पानी पियो छान के


पानी हमारी मूल जरूरतों में से एक है। इसके बिना जीना दूभर है। हमारे शरीर का लगभग सत्तर प्रतिशत भाग में पानी होता है। आयुर्वेद के लिहाज से हमारे पेट को चार भागों में बाँटा गया है, जिसमें दो मुट्ठी जगह भोजन के लिये, एक मुट्ठी पानी के लिये और एक मुट्ठी जगह खाली होनी चाहिये। जब इनका संतुलन गड़बड़ाता है तो पाचन और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं सामने आती हैं। लेकिन कई बार गलत तरीके से पीने और जरूरत से ज्यादा पानी पीना सेहत पर भारी भी पड़ सकता है। कहावत है कि ‘बात करो जान के, पानी पियो छान के।’

जल हमारे लिये अमृत तुल्य है क्योंकि यह हमारे शरीर में होने वाले वात, पित्त और कफ यानी त्रिदोष विकारों को नष्ट करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। आहार विशेषज्ञ मानते हैं कि पानी हमारे भोजन को पचाने में मदद करता है। भोजन में पाये जाने वाले पोषक तत्व और खनिजों को अवशोषित करके शरीर को ऊर्जा देता है। समुचित मात्रा में पिया गया पानी हमारे तंत्रिका तंत्र को शांत कर शारीरिक तापमान नियंत्रित रखता है। हमारे शरीर की कोशिकाओं में आॅक्सीजन पहुँचाकर हमारे चयापचय को बेहतर बनाए रखता है। अपच, कब्ज जैसी पेट से जुड़ी समस्याओं में फायदेमंद है।

नुकसान भी पहुँचाता है पानी


लेकिन पानी पीने की गलत आदतों और लापरवाही बरतने की वजह से यह अमृत तुल्य जल विष भी बन जाता है और शरीर में त्रिदोष असंतुलन का कारण बन जाता है। आयुर्वेद में इन त्रिदोषों को संतुलित रखने के सैकड़ों सूत्र बताये गये हैं, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है- भोजनांते विषं वारी यानी भोजन के अंत में पानी पीना जहर हो जाता है। हमारे पेट में एक छोटी सी थैलीनुमा अंग आमाशय या जठर होता है। खाया गया भोजन सीधे वहीं पहुँचता है। वहाँ दो ही क्रिया होती है- एक भोजन का पचना और दूसरा भोजन का सड़ना। जब खाना आमाशय में पहुँचता है तब इसमें स्वाभाविक रूप से वहाँ जठराग्नि प्रदीप्ति हो जाती है। यह प्रक्रिया भोजन को पचाने में मदद करती है। आमाशय में पहुँचा खाना पहले पेस्ट, फिर रस मेें बदल जाता है और शरीर के विभिन्न अंगों द्वारा आसानी से अवशोषित हो जाता है।

अक्सर लोग पानी पिए बिना खाना नहीं खाते। कई तो दो-चार कौर खाना खाने के साथ-साथ पानी पीते हैं और भोजन करने के तुरंत बाद पानी जरूर पीते हैं। आयुर्वेद में भोजन के साथ और बाद में पानी पीने के लिये मना किया गया है। क्योंकि अगर आप भोजन के साथ या बाद में पानी पीते हैं और वह भी ठंडा तो जठराग्नि मंद हो जाती है। इसका नतीजा होता है कि भोजन पचने की बजाय सड़ने लगता है, जिससे विषाक्तता बढ़ती है। इससे यूरिक एसिड बनने लगता है और यह आपके स्वास्थ्य, खासतौर पर घुटनों, पैरों को प्रभावित करता है। शरीर में कोलेस्ट्रोल बढ़ने लगता है। पेट में बनने वाला यही जहरीला अम्ल जब बढ़ जाता है तो यह रक्त में पहुँच जाता है। इस वजह से हृदयाघात का खतरा बढ़ जाता है।

प्रश्न उठता है कि भोजन के कितने समय बाद पानी पीना ठीक है? खाना खाने के कम से कम एक घंटे बाद पानी पीना उचित है। क्योंकि भोजन पचाने में सहायक जठराग्नि धीरे-धीरे धीमी हो जाती है। आमाशय में भोजन पचने की प्रक्रिया शुरू होने के कुछ देर बाद पानी की जरूरत होती है।

