पानी को स्थानीय रूप से उपचारित करने की योजनाओं का सम्पूर्ण लाभ

उपरोक्त परियोजनाओं के कार्यान्वयन से लगभग 1007 एमसी या कहें 1 मिलियन क्यूबिक मीटर अतिरिक्त पानी मिलेगा। इसमें वह पानी सम्मिलित नहीं है, जो टिहरी बांध से लाया जाएगा। टिहरी बांध से संयुक्त भूकम्पीय खतरों और इसे उत्तर प्रदेश की जनता के प्रभावित होने की संभावना को देखते हुए इस परियोजना को भ्रूणावस्था में ही नियंत्रण रखने का परामर्श दिया जाता है। पूर्वोक्त योजना अपनाने से गत आधी शताब्दी में अनियोजित विकास के दुष्प्रभावों को कम करने में भी मदद मिलेगी।

यमुना का जलस्तर घटने से इस नदी द्वारा बनाया गया पर्यावरण नष्ट हो रहा है। मछुआरों के सैंकड़ों गांव आर्थिक रूप से बर्बाद हो गए और मछुआरों को रोजी-रोटी के लिए अन्यत्र स्थानापन्न होना पड़ा है। प्रवासी पक्षी जो इस बेसिन में आते और अंडे देते थे, उनका आना रुक गया है। नगरों की भारी गंदगी के कारण यमुना में आज जलचर जीवन पालने की क्षमता नहीं रह गई है और शुष्क मौसम के लिए दिल्ली और आगरा में यमुना मृतप्राय हो जाती है। पूर्वोक्त योजना अपनाने से दिल्ली के आसपास इस बेसिन की विगत पर्यावरण श्रंखला को पुनर्जीवित किया जा सकेगा और आने वाले दशकों में दिल्ली को पर्याप्त पानी मिलता रहेगा।

जहां तक दिल्ली का प्रश्न है, ऊपर कहे गए जलाशय पर राशि खर्च करना यमुना के ऊपर की ओर प्रस्तावित डैम और जलाशय बनाने से कई अधिक बुद्धिमत्ता का काम होगा। राज्य के सीमान्तरगत एक लाभ यह होगा कि संचित पानी का दिल्ली लाने में परिवहन क्षरण नहीं होगा। इसके अतिरिक्त स्थानीय रूप से बने भूमिगत जल स्तर को सुधरना निश्चित है। इससे क्षेत्र की जैव विविधता में वृद्धि होगी और अन्य जैविक श्रृंखलाओं को बढ़ावा मिलेगा। इससे क्षेत्र के पर्यटन की योजनाओं को गति मिलेगी। इसलिए यह परामर्श दिया जाता है कि यमुना नदी पर बांध बनाए जाने के प्रस्ताव का पुन:निरीक्षण किया जाना चाहिए और उनके बजाए उपरोक्त अनुसार जलग्रहण क्षेत्रों में जलाशयों के निर्माण, सस्ते जलसंचयन छोटी जलधाराओं के पुन:जीवन और सीवेज ट्रीटमेंट योजनाओं पर धन व्यय किया जाना चाहिए।

विकल्प के तौर पर अनुशंसित ये प्रविधियां कम खर्च मांगेगी और इस प्रकार सरकारी खजाने पर कम भार पड़ेगा। आज भ्रष्टाचार के चलते पानी की योजनाएं सरकारी अमले की खाने- कमाने का साधन बनी हुई हैं। शायद इनमें प्रमुख कारण है कि ऐसी सस्ती योजनाएं उन्हें आकर्षक नहीं लगती। फिर भी इस देश के कर्णधारों को यह समझना चाहिए कि इस देश की जनता निकट भविष्य में यह सीख जाने वाली है कि अपने पानी की सर्वोत्तम व्यवस्था कैसे की जाती है और तब यदि सरकार वैसी व्यवस्था नहीं कर पाती है तो जनता पानी की व्यवस्था स्वयं करने के अधिकार की मांग करेगी।

बताए गए उपचारों के क्रियांवयन के बाद दिल्ली के लिए उपलब्ध पानी होगा

मिलियन क्यूबिक मीटर

यमुना में पानी करार के बाद

144

बी

2000 क्यूसेक अतिरक्ति पानी, (हरियाणा के साथ ब्यास नदी द्वारा)

500

सी

आपूरित गंगा जल

120

डी

बाढ़ क्षेत्रीय जलाशय

317

तालाब और नहरों का पुनरूज्जीवन

50

एफ

उपचारित मल

600

जी

भूजल

280

कुल

2,011



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