ओजोन एक प्राकृतिक गैस है, जो वायुमंडल में बहुत कम मात्रा में पाई जाती है। पृथ्वी पर ओजोन दो क्षेत्रों में पाई जाती है। ओजोन अणु वायुंडल की ऊपरी सतह (स्ट्रेटोस्फियर) में एक बहुत विरल परत बनाती है। यह पृथ्वी की सतह से 17-18 कि.मी. ऊपर होती है, इसे ओजोन परत कहते हैं। वायुमंडल की कुल ओजोन का 90 प्रतिशत स्ट्रेटोस्फियर में होता है। कुछ ओजोन वायुमंडल की भीतरी परत में भी पाई जाती है।
स्ट्रेटोस्फियर में ओजोन परत एख सुरक्षा-कवच के रूप में कार्य करती है और पृथ्वी को हानिकारक पराबैंगनी विकिरण से बचाती है। स्ट्रेटोस्फियर में ओजोन एक हानिकारक प्रदूषक की तरह काम करती है। ट्रोपोस्फियर (भीतरी सतह) में इसकी मात्रा जरा भी अधिक होने पर यह मनुष्य के फेफड़ों एवं ऊतकों को हानि पहुंचाती है एवं पौधों पर भी दुष्प्रभाव डालती है।
वायुमंडल में ओजोन की मात्रा प्राकृतिक रूप से बदलती रहती है। यह मौसम वायु-प्रवाह तथा अन्य कारकों पर निर्भर है। करोड़ों वर्षों से प्रकृति ने इसका एक स्थायी संतुलन सीमित कर रखा है। आज कुछ मानवीय क्रियाकलाप ओजोन परत को क्षति पहुंचाकर, वायुंडल की ऊपरी सतह में इसकी मात्रा कम रहे हैं। यही कमी ओजोन-क्षरण, ओजोन-विहीनता कहलाती है और जो रसायन इसे उत्पन्न करने के कारक हैं, वे ओजोन-क्षरक पदार्थ कहलाते हैं। ओजोन परत में छिद्रों का निर्माण, पराबैंगनी विकिरण को आसानी से पृथ्वी के वायुमंडल में आने का मार्ग प्रदान कर देता है। इसका मानवीय स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम करके कैंसर एवं नेत्रों पर कुप्रभाव डालता है।
1980 के आस-पास अंटार्कटिक में कार्य करने वाले कुछ ब्रिटिश वैज्ञानिक अंटार्कटिक के ऊपर वायुमंडल ओजोन माप रहे थे यहां उन्हें जो दिखा वे उससे जरा भी खुशगवार नहीं हुए। उन्होंने पाया कि हर सितंबर-अक्टूबर में यहां के ऊपर ओजोन परत में काफी रिक्तता आ जाती है और तब तक प्रत्येक दक्षिणी बसंत में अंटार्कटिक के 15-24 कि.मी. ऊपर स्ट्रेटोस्फियर में 50 से 95 प्रतिशत ओजोन नष्ट हो जाती है। इससे ओजोन परत में कुछ रिक्त स्थान बन जाते हैं, जिन्हें अंटार्कटिक ओजोन छिद्र कहा गया।
अंटार्कटिक विशिष्ट जलवायु स्थितियों के कारण ओजोन छिद्रता का प्रमुख केंद्र है और यही कारण है कि ओजोन-क्षरण का प्रभाव पूरे विश्व पर पड़ रहा है, लेकिन कुछ हिस्से दूसरों की अपेक्षा अधिक प्रभावित होंगे, जिनमें दक्षिणी गोलार्द्ध के अधिक भूखंड मसलन-ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिणी अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका के कुछ हिस्से जहां की ओजोन परत में छिद्र है, अन्य देशों की अपेक्षा अधिक खतरे में है।
