पाणी देवे दर्द घणा

waterborne disease
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देश के कई हिस्से आज फ्लोरोसिस प्रभावित हैं। इन इलाकों में आप 8 साल के बच्चे के हाथ-पांवों में विकलांगता और 25 वर्ष के जवान के गिर गए दांत और उन्हेें बूढों की तरह झुककर चलते देख सकते हैं। फ्लोरोसिस प्रभावित कई इलाकों से लोग पलायन करने को मजबूर हुए हैं। कहना न होगा कि पानी बसाता है, तो पानी उजाड़ भी देता है। पानी की कमी से सिर्फ बसवाटें ही नहीं उजड़ती, हमारी सांसें भी उखड़ जाती हैं। पानी, हमारा जीवन है; सांस है; आस है। जितना यह सत्य है, उतना ही सत्य यह भी है कि पानी की कमी और अशुद्धि रोग को निमंत्रण देकर बुलाती है। उसके पीछे-पीछे मौत बिन बुलाए चली आती है। हमें ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि दुनिया में 40 प्रतिशत मौत पानी, मिट्टी और हवा में बढ़ आए प्रदूषण की वजह से हो रही हैं।

एक अध्ययन ने तो पानी के प्रदूषण व पानी की कमी को पांच वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए ‘नबंर वन किलर’ करार दिया है। ज्यों-ज्यों भूजल का स्तर गिरेगा, यह खतरा और बढ़ेगा।

आपको कभी मौका मिले तो कभी प्रदूषित नदियों और प्रदूषित भूजल वाले इलाकों में घूम आइए... आप स्वयं कह उठेंगे कि पानी अमृत भी है, जहर भी; पानी जीवन भी है, तो मृत्यु भी। काली, कृष्णी, हिंडन नदी क्षेत्र वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश को ही देख आइए।

मेरा आकलन है कि नदी से दूर दूसरे इलाकों की तुलना में इन इलाकों में कैंसर, दमा, अस्थमा, किडनी, पेट, आंत, चमड़ी और हड्डी के मरीज ज्यादा हैं। नदियों और भूजल में प्रदूषण बढ़ने के साथ-साथ इन इलाकों में मरीजों की संख्या बढ़ी है। स्थानीय नर्सिंग होम और दिल्ली के अस्पतालों के आंकड़े इस बात की तसदीक कर सकते हैं।

सहारनपुर का दौरा करते वक्त मुझे देवबंद तहसील के गांव भनेड़ा खेमचंद की याद अभी भी है। गांव-भनेड़ा खेमचंद, कृष्णी नदी के किनारे बसा एक गांव है। मैने देखा कि नदी के प्रदूषण ने भूजल इस कदर प्रदूषित कर दिया था कि हैंडपम्प संतरी रंग का पानी उगल रहा था।

यह बात जून, वर्ष 2006 की है। तीन हजार की आबादी वाले भनेड़ा खेमचंद में पचास की उम्र पार करने वाले पुरुषों की बीमारी से मौत के कारण विधवाओं की संख्या बढ़ गई थी। स्त्रियों में ही नहीं, भैंसों तक में गर्भपात के मामले अप्रत्याशित रूप से बढ़ गए थे। मेहमान गांवों में रुकना पसंद नहीं करते थे। ज्यादातर युवक कुंवारे ही घूम रहे थे।

फ्लोराइड व फ्लोरोसिस से पीड़ित लोगदरअसल, पानी में क्रोमियम, लेड, आयरन, नाईट्रेट, फ्लोराइड जैसे रसायन और जैविक प्रदूषण की बढ़ी मात्रा के कारण कई तरह की बीमारियां होती हैं। हमें होने वाली 80 प्रतिशत बीमारियों की मूल वजह पानी का प्रदूषण, कमी या अधिकता ही बताया गया है। डायरिया, कॉलरा और डिसेन्ट्री पानी की घोषित बीमारियां हैं। पेशाब, पाचन, सिरदर्द, त्वचा संबंधी कई बीमारियां पानी की वजह से होती हैं।

भारत के जौनपुर, पाकुड़, मुर्शिदाबाद जैसे इलाकों के भूजल में आर्सेनिक नामक जहर की उपस्थिति के समाचार मुझे चिंतित करते हैं। इलेक्ट्रानिक कचरे के डंप एरिया वाले कई नए इलाकों को आप शीघ्र इस सूची में शामिल होता देखेंगे। देश के आईटी शहर इनमें सबसे आगे हो सकते हैं।

इसी तरह पानी में फ्लोराइड की मात्रा बढ़ जाने से होने वाली फ्लोरोसिस नामक बीमारी का दायरा व्यापक होता दिखाई दे रहा है। इस बीमारी में दांत-हड्डियां-जोड़ उम्र से काफी पहले ही कमजोर हो जाते हैं।

देश के कई हिस्से आज फ्लोरोसिस प्रभावित हैं। इन इलाकों में आप 8 साल के बच्चे के हाथ-पांवों में विकलांगता और 25 वर्ष के जवान के गिर गए दांत और उन्हेें बूढों की तरह झुककर चलते देख सकते हैं। फ्लोरोसिस प्रभावित कई इलाकों से लोग पलायन करने को मजबूर हुए हैं। कहना न होगा कि पानी बसाता है, तो पानी उजाड़ भी देता है।

पानी की कमी से सिर्फ बसवाटें ही नहीं उजड़ती, हमारी सांसें भी उखड़ जाती हैं। देश ऐसे उद्धहरणों से भरा पड़ा है। चेतना जरूरी है। किंतु इसका स्थाई समाधान ‘टोकन डालो, पानी निकालो’ की तर्ज पर दिल्ली की तरह पानी के एटीएम लगाकर नहीं किया जा सकता।

फ्लोराइड व फ्लोरोसिस से पीड़ित लोगगरीब को स्वच्छ पानी तो स्वस्थ पानी संजोने से ही मिलेगा। तय करें कि पानी को स्वच्छ बनाकर रखना बेहतर है या पानी की बीमारी से बीमार होकर कर्जदार होना और तड़पकर मरना।

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