भूगर्भ जल दिवस पर हुई राज्यस्तरीय संगोष्ठी में जलसंचयन के उपायों पर मंथन किया गया, बच्चे भी पुरस्कृत हुए
विश्व भूगर्भ जल दिवस के मौके पर शुक्रवार को कन्वेंशन सेंटर में आयोजित संगोष्ठी में विशेषज्ञों ने तेजी से गिर रहे जलस्तर पर चिंता जताई। इसका समाधान तलाशने के लिए मंथन के साथ सुझाव दिए गए।
भूगर्भ जल विभाग व अन्य संगठनों के राज्यस्तरीय समारोह में मानवाधिकार प्रकोष्ठ के आई जी महेंद्र मोदी ने कहा कि हम सभी को 150 साल पहले पोरबंदर में जन्मे महात्मा गांधी के घर से जलसंचयन का तरीका सीखना होगा। इस घर की छत से बारिश का पानी सीधे घर के बाहर बने 20 फूट गहरे और 20 फुट चौड़े कुएं में एकत्र होता है। तीन माह में एकत्र बारिश के पानी को चूना डालकर साफ कर उपयोग किया जाता है। गांधी के पूर्वजों के इस पुराने नुस्खे पर उन्होंने गोमतीनगर स्थित पुलिस इन्कलेव में अपने समेत तीन मकानों में आजमाया है। उनका दावा है कि तीन मानसून की बारिश में यह स्थिति हो जाएगी कि पानी जमीन के दस फुट नीचे ही मिलेगा इसके साथ कभी हैंडपंप व नलकूप को रिबोर करने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। उन्होंने अभी प्रयोग में लाए जा रहे जल संचयन के तरीकों की तुलना में अपनी तकनीक को अधिक कारगर व टिकाऊ बताया। वे पांच राज्यों के 16 जिलों में 30 स्थानों पर जलसंचयन के अपने तरीकों को आजमा चुके हैं।
मनरेगा के तहत बनाए जा रहे आदर्श तालाब में भी उन्होंने थोड़ा बदलाव करने पर बल दिया। तालाब के पानी को वाष्पीकरण से बचाने के लिए उन्होंने कहा कि चौड़ाई कम गहराई अधिक रखी जाए और आस-पास का पानी सीधे तालाब में लाने की व्यवस्था की जाए। उनके जल संचयन के माडल 0.35 से दो फीसदी जमीन ही घेरते हैं। इंदिरानगर, आदिलनगर और बाराबंकी पुलिस लाइन में पांच फुट चौड़ा और दस फुट गहरा ‘रिचार्ज कुआं’ उदाहरण स्वरूप है। उनका दावा है कि अगर उनके बनाए माडल को अपनाया जाए तो छह लाख यूनिट बिजली की बचत संभव है। कम जगह में जलसंचयन के टिकाऊ माडल के बारे में अधिक जानकारी mmodiips1986@gmail.com (0522-2337329) पर ली जा सकती है।
विश्व भूगर्भ जल दिवस के मौके पर शुक्रवार को कन्वेंशन सेंटर में आयोजित संगोष्ठी में विशेषज्ञों ने तेजी से गिर रहे जलस्तर पर चिंता जताई। इसका समाधान तलाशने के लिए मंथन के साथ सुझाव दिए गए।
भूगर्भ जल विभाग व अन्य संगठनों के राज्यस्तरीय समारोह में मानवाधिकार प्रकोष्ठ के आई जी महेंद्र मोदी ने कहा कि हम सभी को 150 साल पहले पोरबंदर में जन्मे महात्मा गांधी के घर से जलसंचयन का तरीका सीखना होगा। इस घर की छत से बारिश का पानी सीधे घर के बाहर बने 20 फूट गहरे और 20 फुट चौड़े कुएं में एकत्र होता है। तीन माह में एकत्र बारिश के पानी को चूना डालकर साफ कर उपयोग किया जाता है। गांधी के पूर्वजों के इस पुराने नुस्खे पर उन्होंने गोमतीनगर स्थित पुलिस इन्कलेव में अपने समेत तीन मकानों में आजमाया है। उनका दावा है कि तीन मानसून की बारिश में यह स्थिति हो जाएगी कि पानी जमीन के दस फुट नीचे ही मिलेगा इसके साथ कभी हैंडपंप व नलकूप को रिबोर करने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। उन्होंने अभी प्रयोग में लाए जा रहे जल संचयन के तरीकों की तुलना में अपनी तकनीक को अधिक कारगर व टिकाऊ बताया। वे पांच राज्यों के 16 जिलों में 30 स्थानों पर जलसंचयन के अपने तरीकों को आजमा चुके हैं।
मनरेगा के तहत बनाए जा रहे आदर्श तालाब में भी उन्होंने थोड़ा बदलाव करने पर बल दिया। तालाब के पानी को वाष्पीकरण से बचाने के लिए उन्होंने कहा कि चौड़ाई कम गहराई अधिक रखी जाए और आस-पास का पानी सीधे तालाब में लाने की व्यवस्था की जाए। उनके जल संचयन के माडल 0.35 से दो फीसदी जमीन ही घेरते हैं। इंदिरानगर, आदिलनगर और बाराबंकी पुलिस लाइन में पांच फुट चौड़ा और दस फुट गहरा ‘रिचार्ज कुआं’ उदाहरण स्वरूप है। उनका दावा है कि अगर उनके बनाए माडल को अपनाया जाए तो छह लाख यूनिट बिजली की बचत संभव है। कम जगह में जलसंचयन के टिकाऊ माडल के बारे में अधिक जानकारी mmodiips1986@gmail.com (0522-2337329) पर ली जा सकती है।
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