ऑनलाइन खरीदारी और पर्यावरणीय क्षति

ऑनलाइन खरीदारी और पर्यावरणीय क्षति।
ऑनलाइन खरीदारी और पर्यावरणीय क्षति।

प्रत्येक अविष्कार या सिद्धान्त के दो पहलू होते हैं - लाभ और हानि। ज्यादातर लोग इनसे होने वाले लाभ पर ही ध्यान केन्द्रित करते हैं। इस लाभ को हम भौतिक सुख से भी जोड़ सकते हैं। आज उपभोगतावादी युग में ज्यादातर लोग इसी प्रयास में रहते हैं कि इस सुख को अधिक से अधिक कैसे प्राप्त किया जाए। त्योहारों का मौसम आना शुरू हो गया है और व्यापारी तबका त्योहारी सीजन में सालभर का लाभ कमाना चाहता है, लेकिन ऑनलाइन की बाजार व्यवस्था व्यापारी तबके के धंधे को चैपट कर रही है। हर तरह से प्रभावी यह तबका अपनी माँगे मनवा भी लेगा, लेकिन एक वह पक्ष जो अपने संरक्षण के लिए प्रत्येक वर्ग से गुहार करता है, उसकी बात पर गौर करना तो दूर की बात, हम उस पहलू से सोचते भी नहीं हैं! वह पहलू है पर्यावरण संरक्षण।

विदेशों में ऐसी व्यवस्था है कि जो पैकेजिंग देगा वही उसे वापस भी लेता है। वहाँ फूड पैकेजिंग में मोटे कागज से बना डिब्बा काम में लिया जाता है जो आसानी से री-साइकिल हो जाता है। यह व्यवस्था यहाँ पर भी लागू होनी चाहिए। इसी तरह तरल खाद्य पदार्थों की पैकिंग के लिए ऐसे डिब्बे हों जो बर्तन की तरह साफ करके दोबारा काम में लाए जा सकें। नार्डिक देश मानवीय मूल्यों और उनके विकास के लगभग सभी क्षेत्रों में अग्रणी हैं।

पर्यावरण संरक्षण के लिए हम प्लास्टिक से दूरी बनाने की बात करते हैं, लेकिन इस ऑनलाइन खरीदारी ने प्लास्टिक बैंग के इस्तेमाल की प्रवृत्ति को लगातार बढ़ाया है। उदाहरम के लिए खरीदी गई वस्तु को ग्राहक तक सुरक्षित पहुँचाने के लिए विभिन्न प्रकार की पैकिंग आदि की जाती है। छोटे से एक समान को भी 2-3 फुट प्लास्टिक के पेपर में लपेट कर फिर डिब्बे में बंद करके ग्राहक तक पहुँचाया जाता है। यही नहीं लोग खाने-पीने का सामान भी कई कारणों से ऑनलाइन आर्डर करने लगे हैं। ऐसा करते समय लोग एक क्षण के लिए भी नहीं सोचते कि जो गरमा-गरम खाना प्लास्टिक के डिब्बों या पॉलिथीन में पैक होकर आया है यह हमारे शरीर के लिए धीमे जहर के समान है। देश में कैंसर के रोग दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। पर्यावरण में सीएफसी रसायन का असर बहुत लम्बे समय तक रहता है। महानगरों में बढ़ती ऑनलाइन खरीदारी का कारण अंततः मानव जीवन में लगातार बढ़ रही जटिलताओं जैसे तेजी से बढ़ता निजी क्षेत्र का होना माना जाता है। इसने बेशक ग्राहक का बाजार आने-जाने का समय और मोल-भाव करने से है, लेकिन इसी ऑनलाइन खरीदारी के आर्डर डिलीवर करने में इस्तेमाल होने वाले वाहनों ने वायु प्रदूषण भी बढ़ाया है।

