डक यानि बत्तख का नाम आते ही हमें हमारे घर के आस-पास के तालाबों में विचरते हुए गोल-मटोल से धीरे-धीरे चलते हुए सफेद रंग के पक्षी याद आ जाते हैं। बत्तख नाम इन पक्षियों के लिये सामान्य तौर पर लिया जाने वाला नाम है। जब ये पानी में तैरते हैं तो ऐसा लगता है कि मानो एक छोटी सी नाव पानी की सतह पर चल रही हो। सारस, राजहंस व बत्तख ये सभी एक ही परिवार ‘एनाटिडी’ के सदस्य हैं। बत्तख एक जलीय पक्षी है जो सारस व राजहंस से छोटा होता है। बत्तख एक पोल्ट्री पक्षी भी है क्योंकि इनसे हमें अंडे, मांस और पंख प्राप्त होते हैं। इसीलिए ये अंडे एवं मांस के लिये प्रसिद्ध है। इसकी खासी कैम्बेल व इंडियन रनर प्रजातियाँ साल में करीब 300 अंडे देती हैं। बत्तख के मांस में प्रोटीन व अंडों से उन्नत किस्म का प्रोटीन, विटामिन, कैल्सियम, लौह-तत्व आदि पाया जाता है।
इनकी तीन प्रजातियाँ होती हैं जिनमें से एक है - स्ट्रीमर डक, जो उड़ नहीं सकती है। इसकी एक प्रजाति फ्यूजियन स्ट्रीमर डक होती है जो दक्षिणी अमेरिका में पायी जाती है। इनकी पेकिने नामक प्रजाति का बड़ी संख्या में फॉर्मों में पालन किया जाता है।
शरीर की बनावट
बत्तख का शरीर लंबा कम व चौड़ा अधिक होता है, गर्दन लंबी होती है, लेकिन सारस और हंस की गर्दन के जितनी लंबी नहीं होती है। नर पक्षी मादा पक्षी से बड़े होते हैं। बत्तख की चोंच प्रायः चौड़ी होती है और इसमें दांतेदार किनारे होते हैं। अपने इन दांतेदार किनारों से कंघे की तरह ये अपने पंखों को काढ़ती रहती हैं, इसलिए इनके पंख साफ-सुथरे और अच्छे बने रहते हैं। इनके पंख बहुत मजबूत लेकिन छोटे, घने, नुकीले व हल्के होते हैं। इनके पांव की उंगलियां एक दूसरे से जुड़ी हुई होती हैं, उनके बीच में जो झिल्ली लगी होती है, उसे पादजाल कहते हैं। बत्तख के पैरों में नसें या रक्त वाहिकाएं नहीं होती हैं। इसी वजह से उन्हें ठंडे का अनुभव नहीं होता है चाहे वे बर्फ जैसे ठंडे पानी में तैर रही हों। इनके पैर एक छोटे से पंखे जैसे होते हैं जो बहुत छोटे होते हैं और शरीर के पिछले भाग में होते हैं। इनका उपयोग तैरने के काम में किया जाता है। तैरते समय ये दोनों पाँवों की सहायता से पानी खेते हैं, ठीक वैसे ही जैसे डंडों से नाव खेई जाती है। इसी तरह ये पानी में तैरते हैं। इनके पंख वाटर प्रूफ होते हैं। दरअसल, इनकी पूंछ के पास एक विशेष प्रकार की ग्रंथि होती है, जिससे एक तैलीय द्रव स्रावित होता रहता है और इनके पंखों पर इस तैलीय पदार्थ की परत बन जाती है, इसलिए ये गीली नहीं होती हैं।
खान-पान
प्रायः ये जलीय पक्षी रेशेदार आहार खाते हैं जैसे घास-फूस जलीय पौधे आदि। साथ ही पानी में पाए जाने वाले छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े तथा घोंघा आदि भी खा लेते हैं। ये भिगोया व उबला हुआ भोजन जैसे गेहूँ व चावल भी खाते हैं। समुद्र में पाई जाने वाली बत्तखें गहरे पानी में डुबकी लगाकर अपना भोजन तलाश लाती हैं।
प्रजनन
ये जलीय प्राणी सामान्यतः मोनोगैमस होते हैं यानि एक-विवाही होते हैं लेकिन इनका ये संबंध एक साल तक का ही होता है। इनकी कुछ प्रजातियों का यह संबंध कई सालों तक कायम रहता है। ये साल में एक बार ही प्रजनन करते हैं। प्रजनन से पहले ये स्वयं ही घोंसले का निर्माण करते हैं। उन्नत नस्ल के बत्तख 300 से अधिक अंडे एक साल में देते हैं। इनके अंडे का वजन 65 से 70 ग्राम होता है। बत्तख का जीवनकाल 2 से 12 वर्ष तक हो सकता है, जो कि बत्तख की प्रजाति पर निर्भर करता है।
पालन
भारत में बड़ी संख्या में बत्तखों का पालन किया जाता है। इनसे प्राप्त अंडे व मांस का खाने में प्रयोग किया जाता है। कई लोग बत्तख पालन का व्यवसाय भी करते हैं। इनके व्यवसाय से कई लाभ भी हैं, जैसे -
1. मुर्गियों की अपेक्षा बत्तखों में कम बीमारियाँ होती हैं।
2. मुर्गियों की अपेक्षा बत्तखों की उत्पादक अवधि अधिक होती है।
3. बत्तख दूसरे व तीसरे साल में भी काफी अंडे देते हैं।
4. इनके खान-पान पर भी कम खर्च करना पड़ता है। इनके पालन में सरकार व अनुसंधान संस्थान भी मदद करते हैं।
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