पानी : बाजार के बीच सेवा का जज्बा

Uma Bharti and Nitish Kumar
Uma Bharti and Nitish Kumar

भारत में प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का काम समझा जाता रहा है। पानी की कमी वाले राजस्थान में फूस की झोपडि़यों में बने जलमन्दिरों में पानी से भरे मटकों में मुफ्त का पानी पिलाया जाता है। जिस प्रकार बेटी के विवाह के लिए पैसे लेना पाप है और ‘बेटी बेचवा’ एक घृणित गाली है। उसी प्रकार पानी बेचना भी पाप है। रेल में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का पानी तो बिक ही रहा है। रेल भी रेलनीर बेच रही है। उत्पादन लागत एक रूपये और इसकी कीमत 15 रुपये। यह बाजार नहीं तो क्या है? इस बाजार के बीच लोगों ने सेवा के जज्वे को तो कायम रखा है।

जीवन प्राय: दो पहलुओं की ओर चक्कर काटता है। प्रथम अर्थ सृजन और द्वितीय सेवा सृजन। हालाँकि अर्थ सृजन जीवन की एक स्वभाविक क्रिया बन गया है। जीवन के सारे विकल्प अर्थ सृजन की ओर चक्कर काटते रहते हैं। चाहे वह शिक्षा हो, व्यवसाय हो या आधुनिक आध्यात्म हो, इन सारे क्षेत्रों में अर्थ सृजन की प्रधानता प्रबल हो गई है लेकिन अर्थ सृजन के बीच सेवा सृजन का जो चित्र उभरकर सामने आता है, मानो वह जीवन और समाज के लिए इन्द्रधनुष के रूप में होता है। सेवा सृजन का नाम हम आदर्श के रूप में ले सकते हैं लेकिन इसका जन्म जीवन की विलक्षण प्रतिभा के कोख से होता है क्योंकि सेवा सृजन में न अर्थ है, न काम है और न मोह है, न कोई अन्य कोई लाभ। यह शुद्ध रूप से वास्तिवक जीवन के मूल्यों की कोख से जन्मा एक विलक्षण आदर्श है। इसी आर्दश को मध्य प्रदेश के विदिशा के कुछ लोगों ने एक उदाहरण के रूप में पेश किया है। इसे देखकर, सुनकर रोमांचित हो जाना पड़ता है। यह अनुभव करने के लिए विवश हो जाना पड़ता है कि समाज जीवित होकर मुस्कुरा रहा है।

सेवा का भाव संवेदना के स्तर पर निर्भर करता है। 32 वर्ष पहले विदिशा रेलवे स्टेशन पर पानी लेने के लिए ट्रेन से उतरते समय एक महिला गिर गई और ट्रेन के चपेट में आने से उसका हाथ कट गया। इस घटना ने संवेदनशील लोगों की संवेदना को झकझोरा। ऐसी घटना की पुनरावृति न हो इसके लिए समाजसेवी मोहनबाबू अग्रवाल, रामेश्वर दयाल बंसल, नरेंद्र ताम्रकार, लालजी जैन, डॉ सुरेश गर्ग और खीमजी भाई ने मिल कर रेलवे स्टेशन पर जल सेवा शुरू की। यह काम सार्वजनिक भोजनालय सेवा समिति के माध्यम से किया गया। अपने घरों से बाल्टियाँ उसमें पानी भर कर इसकी शुरूआत की। इस काम को कोई नौजवान नहीं, बल्कि समाज के बुजुर्ग कर रहे हैं। रेलवे स्टेशन पर ट्रेन की हर खिड़की तक पानी पहुँचाने का कठिन कार्य नगर के समाज सेवी बड़ी ही सेवा भावना से कर रहे हैं।

इस सेवा का नाम ग्रीष्मकालीन जल सेवा दिया गया। भीषण गर्मी के दौरान ट्रेन की खिड़की के पास जाकर प्यासे को जल उपलब्ध कराया जाने लगा। इनलोगों ने इस काम को स्थायी रूप देने के लिए जिला प्रशासन और भोपाल के रेल अधिकारियों से अनुमति माँगी और अनुमति मिल गई। एक जुनून और ललक थी इनलोगों में भीषण गर्मी में पानी पिलाने की। दोपहरिया लू में जो जज्वा पहले था वह आज भी है। इसके पीछे एक आस्था है, सेवा का भाव। न बैनर न होर्डिंग न आत्म प्रदर्शन, सिर्फ सेवा। धूप और गर्मी की परवाह किए बिना रेलवे स्टेशन पर 12 घंटे जल सेवा करने का काम। जल सेवा से जुड़े बुजुर्ग समाज सेवियों को यात्रियों के सूखे कंठ तर करने में आनंद का प्राप्ति होती है।

जल सेवा के 32 साल पूरे हो चुके हैं और गुजरते समय के साथ यह सेवा हर साल नए उत्साह के साथ न सिर्फ आगे बढ़ती जा रही है बल्कि दूसरों को भी प्रेरणा देने का काम कर रही है। इस सेवा ने विदिशा की पहचान सेवानगरी के रूप में कायम की है। सेवा का अनूठा उदाहरण विदिशा स्टेशन पर देखने को मिलता है। लम्बे सफर के दौरान ट्रेनों के यात्री बहुत परेशान होते हैं और ऐसे परेशानी भरे सफर में खिड़की के पास कोई आवाज देता है — ठंडा पानी। इसे जब पीते हैं तो मन को ठंडक और दिल को तसल्ली मिलती है।

