धरती पर पाए जाने वाले पदार्थों में पानी सबसे साधारण है, लेकिन गुणों में असाधारण एवं विशिष्ट है। इसके इन्हीं गुणों के कारण जीवन न केवल इस धरती पर अस्तित्व में आया और विकसित हुआ। हम पानी के आश्चर्यजनक गुणों को प्राय: गंभीरता से नहीं लेते। वास्तव में यह एक उत्कृष्ट विलायक है और काफी अधिक तापमान तक द्रव्य अवस्था में बना रहता है। इसे गर्म करने तथा उबालने के लिए काफी ऊष्मा की जरूरत होती है।
पानी की इस आश्चर्यजनक भूमिका के पीछे आखिर क्या सच है? दरअसल पानी के असामान्य गुणों का महत्वपूर्ण कारण है उनके अणुओं के बीच लगने वाला अंतर-आणविक बल, जिसे हाइड्रोजन बंध कहते हैं। हालांकि पानी के हाइड्रोजन बंध कमजोर होते हैं, लेकिन पानी के गुणधर्म एवं विशिष्ट व्यवहार के पीछे उनकी अहम भूमिका होती है। जीवन के लिए इसकी आवश्यकता और उपयोगिता का हमारी तमाम प्राचीन पुस्तकों में व्यापक उल्लेख मिलता है। पानी प्रत्येक जीव के लिए अहम है। जैविक प्रक्रियाओं का पूरा रसायन एक तरह से कार्बन के यौगिकों का जलीय रसायन है। इन यौगिकों को जैवकार्बनिक यौगिक कहते हैं। आज से लगभग साढ़े तीन अरब वर्ष पहले धरती पर आक्सीजन की मात्र नगण्य थी और उस काल में यहां की परिस्थितियां आज की तरह नहीं थीं। बाद में नीलहरित शैवाल जैसे एककोशिकीय जीवों द्वारा वातावरण में आक्सीजन छोड़ी गई। फिर लाखों वर्ष बाद आक्सीजन की पर्याप्त उपलब्धता से धरती पर आक्सीजन आधारित बहुकोशिकीय जीव विकसित हुए।
वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक ज़े बी़ एस़ हाल्डेन ने 1929 में बताया था कि हमारे शरीर में लगभग जितनी कोशिकाएं हैं उतनी ही एक कोशिका में परमाणुओं की संख्या होती है। मानव शरीर स्वयं में निर्जीव होते हैं। ये निर्जीव परमाणु ही मिलकर जीव का निर्माण करते हैं। हाल्डेन ने बताया कि सजीव और निर्जीव के बीच की विभाजक रेखा, कोशिका और परमाणु के बीच जीवन का रिश्ता पानी से टूटता नहीं है।
पृथ्वी का तीन-चौथाई हिस्सा पानी से ढका है। पानी के कारण ही बाह्य अंतरिक्ष से देखने पर धरती नीले रंग की दिखती है। इसीलिए धरती को नीला ग्रह भी कहते हैं। सर्वप्रथम धरती पर जीवन पानी में ही अस्तित्व में आया था। अरबों वर्ष बाद आज भी जीवों की अधिकतर प्रजातियां पानी में ही मिलती हैं। सागर में जीवों की एक अलग दुनिया ही मौजूद है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पानी हमारी धरती पर प्रचुर मात्र में पाया जाता है तथा कमोबेश यह हर जगह उपलब्ध है।
पानी एक रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन और पारदर्शी द्रव है। इसके इन्हीं गुणों से कुछ लोगों को यह लगता रहा है कि पानी अक्रियाशील द्रव है। हालांकि आज हमें ज्ञात है कि यह अद्भुत गुण-संपन्न यौगिक है और साथ ही यह काफी क्रियाशील भी है। पानी तीनों रूपों में यानी ठोस, द्रव और गैस में मिलता है। कोई दूसरा यौगिक इस तरह से तीनों स्थितियों में नहीं मिलता। ठोस रूप को बर्फ कहते हैं जो शून्य डिग्री सेल्सियस ताप पर या उससे नीचे के ताप पर पाया जाता है।शून्य से 100 डिग्री सेल्सियस तापमान तक पानी द्रव अवस्था में पाया जाता है। सामान्य वायुमंडलीय दाब पर यह 100 डिग्री सेल्सियस पर उबलने लगता है यानी भाप या वाष्प में बदल जाता है जिसे हम गैसीय अवस्था कहते हैं। किसी पदार्थ के गुणधर्म उसकी संरचना पर निर्भर करते हैं। पानी के गुणों की कुंजी उसकी आणविक संरचना में ही निहित है।
