भूजल स्तर का नीचे होना एक विकराल समस्या का रूप ले रहा है। हाल में विदर्भ समेत कई क्षेत्रों में सूखा पड़ने की आशंका ने समस्या के और भी गंभीरता की ओर इशारा किया है। ऐसे में बिहार के उन जिलों में जो पहले से ही बाढ़ और सूखा का सामना करते रहते हैं, उनके लिए एक बड़ी चेतावनी है। अभी भी समय है, हम इस प्रकार की चेतावनी को गंभीरता से लें और अपने पानी के स्रोतों को अक्षय ही बनाए रखें। एक सदी पहले हम देशी तरीके से पानी का बेहतर संरक्षण करते थे। लेकिन नई जीवनशैली के नाम पर हम उसे भूल गये हैं। पानी की कमी की बात करते ही एक बात हमेशा सामने आती है कि दुनिया में कहीं भी पानी की कमी नहीं है। दुनिया के दो तिहाई हिस्से में पानी ही पानी है, तो भला पानी की कमी कैसे होगी। यहां यह बताना जरूरी होगा कि मानवीय जीवन जिस पानी से चलता है उस पानी की मात्रा पुरी दुनिया में पांच से दस फीसदी से अधिक नहीं है और पूरी दुनिया में कनाडा के बाद भारत एक ऐसा देश है जहां बडे़ पैमाने पर पानी उपलब्ध है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि जिस पानी का उपयोग हम दैनिक जीवन में करते है वह पानी हमें उपलब्ध न हो पाये तो हमारा दैनिक जीवन कैसा होगा? पानी हमारे दैनिक जीवन पर कैसा प्रभाव छोड़ते हैं। आमतौर पर ऐसे सवालों का जवाब हम सभी अपने कंधे को उचका कर अनसुना कर देते हैं। लेकिन इसके बारे में विश्व बैंक ने जो चेतावनी दी है वह एक गंभीर और चिंतनीय विषय बन गया है। गंभीर विषय इसलिए है कि यह चेतावनी भारत जैसे उस विशाल देश के लिए है, जहां विश्व का दूसरे बडे़ पैमाने पर पानी पाया जाता है। विश्व बैंक ने अपनी जो चेतावनी में कहा कि दो दशक के अंदर भारत में पानी की त्राहि-त्राहि मचेगी अर्थात वह दिन दूर नहीं जब पानी के लिए वह सब कुछ देखने व सुनने को मिलेगा जो हमने स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा। कारण तो कई है लेकिन सामने जो समस्या खड़ी दिखाई दे रही है वह है मौसम का बार बार परिवर्तन और ग्लेशियर का पिघलना। इससे हमारे वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसका प्रभाव भी देखने को अभी से ही मिल रहा है।
समाचारपत्रों के माध्यम से इस तरह की ख़बरें आम सुनने को मिलती है कि नदी, तालाब, पोखर सूख गई और न जाने कितने पशु पानी के अभाव में काल के गाल मे समा गये। लोग पानी के लिए एक गांव से दूसरे गांव भटक रहे हैं। जंगल और पहाड़ी बहुल क्षेत्रों की बात तो दूर दिल्ली और मुम्बई जैसे महानगर जहां की आबादी 10 लाख से उपर है यह दोनों महानगर दुनिया के 27 बड़े शहरों में शामिल है। इन दोनों महानगरों में पानी की उपलब्धता कम है। दोनों महानगरों के साथ कोलकाता भी ऐसा शहर है जहां टैंकर आदि से पानी बिकते है। जहां तक मेरी जानकारी है पाकिस्तान और चीन आने वाले इस गंभीर समस्या से निपटने की पुरजोर तैयारी कर रहा है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमारा देश इस गंभीर समस्या को लेकर गंभीर है। इससे पहले कि स्थिति भयावह हो चिंतकों को आने वाली समस्या का निदान निकालना होगा।
