पाखण्डियों के पाखण्ड से त्रस्त गंगा


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गंगागंगा की स्वच्छता के नाम पर हर साल सरकार करोड़ों रुपए खर्च करती है, लेकिन गंगा का मैला खत्म नहीं होता। धर्म के नाम दुकानें चलाने वाले तथाकथित सन्तोंं का तो और भी बुरा हाल है। एक तरफ खुद गंगा पर कब्ज़ा किये बैठे हैं और दूसरी तरफ बातें कर रहे हैं गंगा को ‘वर्ल्ड हेरिटेज’ बनाने की। वहीं नहीं, इसके लिये बाक़ायदा सरकार को जन-जागरण अभियान चलाने का सुझाव भी दे रहे हैं। हद तो तब हो गई, जब पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने गंगा सफाई के नाम पर ‘स्पर्श गंगा बोर्ड' बनाकर माँ गंगा को भी माल कटाई का धंधा बना डाला। सिने तारिका हेमामालिनी को ब्रांड एम्बेसडर बनाकर उन पर लाखों फूँकने वाले धंधेबाजों के पास आज इस बात का कोई जवाब नहीं है कि हेमामालिनी पर लाखों फूँककर गंगा को क्या मिला? लेकिन इन सबसे इतर धर्म की ही दुनिया के बीच से उम्मीद की कुछ किरणें भी दिखाई दे रही हैं।

पिछले दिनों डेरा सच्चा सौदा के सन्त राम रहीम सिंह की अगुवाई में ऋषिकेश से हरिद्वार-रुड़की तक गंगा की सफाई कर उनके अनुयायियों ने दिल को छूने वाला काम किया। यह दिखाता है कि अगर धर्माचार्य चाहें तो धर्म के नाम पर इकट्ठा होने वाली भीड़ को उपदेश सुनाने के साथ ही ऐसे सामुदायिक अभियानों का हिस्सा बनाकर नई लकीर खींच सकते हैं। लेकिन धर्माचार्यों के ऐसे प्रवास भी गाहे-बगाहे रस्म अदायगी और वाहवाही लूटने तक ही सीमित रह जाते हैं। गंगा के नाम पर अपनी दुकानें सजाने-सँवारने वाले सन्त अगर गंगा स्वच्छता को निरन्तरता में एक अभियान के तौर पर चलाएँ तो कुछ बेहतर परिणाम सामने आ सकते हैं। लेकिन वे ऐसा नेक काम करेंगे, वह दिखता नहीं है।

विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में शुमार हरिद्वार में 'गंगा क्लोजर' के पश्चात सरकार के पतित पावनी माँ गंगा को स्वच्छ रखने के दावों की पोल-पट्टी खुल गई है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रतिवर्ष दीपावली से पूर्व ऊपरी गंगनहर की सफाई हेतु भीमगौड़ा बैराज से गंगनहर में पानी का संचालन रोक दिया जाता है। पिछले दो वर्षों में किसी कारणवश 'गंगा क्लोजर' नहीं किया गया, परन्तु इस वर्ष भारी विरोध के बावजूद उप्र सरकार द्वारा गंगनहर की मरम्मत हेतु 'गंगा क्लोजर' कर दिया, जिससे हर की पैड़ी भी जलविहीन हो गई। 'गंगा क्लोजर' होते ही गंगा के तट पर गन्दगी और गंगा में फैले कूड़ा-करकट ने साबित कर दिया कि सरकारी महकमों के साथ-साथ हरिद्वार के साधु-सन्तोंं की जमात भी गंगा की निर्मलता के प्रति कितनी संवेदनहीन है। अब 'गंगा क्लोजर' हट चुका है, लेकिन इस दौरान भी गंगा सफाई के नाम पर कुछ भी नहीं किया जा सका।