पानी केवल दो तत्वों से मिलकर बना है-हाइड्रोजन और आक्सीजन। एक अणु में दो परमाणु हाइड्रोजन के होते हैं और एक परमाणु आक्सीजन का। इस तरह पानी का एक अणु कुल मिलाकर मात्र तीन परमाणुओं से बना होता है। इतना साधारण अणु और उसके गुणों में इतना वैविध्य किसी को भी अचरज में डाल सकता है। पानी के दो अणुओं के बीच एक खास तरह का आकर्षण बल काम करता है जिसे हाइड्रोजन बंध कहते हैं। इसके विचित्र गुणों का सारा श्रेय इन्हीं हाइड्रोजन बंधों को जाता है।
पानी हमारे भोजन का मुख्य घटक है। एक वयस्क आदमी को पीने के लिए प्रतिदिन औसतन 8 गिलास की आवश्यकता होती है। गर्मी में पानी की अधिक जरूरत होती है। ऐसा इसलिए कि हम कई तरीकों से हमेशा अपने शरीर से पानी त्यागते हैं। वैसे हमारा शरीर औसतन करीब 250 मिलीमीटर प्रति घंटे की दर से पानी त्यागता है।
लेकिन कुछ खास स्थितियों में यह दर 3 लीटर तक जा पहुंचती है। शरीर की साफ-सफाई के लिए हम नहाते हैं। कपड़े धोने के लिए पानी का इस्तेमाल होता है। एक शहरी आदमी औसतन प्रतिदिन 100 से 500 लीटर पानी विभिन्न कामों में खर्च करता है। इन सारी बातों के मूल में पानी की भूमिका इसलिए है क्योंकि पानी में इन चीजों के लिए जरूरी गुण मौजूद हैं।
पानी के बांधों को विशेष तौर पर जल द्वारा निर्मित विद्युत का निर्माण करने के लिए बनाया जाता है। इस किस्म की विद्युत कार्यशील, प्रदूषण-मुक्त तथा कम लागत की होती है। जल विद्युत संयंत्र घरों, स्कूलों, खेतों, फैक्ट्रियों तथा व्यवसायों को विद्युत मुहैया कराते हैं। जल को विशाल पाइपों के जरिए बांध में प्राय: उपलब्ध एक पावर हाउस तक लाया जाता है। पावर हाउस में जल की शक्ति टरबाइनों को गोल-गोल घुमाती है तथा इस निरंतर गति से एक बल उत्पन्न होता है जिससे विद्युत-शक्ति का निर्माण किया जाता है।वर्षा जल भूमि में गिरने पर वायुमंडल में फैले कार्बन डाइ आक्साइड के सम्पर्क में आने के कारण कुछ अम्लीय हो जाती है। अम्ल पृथ्वी की चट्टानों का काटता है तथा इनके टूटे हुए हिस्सों को आयनों के रूप में अपने साथ बहाकर ले जाता है।
आयन नहरों तथा नदियों के रास्ते समुद्र में चले जाते हैं जबकि कई विघटित आयन जीवों द्वारा उपयोग किए जाते हैं तथा अन्य लम्बे समय के लिए छोड़ दिए जाते हैं, जहां समय के साथ-साथ इनकी मात्र भी बढ़ती रहती हैं। समुद्री जल में क्लोराइड तथा सोडियम होता है जिससे समुद्र जल के विघटित आयनों का 90 प्रतिशत से अधिक की प्रतिपूर्ति हो जाती है। समुद्र जल में कुल विघटित नमक का लगभग 3.5 प्रतिशत है। इससे समद्र का जल खारा होता है।
