पाकिस्तान और पानी से घिरा सरहद का आखिरी गांव


भारत-पाकिस्तान सरहद पर स्थित श्रीगंगानगर जिले की अनूपगढ़ तहसील का सीमावर्ती क्षेत्र इन दिनों घग्घर के पानी से घिरा हुआ है। करीब ढाई माह से यहां पसरे पानी ने जहां अंतिम छोर पर बसे बिंजौर गांव को चारों ओर से घिर रखा है, वहीं यहां तैनात बीएसएफ के जवानों की हालत बदतर है। गांव के सभी रास्ते बंद हो चुके हैं और ग्रामीण कड़ाहे के सहारे आ-जा रहे हैं। सेना के जवान भी निरंतर बोट के सहारे और पानी में पैदल ही सरहद की सुरक्षा में चाक-चौबंद ड्यूटी दे रहे हैं।

लेकिन उनकी पीड़ा को समझने वाला कोई नहीं है। इस ओर न तो प्रशासन ने ध्यान दिया है और न ही केंद्र या राज्य सरकार ने। घग्घर के बहाव को देखकर अंदाजा लगाया जा रहा है कि यह स्थिति आगामी तीन माह तक स्थाई रूप से रहेगी, लेकिन फिर भी इससे निपटने के पुख्ता इंतजामात कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। उधर, जल रूपी अमृत पाकिस्तान की ओर से बह रहा है। हमेशा के लिए अपने नापाक इरादों के लिए कुख्यात पाक यहां भी अपनी कारगुजारियों से बाज नहीं आया है। पाकिस्तान को जितने पानी की जरूतर है, वह पाइपों के जरिए अपने क्षेत्र में ले रहा है जबकि बाकी का पानी फिर से भारत में छोड़ा जा रहा है। जानकारों का मानना है कि यदि सरकार इस मसले पर गंभीरता दिखाए तो अनूपगढ़-घड़साना क्षेत्र में कहीं भी डेम स्थापित कर इस पानी को उपयोग में लिया जा सकता है।

गौरतलब है कि पंजाब व हिमाचल प्रदेश में आई भारी बारिश के बाद घग्घर नदी पिछले दिनों उफान पर रही है और अब भी पानी बह रहा है। इसी कारण अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर के हालात भी गड़बड़ा गए हैं। बॉर्डर की तीन चौकियां पानी से घिरी हुई हैं तथा दो चौकियां प्रभावित है। बीएसएफ के जवानों को पानी में ही देश की सुरक्षा करनी पड़ रही है। फिर भी उनके हौसले इस कदर बुलंद है कि वे किसी भी घुसपैठ या वारदात को मुंह तोड़ जवाब देने के लिए तैयार हैं। यह स्थिति 18 जुलाई 2010 के बाद से निरंतर बनी हुई है और सरहद पर पानी ही पानी नजर आने लगा है। इन हालातों से निश्चित ही बीएसएफ की चिंता बढ़ गई है और बॉर्डर पर विशेष सतर्कता बरती जा रही है। लेकिन अपने घरों में चौन की बंशी बजा रहे सफेदपोशों व नौकरशाहों को जवानों की स्थिति पर गौर करने का बिलकुल भी समय नहीं है। सूूत्रों के अनुसार, इससे पूर्व वर्ष 1993 में चेतक प्वाइंट में 8800 क्यूसेक पानी पहुंचा था, जिस कारण कई गांव जलमग्न हुए। लेकिन इस बार विकट हुए हालत के मद्देनजर घुसपैठ की आशंका बढ़ी है। क्षेत्र में तारबंदी व जीरो लाइन के आस-पास कंटीली झाडिय़ां ऊगी हुई है, जो पहले से ही परेशानी का सबब बनी हुई है। सूत्र बताते हैं कि जलस्तर घटने के बाद भी स्थिति जल्द से बेहतर नहीं होगी, क्योंकि कंटीली झाडिय़ां और अधिक पनपेगी, जो सेना की परेशानी को और बढ़ाएगा। यही नहीं यहां दलदल की स्थिति से भी सेना के जवानों को दो-चार होना पड़ेगा।

