मध्य प्रदेश सरकार के नर्मदा नदी में रेत खनन पर पूरी तरह से प्रतिबंध तथा सभी नदियों में मशीन से रेत निकाले जाने के ऐलान का बड़ा असर अब नर्मदा किनारे देखने को मिल रहा है। रेत के अवैध उत्खनन के लिये यहाँ बीते कई सालों से बड़ी-बड़ी पोकलेन मशीनें, जेसीबी और डंपर-हाइवा नर्मदा नदी का सीना छलनी कर रहे थे। मशीनों का शोर थमने तथा इलाके में मौतों और दुर्घटनाओं का पर्याय बन चुके जानलेवा डंपर-हाइवा के चक्के थमे तो नर्मदा नदी ने भी राहत की सांस ली और आस-पास के गाँवों में लोगों को भी सुकून एहसास हुआ।
इंदौर से करीब डेढ़ सौ किमी नेमावर के आगे नर्मदा नदी के किनारे बसे गाँव तुरनाल और दैयत के बीच इन दिनों शांति लौट आई है। बीते तीन दिनों से यहाँ भीमकाय मशीनों और सैकड़ों लोगों की चिल्लपें सुनाई नहीं दे रही है। नदी के भीतर करीब 200 मीटर तक डंपर-हाइवा के आने जाने के बनाए रास्ते भी अब नर्मदा के आंचल में सुनसान हैं। ग्रामीणों को यकीन नहीं हो रहा है कि यहाँ रेत खनन बंद हो गया है और दबंग रेत माफिया अपना बोरिया-बिस्तर लपेटकर अपनी भारी–भरकम मशीनों के साथ यहाँ से जा चुके हैं। रेत खनन तथा ढुलाई के काम में लगे तीन हजार से ज़्यादा परिवार भी अब अपनी झोपड़ियाँ उजाड़कर रोजी–रोटी का नया आसरा ढूँढने लौट चुके हैं। मशीनों की घरघराहट थम जाने से ग्रामीणों ने भी सुकून महसूस किया है।
यह सब संभव हुआ है मध्यप्रदेश सरकार के नदियों के हित में लिये गए एक बड़े निर्णय से। सरकार ने 22 मई को कैबिनेट की बैठक में नर्मदा से रेत खनन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा कर सख्ती से इस पर अमल करने की घोषणा होते ही दबंग रेत माफिया के लोगों ने नर्मदा तट को आनन-फानन में छोड़ दिया।
पर्यावरणविद लंबे समय से नर्मदा की बीच धार से बेतहाशा रेत खनन पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते रहे थे। इसे लेकर विभिन्न न्यायालयों में भी जनहित याचिकाएँ लगाई गई थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि अंधाधुंध तरीके से रेत निकाले जाने के कारण नर्मदा का नदी तंत्र बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। रेत माफिया राजनीतिक संरक्षण लेकर लाइसेंस क्षमता से अधिक अवैध रेत उत्खनन कर रहे थे। इन्होंने स्थानीय कुछ अधिकारीयों की सांठ-गाँठ से किनारों के बजाए नदी के बीच धार में अपनी मशीनें लगाकर मनमाना दोहन कर करोड़ों के वारे–न्यारे कर रहे थे। सरकार ने इन पर देर से ही सही लेकिन सख्ती से नकेल कसी है। नर्मदा से लगातार रेत खनन से इसके पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा था, वहीं इसका पानी भी प्रदूषित हो रहा था। कुछ जगह तो नर्मदा गंदे पानी के पोखरों में बदलने लगी थी। इससे जलीय जन्तुओं और पानी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा भी कम हो रही थी।
इंदौर-बैतूल हाईवे 59ए पर जैसे-जैसे हम नेमावर की तरफ बढ़ रहे थे, हमेशा इस सड़क पर बेतहाशा दौड़ते डंपर-हाइवा वाहन हमें कहीं नजर नहीं आ रहे थे। इक्का-दुक्का खाली वाहन ज़रूर किसी ढाबे पर सुस्ताते भर दिखे। अमूमन हर दिन इस सड़क पर करीब साढे सात सौ से ज़्यादा रेत से ठसा-ठस भरे ओवरलोड वाहन निकलना आम बात थी। अलसुबह से देर रात तक ये यहाँ सड़कों को रौंदते रहते थे। इनसे कई सड़क हादसे भी हो चुके हैं और इनमें दर्जनों लोगों की मौतें तथा सैकड़ों लोग जिंदगी भर के लिये अपाहिज भी हो चुके हैं। नेमावर से तुरनाल के रास्ते जहाँ पहले धूल के गुबार के साथ सिंगल रोड पर गाड़ी ड्राइव करना भी मुश्किल होता था, वहाँ अब ग्रामीणों की सामान्य आवाजाही ही बची है। नदी किनारे परिवार सहित रहने वाले तीन हजार से ज़्यादा मजदूरों की झोपड़ियाँ उनके ठंडे और उदास चूल्हों के साथ अब वीरान पड़ी हैं।
कई बरसों से देवास जिले के नेमावर और उसके आस-पास करीब 25 किमी नर्मदा तट क्षेत्र में हो रहा रेत उत्खनन आखिरकार बंद हो गया है। यहाँ बड़ी संख्या में रेत खदानें हैं। इनमें से कुछ ही वैध थी और अधिकांश अवैध थी। गाजनपुर, नेमावर कुंडगाँव सहित तुरनाल, दैयत और चिचली तक की रेत खदाने बंद हो चुकी हैं। नर्मदा के भीतर लंबी दूरी तक लीड बनाकर पानी रोक दिया था वहीं वाहनों के लिये रास्ता बनाकर नर्मदा नदी का स्वरूप बिगाड़ दिया था। हालाँकि रेत निकालने के लिये नदी के बीच करीब 200 मीटर तक बने अस्थाई रास्ते अब भी इसकी बदहाली की कहानी बयान कर रहे हैं। यहाँ अब न तो डंपर–हाइवा दिखाई दे रहे हैं और न ही आदमकद मशीनें।
