निर्माणाधीन टिहरी बांध में भूकंपीय खतरे और भ्रष्टाचार

निर्माणाधीन टिहरी बांध में भूकंपीय खतरे और भ्रष्टाचार
निर्माणाधीन टिहरी बांध में भूकंपीय खतरे और भ्रष्टाचार

टिहरी बाँध में जो समस्या है, उसके संबंध में सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। कितने ही खतरे वहाँ पर बांध बनाने में हैं। पूरा उत्तर प्रदेश और यह क्षेत्र भी जल-प्लावन में इससे जा सकता है, यदि भूकंप और भूचाल आए। रशियन एक्सपर्टस ने इसकी एक रिपोर्ट भी दी थी, परन्तु उसके ऊपर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।सुन्दर लाल बहुगुणा, देश में एक विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे कई दफे भूख हड़ताल पर बैठे। हमने देखा है कि उनकी भूख हड़ताल को तुड़वाने में, उनको जूस पिलवाते वक्त की हम लोगों ने पिछले प्रधानमंत्री देवगौड़ा साहब की तस्वीरें देखीं। साथ ही उस समय के गवर्नर मोतीलाल वोरा भी वहाँ गये थे। यही नहीं, मुझे याद है उनसे बातचीत करने के लिए दण्डवते साहब और मैं भी गए थे। प्रश्न केवल किसी एक व्यक्ति का नहीं है, प्रश्न इस बात का है कि जो वायदे सरकार ने किए हैं समय-समय पर, उनका पालन क्यों नहीं हो रहा है? जो वायदे किए हैं या उसका जो पक्ष है, वह इसी से प्रतिलक्षित होता है। पिछले दिनों, श्री दंडवत जी, जो अब प्लानिंग कमीशन के वाइस चेयरमैन हैं, ने एक भाषण में, जो-हिन्दुस्तान टाइम्स' में उपलब्ध है, जो कहा उसे मैं दोहराना नहीं चाहता।

मैं तीन-चार मुद्दों की तरफ सरकार का ध्यान दिलाना चाहता हूं।पहला यह कि यह सुरक्षा का प्रश्न है। उनका डिजाइन ऐसा है, जिसके संबंध में बहुत ही भ्रांतियाँ, भ्रम हैं, डर हैं कि क्या यह 8.5 की तीव्रता के भूकम्प के झटके को सह सकेगा? इसके संबंध में लोगों को बहुत ही डर है, इसके बारे में कोई उत्तर नहीं दिया गया। प्रश्न इस बात का है, कि यदि सुरक्षा का सवाल है, सेफ्टी का सवाल है, तो इसकी जाँच किसी स्वतंत्र ऐजन्सी के द्वारा क्यों नहीं कराई जा रही है? केवल यह कहकर कि रूड़की इंजीनियरिंग कॉलेज से हमने करवा ली है, काफी नहीं है। क्योंकि रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज तो उनका कन्सलटेंट ही है, जो वहाँ पर काम कर रहे हैं। वह किस प्रकार दूसरी तरह की अपनी रिपोर्ट दे सकते हैं? इसके बारे में अखबारों में काफी कुछ निकला हुआ है, पी. एस. सी. की रिपोर्ट और सी.ए.जी. की रिपोर्ट में भी इस संबंध में रशियन एक्सपर्टस के, ज्योलोजिस्ट की रिपोर्ट के आधार पर कहा गया है।

'मास्को में मैंने देखा कि मानवीय हठधर्मिता के कारण हमने कितनी गलतियाँ कीं, उदाहरण के लिए विशाल बाँधों वाली जलविद्युत परियोजनायें बनाकर हमने दूसरे स्थानों में भी अपूरणीय क्षति पहुँचाई है। सिंचाई के लिए हमने अरल सागर को सुखा दिया है। फिर सिंचाई द्वारा कीटनाशकों के बहाव से बड़े पैमाने पर अपनी भूमि, मछलियों और पानी को विषाक्त बना दिया।' 

