‘‘...करेह का बायां तटबंध जो 48 मील लम्बा है उसे सिरसिया में ही खत्म कर देने का उद्देश्य यह है कि क्षेत्र को कोसी और करेह द्वारा पोषित किया जा सके। साथ ही सिरसिया और फुहिया के बीच का जो रिक्त स्थान है उस से होकर कोसी के दायें तटबंध और करेह के बायें तटबंध द्वारा सुरक्षित क्षेत्र के जल का क्रॉस ड्रेनेज (निष्कासन) संभव हो सके। बायें तटबंध के कम लम्बा होने के कारण कोई विशेष क्षति की संभावना नहीं है। इस क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति को कुछ काल देखने के बाद और यदि आवश्यक समझा गया तो तटबंध को बढ़ाने का विचार किया जायेगा।’’
कोसी, कमला और बागमती नदियों के पानी से घिरे हुए इस क्षेत्र में पानी की निकासी बाधित होने की थोड़ी-बहुत शिकायतें पहले भी थीं मगर यह जमाव दो-तीन दिन से ज्यादा नहीं हुआ करता था। चित्र-10.1 में इस इलाके की नदियों और तटबंधों की स्थिति को दिखाया गया है। यहाँ कोसी नदी पर सबसे पहले तटबंध बने जिसके पश्चिमी तटबंध को घोंघेपुर में लाकर छोड़ दिया गया जबकि पूर्वी तटबंध को कोपडि़या रेलवे स्टेशन के पास रेल लाइन से जोड़ दिया गया। परिणामतः रेल लाइन पर बने पुल की वजह से नदी के पानी की निकासी में और इस तटबंध की वजह से कोसी के पूर्वी तटबंध के पूरब में जल-निकासी में बाधा पड़ी। जैसे-जैसे बीरपुर बराज से नीचे जाते हैं वैसे-वैसे इस क्षेत्र की जल-जमाव की समस्या और भी ज्यादा कष्टप्रद हो गयी। घोंघेपुर के नीचे कोसी का पश्चिमी किनारा खुला रहने के कारण कोसी के पानी को उधर फैलने का मौका मिल गया। इतना ही नहीं पश्चिमी तटबंध पर घोंघेपुर के पास से बरसात के मौसम में नदी का पानी मुड़ कर पश्चिमी तटबंध से उलटी दिशा में उत्तर की ओर बहने लगा। ऐसा कोसी पर तटबंधों के निर्माण के बाद 1963-64 के आस-पास शुरू हो गया था। इससे कोसी की बाढ़ से तथाकथित रूप से बाढ़ से सुरक्षित हुए मधुबनी जिले के मधेपुर प्रखंड, दरभंगा के कुशेश्वर स्थान प्रखंड, समस्तीपुर के सिंघिया प्रखंड और सहरसा के महिषी प्रखंड के पश्चिमी हिस्से के गाँवों में पानी घुसने लगा। समय के साथ नदी की तलहटी का लेवेल ऊपर उठा और उसी अनुपात में कोसी नदी का पानी उत्तर की तरफ नये-नये गाँवों में आना शुरू हुआ।कमला नदी कभी भेजा के नीचे बकुनियाँ गाँव में कोसी से संगम करती थी। कोसी के पश्चिमी तटबंध के निर्माण के कारण उसका मुहाना बंद हो गया और नदी दक्षिण की ओर कोसी के पश्चिमी तटबंध के साथ-साथ बहने पर मजबूर हुई। 1968 में कोसी नदी में एक बहुत बड़ी बाढ़ आयी जिसमें अभी तक का सर्वाधिक प्रवाह नौ लाख तेरह हजार क्यूसेक रिकार्ड किया गया था। कोसी में इतने ज्यादा परिमाण में पानी आने और उसके मुड़ कर पश्चिमी तटबंध के पश्चिम में बसे गाँवों में घुसने और उन्हें बर्बाद करने की वजह से इन गाँवों के परेशानहाल लोगों ने शोर मचाना शुरू किया और मांग की कि कोसी के पानी से बचाव के लिए घोंघेपुर गाँव के नीचे कोसी के पश्चिमी तटबंध से लगा हुआ पश्चिम दिशा की ओर एक ‘T’ आकार का स्पर बना दिया जाए जिससे कोसी का पानी पीछे की ओर घूम कर उन गाँवों को बर्बाद न करे। उनकी