पानी पर पाकिस्‍तान का झूठा प्रलाप

Indus water dispute
Indus water dispute


दुनियाभर में पानी का उपयोग जितना बढ़ रहा है उससे ज्यादा गति से दुनिया में जनसंख्या बढ़ रही है, और धीरे-धीरे दुनियाभर में जल अभाव की स्थितियां बनती दिख रही है। विश्‍व बैंक के एक आकलन के मुताबिक प्रति व्यक्ति 100 से 200 लीटर पानी प्रतिदिन आवश्‍यक है, तभी हम आसानी से जिंदा रह सकते है। यदि हम इसमे उत्पादन प्रक्रिया में शामिल होने वाला पानी भी जोड ले तो, औसतन मानव जल आवश्‍यकता लगभग दो लाख पैसठ गैलन आति व्यक्ति प्रति वर्ष है। यद्यपि पृथ्वी की सतह का लगभग सत्तर प्रतिशत भाग पानी है, लेकिन इस सत्तर प्रतिशत का मात्र तीन प्रतिशत ही स्वच्छ जल है इसमें से लगभग दो-तिहाई गलेशियर बर्फ और गहरे भूमिगत रूप में है तरह पृथ्वी के कुल पानी का केवल 0.01 प्रतिशत ही इंसानी बिरादरी के हिस्से में आता है।

भारत और पाकिस्तान भी इस जल समस्या से अपवाद नहीं है। भारत और पाक में सीमा विवाद के साथ ही जल विवाद भी अब अपने चरम पर है। पिछले कुछ समय से पाकिस्तान ने जिस तरह जल विवाद को लेकर भारत पर आरोप लगाये है, उससे हमारी सरकार के लोग भी चिंतित है। यदपि पानी को लेकर पाकिस्तान के राज्यों में आपसी किच-किच और खींचातानी जोरों पर है और पाक सरकार की इन आशंकाओं के मध्य सुलह की तमाम कोशिशें नाकाम हो चुकी है पर वह अब जल विवाद को फिर अंतरराष्ट्रीय पटल पर लाने की षड्यंत्र कर रहा है। जिस आराम से भारत में जनसंख्या नियंत्रण हो रहा है, उस से यह अनुमानस्पष्ट है कि 2025 मे हम आज से लगभग 13 मिलियन ज्यादा होंगे तो पाकिस्तान लगभग 270 मिलियन और लोगों से आबाद होगा। हम दोनों देशों के लोगों ने आज तक भू-जल का जमकर दोहन किया है और जब वह कम पडने लगा तो दोनों देश अब नदियों के पानी को लेकर आमने-सामने है।

भारत-पाक का यह जल विवाद बहुत पुराना है, अंग्रेजों के समय भी जब भारत एक था तब से ही पानी को लेकर विवाद है तब झगडा क्षेत्र का था जो आजादी के बाद देश के झगड़ों में बदल गया। इस विवाद को सुलझाने के लिए सर सेरिल रेडक्लिक की अध्यक्षता में एक जल सीमा आयोग का गठन किया गया जिसका उत्तरदायित्व पंजाब और बंगाल के जल स्त्रोत का विभाजन अंतराष्ट्रीय नीति के अनुरूप करने का था। इस आयोग ने ज्यादातर नदी और उन से सिंचित होने वाली भूमि पाकिस्तान के हिस्से में दे दी। पर सिंधु नदी को जल आपूर्ति देने वाली पांचों प्रमुख नदियां झेलम, चिनाब, रावि, ब्यास एवं सतलुज भारत में ही रह गयी। इस तरह से इस वितरण और विभाजन में भारतका पलडा भरी रहा क्योकि नदियां और उनके स्त्रोत भारत में ही बने रहे। सिंधु नदी जो पश्चिमी तिब्बत में कैलाश पर्वत शृंखला से आरंभ होकर उत्तर-पश्चिम दिशा की तरफ बढ़ते हुए चीन, लद्दाख और कश्‍मीर का सफर करते हुए, दक्षिण को मुड़कर पाकिस्तान चली जाती है, और भारत की यह पांचों नदियां भी पाकिस्तान में सिंधु नदी में शामिल हो जाती है। पाकिस्तान ने विभाजन के बाद से ही कश्‍मीर का तो राग अलापना शुरू किया है उसकी जड़ में मजहबी और जमीनी मामला तो है ही, साथ ही पाकिस्तान की यह कुटिल सोच भी है कि कैसे सिंधु नदी के संपूर्ण जल पर उसका कब्जा हो जाये और यदि उसे कश्‍मीर मिल जाय तो यह काम बहुत आसान हो जाएगा क्योंकि तब जल और जमीन दोनों पाकिस्तान के आधिपत्य में होंगे।

भारत ने 1948 में पाकिस्तान जाने वाले पानी को रोक दिया था व इसके लगभग 12 वर्षो बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आग्रह व विश्‍व बैंक की मध्यस्थता से तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू एवं पाकिस्तान के राष्ट्रपति मो. अयूब खान ने सिंधु नदी जल समझौता किया, इस के अनुसार रवि व्यास और सतलज का जल भारत के पूर्ण नियंत्रण में रहेगा, वही, झेलम, चिनाव और सिंधु का पानी पर पाकिस्तान का अधिकार होगा साथ ही भारत को यह आजादी भी थी कि वह अपनी जल विद्युत परियोजनाओ के लिए इन सभी नदियों का जल इस्तेमाल कर सकेगा और पाकिस्तान इसी को लेकर अंतराष्ट्रीय बिरादरी में रोता रहता है कि भारत ने हमारे हिस्से के पानी का उपयोग भी अपने यहाँ बिजली बनाने में कर लिया और हम पानी के लिए मोहताज हो रहे है। एक ओर जहां पाकिस्तान सरकार पाकिस्तान के दस्तावेज यह कहते है कि लगभग पौने चार लाख एकड फुट जल ऐसा है जो पाकिस्तान द्वारा बिना किसी उपयोग के समुद्र में भेज दिया जाता है। इससे यह स्पष्ट है कि पाक में जल आबंटन की तकनीक और व्‍यवस्थाएं कमजोर है। जल विभाजन के जानकारो की मानें तो पाकिस्तान की उत्पति से लेकर आज तक की सरकारों का रवैया इस जल विवाद पर सिर्फ यह ही है कि कुछ भी हो बस सबका दोष भारत पर लगा दो और अपनी जनता में इस बहानें से भी भारत विरोधी भावनाओं को भडकाओ। भारत ने पश्चिमी नदियों पर लगभग 30 से ज्यादा परियोजनाओं का संचालन किया है और हमेशा ही इसकी जानकारी संधि अनुसार पाक को ही है, बटवारें के बाद भारत के अधिकार वाली नदियों पर हम चाहें जितनी उतनी जल विद्युत परियोजनाएं विकसित कर सकते है। सिर्फ निर्माण के 6 माह पूर्व पाक को सूचित करना आवश्‍यक है जो हम बराबर करते है, वही पाक सूचना और अनुमति के अंतर के समझ न पाने के कारण निरर्थक ही विवाद खडा करता रहता है। इससे यह अवश्‍य है कि हम पाकिस्तान का हक जमीन के अलावा जल पर भी मार रहे है ऐसे खोखले झूठ को अल्पकालिक बल जरूर मिल जाता है पर कुछ ठोस व मजबूत न होने के कारण पाक हमेशा की तरह जल विवाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साफ एवं स्पष्ट है इसलिए अब विश्‍व बिरादरी यह समझ गयी है कि पाकिस्तान अपनी विफलताएं हडपने के झूठे आरोप लगाता रहता है
 

 

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