वाराणसी [जयप्रकाश पांडेय]। आर्सेनिक, आयरन और फ्लोराइड मिश्रित पानी पीने के लिए पूर्वाचल के कई जिले मजबूर हैं। दरअसल बलिया, मऊ, गाजीपुर व सोनभद्र के 11 ब्लाकों में स्थित 140 गांवों की लगभग दो लाख 30 हजार की आबादी को पीने के लिए शुद्ध पेयजल मुहैया नहीं कराया जा सका है। यहां भूजल में कहीं आर्सेनिक, कहीं आयरन तो कहीं फ्लोराइड घुल चुके हैं।
इसका प्रभाव यह होता है कि शरीर पर काले धब्बे पड़ना, चमड़े का नुकीले कांटों के रूप में उभरना और पेट फूल जाता है और अंत में हेपेटाइटिस बी जैसी घातक बीमारी का शिकार होकर मर जाना। विशेषज्ञ बताते हैं कि इससे बचने का एकमात्र उपाय यह है कि इस जहरीले पानी के प्रयोग से बचा जाए लेकिन सवाल यह है कि 'इसे न पीएं तो क्या पीएं' क्योंकि अन्य कोई जलस्रोत तो है ही नहीं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सोनबरसा [बलिया] के चिकित्साधिकारी पीके मिश्रा बताते है कि इस पानी का असर कैंसर व एड्स जैसी बीमारियों से भी ज्यादा खतरनाक है।
डा. मिश्रा का कहना है कि भूगर्भीय जल कितनी गहराई तक आर्सेनिक युक्त है, इसका पता नहीं लगाया जा सका है। यदि सर्वेक्षण से यह पता चल सके कि कितनी गहराई तक पानी में मीठा जहर घुल चुका है तो शायद लोगों को इस संकट से मुक्ति मिल सके। इस जल को पीकर अब तक कई लोग काल के गाल में समा चुके हैं जबकि सैकड़ों लोग गंभीर बीमारियों की जद में हैं।हालात की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने अब बलिया में आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों को शुद्ध पानी उपलब्ध कराने के लिए 225 करोड़ की लागत से ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने को मंजूरी दे दी है।
इसके अलावा सोनभद्र जनपद में भी महाराष्ट्र के अमरावती से फ्लोरोसिस किट मंगवाई गई है।
Tags- Fluorosis, Fluoride, Arsenic,
साभार - जागरण याहू
इसका प्रभाव यह होता है कि शरीर पर काले धब्बे पड़ना, चमड़े का नुकीले कांटों के रूप में उभरना और पेट फूल जाता है और अंत में हेपेटाइटिस बी जैसी घातक बीमारी का शिकार होकर मर जाना। विशेषज्ञ बताते हैं कि इससे बचने का एकमात्र उपाय यह है कि इस जहरीले पानी के प्रयोग से बचा जाए लेकिन सवाल यह है कि 'इसे न पीएं तो क्या पीएं' क्योंकि अन्य कोई जलस्रोत तो है ही नहीं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सोनबरसा [बलिया] के चिकित्साधिकारी पीके मिश्रा बताते है कि इस पानी का असर कैंसर व एड्स जैसी बीमारियों से भी ज्यादा खतरनाक है।
डा. मिश्रा का कहना है कि भूगर्भीय जल कितनी गहराई तक आर्सेनिक युक्त है, इसका पता नहीं लगाया जा सका है। यदि सर्वेक्षण से यह पता चल सके कि कितनी गहराई तक पानी में मीठा जहर घुल चुका है तो शायद लोगों को इस संकट से मुक्ति मिल सके। इस जल को पीकर अब तक कई लोग काल के गाल में समा चुके हैं जबकि सैकड़ों लोग गंभीर बीमारियों की जद में हैं।हालात की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने अब बलिया में आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों को शुद्ध पानी उपलब्ध कराने के लिए 225 करोड़ की लागत से ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने को मंजूरी दे दी है।
इसके अलावा सोनभद्र जनपद में भी महाराष्ट्र के अमरावती से फ्लोरोसिस किट मंगवाई गई है।
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साभार - जागरण याहू
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