ओजोन परत हानिकारक पराबैंगनी विकिरण को पृथ्वी पर पहुंचने से पूर्व ही अवशोषित कर लेती है। ओजोन छिद्रों में इसकी मात्रा कम होने के कारण हानिकारक पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर पहुंचने लगेंगी। इसकी अधिक मात्रा का मानव-जीवन, जंतु-जगत वनस्पति-जगत तथा द्रव्यों पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
मनुष्य तथा जीव-जंतु – यह त्वचा-कैंसर की दर बढ़ाकर त्वचा को रूखा, झुर्रियों भरा और असमय बूढ़ा भी कर सकता है। यह मनुष्य तथा जंतुओं में नेत्र-विकार विशेष कर मोतियाबिंद को बढ़ा सकती है। यह मनुष्य तथा जंतुओं की रोगों की लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता को कम कर सकता है।
वनस्पतियां-पराबैंगनी विकिरण वृद्धि पत्तियों का आकार छोटा कर सकती है अंकुरण का समय बढ़ा सकती हैं। यह मक्का, चावल, सोयाबीन, मटर गेहूं, जैसी पसलों से प्राप्त अनाज की मात्रा कम कर सकती है।
खाद्य-शृंखला- पराबैंगनी किरणों के समुद्र सतह के भीतर तक प्रवेश कर जाने से सूक्ष्म जलीय पौधे (फाइटोप्लैकटॉन्स) की वृद्धि धीमी हो सकती है। ये छोटे तैरने वाले उत्पादक समुद्र तथा गीली भूमि की खाद्य-शृंखलाओं की प्रथम कड़ी हैं, साथ ही ये वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को दूर करने में भी योगदान देते हैं। इससे स्थलीय खाद्य-शृंखला भी प्रभावित होगी।
द्रव्य - बढ़ा हुआ पराबैंगनी विकिरण पेंट, कपड़ों को हानि पहुंचाएगा, उनके रंग उड़ जाएंगे। प्लास्टिक का फर्नीचर, पाइप तेजी से खराब होंगे।
ये सभी नामव-निर्मित हैं-
सी.एफ.सी. क्लोरोफ्लोरोकार्बन, क्लोरीन, फ्लोरीन एवं ऑक्सीजन से बनी गैसें या द्रव पदार्थ हैं। ये मानव-निर्मित हैं, जो रेफ्रिजरेटर तथा वातानुकूलित यंत्रों में शीतकारक रूप में प्रयोग होते हैं। साथ ही इसका प्रयोग कम्प्यूटर, फोन में प्रयुक्त इलेक्ट्रॉनिक सर्किट बोर्ड्स को साफ करने में भी होता है। गद्दों के कुशन, फोम बनाने, स्टायरोफोम के रूप में एवं पैकिंग सामग्री में भी इसका प्रयोग होता है।
हैलोन्स – ये भी एक सी.एफ.सी. हैं, किंतु यह क्लोरीन के स्थान पर ब्रोमीन का परमाणु होता है। ये ओजोन परत के लिए सी.एफ.सी. से ज्यादा खतरनाक है। यह अग्निशामक तत्वों के रूप में प्रयोग होते हैं। ये ब्रोमिन, परमाणु क्लोरीन की तुलना में सौ गुना अधिक ओजोन अणु नष्ट करते हैं।
कार्बन टेट्राक्लोराइड- यह सफाई करने में प्रयुक्त होने वाले विलयों में पाया जाता है। 160 से अधिक उपभोक्ता उत्पादों में यह उत्प्रेरक के रूप में प्रयुक्त होता है। यह भी ओजोन परत को हानि पहुंचाता है।