ये तो पानी की आने वाली समस्या है, लेकिन वर्तमान में हम सब को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी लोक स्वास्थ प्रमंडल विभाग की होती है बिहार को ही लिया जाए तो प्रत्येक साल बड़ी आबादी पानी को लेकर तरसती है। बिहार का कई गांव व क़स्बा ऐसा है जहां पानी को ले की हाहाकार मचा रहता है हालांकि लोक अभियंत्रण विभाग हर साल समस्या से निपटने के लिए हर संभव प्रयत्न करता है। इसके बावजूद सैकड़ों गांव ऐसे है जहां अभी भी लोग बूंद बूंद पानी के लिए तड़पते रहते हैं। गर्मी के मौसम में तो स्थिति और भयावह हो जाती है। खास कर विद्यालयों में पढ़ने वाले छोटे-छोटे बच्चों का तो हाल बुरा हो जाता है। कई-कई विद्यालय ऐसे हैं जो आबादी से कई किलोमीटर की दूरी पर है वहां पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। अगर किसी विद्यालय में चापाकल अर्थात हैण्डपाईप लगा भी है, तो उसे स्कूल के कर्मचारी अपने कब्ज़े में कर रखा है। चापाकलों को जंजीरों में बांध रखा गया है उसका उपयोग केवल शिक्षक ही करते हैं। बच्चे सुखे होंठ को ले कर दर-दर की ठोकरें खाने का विवश होते रहते है।
दरभंगा जिले का छपकी पर्री गांव ऐसा ही उदाहरण है। गांव के वार्ड न. दस, ग्यारह, बारह ऐसा वार्ड है जहां लोग गर्मी की बात तो दूर, जाडे़ के मौसम में भी पानी के लिए तरसते है। वार्ड न. 10 जिसकी आबादी 1500 के करीब है और 1500 की आबादी पर मात्र एक चापाकल और वह भी खराब पड़ा है। वार्ड न. ग्यारह जिसकी भी यही दशा है। यहां शिक्षा के नाम पर स्थानीय प्रशासन द्वारा एक प्राथमिक विद्यालय है, जहां बच्चों की अच्छी ख़ासी तादाद है, यहां के एकमात्र हैंडपंप को स्कूल के शिक्षकों ने जंजीर में जकड़ रखा है। इस संबंध में उनका तर्क है कि बच्चे हैंडपंप तोड़ देते हैं, इसीलिए उसे बंद कर रखा गया है। सम्पूर्ण दरभंगा जिले की यह हाल है कि गर्मी आते ही जलस्तर नीचे चला जाता है। नलकूप, चापाकल पानी उगलना बंद कर देते हैं। यह तो दरभंगा जिले का हाल है, जो तीन बड़ी नदी कमला, बागमती और कोसी से घिरा हैं। दरभंगा जिले का लोक स्वास्थय प्रमंडल विभाग प्रधान सचिव के उस आदेश को ठेंगा दिखा रहा है जिसमें उन्होंने ग्राम टोलावार चापाकलों की स्थिति और विशेषकर गर्मी के दिनों में खराब पड़े चापाकलों की फौरी तौर पर मरम्मती का आदेश दिया था।
भूजल स्तर का नीचे होना एक विकराल समस्या का रूप ले रहा है। हाल में विदर्भ समेत कई क्षेत्रों में सूखा पड़ने की आशंका ने समस्या के और भी गंभीरता की ओर इशारा किया है। ऐसे में बिहार के उन जिलों में जो पहले से ही बाढ़ और सूखा का सामना करते रहते हैं, उनके लिए एक बड़ी चेतावनी है। अभी भी समय है, हम इस प्रकार की चेतावनी को गंभीरता से लें और अपने पानी के स्रोतों को अक्षय ही बनाए रखें। एक सदी पहले हम देशी तरीके से पानी का बेहतर संरक्षण करते थे। लेकिन नई जीवनशैली के नाम पर हम उसे भूल गये हैं। कभी हमारी नदियों में शुद्ध पानी बहता था। लेकिन अब ऐसा नहीं रहा, विकास की होड़ में हमने शुद्ध पानी को भी अशुद्ध कर दिया।
समाचारपत्रों के माध्यम से इस तरह की ख़बरें आम सुनने को मिलती है कि नदी, तालाब, पोखर सूख गई और न जाने कितने पशु पानी के अभाव में काल के गाल मे समा गये। लोग पानी के लिए एक गांव से दूसरे गांव भटक रहे हैं। जंगल और पहाड़ी बहुल क्षेत्रों की बात तो दूर दिल्ली और मुम्बई जैसे महानगर जहां की आबादी 10 लाख से उपर है यह दोनों महानगर दुनिया के 27 बड़े शहरों में शामिल है। इन दोनों महानगरों में पानी की उपलब्धता कम है। दोनों महानगरों के साथ कोलकाता भी ऐसा शहर है जहां टैंकर आदि से पानी बिकते है। जहां तक मेरी जानकारी है पाकिस्तान और चीन आने वाले इस गंभीर समस्या से निपटने की पुरजोर तैयारी कर रहा है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमारा देश इस गंभीर समस्या को लेकर गंभीर है। इससे पहले कि स्थिति भयावह हो चिंतकों को आने वाली समस्या का निदान निकालना होगा।
