पानी पर युद्ध के खतरे का आकलन

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव रहे बुतरस घाली ने तो लगभग तीन दशक पहले बहुत गम्भीरता से यह बात रखी थी और जिम्मेदारी के साथ कहा था कि ‘अगर कभी तीसरा विश्व युद्ध लड़ा गया तो वो पानी के लिए लड़ा जाएगा।’ उनसे भी आगे जाकर 1995 में विश्व बैंक के उपाध्यक्ष इस्माइल सेराग्लेडिन ने कहा था ‘इस शताब्दी की लड़ाई तेल के लिए लड़ी गयी है लेकिन अगली शताब्दी की लड़ाई पानी के लिए लड़ी जाएगी।’ लम्बे वक्त से इस तरह की बात सुनी जा रही है कि अगर अगला विश्वयुद्ध हुआ तो वो विचारधारा, उग्रराष्ट्रवाद या किसी अन्य वजह से नहीं बल्कि पानी के भंडार पर अधिकार को लेकर लड़ा जाएगा। इस बात को कई बार अलग-अलग तरीके से अलग-अलग मंचों पर कहा जा चुका है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव रहे बुतरस घाली ने तो लगभग तीन दशक पहले ही बहुत गम्भीरता से यह बात रखी थी और जिम्मेदारी के साथ कहा था कि ‘अगर कभी तीसरा विश्व युद्ध लड़ा गया तो वो पानी के लिए लड़ा जाएगा।’ उनसे भी आगे जाकर 1995 में विश्व बैंक के उपाध्यक्ष इस्माइल सेराग्लेडिन ने कहा था ‘इस शताब्दी की लड़ाई तेल के लिए लड़ी गयी है लेकिन अगली शताब्दी की लड़ाई पानी के लिए लड़ी जाएगी।’

पानी की कमी एक वैश्विक समस्या का रूप ले चुकी है। दुनिया का हर देश इस समस्या से जूझ रहा है। अमेरिका से लेकर मध्यपूर्व और भारत से लेकर अफ्रीका के देशों में पानी की समस्या लगातार विकराल होती जा रही है। ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब दिल्ली विधानसभा के चुनाव में पानी एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा था और सत्ताधारी दल को उसका उचित प्रबंधन नहीं कर पाना काफी महंगा पड़ा था। उससे भी अहम बात है कि देश की राजधानी दिल्ली के पूर्वी और दक्षिणी इलाके में पानी को लेकर हुए झगड़े में दो लोगों की हत्या को चुकी है। यह एक बड़े खतरे की आहट है जिसे हमें समझना होगा और इसको रोकने के लिए गम्भीरता से उपाय करने होंगे वर्ना दो कत्ल एक बड़ी जंग में तब्दील हो सकता है।

दिल्ली का हाल तो बहुत ही बुरा है। दिल्ली में तो वॉटर एटीएम लगाये जाने लगे हैं जहां आप तीस पैसे प्रति लीटर के हिसाब से पानी निकाल सकते हैं। दिल्ली के कई इलाकों में इस तरह के वॉटर एटीएम लगाये गये हैं। यह कोई मामूली घटना नहीं है इससे हमें पानी की महत्ता और आगे आनेवाले दिनों में होनेे वाली दिक्कतों का अंदाजा लग सकता है।

दरअसल हमारे देश में जैसे-जैसे शहरों का फैलाव होता चला गया या फिर नयी जगह पर नये शहरों को बसाया जाने लगा उसके परिणामस्वरूप जलस्तर लगातर नीचे जाने लगा। इस अंधाधुंध विकास की होड़ और पानी के इस्तेमाल को लेकर सख्त कानून के अभाव में दिल्ली और उसके आसपास के इलाके में प्राकृतिक संसाधनों का जमकर दोहन जारी है। बड़ी-बड़ी इमारतों के निर्माण के दौरान भारी मात्रा में जमीन से पानी निकालने से पूरे इलाके का जलस्तर नीचे जा रहा है। जब इन इलाकों में जलस्तर काफी नीचे चला गया तब जाकर प्रशासन की नींद टूटी और नयी इमारतों के निर्माण में भूजल के इस्तेमाल पर रोक लगाई गयी।