वायुमंडल में ओजोन की मात्रा प्राकृतिक रूप से बदलती रहती है। यह मौसम वायु-प्रवाह तथा अन्य कारकों पर निर्भर है। करोड़ों वर्षों से प्रकृति ने इसका एक स्थायी संतुलन सीमित कर रखा है। आज कुछ मानवीय क्रियाकलाप ओजोन परत को क्षति पहुंचाकर, वायुंडल की ऊपरी सतह में इसकी मात्रा कम रहे हैं। यही कमी ओजोन-क्षरण, ओजोन-विहीनता कहलाती है और जो रसायन इसे उत्पन्न करने के कारक हैं, वे ओजोन-क्षरक पदार्थ कहलाते हैं।
1. बाहरी वायुमंडल की पराबैंगनी किरणें सी.एफ.सी. से क्लोरीन परमाणु को अलग कर देती हैं।
2. मुक्त क्लोरीन परमाणु ओजोन के अणु पर आक्रमण करता है और इसे तोड़ देता है। इसके फलस्वरूप ऑक्सीजन अणु तथा क्लोरीन मोनोऑक्साइड बनती है-
C1+O3=C1o+O3
3. वायुमंडल का एक मुक्त ऑक्सीजन परमाणु क्लोरीन मोनोऑक्साइड पर आक्रमण करता है तथा एक मुक्त क्लोरीन परमाणु और एक ऑक्सीजन अणु का निर्माण करता है।
C1+O=C1+O2
4. क्लोरीन इस क्रिया को 100 वर्षों तक दोहराने के लिए मुक्त है।
भारत ओजोन समस्या के प्रति चिंतित है। उसने सन् 1992 में मांट्रियल मसौदे पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। ओजोन को क्षति पहुंचाने वाले कारकों को दूर करने के लिए क्षारकों के व्यापार पर प्रतिबंध, आयात-निरयात की लाइसेंसिंग तथा उत्पादन सुविधाओ में विकास पर रोक आदि प्रमुख हैं।
प्रकृति द्वारा प्रदत्त इस सुरक्षा-कवच में और अधिक क्षति को रोकने में हम भी सहायक हो सकते हैं-
1. उपभोक्ता के रूप में यह जानकरी लें कि जो उत्पाद खरीद रहे हैं, उनमें सी.एफ.सी. है या नहीं। जहां विकल्प हो वहां ओजोन मित्र उत्पादन यानी सी.एफ.सी. रहित उत्पाद ही लें।
2. वातानुकूलित संयंत्रों तथा रेफ्रिजरेटर का प्रयोग सावधानी से करें, ताकि उनकी मरम्मत कम-से-कम करनी पड़े। सी.एफ.सी. वायुमंडल में मुक्त होने की बजाय पुनः चक्रित हो।
3. पारंपरिक रूई के गद्दों एवं तकियों का प्रयोग करें।
4. स्टायरोफाम के बर्तनों की जगह पारंपरि मिट्टी के कुल्हड़ों, पत्तलों का प्रयोग करें या फिर धातु और कांच के बर्तनों का।
5. अपने-अपने क्षेत्रों में ओजोन परत क्षरण जागरुकता अभियान चलाएं।
संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा ने 16 सितंबर को ओजोन परत संरक्षण दिवस के रूप में स्वीकार किया है। 1987 में इसी दिन ओजोन क्षरण कारक पदार्थों के निर्माण और खपत में कमी संबंधी मांट्रियल सहमति पर विभिन्न देशों ने (कनाडा) मांट्रियल में हस्ताक्षर किए थे। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा गठित समिति ने सी.एफ.सी. की चरणबद्ध कमी करने के लिए समझौते का मसौदा तैयार किया है, जिसे मांट्रियल प्रोटोकाल कहा जाता है। यह 1987 से प्रभावी है। अब तक लगभग 150 देशों के हस्ताक्षर इस प हो चुके हैं और इसके नियमों को स्वीकारा जा चुका है।