मान्यता थी कि इतना काम कर देने के बाद उन्हें कोसी के लौटते पानी से निजात मिल जायेगी। दुर्भाग्यवश, इंजीनियरों को भी ऐसा ही लगा और 1969 में इस ‘T’ स्पर का निर्माण कर दिया गया। इस बात की दोनों पक्षों ने ही अनदेखी की कि इस ‘T’ स्पर के निर्माण के बाद बरसात के समय कमला के उफनते पानी का क्या होगा? बरसात के समय अब कोसी का पानी इन गाँवों में तो नहीं आने वाला था मगर कमला का पानी अब जाने वाला भी नहीं था। यह लोग कोसी की बाढ़ से तो शायद बच गए मगर कमला के पानी में फंस गए।
कमला नदी पर भी तटबंध जयनगर से लेकर झंझारपुर के रेल पुल तक 1950 के दशक में ही बना दिये गए थे। उसके नीचे कमला नदी मुक्त थी। तब झंझारपुर के इस रेल पुल के नीचे कमला नदी का पानी बुलेट की रफ्तार से निकलने लगा और भेजा के नीचे उन सारे गाँवों को डुबाने लगा जो कोसी की बाढ़ से सुरक्षित कर दिये गए थे। बात यहीं खतम नहीं हुई। 1956-1958 के बीच बागमती की निचली लम्बाई (करेह) पर भी तटबंध बनाये जा चुके थे जो कि दाहिने भाग में हायाघाट से बदलाघाट और बायें भाग में हायाघाट से सिरसिया तक बने थे। बीच का सिरसिया से बदलाघाट तक का उसका बायाँ किनारा खुला हुआ था।
बरसात के मौसम में बागमती (करेह) के बायें किनारे से छलकता हुआ पानी भी वहीं घुसता था जहाँ कोसी और कमला का पानी पहले से ही अड्डा जमाये हुए बैठा था। अब इन गाँवों को डूबने से बचाने वाला कोई नहीं था। सरकारी रिकार्डों के अनुसार लहेरियासराय को भेजा से जोड़ती हुई 145 फुट (44.19 मीटर) की कन्टूर लाइन गुजरती है (चित्र-10.1)। इसके नीचे का बदलाघाट तक का पूरा का पूरा इलाका बरसात में समन्दर का एहसास करवाता है। बिहार का जल-संसाधन विभाग भी कहता है कि इस 145 फुट कन्टूर लाइन के नीचे की 90,450 हेक्टेयर ज़मीन स्थायी तौर पर जल-जमाव से ग्रस्त है जिस पर कुछ भी नहीं उपजता और 140 फुट (38.11 मीटर) की कन्टूर लाइन के नीचे की ज़मीन का जल-जमाव का मर्ज लाइलाज है।
ग्राम ठेंगहा, प्रखंड तारडीह, जिला दरभंगा के इन्द्र कान्त झा का कहना है, ‘‘...हम लोग इंजीनियर तो नहीं हैं मगर सामान्य बुद्धि जरूर रखते हैं। कोसी का पश्चिमी तटबंध और कमला के दोनों तटबंध, यानी तीन तटबंध अकेले रसियारी मौजे से गुजरते हैं जिस में 100 किलोमीटर से ज्यादा चौड़े इलाके का पानी आता है। कोसी और कमला तटबंध के बीच में 1.5 किलो मीटर से ज्यादा फासला नहीं होगा। सौ किलोमीटर चौड़े क्षेत्र से आने वाले पानी की निकासी को इतना कम रास्ता देने को अगर बेवकूफी कहा जाए तो आप लोग इसे हमारी विनम्रता कहेंगे। इन तटबंधों को बनाने वालों के तो आधे मुंह में चूना और आधे मुंह में कालिख पोत कर दिल्ली के कनाट प्लेस में उनके गले में उनकी करतूतों की पट्टी टांग कर जलूस निकालना चाहिये। यह सब उम्र कैद के हकदार हैं।’’
