आज भी झुग्गियों में रहने वाले लोगों को उनके उपयोग का सिर्फ तीस प्रतिशत पानी ही मिल पा रहा है। हालांकि हमारे धरती पर पानी बहुतायात मात्रा में उपलब्ध है मगर अफसोस की बात यह है कि उसमें से सिर्फ तीन प्रतिशत पानी ही शुद्ध और पीने लायक है। ऐसे में जल चक्र ही एक जरिया है जिसके द्वारा हम पानी को प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए हमें अपनी नदी, तलाबों और झीलों के संरक्षण करना होगा और साथ-ही-साथ पानी का सही इस्तेमाल भी करना पड़ेगा। नन्हें दोस्तों! आपको पता है कि कहां से आता है हमारा पानी और फिर कहां चला जाता है यह पानी। आज हम आपको बताएंगे पानी के इसी चक्र के बारे में। जिसमें शामिल है सूरज, समुद्र, बादल, हवा, धरती, बारिश की बूंदे और फिर बहती हुई एक नदी और उसके किनारे बसा आपका हमारा घर, शहर, लहलहाते खेत और जंगल। इन्हीं से होकर अपना सफर तय करता है पानी।
सबसे पहले पानी सूरज की गर्मी से भाप बनकर उपर उठता है और बादल बन जाता है। फिर यही बादल वर्षा के बूंदों में बरसकर नदियों, तालाबों से होते हुए समुद्र में जा मिलता है। मगर आजकल पानी का यह चक्कर कुछ अजीब सा हो गया है। नल खोलो तो नल से सूं-सूं की आवाजें आती हैं। तो कहीं-कहीं पानी के लिए एक तरफ तू-तू, मैं-मैं सुनाई पड़ती है।
अब तो कई चीजों की तरह पानी भी बिकता है। वहीं दूसरी तरफ बरसात के मौसम में सब तरफ पानी ही दिखता है। आपके, हमारे घर, स्कूल, सड़कों और रेल की पटरियों पर पानी भर जाता है। ऐसा लगता है कि कुछ दिनों के लिए सब कुछ थम-सा जाता है। ये हालात हमें बताते हैं कि पानी का बेहद कम और बेहद ज्यादा हो जाना भी सही नहीं है।
अगर हम इसे सही तरीके से संभाल लें तो पानी की अति और न्यूनता से जुड़ी दोनों समस्याओं से कुछ हद तक निजात पा सकते हैं। जैसे कि हम अपने गुल्लक में बड़ों से मिले पैसे को डालते हैं और जरूरत के समय उसी बचत का उपयोग करते हैं। वैसे ही हमारी धरती के पास भी गुल्लक हैं। जिसे हम नदी, तालाब, झील के रूप में जानते हैं। वर्षा के दिनों में बारिश का पानी इन्हीं गुल्लकों में जमा होता है। फिर धीरे-धीरे रिसकर, छनकर धरती के नीचे छिपे भूजल के भंडार में जा मिलता है।
मगर आज बढ़ते औद्योगीकरण और जनसंख्या के कारण हम धरती के गुल्लक यानि नदियों, तालाबों को जमीन के लालच में कचरे से पाट रहे हैं। जिसकी परिणाम बड़ा ही भयानक होता जा रहा है। गर्मी के दिनों में हमारे नल सूख जाते और बरसात में सब कुछ बह जाता है।
नन्हें दोस्तों आज भी झुग्गियों में रहने वाले लोगों को उनके उपयोग का सिर्फ तीस प्रतिशत पानी ही मिल पा रहा है। हालांकि हमारे धरती पर पानी बहुतायात मात्रा में उपलब्ध है मगर अफसोस की बात यह है कि उसमें से सिर्फ तीन प्रतिशत पानी ही शुद्ध और पीने लायक है। ऐसे में जल चक्र ही एक जरिया है जिसके द्वारा हम पानी को प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए हमें अपनी नदी, तलाबों और झीलों के संरक्षण करना होगा और साथ-ही-साथ पानी का सही इस्तेमाल भी करना पड़ेगा। क्योंकि पानी सिर्फ हमारी रोजमर्रा के उपयोग के लिए ही आवश्यक नहीं बल्कि हमारे शरीर के लिए भी जरूरी है।