- अंतर्राष्ट्रीय ग्रीन क्रास के अध्यक्ष, भूतपूर्व, सोवियत राष्ट्रपति गोर्वाचोव (टाइम्स ऑफ इण्डिया, नई दिल्ली, 15 मई 1997 से साभार)

महोदय,दूसरा ज़ो मुद्दा है, वह यह है कि वहाँ पर जो झील बनेगी, उससे क्या गंगा जल की गुणवत्ता, क्वालिटी कायम रहेगी? हम करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं इस बात के लिए कि हम उसको स्वच्छ रखेंगे। तो मैं आपका ध्यान इस बात की ओर दिलाना चाहता हूं कि लक्ष्मण झूला से भैरों-घाटी तक लोग गंगा के दर्शन नहीं कर पाएँगे, केवल या तो किसी झील के रूप में उसको देख पाएँगे या उसको बांध के नीचे देख पाएँगे। हम लोग जो गंगा के जल को, मैं समझता हूं, एक जीवंत रूप में जो उसके दर्शन करते हैं, वह नहीं कर पाएँगे। मैं आपका ध्यान दिलाना चाहता हूं, पंडित मदन मोहन मालवीय ने आज से 90 वर्ष पहले, जब बैराज बनने का सवाल आया था, तब इसका आन्दोलन फिर उठाया था और तब उसमें परिवर्तन किए गए थे। मैं इस संबंध में यह निवेदन करना चाहता हूं कि इसकी जो सक्षम एकमात्र संस्था है, वह है नीरी, जो सरकार के द्वारा स्थापित है, जो देखे कि उसका किस प्रकार का जल है, उसकी क्वालिटी किस प्रकार की होगी, तो उससे आप क्यों नहीं जाँच करवाते हैं? वह हमारा जो संस्थान है, उसको छोड़ किसी एक एक्सपर्ट को ला देते हैं और उनसे उसकी जाँच करवाई जाती है, मैं समझता हूं कि यह अनुचित है।

तीसरी बात जिसकी ओर मैं आपका ध्यान दिलाना चाहता हूं वह यह है कि इसके संबंध में एक रिपोर्ट, जिसका मैंने जिक्र किया, किसी और रूप में मैंने स्वयं भी दी थी और उसमें कॉस्ट बेनिफिट का प्रश्न उठाया गया था, जो सरकार के अपने आंकड़े थे उन्हीं के आधार पर और अब तो उसकी कीमत 20 गुणा हो गई है तो क्या यह जरूरी नहीं कि पुनः इसका कॉस्ट बेनिफिट ऐनेलेसिस (लागत लाभ विश्लेषण) कराया जाए?

चौथा निवेदन जो मैं करना चाहता हूं वह यह है कि कैचमेंट एरिया के लोगों को इससे पेयजल व सिंचाई की समस्या का सामना करना पड़ेगा क्योंकि वहां पर अन्य स्रोत नहीं है और जो स्रोत हैं वे सूख जायेंगे और इससे आसपास के गाँव वालों को बहुत कठिनाई होगी। एक और निवेदन करना चाहता हूं जिसमें कुछ लोगों की दिलचस्पी होगी। मैं तो वेजिटेरियन होने के नाते कोई खास दिलचस्पी उसमें रखता नहीं हूं लेकिन फिर भी वह लाभ की बात है और वह यह है कि बहुत साल पहले, 1808 में एशियाटिक सोसाइटी के जनरल ने यह लिखा था कि वहाँ पर किस प्रकार की मछलियाँ होती हैं। एक महाशीर मछली के बारे में, जो प्रायः समाप्त हो गई हैं, यह कहा गया है कि यह मछली गर्मियों में मैदानों से आकर पहाड़ों में अंडे देती हैं। यह एशियाटिक सोसाइटी के जनरल ने 1808 में लिखा था।