1. पर्यावरणीय अध्ययन, 2000-पर्यावरण शिक्षक केंद्र सेंटर फॉर एन्वायरमेंट एजुकेशन सी.ई.ई.पर्यावरण एवं वन मंत्रालय।
2. पर्यावरण अध्ययन श्री रतन जोशी, नई दिल्ली।
3. व्याख्याता शिक्षा विभाग, मैट्स विश्वविद्यालय गुल्लू (आरंग)
स्ट्रेटोस्फियर में ओजोन परत एख सुरक्षा-कवच के रूप में कार्य करती है और पृथ्वी को हानिकारक पराबैंगनी विकिरण से बचाती है। स्ट्रेटोस्फियर में ओजोन एक हानिकारक प्रदूषक की तरह काम करती है। ट्रोपोस्फियर (भीतरी सतह) में इसकी मात्रा जरा भी अधिक होने पर यह मनुष्य के फेफड़ों एवं ऊतकों को हानि पहुंचाती है एवं पौधों पर भी दुष्प्रभाव डालती है।
वायुमंडल में ओजोन की मात्रा प्राकृतिक रूप से बदलती रहती है। यह मौसम वायु-प्रवाह तथा अन्य कारकों पर निर्भर है। करोड़ों वर्षों से प्रकृति ने इसका एक स्थायी संतुलन सीमित कर रखा है। आज कुछ मानवीय क्रियाकलाप ओजोन परत को क्षति पहुंचाकर, वायुंडल की ऊपरी सतह में इसकी मात्रा कम रहे हैं। यही कमी ओजोन-क्षरण, ओजोन-विहीनता कहलाती है और जो रसायन इसे उत्पन्न करने के कारक हैं, वे ओजोन-क्षरक पदार्थ कहलाते हैं। ओजोन परत में छिद्रों का निर्माण, पराबैंगनी विकिरण को आसानी से पृथ्वी के वायुमंडल में आने का मार्ग प्रदान कर देता है। इसका मानवीय स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम करके कैंसर एवं नेत्रों पर कुप्रभाव डालता है।
ओजोन समस्या का ज्ञान
1980 के आस-पास अंटार्कटिक में कार्य करने वाले कुछ ब्रिटिश वैज्ञानिक अंटार्कटिक के ऊपर वायुमंडल ओजोन माप रहे थे यहां उन्हें जो दिखा वे उससे जरा भी खुशगवार नहीं हुए। उन्होंने पाया कि हर सितंबर-अक्टूबर में यहां के ऊपर ओजोन परत में काफी रिक्तता आ जाती है और तब तक प्रत्येक दक्षिणी बसंत में अंटार्कटिक के 15-24 कि.मी. ऊपर स्ट्रेटोस्फियर में 50 से 95 प्रतिशत ओजोन नष्ट हो जाती है। इससे ओजोन परत में कुछ रिक्त स्थान बन जाते हैं, जिन्हें अंटार्कटिक ओजोन छिद्र कहा गया।
अंटार्कटिक विशिष्ट जलवायु स्थितियों के कारण ओजोन छिद्रता का प्रमुख केंद्र है और यही कारण है कि ओजोन-क्षरण का प्रभाव पूरे विश्व पर पड़ रहा है, लेकिन कुछ हिस्से दूसरों की अपेक्षा अधिक प्रभावित होंगे, जिनमें दक्षिणी गोलार्द्ध के अधिक भूखंड मसलन-ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिणी अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका के कुछ हिस्से जहां की ओजोन परत में छिद्र है, अन्य देशों की अपेक्षा अधिक खतरे में है।
ओजोन छिद्र चिंता का कारण क्यों?
