भारत में 63 करोड़ 80 लाख लोग पानी और शौचालय को तरस रहे है।
ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय की सुविधा 55 प्रतिशत घरों में नहीं है और आज यह समस्या अपने विकराल रुप के साथ 74 प्रतिशत तक पहुंच गयी है।
आंकड़े बताते है कि शौचालय की कमी के कारण 44 प्रतिशत माताएं अपने बच्चों को खुले आसमान के नीचे मैदान में मल-मूत्र कराने को मजबूर है।
देश भर में आज पानी की किल्लत से भी त्राहि-त्राहि मची हुई है और 66 प्रतिशत घरों में पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं है। उन्नत पेयजल 87.9 प्रतिशत घरों में पहुंचता है जिसमें 42.8 प्रतिशत ट्यूबवेल और बोरिंग से प्राप्त होता है।
पानी के माइक्रोबियल संदूषण जैसे- बैक्टीरिया, वायरस, अमीबा के कारण बच्चों में डायरिया (अतिसार/दस्त) फैलने की अधिक सम्भावना होती है। बच्चों में लगातार डायरिया से कमजोरी उनको घेर लेती है जिसके कारण उनमें रोगों से लड़ने की क्षमता शून्य हो जाती है और वे कुपोषण की गिरफ्त में आकर आसानी से पोलियो और अन्य घातक बीमारियों के शिकार हो जाते है।
पोलियो का वायरस मल के माध्यम से फैलता है। यानी मल से दूषित भोजन और पेयजल से इसके विषाणुओं का संचार होता है। भारत में खुले मैदान में मल-मूत्र करना आम बात है। जहां खुले में शौच सामान्य बात है वहां स्वच्छ वातावरण कैसे रह सकता है और फिर ऐसे क्षेत्र पोलियो सहित अनेक गम्भीर बीमारी के आगमन के लिये अतिसंवेदनशील हो जाते है।
भारतीय परिवारों की सफाई तथा स्वच्छता का ग्राफ दिनोंदिन गिरता जा रहा है और पोलियो प्रभावित राज्य- उत्तर प्रदेश तथा बिहार की स्थिति तो बहुत ही दयनीय है। भारत में सबसे अधिक बच्चों की मौतें डायरिया और स्वांस संक्रमण से होती है। मल-मूत्र के बाद साबुन से हाथ धोने से 40 प्रतिशत अतिसारीय (डायरिया) रोगों को कम किया जा सकता है और इसको रोकने में साबुन से हाथ धोना सबसे प्रभावी, आसान और सस्ता तरीका है। हमारे देश में केवल शौच के बाद 53 प्रतिशत माताएं, खाना बनाने से पहले 30 प्रतिशत रसोइए और खाना खाने से पहले 38 प्रतिशत लोग ही साबुन से हाथ धोते है।
अध्ययन बताते है कि बच्चों को 14 दिनों तक जिंक (जस्ता) देने से न केवल अतिसारीय प्रकरणों की गम्भीरता कम हो जाती है बल्कि अगले छह माह तक डायरिया प्रभावितों की इस बीमारी से रक्षा भी होती है। हमारे देश में डायरिया से प्रभावित 26.1 प्रतिशत बच्चों को कोई उपचार नहीं मिल पाता है और केवल 26 प्रतिशत पीड़ितों को ओरल रिहाईड्रेशन नमक ‘‘ओआरएस’’ का घोल नसीब होता है जबकि जिंक केवल तीन प्रतिशत बच्चों तक ही पहुंचता है।
उत्तर प्रदेश और बिहार में खराब स्वच्छता प्रथाओं, अपर्याप्त सफाई व्यवस्था और स्वच्छ पानी की कमी से पोलियों सहित अनेक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं पैदा हो रही है। उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय की सुविधा 67 प्रतिशत घरों में उपलब्ध नहीं है और यह प्रतिशत आज बढ़कर 84 हो गया है। डायरिया प्रभावित 28.1 प्रतिशत बच्चों को कोई भी उपचार नहीं मिलता है और केवल 12.5 प्रतिशत रोगियों को ओरल रिहाईड्रेशन नमक का घोल मिल पाता है जबकि 0.5 प्रतिशत बच्चों को जिंक मिलता है।
बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति तो और भी भयावह है। यहां शौचालय की सुविधा 75 प्रतिशत घरों में नहीं है और इसका प्रतिशत आज बढ़कर 84 हो गया है। पीने योग्य पानी भी 96.2 प्रतिशत घरों में नहीं है। डायरिया से प्रभावित 28.1 प्रतिशत बच्चों को कोई भी उपचार नहीं मिलता है और इसके पीड़ित केवल 20.9 प्रतिशत रोगियों को ओरल रिहाईड्रेशन नमक का घोल मिल पाता है।