हमारा यह शरीर अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी के साथ-साथ अधिकांश तो जल से मिलकर बना हुआ है। इस दृष्टि से पानी हमारा जीवन है। तो अपने जीवन को संभालने के लिए आपको पानी का समुचित सेवन करना चाहिए। दोस्तों एक दिन में हमें कम-से-कम सात-आठ गिलास पानी पीना चाहिए। यह हमें कई तरह की बीमारियों से बचाता भी है। तो फिर देर किस बात की सजग हो जाओ पानी को संभालने और सहेजने में। आशा है आप अपने साथ आस-पास के लोगों को भी मेरे इस अभियान में शामिल करोगे।
सबसे पहले पानी सूरज की गर्मी से भाप बनकर उपर उठता है और बादल बन जाता है। फिर यही बादल वर्षा के बूंदों में बरसकर नदियों, तालाबों से होते हुए समुद्र में जा मिलता है। मगर आजकल पानी का यह चक्कर कुछ अजीब सा हो गया है। नल खोलो तो नल से सूं-सूं की आवाजें आती हैं। तो कहीं-कहीं पानी के लिए एक तरफ तू-तू, मैं-मैं सुनाई पड़ती है।
अब तो कई चीजों की तरह पानी भी बिकता है। वहीं दूसरी तरफ बरसात के मौसम में सब तरफ पानी ही दिखता है। आपके, हमारे घर, स्कूल, सड़कों और रेल की पटरियों पर पानी भर जाता है। ऐसा लगता है कि कुछ दिनों के लिए सब कुछ थम-सा जाता है। ये हालात हमें बताते हैं कि पानी का बेहद कम और बेहद ज्यादा हो जाना भी सही नहीं है।
अगर हम इसे सही तरीके से संभाल लें तो पानी की अति और न्यूनता से जुड़ी दोनों समस्याओं से कुछ हद तक निजात पा सकते हैं। जैसे कि हम अपने गुल्लक में बड़ों से मिले पैसे को डालते हैं और जरूरत के समय उसी बचत का उपयोग करते हैं। वैसे ही हमारी धरती के पास भी गुल्लक हैं। जिसे हम नदी, तालाब, झील के रूप में जानते हैं। वर्षा के दिनों में बारिश का पानी इन्हीं गुल्लकों में जमा होता है। फिर धीरे-धीरे रिसकर, छनकर धरती के नीचे छिपे भूजल के भंडार में जा मिलता है।
मगर आज बढ़ते औद्योगीकरण और जनसंख्या के कारण हम धरती के गुल्लक यानि नदियों, तालाबों को जमीन के लालच में कचरे से पाट रहे हैं। जिसकी परिणाम बड़ा ही भयानक होता जा रहा है। गर्मी के दिनों में हमारे नल सूख जाते और बरसात में सब कुछ बह जाता है।
नन्हें दोस्तों आज भी झुग्गियों में रहने वाले लोगों को उनके उपयोग का सिर्फ तीस प्रतिशत पानी ही मिल पा रहा है। हालांकि हमारे धरती पर पानी बहुतायात मात्रा में उपलब्ध है मगर अफसोस की बात यह है कि उसमें से सिर्फ तीन प्रतिशत पानी ही शुद्ध और पीने लायक है। ऐसे में जल चक्र ही एक जरिया है जिसके द्वारा हम पानी को प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए हमें अपनी नदी, तलाबों और झीलों के संरक्षण करना होगा और साथ-ही-साथ पानी का सही इस्तेमाल भी करना पड़ेगा। क्योंकि पानी सिर्फ हमारी रोजमर्रा के उपयोग के लिए ही आवश्यक नहीं बल्कि हमारे शरीर के लिए भी जरूरी है।
हमारा यह शरीर अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी के साथ-साथ अधिकांश तो जल से मिलकर बना हुआ है। इस दृष्टि से पानी हमारा जीवन है। तो अपने जीवन को संभालने के लिए आपको पानी का समुचित सेवन करना चाहिए। दोस्तों एक दिन में हमें कम-से-कम सात-आठ गिलास पानी पीना चाहिए। यह हमें कई तरह की बीमारियों से बचाता भी है। तो फिर देर किस बात की सजग हो जाओ पानी को संभालने और सहेजने में। आशा है आप अपने साथ आस-पास के लोगों को भी मेरे इस अभियान में शामिल करोगे।
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Post By: Shivendra