जंगल के रास्ते से आने वाले पानी से तालाब हमेशा लबालब रहता था। जंगल के रास्ते से आने वाले पानी में जड़ी-बूटियों के रस का सम्मिश्रण होने से सरोवर का पानी अत्यन्त गुणकारी था। वैद्य तालाब के चारों ओर के कुओं के पानी का इस्तेमाल अलग-अलग दवाएँ बनाने के लिये करते थे। रामाणी कभी सूखा भी नहीं। दिल्ली पुलिस में कार्यरत यशवंत बताते हैं कि एक बार तालाब की छँटाई के समय पूरा पानी खत्म होने को था। ग्रामीण चर्चा करने लगे कि इस बार तो रामाणी भी सूखा ही रहेगा। एक बुजुर्ग ने इतना ही कहा था, इंद्रदेवता इतने तगड़े बरसे कि रामाणी भर गया। गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है, संगम करहिं तलाब-तलाईं। तालाब, सर, सरोवर, जोहड़, ताल, तलैया समाज को जोड़ते हैं। जब ये टूटते हैं तो समाज टूटता है। जब ये सूखते हैं तो समाज सूखता है।
तालाबों के प्रति बेरी के लोगों की क्रूरता से भी यही लगता है कि अब बेरी का समाज भी टूट रहा है, सूख रहा है। लोगों में आपसी विवाद बढ़े हैं, रिश्तों और सामाजिक भाईचारे में शुष्कता आई है। चुल्याण पाना के ऐतिहासिक रामाणी सरोवर की हालत जब देखने गया तो इसका अहसास हुआ। चुल्याण पाना (मोहल्ला) के एक व्यक्ति ने हमें तालाब के बारे में बताने के लिये केवल इसलिये मना कर दिया कि हमने उसी मोहल्ले के दूसरे व्यक्ति से पूछ लिया। अधिकांश लोग बार-बार के आग्रह के बावजूद तालाबों पर बात करने के लिये तैयार नहीं होते। तालाब के अन्दर तक बने घाट पर जाने पर केवल रोने का मन करता है।
रामाणी सरोवर का वास्तुशिल्प मर्यादा पुरुषोत्तम राम के धनुष की तरह है। कहते हैं कि इसके इस तरह से निर्माण के बाद ही इसका नाम रामाणी पड़ा। हरियाणा के तालाबों पर गम्भीर अध्ययन और शोध करने वाले रणबीर सिंह ने लिखा है, संयोग से यह सरोवर धनुष के आकार का है और सरोवर का निर्माण दुजाना गाँव की ओर हुआ है इसलिये पूर्वजों ने इसका नाम रामाणी रख दिया।
पूर्व से शुरू होकर दक्षिणावर्त होती हुई इसकी पाल पश्चिम की ओर घूम गई। गाँवों की ओर का तट प्रत्यंचा जैसा लगता है। रामाणी की रमणीकता गाँव की लड़कियों को कितना प्रभावित करती थी, इसकी एक झलक इस गीत में मिलती है, ओ बाब्बू कीत्तै ब्याह दे, पाऊँगी रामाणी की पाल पै, यानी हे पिता मेरी शादी कहीं भी कर देना, लेकिन मैं लौटकर रामाणी की पाल पर आ जाऊँगी। अफसोस, यही अब रामाणी चारों ओर से घेराबंदी का शिकार हो चुका है। यहाँ तक कि जिस पुलिया के रास्ते रामाणी में पानी आता था, उसे ब्लॉक कर उसके ऊपर प्लॉट काट दिया गया है।
इस रास्ते और आस-पास के जंगल के रास्ते से आने वाले पानी से तालाब हमेशा लबालब रहता था। जंगल के रास्ते से आने वाले पानी में जड़ी-बूटियों के रस का सम्मिश्रण होने से सरोवर का पानी अत्यन्त गुणकारी था। वैद्य तालाब के चारों ओर के कुओं के पानी का इस्तेमाल अलग-अलग दवाएँ बनाने के लिये करते थे। रामाणी कभी सूखा भी नहीं। दिल्ली पुलिस में कार्यरत यशवंत बताते हैं कि एक बार तालाब की छँटाई के समय पूरा पानी खत्म होने को था। ग्रामीण चर्चा करने लगे कि इस बार तो रामाणी भी सूखा ही रहेगा। एक बुजुर्ग ने इतना ही कहा था, इंद्रदेवता इतने तगड़े बरसे कि रामाणी भर गया।