भारत सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों के लिये दो प्रमुख कार्यक्रम-सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान और राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम शुरु किये है। शहरी क्षेत्रों में नगर निगम सफाई आदि का काम देखती है लेकिन पानी, सफाई और स्वच्छता के लिये व्यक्तिगत और समुदाय स्तर पर जागरुक होने की जरुरत है। ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय की कमी के कारण अधिकांश बच्चें, पुरुष और महिलाएं खुले आसमान के नीचे शौच करना पसंद करते है।
मल के समुचित निपटान की अज्ञानता, पोलियो और डायरिया के बीच सम्बन्ध की जानकारी में जागरुकता की कमी, हाथ धोने से मिलने वाले लाभ के बारे में ज्ञान न होना, पेयजल के भंड़ारण और इस्तेमाल के ज्ञान में कमी, डायरिया से बचाव व रोकथाम में जिंक की भूमिका का ज्ञान न होना और जागरुकता की कमी आदि ऐसे प्रमुख कारण है जिसके कारण पोलियो वायरस का हमला आसान हो जाता है।
पेयजल, सफाई और स्वच्छता के लिये जरुरी है कि शौचालय युक्त घरों में बच्चें और पूरा परिवार शौचालय का प्रयोग करें, शिशु और युवा बच्चों के मल का सुरक्षित निपटान हो, बच्चों सहित पूरा परिवार चार महत्वपूर्ण मौकों-शौच के बाद, भोजन पकाने से पूर्व, खाना खिलाने से पहले व भोजन करने से पहल साबुन से हाथ धोये और साबुन न होने पर ताजी राख या मिट्टी का इस्तेमाल करें और पानी सुरक्षित व स्वच्छ बर्तन में ढ़ककर रखें।
डायरिया के शुरु होते ही यह जरुरी है कि नियमित खाद्य पदार्थ और तरल पदार्थ के साथ बच्चें को अतिरिक्त तरल पदार्थ जैसे ओरल रिहाईड्रेशन नमक और 14 दिनों तक जिंक (डायरिया रुक जाने के बाद भी जारी रखें) दिया जाना चाहिए। डायरिया के दौरान बच्चों को स्तनपान कराने और नियमित भोजन देने की जरुरत है। बालक और बालिकाओं की इस बीमारी के कारण नष्ट ऊर्जा व पोषण की कमी को पूरा करने के लिये अधिक भोजन की आवश्यकता होती है। यह बच्चें को बीमारी से लड़ने तथा मजबूत बनने में मदद करती है और फिर ओरल रिहाईड्रेशन नमक ज्यादा प्रभावशाली तरीके से काम करेगा।
भारत सरकार और उसके पोलियो कार्यक्रम के भागीदारों का उद्देश्य बहु क्षेत्रीय भागीदारों को शामिल करके पोलियो वायरस के संचरण को रोकना है और एक योजना के तहत सबसे अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों को लक्षित करना है जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता और शौचालय के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिये स्वयं सेवी संगठनों (एनजीओ) और समुदाय आधारित संगठनों के समन्वय से कार्य योजना का विकास किया जा सकें।
शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराके, बच्चों के मल-मूत्र का समुचित निपटान करके, सुरक्षित पीने का पानी मुहैया कराके, हाथ धोना से मिलने वाले लाभ की जानकारी देकर, पोलियो उन्मूलन के लिये जागरुकता पैदा करके, परिवारों तक पहुंचकर स्वच्छता-सफाई को बढ़ावा देने के लिये स्कूल के माध्यम से बच्चों और युवकों को शामिल करके, जल स्रोतों का क्लोरीकरण करके और हैण्ड पम्पों के रख-रखाव को सुनिश्चित करके पोलियो और अन्य घातक बीमारियों को रोका जा सकता है।
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