ये तो पानी की आने वाली समस्या है, लेकिन वर्तमान में हम सब को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी लोक स्वास्थ प्रमंडल विभाग की होती है बिहार को ही लिया जाए तो प्रत्येक साल बड़ी आबादी पानी को लेकर तरसती है। बिहार का कई गांव व क़स्बा ऐसा है जहां पानी को ले की हाहाकार मचा रहता है हालांकि लोक अभियंत्रण विभाग हर साल समस्या से निपटने के लिए हर संभव प्रयत्न करता है। इसके बावजूद सैकड़ों गांव ऐसे है जहां अभी भी लोग बूंद बूंद पानी के लिए तड़पते रहते हैं। गर्मी के मौसम में तो स्थिति और भयावह हो जाती है। खास कर विद्यालयों में पढ़ने वाले छोटे-छोटे बच्चों का तो हाल बुरा हो जाता है। कई-कई विद्यालय ऐसे हैं जो आबादी से कई किलोमीटर की दूरी पर है वहां पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। अगर किसी विद्यालय में चापाकल अर्थात हैण्डपाईप लगा भी है, तो उसे स्कूल के कर्मचारी अपने कब्ज़े में कर रखा है। चापाकलों को जंजीरों में बांध रखा गया है उसका उपयोग केवल शिक्षक ही करते हैं। बच्चे सुखे होंठ को ले कर दर-दर की ठोकरें खाने का विवश होते रहते है।
दरभंगा जिले का छपकी पर्री गांव ऐसा ही उदाहरण है। गांव के वार्ड न. दस, ग्यारह, बारह ऐसा वार्ड है जहां लोग गर्मी की बात तो दूर, जाडे़ के मौसम में भी पानी के लिए तरसते है। वार्ड न. 10 जिसकी आबादी 1500 के करीब है और 1500 की आबादी पर मात्र एक चापाकल और वह भी खराब पड़ा है। वार्ड न. ग्यारह जिसकी भी यही दशा है। यहां शिक्षा के नाम पर स्थानीय प्रशासन द्वारा एक प्राथमिक विद्यालय है, जहां बच्चों की अच्छी ख़ासी तादाद है, यहां के एकमात्र हैंडपंप को स्कूल के शिक्षकों ने जंजीर में जकड़ रखा है। इस संबंध में उनका तर्क है कि बच्चे हैंडपंप तोड़ देते हैं, इसीलिए उसे बंद कर रखा गया है। सम्पूर्ण दरभंगा जिले की यह हाल है कि गर्मी आते ही जलस्तर नीचे चला जाता है। नलकूप, चापाकल पानी उगलना बंद कर देते हैं। यह तो दरभंगा जिले का हाल है, जो तीन बड़ी नदी कमला, बागमती और कोसी से घिरा हैं। दरभंगा जिले का लोक स्वास्थय प्रमंडल विभाग प्रधान सचिव के उस आदेश को ठेंगा दिखा रहा है जिसमें उन्होंने ग्राम टोलावार चापाकलों की स्थिति और विशेषकर गर्मी के दिनों में खराब पड़े चापाकलों की फौरी तौर पर मरम्मती का आदेश दिया था।
भूजल स्तर का नीचे होना एक विकराल समस्या का रूप ले रहा है। हाल में विदर्भ समेत कई क्षेत्रों में सूखा पड़ने की आशंका ने समस्या के और भी गंभीरता की ओर इशारा किया है। ऐसे में बिहार के उन जिलों में जो पहले से ही बाढ़ और सूखा का सामना करते रहते हैं, उनके लिए एक बड़ी चेतावनी है। अभी भी समय है, हम इस प्रकार की चेतावनी को गंभीरता से लें और अपने पानी के स्रोतों को अक्षय ही बनाए रखें। एक सदी पहले हम देशी तरीके से पानी का बेहतर संरक्षण करते थे। लेकिन नई जीवनशैली के नाम पर हम उसे भूल गये हैं। कभी हमारी नदियों में शुद्ध पानी बहता था। लेकिन अब ऐसा नहीं रहा, विकास की होड़ में हमने शुद्ध पानी को भी अशुद्ध कर दिया।
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