जो राजनेता, अभिनेता और धर्मगुरू गंगा की निर्मलता के लिये आन्दोलन चलाने का ढोंग रचते हैं, वे गंगा बंदी 'गंगा क्लोजर' के दौरान हरिद्वार आकर अपने आन्दोलनों की हकीक़त देख सकते हैं। गंगा की रक्षा के लिये मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की गंगा समग्र यात्रा भी उस समय सम्पन्न हुई, जब हरिद्वार में गंगा बंदी के दौरान गंगा में टनों कचरा, उफनते सीवर एवं अन्य गन्दगी उजागर हुई हैं। परन्तु उमा भारती के पास इतनी भी फुर्सत नहीं है कि वह कम-से-कम हरिद्वार प्रवास के दौरान मैली होती गंगा की दुर्गति देख सकें और उसके लिये कुछ कर सकें। उमा भारती साल में दो-तीन बार हरिद्वार प्रवास के दौरान गंगा की स्वच्छता के ऊपर बड़े-बड़े व्याख्यान तो जारी करती हैं, परन्तु गंगा के प्रदूषण की जो हकीक़त है, उससे दूर होकर गंगोत्री जाकर गंगा की स्वच्छता की झूठी कसमें खाती हैं।

हरिद्वार के एक बड़े बाबा ने तो गंगा के प्रदूषण को खूब भुनाया। योगगुरू स्वामी रामदेव ने भी घोषणा की थी कि वह हरिद्वार से कानपुर तक गंगा को स्वच्छ रखने के लिये योग शिविरों के सहारे लोगों को जागरूक करेंगे। इन योग शिविरों से गंगा तो कतई साफ नहीं हुई और अब वह भी गंगा को भूल बैठे हैं। गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिये और गंगा स्वच्छता के कार्यक्रमों के द्वारा ऋषिकेश परमार्थ आश्रम के चिदानंद मुनि भी खूब चर्चा में रहते हैं। खुद स्वामी चिदानंद मुनि एक ओर तो गंगा रक्षा के नाम पर बड़े-बड़े कार्यक्रमों का आयोजन कर वाह-वाही लूट रहे हैं, वहीं दूसरी ओर खुद उनके द्वारा ही गंगा को खोदकर बड़े प्लेटफार्म का निर्माण किया गया है, जिस पर बड़े-बड़े ध्वनि यंत्रों द्वारा भाषणों-भजनों से गंगा का गुणगान होता रहता है।

हरिद्वार के ऐसे अनेक सन्त-महन्त हैं, जो आये दिन गंगा रक्षा के नाम पर अपने आश्रमों में बड़े-बड़े कार्यक्रमों का आयोजन कराकर खूब वाह-वाही तो लूटते हैं, परन्तु उनके पास वास्तव में गंगा रक्षा के लिये करने या गिनती के लिए कुछ भी नहीं है। सप्तसरोवर क्षेत्र से लेकर जगजीतपुर तक ऐसे सैकड़ों आश्रम हैं, जिनका मल-मूत्र सीधे गंगा में बहाया जा रहा है।

गंगनहर के सूखते ही भीमगौड़ा से लेकर जरवाड़ा पुल तक गंगा में गिरते सराबोर नालों ने गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत की गई आँकड़ों की बाजीगरी को भी आईना दिखा दिया गया है। अकेले हरिद्वार में ही दर्जनों की तादाद में गंगा में गिरते नालों की वजह से ही आज गंगाजल पीने योग्य तो दूर, नहाने के योग्य भी नहीं रहा। जिस गंगाजल में मात्र स्नान करने से ही जीवित मनुष्य तो दूर स्वर्गवासी पितर तक तर जाते थे, वही गंगाजल आज अपने उद्धार के लिये किसी भागीरथ की बाट जोह रही है।

मानवजाति की गंगा के प्रति बेरुखी के चलते आज गंगाजल बीमारियों की जननी बनता जा रहा है। अकेले हरिद्वार में ही सरकार द्वारा गंगा में सीधे मल-मूत्र एवं गन्दगी रोकने के लिये पिछले दशकों से अरबों रुपए गंगा के लिये खर्च किये गए, परन्तु फिर भी गंगा हरिद्वार में मैली ही है।