नेमावर के पत्रकार संतोष शर्मा बताते हैं कि नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान जब पूरे प्रशासन का ध्यान नर्मदा की और था तथा दलाई लामा और बड़े राजनेता खुद तुरनाल पहुँचे थे तो कुछ दिनों के लिये रेत माफियाओं ने भी चुप्पी साध ली थी। लेकिन यात्रा निकलने के तुरंत बाद से ही यह गोरखधंधा फिर शुरू हो गया था।
ग्रामीण बताते हैं कि यहाँ अकेले तुरनाल में ही करीब दर्जनभर से ज़्यादा मशीनें रात-दिन नदी के तल से रेत उगलती रहती थी। इनके शोर तथा मजदूरों की चिल्लपों से नदी का यह शांत क्षेत्र अशांत रहा करता था। ख़ास बात यह है कि उन्हें इसकी भनक लग गई थी, इसलिए आदेश आने से पहले ही क्षेत्र से रेत खनन से जुड़े दबंग और उनके सिपहसालार गायब होना शुरू हो गए थे। चार दिन पहले से ही मशीनें बंद होकर यहाँ से जाने लगी थी।
रेत खनन बंद होने के बाद महज तीन दिनों में ही ग्रामीण खासी राहत महसूस कर रहे हैं। कई गाँवों में ग्रामीण औरतें कई सालों बाद नर्मदा के तटों पर स्नान करने पहुँची और पूजा अर्चना की। इससे पहले नदी पर भारी चहल-पहल होने से वे कई सालों से नदी तक आ ही नहीं पा रही थी। घाटों पर मशीनों और मजदूरों का बना रहता था। यहाँ तीन हजार मजदूर, छह से सात पोकलेन मशीनें और करीब साढ़े चार सौ डंपर-हाइवा खड़े रहते थे। मशीनों के शोर-शराबे की जगह अब नदी का प्राकृतिक वातावरण फिर से लौटने लगा है। पक्षी-पखेरू कलरव कर रहे हैं तो ग्रामीण सुबह-सुबह नर्मदाष्टक के मंत्र गुनगुनाते हैं।
कुंडगाँव के दुर्गेश शर्मा ने बताया कि कई दशकों से चल रहे खनन की वजह से नर्मदा के साथ गाँव का वातावरण भी दूषित हो रहा था। तुरनाल के कमल पचौरी तथा दैयत के राजेश पटेल और रामकृष्ण पवार कहते हैं कि रात दिन डम्परों और मशीनों के चलने और मजदूरों के चिल्लाने की आवाजों के बंद हो जाने से इन गाँवों का सुकून भी लौट आया है। अब धूल के गुबार भी नहीं उड़ रहे हैं। बच्चों के बाहर खेलने पर अब हादसों की आशंका नहीं रहती। पूर्व कांग्रेस विधायक कैलाश कुंडल ने कहा कि देर से ही सही लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई है। उन्होंने अंधाधुंध रेत खनन मामले में बीते दिनों विरोध प्रदर्शन भी किया था।
उधर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा है कि अब सरकार खुद खनिज निगम से रेत खनन कराएगा तथा आपूर्ति करेगी। उन्होंने बताया कि नर्मदा किनारे के गाँवों के महिला और युवा स्वयं सहायता समूहों को नर्मदा से रेत निकालने का काम दिया जाएगा। ठेकेदारों का वर्चस्व खत्म करेंगे। रेत की कीमत सरकार तय करेगी और मुनाफा मजदूरों को बोनस के रूप में बाँटा जाएगा। इससे रेत सस्ती होगी तथा पर्यावरण विशेषज्ञों की राय के मुताबिक रेत खनन होने से नदी का प्राकृतिक स्वरूप और तंत्र भी नहीं बिगड़ेगा। कहाँ से कितनी रेत निकाली जाए, इसकी सीमा होनी चाहिए।
उन्होंने बताया कि नदी की छाती को छलनी कर खनन करेंगे तो नदी नहीं बचेगी। इसके लिये विशेषज्ञों की कमेटी बनाई है, जो बताएगी कि कहाँ से कितनी रेत निकाली जाए। नर्मदा के अलावा अन्य नदियों से भी सीमित मात्रा में ही रेत निकाली जाएगी। मशीनों का अब कहीं भी किसी भी सूरत में इस्तेमाल नहीं होगा। यह निर्णय एक झटके में नहीं लिया गया है। नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान लगातार इसे सोचते रहे हैं कि कड़ा निर्णय लेना होगा। ठेकेदार हमेशा अपनी हद से बाहर जाकर खनन करता ही है, हम इस पद्धति को ही बदल रहे हैं। सरकार ने हाईकोर्ट में केविएट लगाकर कहा है कि इस मामले में किसी भी याचिका पर सरकार का पक्ष सुने बिना स्वीकार नहीं किया जाए। कई अन्य राज्यों में भी सरकारें रेत खनन और बिक्री कर रही हैं।
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