पानी का असंतुलित बंटवारा

पिछले तीन दशक में तो पानी की इस राजनीति पर कितना ही पानी गुजर गया, लेकिन दक्षिणी हरियाणा के लोगों को पानी का अपना वास्तविक हिस्सा भी नहीं मिला। यह स्थिति तो तब है कि जबकि राज्य का एक भी नेता ऐसा नहीं है जो दक्षिणी हरियाणा के जिलों में पानी की कमी और किसानों की चरमरा रही आर्थिक स्थिति को खुलकर नहीं स्वीकारता। यह अलग बात है कि एक भी राजनीतिज्ञ इस कड़वे सच को जानने के बावजूद इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं कर रहा। हरियाणा में पानी के संकट का एक प्रमुख कारण असंतुलित बंटवारा भी है। इसी कारण से रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, भिवानी, झज्जर, रोहतक और गुड़गांव जिले पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। इन इलाकों को एक तो तुलनात्मक दृष्टि से दूसरे जिलों की तुलना में रावी-व्यास का पानी कम मिल रहा है। दूसरा इन जिलों का पानी खारा है और जलस्तर काफी नीचे है। नहरों की जीर्ण-शीर्ण स्थिति ने किसानों की आर्थिक स्थिति को पिछले दो दशक में और अधिक खराब किया है।

राज्य में 1966-67 में कुल 1325 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई नहरों द्वारा की जाती थी जो अब बढ़कर 2107 हेक्टेयर हो गई है। वर्ष 1966-67 में मुख्य नहरों तथा उनकी शाखाओं की संख्या 910 थी जो 2003-04 में बढ़कर 1518 हो गई है। इसी प्रकार से डिस्ट्रीब्यूटरी 1966-67 में 4708 थी जो अब बढ़कर 7032 हो गई है।

दक्षिणी हरियाणा के अधिकांश किसान मोटे तौर पर खरीफ की फसल पर निर्भर रहते हैं। यद्यपि गेहूं और सरसों जैसी रबी की फसलें भी किसान बोते हैं, लेकिन यहां के किसानों की मुख्य खेती ज्वार, बाजरा, सरसों और ग्वार है। उधर राज्य के दूसरे जिलों हिसार, सिरसा, जींद, पानीपत, करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल, अंबाला और जगाधरी में किसान गन्ना, धान और कपास की फसलें अधिक बोते हैं। इन जिलों में नगदी फसलें बोने की भी परंपरा है।

पश्चिमी और उत्तरी हरियाणा के जिलों में पानी की उपलब्धता सहजता से हो जाती है जबकि ठीक इसके विपरीत दक्षिणी हरियाणा के किसानों को पूरे साल भूमिगत जल पर निर्भर रहना पड़ता है। दक्षिणी हरियाणा में मुख्य रूप से सिंचाई का काम जवाहरलाल नेहरू नहर, सिवानी नहर, लोहारु नहर और जुई नहर पर निर्भर है। इन नहरों की लंबे समय से पर्याप्त मरम्मत न होने के कारण दक्षिणी हरियाणा के किसानों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है।

रावी-व्यास के पानी के असंतुलित बंटवारे के कारण दक्षिणी हरियाणा के रेतीले इलाकों में खेती करने में किसानों में भारी कठिनाई होती है। यह एक सर्वविदित सत्य है कि हरियाणा की राजनीति में लंबे समय में सिरसा, जींद और हिसार के लोगों का दबदबा रहा है। जब से हरियाणा को रावी व्यास का 18 लाख फुट पानी मिलना शुरू हुआ है, वह सिरसा, हिसार व जींद जिले के नरवाना उपमंडल में बह रहा है।

जिस तरीके से राज्य में नहरों का जाल बिछाया गया है वही इस बात का साफ प्रमाण देता है कि पानी के बंटवारे के मुद्दे पर राज्य के कई जिलों के साथ घोर अन्याय हो रहा है। राज्य की 1630 नहरों में से 666 नहरें अकेले सिरसा, हिसार और फतेहाबाद में बनी हैं।

आश्चर्यजनक रूप से इन तीनों जिलों का कमांड एरिया राज्य के कुल कमांड एरिया का 11वां हिस्सा है। हरियाणा सरकार ने नबार्ड से 342.60 करोड़ रुपया नहरों के निर्माण हेतु लिया। इसमें से 320 करोड़ रुपया भाखड़ा सिंचित क्षेत्रों में ही व्यय हुआ है। बाकी के चौदह जिलों में मात्र 22.60 करोड़ रुपए की राशि खर्च हुई। ये जिले यमुना सिंचित क्षेत्र में आते हैं।

आज तक कोई भी राजनेता अपनी इच्छा शक्ति को इतना प्रबल नहीं बना पाया है कि इस पानी का रुख दक्षिणी हरियाणा की सूखी धरती की प्यास को बुझाने के लिए मोड़ सके। यह स्थिति तो तब है जबकि जींद और सिरसा के कई इलाकों में सेम की भारी समस्या खड़ी हुई है।दक्षिणी हरियाणा को पानी देने के मुद्दे पर राजनीति बहुत हुई है।

