किसी भी नदी को बचाने के लिये उसके तटीय क्षेत्र में हरियाली बढ़ाना जरूरी है। इससे तटीय मृदा का क्षरण तो रुकता ही है। इसे नदी तंत्र को भी मदद मिलती है। इसके साथ पर्यावरण के हित में जैविक खेती भी बड़ा कदम साबित हो सकता है। इससे बारिश के पानी के साथ नदी में बहकर आने वाले रासायनिक खाद, कीटनाशक और खरपतवार नाशकों से पानी को प्रदूषण से बचाया जा सकता है। इसके लिये इलाके के किसानों को जोड़ना पड़ेगा।
मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी का सर्वाधिक हिस्सा आता है और प्रदेश की जीवनरेखा मानी जाती है लेकिन बीते कुछ सालों में अत्यधिक दोहन और प्रदूषित होने से कई जगह नदी का पानी दूषित हो गया वहीं पानी भी कम होने लगा है।
इसी चिन्ता के मद्देनजर मध्य प्रदेश की सरकार ने 11 दिसम्बर से 144 दिन तक चलने वाली नर्मदा परिक्रमा पद यात्रा के एक बड़े अभियान की शुरुआत की है। इसे नमामि देवी नर्मदे का नाम दिया गया है। इसके जरिए किनारों पर रहने वाले लोगों को इससे जोड़ेंगे तथा नदी को साफ रखने के लिये जागरूक करेंगे। लेकिन बड़ा सवाल यह भी है कि क्या इस तरह के आयोजन नर्मदा को बचाए रख सकेंगे।
बीते साल ऐसे ही सिंहस्थ से पहले जोर-शोर से क्षिप्रा नदी को बचाने की मुहिम भी शुरू की गई थी लेकिन सिंहस्थ खत्म होते ही इस सरकारी मुहिम ने भी दम तोड़ दिया। सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या नर्मदा यात्रा की मुहिम भी तो ऐसे ही नहीं थम जाएगी। गंगा के बाद उत्तर भारत में नर्मदा नदी को सबसे पवित्र और सदानीरा माना जाता रहा है।
मध्य प्रदेश के लिये यह नदी जीवनदायिनी ही नहीं बल्कि पूरी सभ्यता और यहाँ की संस्कृति को समेटे हुए माँ की तरह है। इसके किनारे हजारों लोग हर दिन इसकी पूजा सदियों से करते आये हैं, लेकिन कुछ लोगों के लालच ने इस नदी को भी गंगा की ही तरह प्रदूषित करने और इसके पानी को जरूरत से ज्यादा उलीचने की गलतियाँ की हैं, इससे नर्मदा का सदानीरा स्वरूप अब उस तरह नजर नहीं आता है।
सदियों से सबकी प्यास बुझाती और किनारे के खेतों को हरीतिमा से समृद्ध करती नदी अपनी राह बहती रही लेकिन बीते कुछ सालों में तथाकथित विकास और बड़े बाँधों के मॉडल सहित जल संसाधनों के प्रति जन सामान्य की उपेक्षा भाव ने कई जगह तो नर्मदा के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगा दिये हैं।
यह भी फिलहाल तो सुखद ही है कि सूबे की सरकार ने इसे गम्भीरता से लेते हुए स्थिति में सुधार के लिये कोशिशें तेज कर दी हैं। इस साल नर्मदा जयन्ती पर सरकार ने नर्मदा शुद्धिकरण अभियान शुरू कर 2018 तक नर्मदा किनारे प्रदेश के सभी बड़े शहरों और कस्बों में जल शुद्धिकरण संयंत्र लगाने तथा लोगों को नदी को प्रदूषित नहीं करने के लिये जन जागरुकता को बढ़ावा देने के लिये कोशिशें की जा रही हैं। इस क्रम में सबसे पहले होशंगाबाद को 163 करोड़ रुपए देने की घोषणा की गई है। खुद सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान इसे लेकर खासे उत्साहित हैं।
वे कहते हैं, 'नर्मदा इन दिनों संकट में है। जंगल कम होने से नदी की धार कम हो गई है। माँ नर्मदा ने हमें पानी, बिजली, फसलें, फल-फूल आदि सब कुछ दिया है। लेकिन हमने उसे प्रदूषित कर विभिन्न बीमारियों को न्यौता दिया है, जिससे जीवन का अस्तित्व खतरे में है। आज जरूरत है सम्भलने की और इस अपराध का प्रायश्चित करने की, यह प्रायश्चित सघन पौधरोपण, जैविक खेती, स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण से पूरा होगा। नर्मदा उद्गम की धार्मिक नगरी अमरकंटक को सबसे सुन्दर विकसित किया जाएगा। नर्मदा में गन्दे पानी के प्रवाह को रोकने के लिये साढ़े पन्द्रह करोड़ रुपए से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनेगा। नर्मदा नदी के तटों पर बसे गरीबों को पक्के मकान बनाकर दिये जाएँगे। 