पानी कम, शराब ज्यादा पीने लगे हैं बुंदेली

पियक्कड़ों में पुलिस वालों की भी संख्या कम नहीं है। आए दिन सड़क किनारे पुलिस के जवान शराब के नशे में टुन्न पड़े रहते हैं। नशे की बदौलत कई नामी-गिरामी बदमाश पुलिस हिरासत से असलहे तक लूट कर भाग चुके हैं। कई पुलिस वालों को इसी वजह से जेल की हवा खानी पड़ी है।

बांदा, बुंदेलखंड का नाम जेहन में आते ही पानी के अभाव वाले एक क्षेत्र की तस्वीर आंखों में उभरती है। बुंदेलखंड और सूखा मानों एक दूसरे के पर्याय हों। पानी कि किल्लत कहिए या कुछ और अब यहां के लोग पानी से ज्यादा शराब पीने लगे हैं। जल संस्थान एवं आबकारी विभाग के आंकड़ों से तो यही साबित होता है। पिछले तीन साल में अकेले बांदा के लोग साढ़े 88 करोड़ रुपए की शराब पी गए, जबकि पेयजल में सिर्फ आठ करोड़ रुपए ही खपत हुए। बुंदेलखंड में 'दारू-मीट' का चलन कुछ ज्यादा ही है। मध्यम व गरीब वर्ग के लोग इसके सबसे ज्यादा लती हैं। शादी-विवाह हो या कोई और संस्कार, बिना शराब के सम्पन्न नहीं होता। यही वजह है कि सूखे की मार झेलने के बाद भी आबकारी विभाग के मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी के गृह जनपद बांदा में पिछले तीन साल में पानी कम, शराब ज्यादा पी गई है।

बांदा जल संस्थान के अधिशासी अभियंता राजेंद्र सिंह ने बताया कि जनपद में वर्ष 2008-09 में जलकर और जल मूल्य के तौर पर 245-335 लाख रुपए, वर्ष 2009-10 में 246-939 लाख और वर्ष 2010-11 में 307-697 लाख रुपए वसूले गए हैं। यानि तीन साल में लोगों ने कुल 799-971 लाख रुपए पानी पर अदा किया है। बांदा जिले के आबकारी अधिकारी एस.पी. तिवारी बताते हैं, वर्ष 2008-09 में देसी मदिरा से 14 करोड़ 51 लाख 96 हजार, अंग्रेजी शराब से 5 करोड़ 73 लाख 26 हजार 980 रुपए, बीयर से 83 लाख 97 हजार 472 रुपए। वर्ष 2009-10 में देसी मदिरा से 16 करोड़ 93 लाख 56 हजार व अंग्रेजी शराब से 85 लाख 34 हजार, बीयर से एक करोड़ 24 लाख 77 हजार 376 रुपए और वर्ष 2010-11 में देसी शराब से 19 करोड़ 93 लाख 76 हजार, अंग्रेजी शराब से 12 करोड़ 75 लाख 57 हजार, बीयर से 12 लाख 98 हजार रुपए राजस्व के रूप में प्राप्त हुए हैं।

यानि सूखे से बेपरवाह बांदा के बुंदेले तीन साल में 88 करोड़ 68 लाख 20 हजार 172 रुपए की शराब पी गए जो पानी की रकम से 80 करोड़ 69 लाख 19 हजार 101 रुपए ज्यादा है। इन दो विभागों के तीन सालों के आंकड़ों से जाहिर है कि बुंदेलखंड में शराब पीने वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। मयखानों में ज्यादातर युवा पीढ़ी की भीड़ होती है। साथ ही अपराधों में भी इजाफा हो रहा है। यहां हर गली-कूचे में 'पाठशाला' कम और जायज-नाजायज 'मधुशाला' ज्यादा मिलेंगे। पियक्कड़ों में पुलिस वालों की भी संख्या कम नहीं है। आए दिन सड़क किनारे पुलिस के जवान शराब के नशे में टुन्न पड़े रहते हैं। नशे की बदौलत कई नामी-गिरामी बदमाश पुलिस हिरासत से असलहे तक लूट कर भाग चुके हैं। कई पुलिस वालों को इसी वजह से जेल की हवा खानी पड़ी है।

बांदा शहर के जाने-माने डॉक्टर मोहम्मद रफीक का कहना है कि तनाव से ग्रस्त पुलिसकर्मी शराब पीते हैं, जबकि रिक्शा चालक या मजदूर थकान मिटाने के बहाने इसके आदी हो गए हैं। कुछ रईशजादे और अधिकारी शौकिया तौर पर मदिरा का सेवन करते हैं। बांदा में जिला आबकारी अधिकारी के पद पर रह चुके अनूप और डिस्टलरी बुलंदशहर के अधिकारी अमर सिंह का कहना है कि बुंदेलखंड के लोग सूखा और गरीबी का दंश झेल रहे हैं, फिर भी देसी मदिरा की अपेक्षा विदेशी व बीयर की खपत यहां ज्यादा है। इससे स्पष्ट है कि शराब पीने वालों में उच्च श्रेणी के लोगों की संख्या अधिक है। वह राजस्व में हुए इजाफे की वजह शराब का महंगा होना मानते हैं। सरकारी अमला राजस्व में हुए इजाफे से जरूर गदगद हुआ होगा, लेकिन तमाम ऐसे परिवार हैं जो शराब से तबाह हो गए हैं। बिसंडा थाना क्षेत्र के तेंदुरा गांव के किसान राममिलन सिंह ने बताया कि उसका भाई पुष्पराज शराब पीने का आदी था। उसने कई बीघे जमीन शराब की खातिर बेच डाली। बाद में गुर्दे खराब हो जाने से 34 साल की उम्र में उसकी मौत हो गई।

इस गांव के छंगू ब्राह्मण, राजा सिंह, रामरक्षित, रामजस जैसे एक दर्जन नशेड़ी अकाल मौत के शिकार हो चुके हैं। बल्लान गांव का एक ठाकुर अपनी सवा सौ बीघा कृषि भूमि नशे की लत में धीरे-धीरे बेच डाला। बाद में भूखों मरने लगा तो सपरिवार गुजरात चला गया, जहां उसकी मौत हो गई। परिवार के अन्य लोग वहीं चाकरी कर रहे हैं। जनपद में सैकड़ों ऐसे परिवार हैं, जो नशे की लत में बर्बाद हो चुके हैं या बर्बादी के कगार पर हैं। समाजवादी पार्टी (सपा) के बबेरू से विधायक विशम्भर सिंह यादव का कहना है कि बेकारी और बेरोजगारी की वजह से युवा वर्ग नशेड़ी हुआ जा रहा है। सरकार की गलत नीतियों के चलते ये हालात पैदा हुए हैं।
 

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