इस प्रवृत्ति से न केवल पर्यावरण प्रदूषण फैल रहा है बल्कि ट्रैफिक जाम की समस्या भी बढ़ रही है। अगर यह सब ऐसे ही चलता रहा तो आने वाले कुछ वर्षों में जहाँ बाजार व्यवस्था चैपट हो जाएगी वहीं पर्यावरण प्रदूषण समेत कई समस्याएँ सामने आएँगी। समय रहते हुए इस क्षेत्र में निवेश करने वाली कम्पनियों को इसके विकल्प ढूँढ़ने चाहिए, जिससे ग्राहक और पर्यावरण दोनों पक्ष सुरक्षित रहें। इस सन्दर्भ में एक उपाय यह हो सकता है कि जो कम्पनी ग्राहक तक पैकेजिंग के माध्यम से सामान पहुँचाएगी, वही उस पैकेजिंग में इस्तेमाल होने वाले डिब्बे, पेपर और अन्य पैकेजिंग सामग्री को वापस लेगी ताकि उन्हें पुनः उपयोग में लिया जा सके। ग्राहक को इसके लिए प्रोत्साहित करने या फिर पैकेजिंग का सामग्री लौटाने पर उसे एडवांस के साथ कुछ छूट दी जा सकती है।

विदेशों में ऐसी व्यवस्था है कि जो पैकेजिंग देगा वही उसे वापस भी लेता है। वहाँ फूड पैकेजिंग में मोटे कागज से बना डिब्बा काम में लिया जाता है जो आसानी से री-साइकिल हो जाता है। यह व्यवस्था यहाँ पर भी लागू होनी चाहिए। इसी तरह तरल खाद्य पदार्थों की पैकिंग के लिए ऐसे डिब्बे हों जो बर्तन की तरह साफ करके दोबारा काम में लाए जा सकें। नार्डिक देश मानवीय मूल्यों और उनके विकास के लगभग सभी क्षेत्रों में अग्रणी हैं। स्टॉकहोम में हाल ही में सम्पन्न इंडो-नार्डिक शिखर सम्मेलन में अन्य मुद्दों के अलावा वर्ष 2030 के लिए सतत विकास लक्ष्यों के लिए पेरिस जलवायु समझौते और जलवायु परिवर्तन रोकने पर भी प्रतिबद्धता जताई गई। ख्याल रहे, इन देशों में पर्यावरण संरक्षण के सुगम कानून पिछले कई दशकों से प्रभावी तरीके से लागू हैं। देखना यह है कि भारत सरकार इन देशों के पर्यावरण संरक्षण नियमों को ग्रहण कर उन्हें किस प्रकार से धरातल पर लागू करती हैं।

ऑनलाइन खरीदारी के बढ़ने के पीछे बदलती हुई जीवन शैली के साथ-साथ सबसे प्रमुख कारण ग्राहक को दी जाने वाली छूट होती है। यह छूट कभी-कभी 80 फीसद तक होती है। मेक इन इंडिया को बढ़ावा देते हुए केन्द्र सरकार की ऑनलाइन शॉपिंग पॉलिसी के सन्दर्भ में विभिन्न अखबारों में छपी रिपोर्ट में बताया गया था कि ऑनलाइन शॉपिंग पर नियंत्रण करने के लिए ई-कॉमर्स के लिए एक प्रारूप तैयार हुआ है। इसके तहत निश्चित कीमत से बहुत ज्यादा छूट न देने की पॉलिसी बनी है। इस पॉलिसी से लघु और मध्यम व्यापारियों को फायदा होगा, परन्तु देखना यह है कि यह नीति पर्यावरण के लिए किस प्रकार हितकारी साबित होती है। विश्व पर्यावरण दिवस रिपोर्ट (22 मई से 7 जून, 2019) के अनुसार क्षेत्रीय सरकारें भी प्लास्टिक के खिलाफ व्यापक स्तर पर जन जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को इसके लिए भावनात्मक रूप से जोड़कर पर्यावरण संरक्षण के लिए अपनी भूमिका निभा रही है। यही नहीं इस क्षेत्र में कई छोटे-बड़े एनजीओ भी प्रयासरत हैं।

उक्त सारी बातों और तमाम बिन्दुओं के विश्लेषण करने के बाद आवश्यकता इस बात की है कि प्रत्येक भारतीय परिवार आधुनिकीकरण के साथ-साथ पारम्परिक तौर तरीकों के उन आदर्शों की पालन करे, जो प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपभोग करने के लिए प्रेरित करते हैं। साथ ही इन संसाधनों के बेजा दोहन को पाप मानते हुए प्रकृति के साथ तालमेल को सबसे ज्यादा महत्व देते हैं।

 

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Post By: Shivendra
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