पाबन्दी का बहुत ज्यादा असर इस वजह से नहीं दिख रहा है कि लोगों के गले यह बात ही नहीं उतर पा रही है कि पानी पर पाबंदी कैसे लग सकती है। उनको तो लगता है कि अगर पच्चीस फीट पर पानी नहीं मिल रहा तो पचास तक बोरिंग कर दो नहीं तो सौ फीट से निकाल लो और प्राकृतिक पानी पर तो उनका स्वाभाविक हक है। ज्यादातर लोग इस बात को समझने के लिए तैयार नहीं है कि पानी खत्म भी हो सकता है। दरअसल जल संरक्षण के लिए लोगों को शिक्षित और जागरूक करना अनिवार्य है। उन्हें इस बात को समझना होगा कि पानी बेशकीमती है और उसे बेवजह बर्बाद करने से हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी।

कुछ इसी तरह के संकेत भारत के गांवों से भी मिल रहे हैं। देश के ग्रामीण इलाकों में भी जलस्तर काफी नीचे चला गया है। पेयजल तो एक बड़ी समस्या है लेकिन उससे भी बड़ा खतरा है भूजलस्तर का लगातार नीचे जाना। कई देशों की सरकारें इस समस्या को लेकर बेहद गम्भीर है और अपने यहां जलनीति या जल संरक्षण नीति बनाकर पानी को बचाने का काम शुरू कर चुकी हैं। हमारे देश में भी जलसंरक्षण को लेकर थोड़ी बहुत जागरूकता तो आयी है लेकिन वो पर्याप्त नहीं है और इस क्षेत्र में बहुत काम करना शेष है।

सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका में तो पानी की कमी और कई इलाकों में सूखे जैसे हालात पैदा हो रहे हैं। वहां के वैज्ञानिक और सरकार बेहद गम्भीरता से इस कमी की वजह और उसको दूर करने के उपायों पर काम कर रही है। इस वर्ष के शुरुआत में वहां के वैज्ञानिकों ने नासा के उपग्रहों की तस्वीरों के आधार पर पूरी दुनिया खासकर अमेरिका के जलस्तर के बारे में वैज्ञानिक विश्लेषण किया तो पता चला कि कैलिफोर्निया में पानी की बेहद कमी है और वहां कभी भी बड़ा जल संकट खड़ा हो सकता है। इस नतीजे के सामने आने के बाद फौरन कैलिफोर्निया सरकार ने जनता से बीस फीसदी पानी कम खर्च करने की अपील की।

नासा की तस्वीरों के विश्लेषण के बाद विशेषज्ञों ने दुनिया में कम होते जलस्तर की वजहों की पड़ताल शुरू की तो मुख्यतः चार तथ्य सामने आये- बढ़ती जनसंख्या की वजह से पानी की बढ़ती खपत, खेती के लिए पानी की बढ़ती मांग, ऊर्जा उत्पादन और ग्लोबल वार्मिंग। विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि उत्तरी अमेरिका, मध्यपूर्व के देशों और दक्षिण एशिया में पानी की समस्या की एक और बड़ी वजह उसका गलत और लापरवाह प्रबंधन भी है। पानी को लेकर इन देशों की लापरवाही और कोई ठोस नीति नहीं होना, आने वाले दिनों में विकराल रूप धारण कर सकती है। हमारे देश में भी यहां की नगरपालिकाएं पानी के संरक्षण और उसको रीसाइकिलिंग करने के काम में लापरवाही बरतती है।

अभी हाल ही में पानी की इस वैश्विक समस्या को केन्द्र में रखकर ब्रह्म चेलानी की नयी किताब आयी है- ‘वॉटर, पीस ऐंड वॉर, कन्फ्रंटिंग द ग्लोबल वाटर क्राइसिस’। ब्रह्म चेलानी भारत के उन चन्द विद्वानों में हैं जिनकी अन्तराष्ट्रीय स्तर पर पहचान है और उनकी बातों को गम्भीरता से लिया जाता है। स्ट्रैटजिक एनालिस्ट के रूप में ब्रह्म चेलानी ने अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं के बीच एक अलग पहचान बनायी है। वो विश्व के कई विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थाओं से जुड़े रहे हैं। इस बात की उम्मीद की जानी चाहिए कि ब्रह्म चेलानी के जेहन में भी अपनी इस किताब का शीर्षक- ‘वॉटर, पीस एंड वॉर, कन्फ्रंटिंग द ग्लोबल वाटर क्राइसिस’ रखने के पीछे उसी तरह की प्रभावोत्पकता पैदा करने की मंशा रही होगी। कम से कम शीर्षक से तो ऐसा ही लगता है।