भोजन के बिना कोई व्यक्ति एक माह से अधिक जीवित रह सकता है, परंतु जल के बिना सप्ताह से अधिक नहीं रह सकता। कुछ जीवों (जैसे जैली फिश) में उनका 90 प्रतिशत से अधिक शरीर का भार जल से होता है। मानव शरीर में लगभग 60 प्रतिशत जल होता है - मस्तिष्क में 85 प्रतिशत जल है, रक्त में 79 प्रतिशत जल है तथा फेफड़ों में लगभग 80 प्रतिशत जल होता है।
पानी की इस आश्चर्यजनक भूमिका के पीछे आखिर क्या सच है? दरअसल पानी के असामान्य गुणों का महत्वपूर्ण कारण है उनके अणुओं के बीच लगने वाला अंतर-आणविक बल, जिसे हाइड्रोजन बंध कहते हैं। हालांकि पानी के हाइड्रोजन बंध कमजोर होते हैं, लेकिन पानी के गुणधर्म एवं विशिष्ट व्यवहार के पीछे उनकी अहम भूमिका होती है। जीवन के लिए इसकी आवश्यकता और उपयोगिता का हमारी तमाम प्राचीन पुस्तकों में व्यापक उल्लेख मिलता है। पानी प्रत्येक जीव के लिए अहम है। जैविक प्रक्रियाओं का पूरा रसायन एक तरह से कार्बन के यौगिकों का जलीय रसायन है। इन यौगिकों को जैवकार्बनिक यौगिक कहते हैं। आज से लगभग साढ़े तीन अरब वर्ष पहले धरती पर आक्सीजन की मात्र नगण्य थी और उस काल में यहां की परिस्थितियां आज की तरह नहीं थीं। बाद में नीलहरित शैवाल जैसे एककोशिकीय जीवों द्वारा वातावरण में आक्सीजन छोड़ी गई। फिर लाखों वर्ष बाद आक्सीजन की पर्याप्त उपलब्धता से धरती पर आक्सीजन आधारित बहुकोशिकीय जीव विकसित हुए।
वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक ज़े बी़ एस़ हाल्डेन ने 1929 में बताया था कि हमारे शरीर में लगभग जितनी कोशिकाएं हैं उतनी ही एक कोशिका में परमाणुओं की संख्या होती है। मानव शरीर स्वयं में निर्जीव होते हैं। ये निर्जीव परमाणु ही मिलकर जीव का निर्माण करते हैं। हाल्डेन ने बताया कि सजीव और निर्जीव के बीच की विभाजक रेखा, कोशिका और परमाणु के बीच जीवन का रिश्ता पानी से टूटता नहीं है।
पृथ्वी का तीन-चौथाई हिस्सा पानी से ढका है। पानी के कारण ही बाह्य अंतरिक्ष से देखने पर धरती नीले रंग की दिखती है। इसीलिए धरती को नीला ग्रह भी कहते हैं। सर्वप्रथम धरती पर जीवन पानी में ही अस्तित्व में आया था। अरबों वर्ष बाद आज भी जीवों की अधिकतर प्रजातियां पानी में ही मिलती हैं। सागर में जीवों की एक अलग दुनिया ही मौजूद है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पानी हमारी धरती पर प्रचुर मात्र में पाया जाता है तथा कमोबेश यह हर जगह उपलब्ध है।
पानी एक रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन और पारदर्शी द्रव है। इसके इन्हीं गुणों से कुछ लोगों को यह लगता रहा है कि पानी अक्रियाशील द्रव है। हालांकि आज हमें ज्ञात है कि यह अद्भुत गुण-संपन्न यौगिक है और साथ ही यह काफी क्रियाशील भी है। पानी तीनों रूपों में यानी ठोस, द्रव और गैस में मिलता है। कोई दूसरा यौगिक इस तरह से तीनों स्थितियों में नहीं मिलता। ठोस रूप को बर्फ कहते हैं जो शून्य डिग्री सेल्सियस ताप पर या उससे नीचे के ताप पर पाया जाता है।शून्य से 100 डिग्री सेल्सियस तापमान तक पानी द्रव अवस्था में पाया जाता है। सामान्य वायुमंडलीय दाब पर यह 100 डिग्री सेल्सियस पर उबलने लगता है यानी भाप या वाष्प में बदल जाता है जिसे हम गैसीय अवस्था कहते हैं। किसी पदार्थ के गुणधर्म उसकी संरचना पर निर्भर करते हैं। पानी के गुणों की कुंजी उसकी आणविक संरचना में ही निहित है।
