संग्रहण होगा, जबकि 3.50 लाख - 4.50 लाख रुपए की लागत से एक छोटे तालाब का निर्माण होता है, और तब जाकर इससे 28,316 घन मीटर जल का भण्डारण होता है।
इसकी देखरेख का कोई खर्चा नहीं आता है, क्योंकि स्थानीय लोग स्वयं इसकी देखरेख कर सकते हैं। पक्के बांधों की तुलना में इससे कम खर्च सलाना तौर पर वर्षा जल का संग्रहण बढ़ाया जा सकता है। मिट्टी का कटाव रोकने के लिए बोरी बांध का उपयोग किया जाता है।
इसके निर्माण की विधि
• यदि निर्माण स्थल पर अच्छी मिट्टी अथवा काली या पीली मिट्टी उपलब्ध हो तो खाली बोरी में मिट्टी भरकर इसकी तह जमाते जाएं।
• यदि निर्माण स्थल पर अच्छी मिट्टी उपलब्ध न हो तो बांध के हिस्से में दो बोरी की लंबाई के बराबर (लगभग 0.9 मीटर) अच्छी मिट्टी लाकर बोरी में भरें।
• बोरियों की तह इस तरह बनाई जाए कि लंबाई वाला हिस्सा पानी के बहाव की लंबाई में हो और बोरियों के जोड़ एक-दूसरे पर न हों ।
• बोरी बंधान का काम बारिश समाप्त होने के तुरंत बाद ही किया जाना चाहिए, जब नदी-नालों में पानी का बहाव बना रहता है।
उपरोक्त तरीके से बनाए गए बांधों में संग्रहित जल से भूजल का पुनर्भरण होगा, साथ ही इससे लंबे समय तक जल का बहाव भी बना रहेगा, जिससे किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध होता रहेगा।
एक बंधा से एक हेक्टेयर खेत में तीन-चार बार सिंचाई की जा सकती है।
एक हेक्टेयर सिंचाई संरचना पर 1,000 रुपए की लागत आएगी, जो कि प्रति हेक्टेयर तालाब पर आने वाली लागत से काफी कम है, जिसके निर्माण में करीब 90 हजार की लागत आती है।
स्रोत: “जन अभियान सहभागिता से पानी का संरक्षण व संवर्धन, चोपड़ी: पानी और मिट्टी के संरक्षण व संवर्धन की”, राजीव गांधी जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन मिशन, मध्य प्रदेश
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