चुल्याण पाना के साक्षात ग्राम देवता रामाणी में अब मोहल्ले की गन्दगी, गन्दा पानी और मल आता है। रामाणी की जगह पाने (मोहल्ले) के लोगों के दिलों में कहीं नहीं हैं। लोग रामाणी पर बात नहीं करना चाहते। मनोविज्ञान के शिक्षक सुधीर काद्यान कहते हैं, जमाने के साथ सब बदल गया। एक जमाना था जब इसी रामाणी से बड़े-बड़े तैराक तैयार होते थे और बेरी में गोल्ड मेडल आते थे, लेकिन अब किसी को इसकी चिन्ता नहीं है। यह सरोवर सारे समाज का था, पूरे समाज की भावना इससे जुड़ी थी। बेरी के किसान, दूसरा कारोबार करने वाले लोग, साहूकार, दलित और यहाँ तक कि राजस्थान से यहाँ आकर नमक का कारोबार करने वाले बंजारों ने भी इसको समग्र वरुण देवता का रूप दिया। इसके चहुँओर 9 पक्के घाट थे।
सवा आठ एकड़ के तालाब क्षेत्र में चार एकड़ के इस तालाब के चारों ओर देवी-देवताओं के मन्दिर तो थे ही साथ ही 12 कुएँ भी। हर कुएँ का अपना अलग वास्तुशिल्प और घेरा है। हर चबूतरा 20-25 फुट का है। मनोहर सेठ आला, गुफावाला कुआँ, धौला कुआँ, टोडर आला, खूबीराम आला कुआँ हर कुएँ का अलग आकार था और हर एक की अपनी खूबी। इन सब पर पनघट की रौनक खूब लगती थी। महादेव मन्दिर के साथ बंजारे का कुआँ है।
इस कुएँ की खुदाई और निर्माण राजस्थान से आये बंजारों ने किया, लखौरी ईंटों और चूने से। हाथी आला कुआँ। यहाँ के लोग इसे गुलशन आले का कुआँ भी कहते हैं। यहाँ के बुजुर्ग गजनूप सिंह बताते हैं कि गुलशन आले कुएँ से दुजाना के नवाब के हाथी का बहुत लगाव था। वह इस कुएँ के पास से ही निकलकर सरोवर में मस्ती करता था। कुएँ के रास्ते हाथी के तालाब तक जाने के लिये विशेष व्यवस्था की थी। यहाँ गुफा के रास्ते से पानी आता था। अब सारे तालाब जाल से पूर दिये गए हैं। इन पर महिलाएँ गोबर के उपले बनाती हैं।
उधर, भिखारी के कुएँ पर आठ भौंण लगी थीं। यह कुआँ अब अपना स्वरूप खोने को है। हरियाणवी समाज में जाति की जड़े पहले से ही बहुत गहरी हैं। और लोग पानी के मामले में भी भेदभाव करते थे। ग्रामीण बताते हैं कि इस कुएँ के एक भाग का सवर्णों और दूसरे का दलितों को उपयोग करने का अधिकार था।
नरक जीते देवसर (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
क्रम | अध्याय |
1 | |
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3 | पहल्यां होया करते फोड़े-फुणसी खत्म, जै आज नहावैं त होज्यां करड़े बीमार |
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6 | |
7 | |
8 | |
9 | |
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11 | जिब जमीन की कीमत माँ-बाप तै घणी होगी तो किसे तालाब, किसे कुएँ |
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15 | |
16 | सबमर्सिबल के लिए मना किया तो बुढ़ापे म्ह रोटियां का खलल पड़ ज्यागो |
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20 | पाणी का के तोड़ा सै,पहल्लां मोटर बंद कर द्यूं, बिजली का बिल घणो आ ज्यागो |
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Post By: RuralWater