हरिद्वार में गंगा में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिये अधिकारी भी लापरवाह बने हुए हैं। निर्माण एवं अनुरक्षण इकाई गंगा द्वारा प्रस्तुत मानचित्र में हरिद्वार नगर में कुल 21 मुख्य नालों को दर्शाया गया है। विभाग के अनुसार समस्त नालों की टैपिंग कर हरिद्वार में गंगा को प्रदूषण मुक्त किया जा रहा है और इन नालों पर प्रदूषण को नियंत्रण करने के लिये दशकों से अरबों रुपए खर्च किये जा चुके हैं। परन्तु इनमें से अधिकांश नाले ऐसे हैं, जिन्होंने गंगाबंदी के दौरान सरकारी दावों की असलियत उजागर कर दी है।

यह हाल तब है, जबकि हरिद्वार में यात्रा सीजन समाप्ति की ओर है। खड़खड़ी क्षेत्र स्थित लोकनाथ नाले से प्रतिदिन हजारों लीटर गन्दा पानी सीधे गंगा में गिरता है। इसके साथ ही भीमगौड़ा नाला, रेलवे नाला, कांगड़ा मंदिर नाला, नाईसोता नाला, कुशाघाट नाले पर प्रत्येक दिन ओवरफ्लो होना आम बात है। ललतारा नाले के डाउनस्ट्रीम एवं अपस्ट्रीम में हरिद्वार के औद्योगिक क्षेत्र एवं रेलवे की कालोनी ब्रह्मपुरी, इन्द्रा बस्ती, निर्मला छावनी व ललतारा से सटे होटलों और धर्मशालाओं का सीवर सीधे गंगा तक पहुँचाया जा रहा है। देवपुरा पीडब्ल्यूडी कार्यालय के पास जो नाला गंगा में गिरता है, उसमें हरिद्वार औद्योगिक क्षेत्र में स्थापित अनेक प्रतिष्ठानों द्वारा बिना शोधन के ही दूषित जल सीधा छोड़ा जा रहा है। गत वर्ष नगर निगम स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा इस नाले में प्रदूषित जल होने की शिकायत पर अपनी जाँच आख्या में इसकी पुष्टि की थी। गोविंदपुरी स्थित नाले की सम्बन्धित विभाग द्वारा टैपिंग कर खानापूर्ति कर दी जाती है।

हरिद्वार के उपनगर ज्वालापुर में नालों की स्थिति और खराब है। ज्वालापुर में मुख्य रूप से पाँच बड़े नाले हैं, जिनमें से मुख्य रूप से कसाई नाले और पांडे वाले नाले में बिना शोधन के ही दूषित जल गंगा में समाहित किया जा रहा है।

हरिद्वार गंगा में गिरते नालों को रोकने के लिये मुख्य रूप से गंगा निर्माण एवं अनुरक्षण इकाई को जिम्मेदारी दी गई है। खुद अनुरक्षण इकाई के अधिकारी स्वीकार करते हैं कि जगजीतपुर स्थित शोधन केन्द्र की 45 एमएलडी शोधन क्षमता के बावजूद 55 एमएलडी सीवर उत्सर्जित हो रहा है। अर्थात अधिकारियों के अनुसार ही सीधे-सीधे 10 एमएलडी सीवर गंगा में डाला जा रहा है, फिर भी अधिकारी गर्व से गंगा के प्रदूषण मुक्त होने का दावा कर रहे हैं।