पिछले तीन दशक में तो पानी की इस राजनीति पर कितना ही पानी गुजर गया, लेकिन दक्षिणी हरियाणा के लोगों को पानी का अपना वास्तविक हिस्सा भी नहीं मिला। यह स्थिति तो तब है कि जबकि राज्य का एक भी नेता ऐसा नहीं है जो दक्षिणी हरियाणा के जिलों में पानी की कमी और किसानों की चरमरा रही आर्थिक स्थिति को खुलकर नहीं स्वीकारता। यह अलग बात है कि एक भी राजनीतिज्ञ इस कड़वे सच को जानने के बावजूद इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं कर रहा। राज्य और खासतौर से पानी के संकट से जूझ रही दक्षिणी हरियाणा की जनता अब रह-रहकर यह सवाल उठाने लगी है कि आखिर एसवाईएल नहर के निर्माण के मुद्दे पर उन्हें कब तक ठगा जाएगा। यह बात अहीरवाल के हर चबूतरे, हुक्के और चौपाल पर चर्चा का विषय रहती है तो जाटलैंड का राजनीतिक रूप से सबसे अधिक गर्म रहने वाला जिला रोहतक भी इससे अछूता नहीं है। अब चिंता की बात यह हो गई है कि दक्षिणी हरियाणा में करोड़ों रुपए की लागत से बनी जल परियोजनाओं का भविष्य क्या होगा और फिर उन्हें बनाने की जरूरत भी क्या थी। राज्य सरकार को चाहिए कि वह पश्चिमी यमुना सिस्टम और भाखड़ा सिस्टम को जोड़ दे। इससे हरियाणा में न केवल सूखे की समस्या से निपटा जा सकता है बल्कि बाढ़ और सेम की समस्या से भी निजात पाई जा सकती है। नरवाना ब्रांच की क्षमता 4200 क्यूसेक है। इसे बढ़ाया भी जा सकता है, लेकिन राजनीति के चलते इस ब्रांच की क्षमता बढ़ाने की बजाए, इसकी छंटाई तक समय पर नहीं की जाती है और इससे क्षमता घटती है। दक्षिणी हरियाणा के जिलों को पर्याप्त पानी उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार को नहरी पानी का प्रदेशीयकरण कर देना चाहिए ताकि पूरे राज्य के किसान खुशहाल हो सके।

हरियाणा विधानसभा के पूर्व सदस्य और विधानसभा आकलन समिति के सदस्य ओमप्रकाश बेरी ने हरियाणा के नहरी पानी के वितरण के मामले में महारथ रखते हैं। श्री बेरी का मानना है कि पानी हरियाणा में एक बड़ी लड़ाई को जन्म देगा और समय रहते पानी के बंटवारे की समस्या को नहीं सुलझाया गया तो आने वाली पीढ़ियों में भाईचारे के नाम पर पानी को लेकर जबरदस्त लड़ाई होगी।

बेरी कहते हैं कि यदि भाखड़ा सिस्टम ने पश्चिमी यमुना नहर सिंचित क्षेत्र में हरियाणा के खेतों की प्यास बुझाने के लिए पानी लाने का दूसरा रास्ता भाखड़ा की मेन लाइन से बरवाला लिंक नहर द्वारा पेटवाड़ डिस्ट्रीब्यूटरी को मिलाया जा सकता है। इससे हरियाणा के हांसी एवं सिवानी नहर के कमांड एरिया को भाखड़ा नहर का पानी मिल सकता है। इसी प्रकार पश्चिमी यमुना नहर को जो पानी पेटवाड़ और सिवानी नहर में जाता है वह लोहारु नहर और जुई में काम आ सकता है। ऐसा करने से राज्य के कई इलाकों के किसानों की पानी की समस्या का निवारण होगा। पानी के लिए न तो लोगों को नहरें काटनी पड़ेगी और न ही विवाद होगा।

1977 में राई-व्यास के पानी के प्रयोग को लेकर हरियाणा में एक लंबा जल संघर्ष चला। इसके प्रमुख योद्धा ओमप्रकाश बेरी इस पूरे संघर्ष के साक्षी भी हैं। श्री बेरी का मानना है कि सिरसा और हिसार जिले में दक्षिणी हरियाणा का काफी पानी अन्यायपूर्ण ढंग से बह रहा है जिस पर फरीदाबाद, गुड़गांव, महेंद्रगढ़, भिवानी, रोहतक और सोनीपत के किसानों का हक बनता है, लेकिन राजनीतिक तुच्छ स्वार्थों के चलते इस पानी का प्रयोग सिरसा, हिसार और जींद जिले के कुछ गांवों के लिए हो रहा है।

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