पानी का घर

विनय पहली बार गाँव आया, तो नलकूप से पानी की मोटी धार निकलती देख उसे बहुत ताज्जुब हुआ। ऐसा उसने शहर में कभी नहीं देखा था। वहाँ तो बस, नल से धीरे-धीरे निकलता पानी ही उसने देखा था। उसकी उत्सुकता देखकर उसके पिता ने उसे भूगर्भीय जल आदि के बारे में जो कुछ बताया, उससे वह आश्चर्यचकित हो गया। उसके पिता ने ऐसी कौन सी जानकारियाँ उसे दीं? जानने के लिए पढ़े कहानी-
.विनय गाँव आकर कैसा लग रहा है? प्रसाद जी ने पूछा।

विनय ने कोई उत्तर नहीं दिया वह जमीन में गड़े लोहे के पाइप की ओर एकटक देखे जा रहा था, जिसके मुँह से पानी की मोटी धार निकल रही थी। वह पहली बार गाँव आया था इससे पहले उसने कभी जमीन से इस तरह पानी निकलते नहीं देखा था।

विनय ! प्रसाद जी ने फिर पुकारा। जी इस बार चौंक कर उसने अपने पिता की ओर देखा

क्या सोच रहे थे? उन्होंने उससे पूछा।

पिताजी, मैं सोच रहा था कि अगर हमारे पैरों के नीचे की जमीन यकायक टूट जाए, तो हम सीधे पानी में जा गिरेंगे। क्या जमीन के नीचे पानी का तालाब या टैंक होता है?

नहीं विनय, प्रसाद जी को हंसी आ गई, धरती के नीचे पानी उस तरह नहीं होता है, जैसे तुम कल्पना कर रहे हो। जमीन के नीचे पानी मिट्टी की विभिन्न परतों में पाया जाता है।

मिट्टी की परतें? विनय ने दोहराया।

हाँ, प्रसाद जी ने समझाया, यदि जमीन की खुदाई की जाए, तो हम पाएंगे कि मिट्टी हर कहीं अपनी बनावट में एक-सी नहीं होती है। अलग-अलग मोटाई की परतें जैसे- चिकनी मिट्टी, मिट्टी-कंकड़ मिट्टी, बालू, बारीक बालू, मोटी बालू आदि जमीन के नीचे मिलती हैं। जमीन के नीचे पानी इन्हीं बालू वाली परतों में पाया जाता है।

पिताजी, जमीन के नीचे ये परतें कैसे बन जाती हैं? विनय ने पूछा।

वर्षों पहले जब धरती बन रही थी, बड़ी-बड़ी नदियों द्वारा इन परतों का निर्माण हुआ। चट्टानी इलाकों में ये परतें भिन्न प्रकार की होती हैं।

कमाल है। विनय बुदबुदाया।

वे दोनों ट्यूबवैल के नजदीक आ गये थे। डीजल इंजन के चलने से तेज शोर हो रहा था।

जमीन के नीचे से पानी उठाने या खींचने के लिए पम्प की जरूरत होती है। प्रसाद जी ने विनय को बतलाया, यहाँ पम्प को इस डीजल इंजन की सहायता से चलाया जा रहा है। जहाँ बिजली उपलब्ध होती है, वहाँ पम्प सीधे बिजली की सहायता से चलाया जा सकता है।

बिना पम्प के जमीन में से पानी नहीं निकाला जा सकता? विनय ने पूछा।

लोगों को बिना पम्प के जमीन से पानी निकालते हुए तुमने अक्सर देखा होगा। इसके लिए कुओं, रहट, हैण्डपम्प आदि का प्रयोग किया जाता है।

विनय गहरी सोच में डूब गया था।

पिता जी- यकायक उसने उत्सुकता से पूछा, महाभारत के टीवी सीरियल में अर्जुन धरती में तीर मारकर पानी निकाल देते हैं। पानी जमीन से फव्वारे की तरह निकलने लगता है। बिना पम्प के पानी कैसे निकलने लगता है।

प्रसाद जी ने प्रशंसा भरी दृष्टि से विनय की ओर देखा।

मुझे खुशी है कि तुमने अपना पुरा ध्यान विषय पर केन्द्रित कर रखा है, प्रसाद जी ने खुश होते हुए कहा टीवी में दिखाई जाने वाली बहुत सी बातें ठीक उस रूप में नहीं होती हैं, जैसे दिखाई देती हैं। फिर भी अर्जून के गांडिव धनुष से धरती छेदने वाली घटना से तुमने मेरा ध्यान पाताल तोड़कूप (उत्स्रुत कूप) की ओर आकृष्ट कराया है, जिनसे पानी बिना किसी मदद के अपने आप जमीन पर बहता रहता है। इस तरह के कूप हर जगह नहीं बनाए जा सकते हैं। इनके निर्माण के लिए जमीन के नीचे मिट्टी की परतों एवं पानी की एक विशेष प्रकार की दशा या स्थिति होना अनिवार्य है।

अपने आप बहने वाले कूप के लिए जमीन के नीचे मिट्टी की दो सख्त परतों के बीच पानी वाली परत का होना जरूरी है- ठीक किसी सैंडविच की तरह। ये मिट्टी की परतें अभेद्य होती हैं। यानि पानी इनके आर-पार नहीं आ जा सकता। इन परतों के बीच पानी अत्यधिक दबाव में रहता है और यदि जमीन से पानी की परत तक छेद किया जाए, तो पानी दबाव के कारण धरती की सतह तक चढ़कर बहने लगता है, इसे 'आर्टिजेन वेल' या स्वतः बहने वाला कूप भी कहते हैं।

पानी फव्वारे के रूप में जमीन से कैसे निकलने लगता है? विनय ने पूछा।

मिट्टी की दो सख्त परतों के बीच दबाव के कारण। इसे समझने के लिए तुम एक गुब्बारा लो, उसे बिना फुलाए उसमें सूई से सावधानी पूर्वक एक छेद कर दो, फिर उसमें पानी भर दो क्या होगा? प्रसाद जी ने पूछा।

पानी इस छेद से फव्वारे के रूप में निकलने लगेगा। बिल्कुल ठीक ! प्रसाद जी ने कहा, इस प्रयोग में गुब्बारे की झिल्ली के कारण उसके भीतर का पानी दबाव में रहता है। जमीन में सख्त मोटी मिट्टी की परतों के कारण ऐसा होता है।

समझ गया... बिल्कुल समझ गया ! विनय ने कहा। नई जानकारी के कारण उसकी आँखें खुशी से चमक रही थीं।

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