हरिद्वार में ही गंगा की बदहाल स्थिति से व्यथित सामाजिक कार्यकर्ता जेपी बड़ोनी द्वारा सूचना आयोग में अपील दायर कर हरिद्वार में सीधे गंगा में गिरते नालों और उनसे होने वाले प्रदूषण के सम्बन्ध में जानकारी माँगी गई, जिसमें सम्बन्धित विभागों द्वारा हरिद्वार में कुल 21 नाले होने की सूचना दी गई। साथ ही अधिकारियों ने भी स्वीकार किया कि हरिद्वार में बिना स्वीकृत मानचित्र के होने वाले निर्माणों के कारण भी गंगा में सीवर गिरने को रोका नहीं जा सकता है। सूचना आयुक्त विनोद नौटियाल द्वारा हरिद्वार प्रशासन को एक आदेश पारित कर समस्त विभागों की संयुक्त टीम बनाकर हरिद्वार में गंगा को प्रदूषित करने वाले नालों और भवनों की जाँच के आदेश दिये गए, जिस पर जिलाधिकारी हरिद्वार द्वारा कुल 17 प्रशासनिक अधिकारियों की टीम गठित कर जाँच करने के आदेश दिये गए। परन्तु अधिकारियों द्वारा इनकी जाँच में भी पूर्णतया लापरवाही बरती गई।

जिलाधिकारी द्वारा जाँच हेतु हरिद्वार विकास प्राधिकरण को नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया और हरिद्वार विकास प्राधिकरण से केवल चार सदस्यों के साथ मिलकर बिना स्थलीय निरीक्षण के ही कार्यालय में बैठकर जाँच रिपोर्ट तैयार कर दी गई, जबकि जिलाधिकारी द्वारा स्पष्ट रूप में नोडल जाँच एजेंसी को निर्देश दिये गए थे कि वह गंगा को प्रदूषित करने वाले प्रत्येक भवन, प्रत्येक नाले का विवरण दें किन्तु जिलाधिकारी के आदेशों को भी ठेंगा दिखा दिया गया।

सूचना आयुक्त एवं जिलाधिकारी के आदेशों को भी नहीं मानने वाले अधिकारियों के खिलाफ अब याचिकाकर्ता जेपी बडोनी उच्च न्यायालय से गुहार लगाने की तैयारी में हैं, ताकि गंगा को कम-से-कम हरिद्वार में तो प्रदूषण मुक्त किया जा सके। यहाँ के अधिकारियों द्वारा आला अधिकारियों को हरिद्वार में नाला टैपिंग और जल शोधन के नाम पर गुमराह किया जाता है, जिससे गंगा दिन-ब-दिन प्रदूषित हो रही है।

प्रदूषित गंगाहरिद्वार ही वह स्थान है, जहाँ से गंगा को प्रदूषण मुक्ति हेतु देश-विदेश की अनेक हस्तियों द्वारा हुंकार भरी जाती है और यह आन्दोलन की हुंकार मात्र मीडिया और चाय पार्टी तक सिमटकर रह जाती है। जो लोग आन्दोलन के जरिए गंगा को प्रदूषण मुक्त करने का दावा करते हैं, उन्हें आज गंगा बंदी के दौरान अपने आन्दोलनों की हकीक़त का अहसास हो जाएगा। गंगा का सहारा लेकर राजनीतिक करने वाले योगगुरू रामदेव, गंगा के सहारे राजनीति की सीढ़ियाँ चढ़ रही उमा भारती, गंगा स्पर्श जैसे कार्यक्रमों को चमकाने वाले स्वामी चिदानंद मुनि, गंगा को निर्मल रखने की कसम खाने वाले डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक एवं हरिद्वार के कुछ सन्तोंं को हरिद्वार आकर गंगा में फैली गन्दगी को देखना चाहिए और उसके बाद प्रदूषित होती माँ गंगा को जवाब देना चाहिए कि उनकी माँ गंगा को राजनीति का केन्द्र बनकर निर्मल गंगाजल रहने का ढोंग कितना सार्थक है।

गंगाजल की पवित्रता और निर्मलता बनाए रखने के लिये पिछले कई दशकों से खूब राजनीति की जा रही है। अपनी राजनीति चमकाने के लिये कोई भी नेता अथवा साधु-सन्त गंगा नाम का दुरुपयोग करने से गुरेज नहीं करता है। यहाँ तक कि अनेकों तथाकथित सन्तोंं ने गंगा के नाम पर करोड़ों रुपए लेकर अपनी तिजोरी भर ली और गंगा के लिये कुछ भी नहीं किया।