राजस्थान में अनूपगढ़ क्षेत्र के ठीक सामने पाकिस्तानी सीमा में बहावलनगर जिले के फोर्टाबास के कई गांव हैं। सूत्र बताते हैं कि इन विकट हालातों में घुसपैठिए भी सक्रिय हो जाएंगे। वैसे सेना पहले से ही बांग्लादेशियों की घुसपैठ के चलते सकते में है। काबिलेगौर है कि, यहां गत छह वर्षों में अब तक 120 बांग्लादेशी पकड़े जा चुके हैं। यही नहीं सीमा क्षेत्र में गत छह वर्षों के अंतराल में 26 पाकिस्तानी घुसपैठिए मारे जा चुके हैं तथा 44 गिरफ्तार किए जा चुके हैं। आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2005 में 58, वर्ष 2006 में 39, वर्ष 2007 में 13, वर्ष 2008 में 03, वर्ष 2009 में 04 तथा इस वर्ष अब तक तीन बांग्लादेशी घुसपैठिए पकड़े जा चुके हैं। इसी तरह पाकिस्तानी घुसपैठियों की कारस्तानी भी कम नहीं है। सूत्रों के अनुसार, वर्ष 2005 में दो पाकिस्तानी मारे गए तथा आठ पकड़ में आए, वर्ष 2006 में पांच मारे गए व 11 पकड़ में आए, वर्ष 2007 में चार मारे गए व आठ पकड़ में आए, वर्ष 2008 में तीन मारे गए व छह पकड़े गए, वर्ष 2009 में 10 में पांच मारे गए व नौ पकड़े गए तथा 2010 में अब तक दो मारे गए तथा दो ही पाकिस्तानी पकड़े गए हैं।

नकारा जनप्रतिनिधि, नकारा सरकार पाक की ओर बहते पानी को लेकर अनेक बार स्थानीय किसान सरकार व उसके नुमाइंदों से गुजारिश कर चुके हैं, लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं और पानी का पाकिस्तान की ओर बहना बदस्तूर जारी है। सरकार चाहे तो घग्घर डाइवर्सन, आईजीएनपी तथा इसके अलावा सूरतगढ़ व पीलीबंगा में स्थित टिब्बा क्षेत्रों में पानी का भंडारण किया जा सकता है। यही नहीं अनूपगढ़-घड़साना क्षेत्र में किसी एक निर्धारित जगह पर डेम बनाकर इस पानी को उपयोग में लाया जा सकता है। गौरतलब है कि हरियाणा-राजस्थान सीमा से सटे ओटू हैड, खनौरी हैड व चांदपुर हैड से होता घग्घर का पानी सूरतगढ़ व पीलीबंगा के टिब्बा क्षेत्र में पहुंचता है। यहां भराव के बाद पानी श्रीबिजयनगर के बाद अनूपगढ़ क्षेत्र में प्रवेश करता है। यहीं से ही बिंजौर तथा इसके बाद यही पानी पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश कर जाता है। पाकिस्तानी यहां के बांधों के नीचे पाइप लगाकर जरूरत के हिसाब से पानी लेता है तथा बाकी पानी वापिस भारत आ जाता है। इस अतिसंवेदनशील मसले पर प्रशासन किस कदर लापरवाह बना हुआ है, इसकी बानगी बिंजौर गांव के वाशिंदों की पीड़ा सुनकर पता चलती है। चारों ओर पानी से डूबे इस गांव के ग्रामीणों का आरोप है कि उनकी सुध लेने के लिए प्रशासन को कोई भी अधिकारी यहां नहीं पहुंचा। उनका कहना है कि प्रशासन ने फौरी तौर पर एक कश्ती उपलब्ध करवाई थी, लेकिन वो भी टूटी हुई है।

गांव के प्राथमिक विद्यालय के अध्यापक विनोद कुमार ने बताया कि उन्हें गांव में जाने के लिए कड़ाहे में बैठना पड़ता है और इसी तरह जो बच्चे आठवीं से बड़ी क्लास में है वे भी कड़ाहे के जरिए पढऩे के लिए यहां से गुजरते हैं। उन्होंने बताया कि जब भी गांव में डिलीवरी केस होता है या कोई बीमारी से पीड़ित हो जाता है तो यहां कोई सुविधा नहीं है। ग्रामीणों ने बताया कि रास्ते बंद होने के बाद गांव में तीन मौतें हो चुकी है, लेकिन उनको दफनाने के लिए भी सुविधा उपलब्ध नहीं हुई। बिंजौर गांव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात लैला-मजनू की मजार से महज 500 मीटर की दूरी पर स्थित है। ऐसे में प्रशासन के नकारापन का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। चौंकाने वाली बात यह भी है कि इन ग्रामीणों की सुध लेने अभी तक कोई स्थानीय जनप्रतिनिधि भी मौके पर नहीं पहुंचा। इस मामले में जिला कलेक्टर सुबीर कुमार का कहना है कि वे भविष्य में इस समस्या को लेकर गंभीरता से विचार करेंगे, लेकिन फिलहाल उन ग्रामीणों का क्या हो, इस संबंध में किसी के पास कोई जवाब नहीं है।
 
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