 देव प्रयाग में 5 से 6 फुट की मछलियाँ होती थीं जिनको पिलग्रिम्स रोटियाँ खिलाते थे और उसके कारण गंगा जल की पवित्रता भी रहती थी  अब इसमें भी कठिनाई पैदा होगी। कोलेरेडा, कोलम्बिया नदियाँ, जिनको कि बांधा गया है, वहां पर 96 प्रतिशत से अधिक मछलियां समाप्त हो गई हैं। अतः गंगा जल को शुद्ध रखने के लिए भी मैं समझता हूं कि यह ध्यान रखना बहुत आवश्यक है।

अंतिम बात, जिसकी ओर मैं आपका ध्यान दिलाना चाहता हूं, वह यह है कि वहाँ पर भ्रष्टाचार के मामले, जिस तरह से कंस्ट्रक्शन चल रहा है, बढ़ रहे हैं। इससे वहाँ की जनता तथा महिलाओं में बड़ा क्षोभ व रोष है। किस प्रकार से कांट्रेक्टर वहाँ पर अत्याचार करता है, किस प्रकार से शराब-खोरी की जा रही है इत्यादि जो बहुत से उसके पहलू हैं, उनसे महिलाओं में एक रोष है। वह यहाँ पर भी व्यक्त हो चुका है। उसकी ओर मैं आपका ध्यान दिलाना चाहता हूं। मैं समझता हूं कि मार्च, 1992 में वहाँ पर जिस तरह से काफी तेज जन-आन्दोलन हुआ था, फिर उसी तरह के आंदोलन की वहाँ पर संभावना है और सरकार को उससे बचना चाहिए। मैं समझता हूं कि जो भ्रष्टाचार हो रहा है और उसमें जो भी अधिकारी, कांट्रेक्टर या नेतागण लिप्त हों, चाहे वे किसी भी दल या पार्टी के हों, उस बारे में जाँच होनी चाहिए। जो पैसा हम लगा रहे हैं आखिर उसका क्यों कोई ठीक उपयोग नहीं हो रहा और ये भ्रष्टाचारी उसको खा रहे हैं।जबकि डैम का भविष्य भी अनिश्चित है और इससे वहाँ के लोगों का भविष्य भी अनिश्चित होता जा रहा है।

इसके साथ ही साथ मैं यह भी कहना चाहता हूं कि उस क्षेत्र के लोगों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। वहाँ पर एक उत्तरांचल या उत्तराखंड बनाया जाए, उसके लिए मुलायम सिंह यादव जी की सरकार भी उत्तर प्रदेश में प्रस्ताव पास कर चुकी है, उसके पहले कल्याण जी की सरकार भी वह प्रस्ताव पास कर चुकी है और अब फिर जो उ. प्र. की सरकार है, उसने भी इस संबंध में प्रस्ताव पास किया है। विधान सभा में सर्वसम्मति से, हमको यहाँ पर कहा जाता रहा है, कि जब वहाँ से प्रस्ताव आ जाएगा तो हम उस बारे में बात करेंगे। मगर अभी तक सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी है और उत्तरांचल की समस्या पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। टिहरी बांध से उनको कष्ट पहुँचाया जा रहा है और वहाँ की जनता में इसी वजह से असंतोष बढ़ता जा रहा है और साथ ही साथ जो उनकी उत्तरांचल की समस्या है, उसकी तरफ भी कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। मैं सरकार से अनुरोध करता हूं कि इन बातों पर जल्दी से जल्दी ध्यान दिया जाए।

गंगा-संदेश,20 मई, 1997

त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी(संसद सदस्य, राज्यसभा) 
(15 मई, 1997 को राज्य सभा में दिया गया भाषण)

स्रोत - टिहरी बांध विरोधी संघर्ष समिति, टिहरी, पिन-249001 द्वारा प्रसारित

Path Alias

/articles/nirmadhin-tehri-bandh-mein-bhukampiya-khatre-aur-bhrastachar

Post By: Shivendra
×