जलआयु्र्वेद में माना गया है कि नियत समय पर और ठीक मात्रा में पानी पीना ही स्वास्थ्य के लिये लाभकारी होता है। जैसे- सुबह खाली पेट सामान्य पानी पीना फायदेमंद होता है। सुबह उठने के बाद खाली पेट एक गिलास पिया गया पानी हमारे अंदरूनी अंगों की सफाई कर देता है। इसमें नींबू और एक चम्मच शहद मिलाकर पीना तो सोने पर सुहागा ही कहा जायेगा। यह पेट के संक्रमण से भी बचाता है और पेट साफ करने में मदद करता है।

भोजन करने से तीस मिनट बाद थोड़ा-बहुत पानी पीना हित कर होता है। इससे पेट में मौजूद अम्लता खत्म हो जाती है। पाचन- प्रक्रिया सुचारु होती है। स्नान करने से पहले एक गिलास पानी पीने से रक्तचाप नियंत्रित करता है। रात को सोने से पहले आधा-एक गिलास पानी जरूर पीना चाहिये। इससे बेचैनी या घबराहट न होकर गहरी नींद आती है। यह रात के समय लगने वाली भूख को भी शांत करता है।

किन बातों का रखें ध्यान


- जरूरत से ज्यादा पानी पीना हमारे शरीर को नुकसान पहुँचाता है। ज्याद पानी पीने से कई बार पेट अफर जाता है। कुछ खाते नहीं बनता और पेट की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भूख कम लगने से शरीर में पौष्टिक तत्वों की कमी हो जाती है। ज्यादा पानी शरीर में इकट्ठा होकर सूजन और मोटापे का कारण भी बन जाता है।

- घूँट-घूँट भर कर पानी पिया जाये तो बेहतर है। ज्यादा प्यास होने पर या जल्दब्जी में हम अक्सर एक साथ बिना रुके पानी पीते हैं, जो पेट में जलन , दर्द की वजह बनता है।

- भोजन के साथ पानी पीना अगर बहुत जरूरी है, तो एक गिलास पानी में आधा चम्मच जीरा और थोड़ा सा अदरक मिलाकर उबाल लें। गुनगुना पानी भोजन के साथ ले सकते हैं। जरूरी दवाई भी भोजन करने के 10-15 मिनट बाद खानी चाहिये।

- प्यास बुझाने के लिये हम अक्सर फ्रिज का खूब ठंडा पानी पीना पसंद करते हैं। जो पीने में तो अच्छा लगता है, लेकिन हमारे शरीर को नुकसान पहुँचाता है। हमारा शरीर ठंडे पानी को गरम पानी के मुकाबले बहुत धीरे अवशोषित कर पाता है। शरीर का तापमान, ठंडे पानी के मुकाबले काफी ज्यादा होता है। ठंडे पानी को शरीर के अनुकूल तापमान में लाने के लिये काफी मशक्कत करनी पड़ती है, जिससे पाचन तंत्र गड़बड़ा जाता है। अगर यह प्रक्रिया लंबे समय तक चले तो पेट में गंभीर रोग भी हो सकता है। पेट में ऐंठन, दर्द, पेट फूलना और गैस जैसी समस्याएं हो सकती हैं। सर्दी-जुकाम हो सकता है। ज्यादा ठंडा पानी पीने से हमारी रक्त वाहनियों में दबाव पड़ता है और वे सिकुड़ने लगती हैं। इससे हमारे रक्त संचार में बाधा आती है और सांस लेने में मुश्किल होती है। इसलिए कम ठंडा या सामान्य पानी पीना ही बेहतर है। सुराही या घड़े का पानी पीना सबसे अच्छा है।

- जिन्हें अपच, डायरिया, पेट फूलना, रक्ताल्पता जैसी समस्या हो, उन्हें पानी कम मात्रा में पीना चाहिये। संभव हो तो अदरक, सौंफ आदि मिलाकर पानी को उबालकर पिएं। इससे एक तो पानी हल्का और सुपाच्य हो जाता है, दूसरा इससे पेट के संक्रमण का खतरा नहीं रहता।

- सुबह-शाम तांबे या चांदी के बर्तन में सात-आठ घंटे पहले भर कर रखा पानी पीना फायदेमंद है। इससे पानी में पाए जाने वाले कीटाणुओं का नाश होता है।

- बाहर से खेलकर आने के बाद बच्चों को तुरंत ठंडा पानी नहीं पीने देना चाहिये। 10-15 मिनट रुकने के बाद ही पानी पीना चाहिये, जो अधिक ठंडा न हो तो बेहतर है।

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