पेयजल जीवन के लिये अमृत तो है ही लेकिन महाराष्ट्र के ठाणे जिले में यह प्यार-मोहब्बत के लिये जीवनदायी सिद्ध हो रहा है। इस जिले में पेयजल की भारी कमी तो है ही, ऊपर से इसकी आपूर्ति भी बहुत त्रुटिपूर्ण है। इसी बात ने अनगिनत सम्भावी दूल्हों की नींद हराम कर रखी है।
एक सामाजिक कार्यकर्ता प्रशान्त अम्बुलकर का कहना है, “मैं इस इलाके में कई वर्षों से सक्रिय हूँ। मुझे कई लोगों से यह बात सुनने को मिली है कि वह अपनी बेटी की शादी केवल उसी परिवार में करेंगे जिसके घर में पेयजल की निर्बाध आपूर्ति होती हो। लोग जब बेटी के लिये रिश्ता तलाश करते हैं तो सबसे पहले लड़के वालों के घर में जलापूर्ति की स्थिति के बारे में पूछताछ करते हैं। जमीन-जायदाद व अन्य बातों के सम्बन्ध में पूछताछ बाद में की जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकतर लोग अपनी बेटियों की शादी शहर में रहने वाले दूल्हों से करने को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि वहाँ जलापूर्ति की समस्या इतनी गम्भीर नहीं होती जितनी कि गाँवों में।”
जलापूर्ति चूँकि अब शादी के मामले में निर्णायक कारक बन चुकी है इसलिये बेटियों के अभिभावकों को टैंकर-जलापूर्ति और गैर-टैंकर जलापूर्ति के प्रावधान वाले दोनों ही तरह के गाँव में से दूल्हे का चयन करना दुश्वार हो गया है क्योंकि दोनों ही स्थितियों में समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
एन.जी.ओ. ‘जग्गर फाउंडेशन’ से सम्बद्ध सुरेश सोंडकर कहते हैं, “जल तो सदा से ही जीवन की मूल आवश्यकता रही है, लेकिन व्यापक प्रदूषण और लगातार गिरते भूजल स्तर ने इसे दुर्लभ और अनमोल जिन्स बना दिया है। शहरी इलाकों में तो नगर निगम जलापूर्ति सुनिश्चित करता है लेकिन देहाती क्षेत्रों में इस समस्या की परवाह करने वाला कोई नहीं। घर की औरतों और लड़कियों को पानी के लिये दूर-दूर तक जाना पड़ता है जिससे उनकी शिक्षा और स्कूल में उपस्थिति बुरी तरह प्रभावित होती है।”
‘घोड़बाड़े’ नामक एक परिवार का उदाहरण देते हुए अम्बुलकर कहते हैं, “वे लोग अपनी 25 वर्षीय बेटी के लिये गत् 6 माह से किसी उपयुक्त वर की तलाश कर रहे हैं लेकिन उन्हें कोई ढंक का लड़का नहीं मिल रहा जो निर्बाध जलापूर्ति की उनकी शर्त पूरी करता हो।”
ग्रामीणों के लिये जीवन सचमुच दुश्वार है क्योंकि हर साल जैसे ही गर्मीयाँ आती हैं उनके पोखर, तालाब, कुएँ और यहाँ तक कि झीलें भी सूख जाती हैं। अधिकारी उनकी सहायता करने की कोई चिन्ता नहीं करते और इस जल संकट में घिरे अभिभावक अपने बच्चों की शादी को लेकर चिन्ताग्रस्त रहते हैं। अब समृद्ध परिवार की तलाश करने की बजाय लोग ऐसे दूल्हे की तलाश करते हैं जिसके घर में पेयजल की कोई समस्या न हो।
ठाणे नगर निगम ने इस वर्ष फिर से जिला कलेक्टोरेट के सहयोग से अपने जिले के सभी भागों में पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये 32 करोड़ रुपए की योजना तैयार की है लेकिन इस परियोजना को शुरू होने में अभी कुछ समय लगेगा।
एक सामाजिक कार्यकर्ता प्रशान्त अम्बुलकर का कहना है, “मैं इस इलाके में कई वर्षों से सक्रिय हूँ। मुझे कई लोगों से यह बात सुनने को मिली है कि वह अपनी बेटी की शादी केवल उसी परिवार में करेंगे जिसके घर में पेयजल की निर्बाध आपूर्ति होती हो। लोग जब बेटी के लिये रिश्ता तलाश करते हैं तो सबसे पहले लड़के वालों के घर में जलापूर्ति की स्थिति के बारे में पूछताछ करते हैं। जमीन-जायदाद व अन्य बातों के सम्बन्ध में पूछताछ बाद में की जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकतर लोग अपनी बेटियों की शादी शहर में रहने वाले दूल्हों से करने को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि वहाँ जलापूर्ति की समस्या इतनी गम्भीर नहीं होती जितनी कि गाँवों में।”
जलापूर्ति चूँकि अब शादी के मामले में निर्णायक कारक बन चुकी है इसलिये बेटियों के अभिभावकों को टैंकर-जलापूर्ति और गैर-टैंकर जलापूर्ति के प्रावधान वाले दोनों ही तरह के गाँव में से दूल्हे का चयन करना दुश्वार हो गया है क्योंकि दोनों ही स्थितियों में समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
एन.जी.ओ. ‘जग्गर फाउंडेशन’ से सम्बद्ध सुरेश सोंडकर कहते हैं, “जल तो सदा से ही जीवन की मूल आवश्यकता रही है, लेकिन व्यापक प्रदूषण और लगातार गिरते भूजल स्तर ने इसे दुर्लभ और अनमोल जिन्स बना दिया है। शहरी इलाकों में तो नगर निगम जलापूर्ति सुनिश्चित करता है लेकिन देहाती क्षेत्रों में इस समस्या की परवाह करने वाला कोई नहीं। घर की औरतों और लड़कियों को पानी के लिये दूर-दूर तक जाना पड़ता है जिससे उनकी शिक्षा और स्कूल में उपस्थिति बुरी तरह प्रभावित होती है।”
‘घोड़बाड़े’ नामक एक परिवार का उदाहरण देते हुए अम्बुलकर कहते हैं, “वे लोग अपनी 25 वर्षीय बेटी के लिये गत् 6 माह से किसी उपयुक्त वर की तलाश कर रहे हैं लेकिन उन्हें कोई ढंक का लड़का नहीं मिल रहा जो निर्बाध जलापूर्ति की उनकी शर्त पूरी करता हो।”
ग्रामीणों के लिये जीवन सचमुच दुश्वार है क्योंकि हर साल जैसे ही गर्मीयाँ आती हैं उनके पोखर, तालाब, कुएँ और यहाँ तक कि झीलें भी सूख जाती हैं। अधिकारी उनकी सहायता करने की कोई चिन्ता नहीं करते और इस जल संकट में घिरे अभिभावक अपने बच्चों की शादी को लेकर चिन्ताग्रस्त रहते हैं। अब समृद्ध परिवार की तलाश करने की बजाय लोग ऐसे दूल्हे की तलाश करते हैं जिसके घर में पेयजल की कोई समस्या न हो।
ठाणे नगर निगम ने इस वर्ष फिर से जिला कलेक्टोरेट के सहयोग से अपने जिले के सभी भागों में पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये 32 करोड़ रुपए की योजना तैयार की है लेकिन इस परियोजना को शुरू होने में अभी कुछ समय लगेगा।
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Post By: RuralWater