पानी केवल दो तत्वों से मिलकर बना है-हाइड्रोजन और आक्सीजन। एक अणु में दो परमाणु हाइड्रोजन के होते हैं और एक परमाणु आक्सीजन का। इस तरह पानी का एक अणु कुल मिलाकर मात्र तीन परमाणुओं से बना होता है। इतना साधारण अणु और उसके गुणों में इतना वैविध्य किसी को भी अचरज में डाल सकता है। पानी के दो अणुओं के बीच एक खास तरह का आकर्षण बल काम करता है जिसे हाइड्रोजन बंध कहते हैं। इसके विचित्र गुणों का सारा श्रेय इन्हीं हाइड्रोजन बंधों को जाता है।
पानी हमारे भोजन का मुख्य घटक है। एक वयस्क आदमी को पीने के लिए प्रतिदिन औसतन 8 गिलास की आवश्यकता होती है। गर्मी में पानी की अधिक जरूरत होती है। ऐसा इसलिए कि हम कई तरीकों से हमेशा अपने शरीर से पानी त्यागते हैं। वैसे हमारा शरीर औसतन करीब 250 मिलीमीटर प्रति घंटे की दर से पानी त्यागता है।
लेकिन कुछ खास स्थितियों में यह दर 3 लीटर तक जा पहुंचती है। शरीर की साफ-सफाई के लिए हम नहाते हैं। कपड़े धोने के लिए पानी का इस्तेमाल होता है। एक शहरी आदमी औसतन प्रतिदिन 100 से 500 लीटर पानी विभिन्न कामों में खर्च करता है। इन सारी बातों के मूल में पानी की भूमिका इसलिए है क्योंकि पानी में इन चीजों के लिए जरूरी गुण मौजूद हैं।
पानी के बांधों को विशेष तौर पर जल द्वारा निर्मित विद्युत का निर्माण करने के लिए बनाया जाता है। इस किस्म की विद्युत कार्यशील, प्रदूषण-मुक्त तथा कम लागत की होती है। जल विद्युत संयंत्र घरों, स्कूलों, खेतों, फैक्ट्रियों तथा व्यवसायों को विद्युत मुहैया कराते हैं। जल को विशाल पाइपों के जरिए बांध में प्राय: उपलब्ध एक पावर हाउस तक लाया जाता है। पावर हाउस में जल की शक्ति टरबाइनों को गोल-गोल घुमाती है तथा इस निरंतर गति से एक बल उत्पन्न होता है जिससे विद्युत-शक्ति का निर्माण किया जाता है।वर्षा जल भूमि में गिरने पर वायुमंडल में फैले कार्बन डाइ आक्साइड के सम्पर्क में आने के कारण कुछ अम्लीय हो जाती है। अम्ल पृथ्वी की चट्टानों का काटता है तथा इनके टूटे हुए हिस्सों को आयनों के रूप में अपने साथ बहाकर ले जाता है।
आयन नहरों तथा नदियों के रास्ते समुद्र में चले जाते हैं जबकि कई विघटित आयन जीवों द्वारा उपयोग किए जाते हैं तथा अन्य लम्बे समय के लिए छोड़ दिए जाते हैं, जहां समय के साथ-साथ इनकी मात्र भी बढ़ती रहती हैं। समुद्री जल में क्लोराइड तथा सोडियम होता है जिससे समुद्र जल के विघटित आयनों का 90 प्रतिशत से अधिक की प्रतिपूर्ति हो जाती है। समुद्र जल में कुल विघटित नमक का लगभग 3.5 प्रतिशत है। इससे समद्र का जल खारा होता है।
भोजन के बिना कोई व्यक्ति एक माह से अधिक जीवित रह सकता है, परंतु जल के बिना सप्ताह से अधिक नहीं रह सकता। कुछ जीवों (जैसे जैली फिश) में उनका 90 प्रतिशत से अधिक शरीर का भार जल से होता है। मानव शरीर में लगभग 60 प्रतिशत जल होता है - मस्तिष्क में 85 प्रतिशत जल है, रक्त में 79 प्रतिशत जल है तथा फेफड़ों में लगभग 80 प्रतिशत जल होता है।
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