हरिद्वार एक प्रसिद्ध तीर्थनगरी होने के कारण गंगा कार्यक्रमों का केन्द्र बिन्दु रहा है और जिसने भी गंगा के सहारे अपनी राजनीति चमकाने का प्रयास किया, उसने हरिद्वार से ही गंगा को प्रदूषण मुक्त करने का दम्भ भरा। सरकार द्वारा भी कितने कार्यक्रम अथवा योजनाएँ गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिये चलाई गई, सभी का केन्द्र बिन्दु हरिद्वार हो रहा। महाकुम्भ 2010 के दौरान भी हरिद्वार में गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिये करोड़ों रुपए बल दिए गए परन्तु आज भी स्थिति जस-की-तस बनी हुई है। हरिद्वार के दर्जनों नाले ऐसे हैं, जो अपने साथ टनों कूड़ा-कचरा बहाकर गंगा में समाहित हो जाते हैं और हरिद्वार की जनता आँखें मूँद जीवनदायिनी गंगा में गिरती गन्दगी को देखती रहती है।

हरिद्वार में होने वाले अनेक धार्मिक आयोजनों एवं कांवड़ मेले और सोमवारी अमावस्या के दौरान यह स्थिति और भी बदतर हो जाती है, जब लाखों का मल-मूत्र और लाई गई ट्रेनों की सामग्री कूड़ा-करकट के रूप में गंगा की गोद में समाहित कर दी जाती है और सन्त-महन्तों की टोलियाँ आश्रमों से बैठकर गंगा की दुर्गति का तमाशा देखती रहती हैं। 'गंगा क्लोजर' के बाद गंगा में भारी गन्दगी को देखकर एक बात तो साफ हो गई है कि जीवनदायिनी माँ गंगा हरिद्वार में ही प्रदूषण का अभिशाप झेलने को मजबूर है। दर्जनों गन्दे नाले, गंगा किनारे बने सैकड़ों होटल, आश्रमों, धर्मशालाओं की गन्दगी सीधे गंगा का आँचल मैला हो रहा है। गंगाजल की निर्मलता से ही फले-फूले सन्तों-महन्तो को कम-से-कम एक बार गंगाजल की होती दुर्दशा पर कोई सकारात्मक पहल करनी होगी, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब गंगाजल के साथ-साथ सन्तोंं की पहचान भी मिट जाएगी।

पाखण्डी स्पर्श गंगा अभियान और उसकी सच्चाई


पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के कार्यकाल में ऋषिकेश से स्पर्श गंगा कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया था, जिसमें रंगारंग कार्यक्रम के द्वारा बालीवुड की हसीन अदाकारा हेमा मालिनी द्वारा गंगा तट पर ठुमके लगाकर माँ गंगा को निर्मल और स्वच्छ रखने की कसमें खाई गई थीं। प्रदेश के एक पूर्व मुखिया हेमा मालिनी की अदाओं के इतने कायल हुए कि उन्होंने स्पर्श गंगा जैसे पवित्र यज्ञ में अदाकरा को ही ब्रांड एम्बेसडर बना दिया और जगह-जगह उनके साथ बड़े-बड़े पोस्टर चिपकाकर पूरे विश्व को गंगा को निर्मल रखने का सन्देश भिजवा दिया। ड्रीमगर्ल की अदाओं पर राजनेताओं के साथ ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन के एक सन्त इतने फिदा हुए कि उन्होंने एक अदाकारा को माँ गंगा की उपमा तक दे डाली। प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री और साधु-सन्त यह कैसे भूल बैठे कि जिस माँ गंगा को दशकों से प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, गंगा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे बड़ी-बड़ी सरकारी मशीनरी अरबों रुपए खर्च कर प्रदूषण मुक्त नहीं करवा पाई, उसे एक फिल्मी अदाकारा अपने ठुमकों से कैसे साफ रख पाएगी? तत्कालीन सरकार द्वारा जिस प्रकार गंगा जैसी पवित्र नदी को प्रसिद्धि पाने के लिये एक मंच से उपयोग किया गया, वह शर्मनाक है। स्पर्श गंगा कार्यक्रम के बहाने सरकार द्वारा अपने चहेतों को लाभ देने के लिये लाखों रुपए बहा दिये गए और उसका नतीजा हरिद्वार की बन्द पड़ी गंगनहर में पसरी गन्दगी में देखा जा सकता है।