कहते हैं कि इरादे अगर नेक हो तो साधन की कमी नहीं होती है। अनेक लोगों ने पेयजल सप्लाई में काम आने वाली दो गाड़ियाँ, पानी की टंकियाँ और अन्य उपयोगी सामग्री भेंटकर इस अभियान को मजबूती प्रदान की। चार साल पहले ग्रीष्मकालीन जलसेवा को विस्तार देते हुए बारह माह निरन्तर जलसेवा आरम्भ की गई। इस अभियान को और गति देने के लिए स्वयं का ट्यूब बेल लगवाया है जिससे वह रात को सीमेंट की बड़ी-बड़ी टंकियाँ भरते हैं, यही पानी सुबह तक बिल्कुल ठंडा हो जाता है। उसके बाद सुबह 8 बजे से रात के 8 बजे तक लगातार रेल यात्रियों को वोगी की खिड़की पर ही शीतल जल उपलब्ध कराया जाता है। यह सुविधा तीनों प्लेट फार्म पर उपलब्ध कराई जाती है।

सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र कहते हैं बड़े महानगरों के स्टेशनों पर भी वहाँ के लोग जो काम नहीं कर पाए वह काम यहाँ हो रहा है। सेवा का यह अनूठा उदाहरण है।इस सेवा को कायम रखने के लिए सार्वजनिक भोजनालय समिति ने जलसेवक तैयार किए। ये जलसेवक अपने समय के अनुसार जलसेवा देते हैं। इन जलसेवकों में रामेश्वर दयाल बंसल, मोहन अग्रवाल, राजेन्द्र शर्मा, बालमुकुन्द गुप्ता, किशनचंद अग्रवाल, वीपी चतुर्वेदी, हुकुमचंद नेमा, खिलान सिंह रघुवंशी, डॉ जीके माहेश्वरी, संतोष ताम्रकार, सुंदरलाल लक्षकार, राजेन्द्र रोंधे, सुभाष हसीजा, प्रेम राठी, हरिवंश सिंह जयहिंद, सत्यनारायण पाटोदिया, ओमप्रकाश पाटोदिया, अरूण शेबड़े, आर.एस स्वामी, शिवशंकर गुप्ता, खुशालचंद्र माहेश्वरी 'भाईजी', सुरेश माहेश्वरी, गणेशराम कुशवाह, रमेश मोदी, राजराम शर्मा, सुरेन्द्र नामदेव, महेश कुमार शर्मा, शोभाराम साहू, बाबूलाल अग्रवाल, शत्रुघ्न दीक्षित, संजय प्रधान, बृजमोहन माहेश्वरी, घीसुलाल अग्रवाल, सुरेश अग्रवाल, श्रीलाल कक्का, जिनेश जैन, नंदकिशोर गुप्ता, जवाहर सिंह यादव, नंदकिशोर रैकवार, राजाराम सेन, भैयालाल विश्वकर्मा, नीलकंठ पंडित, रामलाल सेन, बिहारी सिंह रधुवंशी, रामस्वरूप गुप्ता, मर्दन सिंह दांगी, नाथुराम कुशवाह, गुलावचंद सैनी, मोहनबाबू चैहान, खुमान सिंह रधुवंशी, कैलाशचंद्र जैन, यशवंत सिंह रधुवंशी, भगवान सिंह धाकड़, हरिचरण गुप्ता, संदीप जैन, सचिन पंजाबी, हनि अरोड़ा, जगराम प्रजापति, कृष्णमुरारी श्रीवास्तव, राजेष रघुवंशी, राजेन्द्र रघुवंशी, देवदत्त शर्मा, रतनलाल साहू, मायाराम श्रीवास्तव, अजय जैन, जीत अरोड़ा, एकता सूद के नाम शामिल हैं। दुष्यंत कुमार पांडुलिपि स्मारक संग्रहालय द्वारा इस संस्था को 20 दिसम्बर 2012 को सेवा भारती पुरस्कार से नवाजा गया है।

भारत में रेलसेवा के विस्तार के साथ अंग्रेजों ने जरूरी इन्तजाम किए। इसके तहत मुफ्त जल पिलाने के लिए पर्याप्त संख्या में ‘पानी पांड़े की बहाली की। अंग्रेजों के जाने के बाद जब जगजीवन राम प्रथम रेलमन्त्री हुए तो रेल से छुआछुत मिटाने के लिए एक क्रांतिकारी कदम उठाया। इस काम के लिए उन्होंने दलितों को बहाल किया। अब इसकी संख्या नहीं के बराबर है। उत्तर भारत के अधिकांश स्टेशनों पर नल का पानी भी नदारद रहता है। लोगों को बोतलबंद पानी खरीदना पड़ता है।

भारत में प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का काम समझा जाता रहा है। पानी की कमी वाले राजस्थान में फूस की झोपडि़यों में बने जलमन्दिरों में पानी से भरे मटकों में मुफ्त का पानी पिलाया जाता है। जिस प्रकार बेटी के विवाह के लिए पैसे लेना पाप है और ‘बेटी बेचवा’ एक घृणित गाली है। उसी प्रकार पानी बेचना भी पाप है। रेल में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का पानी तो बिक ही रहा है। रेल भी रेलनीर बेच रही है। उत्पादन लागत एक रूपये और इसकी कीमत 15 रुपये। यह बाजार नहीं तो क्या है? इस बाजार के बीच लोगों ने सेवा के जज्वे को तो कायम रखा है।

सेवा का यह काम सिर्फ जलसेवा तक सीमित नहीं है। भूखे के लिए भोजन की भी व्यवस्था है। उच्च शिक्षा के लिए नर्वदा बुक बैंक योजना आरम्भ की गई है। अस्पताल में भर्ती मरीजों के लिए भोजन के दादा- दादी के चौपाल की व्यवस्था के साथ-साथ रात्रि में विश्राम की व्यवस्था की गई है।

Path Alias

/articles/paanai-baajaara-kae-baica-saevaa-kaa-jajabaa

Post By: Hindi
×