ओजोन परत हानिकारक पराबैंगनी विकिरण को पृथ्वी पर पहुंचने से पूर्व ही अवशोषित कर लेती है। ओजोन छिद्रों में इसकी मात्रा कम होने के कारण हानिकारक पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर पहुंचने लगेंगी। इसकी अधिक मात्रा का मानव-जीवन, जंतु-जगत वनस्पति-जगत तथा द्रव्यों पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
ओजोन-क्षरण के प्रभाव
मनुष्य तथा जीव-जंतु – यह त्वचा-कैंसर की दर बढ़ाकर त्वचा को रूखा, झुर्रियों भरा और असमय बूढ़ा भी कर सकता है। यह मनुष्य तथा जंतुओं में नेत्र-विकार विशेष कर मोतियाबिंद को बढ़ा सकती है। यह मनुष्य तथा जंतुओं की रोगों की लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता को कम कर सकता है।
वनस्पतियां-पराबैंगनी विकिरण वृद्धि पत्तियों का आकार छोटा कर सकती है अंकुरण का समय बढ़ा सकती हैं। यह मक्का, चावल, सोयाबीन, मटर गेहूं, जैसी पसलों से प्राप्त अनाज की मात्रा कम कर सकती है।
खाद्य-शृंखला- पराबैंगनी किरणों के समुद्र सतह के भीतर तक प्रवेश कर जाने से सूक्ष्म जलीय पौधे (फाइटोप्लैकटॉन्स) की वृद्धि धीमी हो सकती है। ये छोटे तैरने वाले उत्पादक समुद्र तथा गीली भूमि की खाद्य-शृंखलाओं की प्रथम कड़ी हैं, साथ ही ये वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को दूर करने में भी योगदान देते हैं। इससे स्थलीय खाद्य-शृंखला भी प्रभावित होगी।
द्रव्य - बढ़ा हुआ पराबैंगनी विकिरण पेंट, कपड़ों को हानि पहुंचाएगा, उनके रंग उड़ जाएंगे। प्लास्टिक का फर्नीचर, पाइप तेजी से खराब होंगे।
ओजोन-क्षरक पदार्थ
ये सभी नामव-निर्मित हैं-
सी.एफ.सी. क्लोरोफ्लोरोकार्बन, क्लोरीन, फ्लोरीन एवं ऑक्सीजन से बनी गैसें या द्रव पदार्थ हैं। ये मानव-निर्मित हैं, जो रेफ्रिजरेटर तथा वातानुकूलित यंत्रों में शीतकारक रूप में प्रयोग होते हैं। साथ ही इसका प्रयोग कम्प्यूटर, फोन में प्रयुक्त इलेक्ट्रॉनिक सर्किट बोर्ड्स को साफ करने में भी होता है। गद्दों के कुशन, फोम बनाने, स्टायरोफोम के रूप में एवं पैकिंग सामग्री में भी इसका प्रयोग होता है।
हैलोन्स – ये भी एक सी.एफ.सी. हैं, किंतु यह क्लोरीन के स्थान पर ब्रोमीन का परमाणु होता है। ये ओजोन परत के लिए सी.एफ.सी. से ज्यादा खतरनाक है। यह अग्निशामक तत्वों के रूप में प्रयोग होते हैं। ये ब्रोमिन, परमाणु क्लोरीन की तुलना में सौ गुना अधिक ओजोन अणु नष्ट करते हैं।
कार्बन टेट्राक्लोराइड- यह सफाई करने में प्रयुक्त होने वाले विलयों में पाया जाता है। 160 से अधिक उपभोक्ता उत्पादों में यह उत्प्रेरक के रूप में प्रयुक्त होता है। यह भी ओजोन परत को हानि पहुंचाता है।
वायुमंडल में ओजोन की मात्रा प्राकृतिक रूप से बदलती रहती है। यह मौसम वायु-प्रवाह तथा अन्य कारकों पर निर्भर है। करोड़ों वर्षों से प्रकृति ने इसका एक स्थायी संतुलन सीमित कर रखा है। आज कुछ मानवीय क्रियाकलाप ओजोन परत को क्षति पहुंचाकर, वायुंडल की ऊपरी सतह में इसकी मात्रा कम रहे हैं। यही कमी ओजोन-क्षरण, ओजोन-विहीनता कहलाती है और जो रसायन इसे उत्पन्न करने के कारक हैं, वे ओजोन-क्षरक पदार्थ कहलाते हैं।
ओजोन कैसे नष्ट होती है?