तत्कालीन सरकार गंगा स्पर्श कार्यक्रम के बहाने लाखों ठिकाने लगाने को इतनी आतुर दिखी कि उन्होंने आनन-फानन में 'स्पर्श गंगा बोर्ड' का गठन कर 45.00 लाख रुपए का बजट भी जारी कर दिया। 'स्पर्श गंगा बोर्ड' द्वारा वर्ष 2011 में मिले 45.00 लाख रुपए को जिस प्रकार ठिकाने लगाया गया, उससे स्पर्श गंगा कार्यक्रम की हकीक़त उजागर हो गई। स्पर्श गंगा अभियान के अन्तर्गत 'स्पर्श गंगा बोर्ड' द्वारा कहीं भी गंगा रक्षा इकाइयों का गठन नहीं किया गया और ना ही गंगा को प्रदूषण मुक्त रखने के लिये कोई सार्थक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसके विपरीत 'स्पर्श गंगा बोर्ड' द्वारा प्रतिमाह 1.75 रुपए मात्र वेतन पर ही खर्च किया जा रहा है। इसके साथ ही वर्ष 2011 में मिले 45.00 लाख के बजट की जिस प्रकार बंदरबांट की गई, उसका विवरण निम्न प्रकार है।

वेतन एवं भत्ते

10.75 (लाख में)

कार्यालय व्यय

0.936

बोर्ड बैठक

0.032

अन्य व्यय

0.00958

कम्प्यूटर/आदि

3.17

फर्नीचार व्यय

8.24

सेमिनार एवं कार्यशाला

0.23

यात्रा भत्ता

2.63

जागरूकता/प्रचार-प्रसार

3.93

प्रतिपूर्ति/आर्थिक सहायता

15.00

 

सरकार द्वारा स्पर्श गंगा कार्यक्रम के जरिए अपने चहेतों को गंगा के नाम पर सरकारी खजाने की लूट की खुली छूट दे दी गई और उनके द्वारा सरकारी रकम डकार एक बार भी गंगा को स्पर्श करने की जहमत नहीं उठाई गई। गंगा स्पर्श कार्यक्रम माँ गंगा को निर्मल रखने के नाम पर लूट करने की बानगी मात्र है। इसके अलावा अनगिनत सरकारी मान्यता प्राप्त एनजीओ और संस्थान हैं, जो गंगा को स्वच्छ रखने के नाम पर देशी ही नहीं, बल्कि विदेशी संस्थाओं से भी जमकर माल बटोर रही हैं। इन संस्थाओं को दान देने वाले दानदाता भी आज गंगा बंदी के दौरान हरिद्वार में गंगा की गन्दगी से रूबरू हो जाएँ, जो उन्हें अपने द्वारा दान में दी गई धनराशि की बन्दरबाँट की हकीक़त का पता लग जाएगा और जिन धार्मिक संस्थाओं द्वारा भारत में सदानीरा गंगा नदी को माँ का दर्जा देकर वाह-वाही लूटी जाती है, उनकी असलियत भी सम्पूर्ण विश्व के सामने आ जाएगी। आज आलम यह है कि सरकारी महकमे से लेकर सन्त और आम जन भी गंगा में फैलते प्रदूषण को रोकने की बजाय उसे भुनाने में लगा है और माँ गंगा दिन-ब-दिन प्रदूषित होकर अपनों की बेरुखी का अभिशाप भुगतने को लाचार है।