चेलानी कहते हैं- “कच्चे तेल की कीमत में लगातार बढ़ोत्तरी के बावजूद अपने स्रोत पर उसकी कीमत खुदरा बोतलबंद पानी की कीमत से कम है।” ब्रह्म चेलानी ने बेहद श्रमपूर्व अपने शोध के आधार पर यह किताब लिखी है जो पानी की इस वैश्विक समस्या को भारतीय सन्दर्भ में प्रस्तुत करती है। इस किताब के अध्याय तीन में लेखक की टिप्पणी बेहद सारगर्भित है और पूर्व के विशेषज्ञों के विचारों से मेल खाती है। चेलानी कहते हैं- “कच्चे तेल की कीमत में लगातार बढ़ोत्तरी के बावजूद अपने स्रोत पर उसकी कीमत खुदरा बोतलबंद पानी की कीमत से कम है।”

ब्रह्म चेलानी की ये टिप्पणी पानी की कमी के वैश्विक खतरे पर लेखक की सोच को प्रतिबिम्बित करती है। लगभग चार सौ पन्नों की इस किताब को चेलानी ने पांच हिस्सों में बांटा है। पहले अध्याय में चेलानी ने पानी को नये तेल की तरह से परखते हुए उसकी महत्ता को सामने लाने की कोशिश की है। इस अध्याय में लेखक ने विस्तार से पानी की समस्या, उसकी कमी, विश्व के बदलते स्वरूप, पानी को लेकर संघर्ष के बढ़ते खतरे और उसको लेकर कमजोर कानूनों की चर्चा की है। दूसरे अध्याय में ब्रह्म चेलानी ने जल के भंडार पर बढ़ते दबाव को परखा है। इस अध्याय में ब्रह्म चेलानी सिंचाई की वजह से पानी की कमी और परमाणु ऊर्जा से पानी पर बढ़ रहे खतरे से भी आगाह किया है। इस किताब का एक अहम अध्याय तीसरा अध्याय है जिसके एक अंश के बारे में ऊपर चर्चा की जा चुकी है। इसके अलावा इस अध्याय में पानी के विपणन के अलग-अलग तरीकों को परखते हुए अपनी राय रखी है। चौथे अध्याय में पानी को लेकर इतिहास में जिस तरह की बातें हुई हैं उसको वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में देखने की कोशिश की गयी है। इस अध्याय में विश्व के कई देशों के बीच पानी को लेकर जो सन्धि हुई है उसके मेरिट और डीमेरिट को भी लेखक ने परखा है। किताब के अंतिम और पांचवें अध्याय में लेखक ने पानी की समस्या पर बनाई जाने वाली नीतियों और अन्तरराष्ट्रीय नियमों को सुझाया है।

इस किताब में लेखक ने भारत चीन सीमा पर चीन की ओर से बनाये जानेवाले डैम और ऊर्जा उत्पादन की कोशिशों को भी पानी की समस्या से जोड़कर देखा है। इससे पानी की समस्या को समझने की एक नयी दृष्टि मिलती है। भारत और चीन के आश्वासन को भी कसौटी पर कसा गया है। इस किताब में चेलानी ने पानी को बचाने और जल संरक्षण के लिए अपनी तरफ से कई सुझाव दिये हैं जिस पर सरकारों को गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है। जल नीति के नियन्ताओं के लिए चेलानी की यह किताब काफी मददगार साबित हो सकती है।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से सम्बद्ध। मोः 09871697248

Tags : ‘Water, Peace and War, confronting The Global Water Crisis’ Book review in Hindi, Topic ‘The threat of war over water’ in Hindi Language,

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Post By: pankajbagwan
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