भविष्य में होने वाली इस पूरी त्रासदी की चेतावनी जियालाल मंडल ने बिहार विधान सभा को उसी समय दे दी थी जब कोसी परियोजना पर काम शुरू हुए मात्र दो महीने का समय ही बीता था। उन्होंने कहा था, ‘‘...(कोसी का) पूर्वी बांध 71 मील की लम्बाई का है जो बनगांव के नजदीक समाप्त होता है और पश्चिमी बांध 77 मील पर जाकर समाप्त होता है जहां मुंगेर जिले का बख्तियारपुर और खगड़िया, चौथम तथा गोगरी थाना है और सहरसा का आलमनगर थाना तथा उत्तरी भागलपुर का बीहपुर तथा गोपालपुर थाना है। कोई नदी जब इतनी चौड़ी और लम्बी है कि उसकी चौड़ाई दरभंगा से सुपौल तक करीब-करीब 50 मील तक चौड़ी हो जाती है तो उसको 3 मील से 10 मील की चौड़ाई में बांध कर सिवाय इसके कि बनगांव के दक्षिण की ओर उत्तरी मुंगेर और भागलपुर को तबाह करने के और क्या हो सकता है (जब कोसी योजना पर 1955 में काम शुरू हुआ था तब कोसी के पूर्वी तटबंध को बनगाँव तक ही बनाने का प्रस्ताव किया गया था-लेखक)? इसलिए वहां की जनता बड़ी भयभीत है कि जहां पहले कभी बाढ़ नहीं आती थी वहां भी खगड़िया सबडिवीजन और उत्तरी भागलपुर का समूचा इलाका समुद्र बन जायेगा। श्री गुलजारी लाल नन्दा जी जब यहां आये थे और सेक्रेटेरियेट में जो कान्फ्रेन्स हुई तो उसमें भी इस बात को मैंने उठाया था लेकिन इस पर कुछ ध्यान अब तक नहीं दिया गया है। मुझको मालूम है कि कोसी के इंजीनियरों ने यह राय जाहिर की है कि बांध बनाने से सिर्फ चार इंच की ही मोटाई का पानी उसके अंदर प्रवेश हो सकेगा। मेरा विशेषज्ञ की राय में विश्वास नहीं है। जो मेरा अनुभव कोसी क्षेत्र का है वह यही है कि 35 हजार वर्ग मील में जो पानी बहता था उसको 7 मील के अंदर लाकर छोड़ देने से पानी का वेग और वॉल्यूम (घन फल) कहीं ज्यादा बढ़ जायेगा... इस प्रोजेक्ट से बाढ़ नियंत्रण तथा सिंचाई के प्रबंध की उम्मीद है। अगर बाढ़ नियंत्रण की बात मान भी ली जाए तो सिंचाई तो हमारे यहाँ हो ही नहीं सकती है।’’ उस समय जियालाल मंडल को यह नहीं पता था कि केवल कोसी ही नहीं, कमला और बागमती (करेह) पर प्रस्तावित तटबंध कोढ़ में खाज वाली स्थिति पैदा करने वाले हैं। उनका कहा हुआ एक-एक शब्द सच निकलना था सो हुआ।
11 अप्रैल 1958 को बिहार विधान सभा में बृज मोहन प्रसाद सिंह ने सरकार से सवाल किया था कि बागमती (करेह) का बायां तटबंध उसके दाहिने तटबंध से 8 मील छोटा है और इस गैप की वजह से बागमती नदी का पानी अपने किनारों को तोड़ता हुआ उत्तरी क्षेत्र को डुबा कर बर्बाद कर देगा। सरकार के तरफ से जवाब देते हुए तत्कालीन सिंचाई मंत्री दीप नारायण सिंह ने कहा था, ‘‘...करेह का बायां तटबंध जो 48 मील लम्बा है उसे सिरसिया में ही खत्म कर देने का उद्देश्य यह है कि क्षेत्र को कोसी और करेह द्वारा पोषित किया जा सके। साथ ही सिरसिया और फुहिया के बीच का जो रिक्त स्थान है उस से होकर कोसी के दायें तटबंध और करेह के बायें तटबंध द्वारा सुरक्षित क्षेत्र के जल का क्रॉस ड्रेनेज (निष्कासन) संभव हो सके। बायें तटबंध के कम लम्बा होने के कारण कोई विशेष क्षति की संभावना नहीं है। इस क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति को कुछ काल देखने के बाद और यदि आवश्यक समझा गया तो तटबंध को बढ़ाने का विचार किया जायेगा।’’ मंत्री जी क्या कहना चाहते थे यह तो वह खुद ही समझे होंगे पर तटबंध आगे बढ़ाने की आवश्यकता आज तक महसूस नहीं की गयी।
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