1. बाहरी वायुमंडल की पराबैंगनी किरणें सी.एफ.सी. से क्लोरीन परमाणु को अलग कर देती हैं।
2. मुक्त क्लोरीन परमाणु ओजोन के अणु पर आक्रमण करता है और इसे तोड़ देता है। इसके फलस्वरूप ऑक्सीजन अणु तथा क्लोरीन मोनोऑक्साइड बनती है-
C1+O3=C1o+O3
3. वायुमंडल का एक मुक्त ऑक्सीजन परमाणु क्लोरीन मोनोऑक्साइड पर आक्रमण करता है तथा एक मुक्त क्लोरीन परमाणु और एक ऑक्सीजन अणु का निर्माण करता है।
C1+O=C1+O2
4. क्लोरीन इस क्रिया को 100 वर्षों तक दोहराने के लिए मुक्त है।
ओजोन समस्या के समाधान के प्रयास
भारत ओजोन समस्या के प्रति चिंतित है। उसने सन् 1992 में मांट्रियल मसौदे पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। ओजोन को क्षति पहुंचाने वाले कारकों को दूर करने के लिए क्षारकों के व्यापार पर प्रतिबंध, आयात-निरयात की लाइसेंसिंग तथा उत्पादन सुविधाओ में विकास पर रोक आदि प्रमुख हैं।
प्रकृति द्वारा प्रदत्त इस सुरक्षा-कवच में और अधिक क्षति को रोकने में हम भी सहायक हो सकते हैं-
1. उपभोक्ता के रूप में यह जानकरी लें कि जो उत्पाद खरीद रहे हैं, उनमें सी.एफ.सी. है या नहीं। जहां विकल्प हो वहां ओजोन मित्र उत्पादन यानी सी.एफ.सी. रहित उत्पाद ही लें।
2. वातानुकूलित संयंत्रों तथा रेफ्रिजरेटर का प्रयोग सावधानी से करें, ताकि उनकी मरम्मत कम-से-कम करनी पड़े। सी.एफ.सी. वायुमंडल में मुक्त होने की बजाय पुनः चक्रित हो।
3. पारंपरिक रूई के गद्दों एवं तकियों का प्रयोग करें।
4. स्टायरोफाम के बर्तनों की जगह पारंपरि मिट्टी के कुल्हड़ों, पत्तलों का प्रयोग करें या फिर धातु और कांच के बर्तनों का।
5. अपने-अपने क्षेत्रों में ओजोन परत क्षरण जागरुकता अभियान चलाएं।
संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा ने 16 सितंबर को ओजोन परत संरक्षण दिवस के रूप में स्वीकार किया है। 1987 में इसी दिन ओजोन क्षरण कारक पदार्थों के निर्माण और खपत में कमी संबंधी मांट्रियल सहमति पर विभिन्न देशों ने (कनाडा) मांट्रियल में हस्ताक्षर किए थे। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा गठित समिति ने सी.एफ.सी. की चरणबद्ध कमी करने के लिए समझौते का मसौदा तैयार किया है, जिसे मांट्रियल प्रोटोकाल कहा जाता है। यह 1987 से प्रभावी है। अब तक लगभग 150 देशों के हस्ताक्षर इस प हो चुके हैं और इसके नियमों को स्वीकारा जा चुका है।
संदर्भ
1. पर्यावरणीय अध्ययन, 2000-पर्यावरण शिक्षक केंद्र सेंटर फॉर एन्वायरमेंट एजुकेशन सी.ई.ई.पर्यावरण एवं वन मंत्रालय।
2. पर्यावरण अध्ययन श्री रतन जोशी, नई दिल्ली।
3. व्याख्याता शिक्षा विभाग, मैट्स विश्वविद्यालय गुल्लू (आरंग)
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Post By: Shivendra