गंगाजल में डुबकी लगाना भी है खतरनाक


दुनिया भर में पवित्र और अमृततुल्य माना जाने वाला गंगाजल ऋषिकेश से आचमन तो क्या नहाने योग्य भी नहीं रहा। सरकारी आँकड़ों के ही अनुसार हरिद्वार में यदि ज्यादा देर तक गंगा में डुबकी लगाई जाये तो वह त्वचा के लिये परेशानी का सबब बन सकता है। हरद्विार में गंगाजल का सेवन तो जानलेवा तक साबित हो सकता है। सरकारी महकमों द्वारा अनेकों बार यह प्रचार किया जाता रहा है कि कुछ संस्थाओं द्वारा सरकारी कार्य प्रणाली पर सन्देह के चलते ही गंगा में प्रदूषण के मिथ्या आँकड़े प्रस्तुत किये जाते रहे हैं। परन्तु यदि सरकारी आँकड़ों पर ही निगाह डाली जाये तो हकीक़त कुछ और ही है।

केन्द्रीय पयार्वरण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा गंगाजल के 'फीकल कोलीफार्म यानी मलजनित बैक्टीरिया' के लिये 500 एमपीएन/100 एमएल का मानक तय किया गया है। परन्तु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा गंगाजल की जाँच हेतु लिये गए नमूनों के परिणाम में इसकी मात्रा कई गुना अधिक पाई गई है। बोर्ड द्वारा हरकी पैड़ी पर गंगाजल के लिये गए नमूनों में 'फीकल कोलीफार्म' की मात्रा 1500 एमपीएन/100 एमएल पाई गई है, जिसमें ज्यादा देर तक स्नान करने से त्वचा, पेट व आँखों की गम्भीर बीमारी तक हो सकती है। इसके साथ-साथ गंगाजल में ऑक्सीजन की मात्रा में भी निरन्तर गिरावट आ रही है। इसके विपरित गंगाजल में प्रदूषण को दर्शाने वाले सूचक कोलीफार्म, फीकल कोलीफार्म आदि की मात्रा निरन्तर बढ़ती जा रही है।

सरकार एक ओर तो गंगा में प्रदूषण नियंत्रण होने का दावा करती है और वहीं दूसरी ओर सरकारी महकमे ही गंगा में प्रदूषण बढ़ने की रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहे हैं। सरकार कितने ही दावे कर लें, परन्तु हकीक़त यह है कि अरबों की योजनाओं के बावजूद आज भी बड़ी मात्रा में इंसान जनित मल-मूत्र गंगा की भेंट चढ़ रहा है। गंगा जल में बढ़ती 'फीकल कोलीफार्म' की मात्रा के लिये केवल इंसान एवं जानवरों का मल-मूत्र ही जिम्मेदार माना गया है। गंगाजल में 'फीकल कोलीफार्म' की बढ़ती मात्रा इस बात का ठोस सबूत है। ऐसे जल का सेवन कई गम्भीर बीमारियों को पैदा करने में सहायक होता है, जिसके सेवन से खूनी दस्त, पेट दर्द, उल्टी की शिकायत हो सकती है।

सरकारी मशीनरी द्वारा गंगाजल को हरकी पौड़ी पर पूर्णतया प्रदूषण मुक्त रखने के दावे किये जाते हैं, परन्तु जो जाँच परिणाम उजागर हुए हैं, उससे लगता है कि सरकार को करोड़ों लोगों की धार्मिक भावनाओं की कतई भी चिन्ता नहीं है। हरकी पैड़ी ही वह स्थान है, जहाँ सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र के देवी-देवताओं की डोलियों को स्रान कराया जाता है और महाकुम्भ जैसे पवित्र शाही स्रान को भी हरकी पैड़ी पर आकर ही पूर्ण माना जाता है। जिस प्रकार हरकी पौड़ी पर गंगाजल में 'फीकल कोलीफार्म' की मात्रा बढ़ती जा रही है, उससे यह साफ हो जाता है कि यहाँ की धर्मभीरू जनता सरकारी दावों पर विश्वास कर पवित्र देवी-देवताओं को मल-मूत्र युक्त गंगाजल से स्रान कराकर उनकी पवित्रता को नष्ट कर रही है और अनचाहे पाप की भागीदारी बन रही है।

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