3344 किमी की यात्रा में दोनों तटों पर एक-एक किमी तक फलदार व छायादार पौधों का रोपण, स्वच्छता, जैविक खेती, नशामुक्ति और पर्यावरण संरक्षण के लिये लोगों को जागरूक किया जाएगा। यह समाज और सरकार की सामूहिक संकल्प का प्रयास होगा। नर्मदा तट के गाँवों में स्वच्छ शौचालय निर्माण और नगरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की व्यवस्था, घाटों पट पूजन कुंड, मुक्तिधाम और महिलाओं के लिये चेंजरूम का कार्य करवाया जाएगा।'
अब 11 दिसम्बर 16 से 11 मई 17, 144 दिनों तक प्रदेश के 16 जिलों के 51 विकासखण्डों के करीब 1100 से ज्यादा गाँवों से गुजरती हुई पदयात्रा नर्मदा के उद्गम अमरकंटक से प्रारम्भ हो चुकी है। करीब ढाई हजार किमी का सफर तय करते हुए पुनः अमरकंटक के उत्तरी किनारे पर इसका समापन होगा।
इस दौरान एक दिन में यात्रा 20 से 25 किमी पदयात्रा करते हुए आगे बढ़ेगी। यात्रा जहाँ पहुँचेगी, उस गाँव के लोग सीमा पर यात्रा का स्वागत कर नर्मदा का ध्वज ग्रहण करेंगे और यात्रा के जाने पर सीमा तक उन्हें विदा करेंगे। इसमें नदी के संरक्षण के लिये जन-जागरुकता और गतिविधियाँ होंगी।
यात्रा का सर्वाधिक जोर लोगों को जागरूक बनाने और नदी तंत्र की समझ विकसित करने पर होगी। गौरतलब है कि नदी को सबसे बड़ा खतरा बस्तियों के गन्दे पानी और खेतों में प्रयुक्त होने वाले रासायनिक खाद तथा कीटनाशकों के प्रभाव से है। यात्रा नदी को प्रदूषण से बचाने का जरिया बन सकेगी, यह तो फिलहाल नहीं कहा जा सकता। पर इसे बेहतर पहल के रूप में तो देखा ही जा सकता है।
किसी भी नदी को बचाने के लिये उसके तटीय क्षेत्र में हरियाली बढ़ाना जरूरी है। इससे तटीय मृदा का क्षरण तो रुकता ही है। इसे नदी तंत्र को भी मदद मिलती है। इसके साथ पर्यावरण के हित में जैविक खेती भी बड़ा कदम साबित हो सकता है। इससे बारिश के पानी के साथ नदी में बहकर आने वाले रासायनिक खाद, कीटनाशक और खरपतवार नाशकों से पानी को प्रदूषण से बचाया जा सकता है। इसके लिये इलाके के किसानों को जोड़ना पड़ेगा। इसके अलावा नदी के पानी संग्रहण को बढ़ाने के लिये छोटी जल संरचनाएँ तथा बरसाती पानी को रोकने और उसे नदी तक लाने की तकनीकों पर भी काम करना होगा। नदी तंत्र को प्रदूषित करने वाले कारकों की पहचान कर इनसे जल को बचाना होगा और सबसे बड़ी बात कि हमें नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करना पड़ेगा।
यात्रा में इन सब पर जोर दिया जाएगा। इसके लिये प्रशासनिक अधिकारियों के साथ पर्यावरण के विभिन्न मुद्दों पर काम करने वाले कई संगठनों तथा इलाके के जन प्रतिनिधियों और स्थानीय लोक कलाकारों को भी इससे जोड़ा गया है। यात्रा में नेताओं का स्वागत प्रतिबन्धित किया गया है। सिर्फ नर्मदा ध्वज का ही स्वागत होगा। यात्रा में पॉलीथीन और थर्मोकोल प्रतिबन्धित है। कुल्हड़ में चाय और पत्तल में भोजन दिया जा रहा है। हफ्ते में एक दिन खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इसमें शरीक होंगे।
इससे पहले ही राज्य सरकार नर्मदा को सहेजने के लिये कुछ कड़े निर्णय कर चुकी है। इसके मुताबिक अब नर्मदा किनारे दीपदान, मूर्ति और माला विसर्जन पर भी पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। इसके लिये किनारे पर पृथक से जल कुंड बनाए जाएँगे। इसी तरह शव बहाने पर भी रोक लगाई जा रही है। इसके लिये अब किनारों के पास मुक्तिधाम बनाए जा रहे हैं। नदी में शहरों और गाँवों का गन्दा पानी नहीं मिल सके, इसके लिये जल्द ही तकनीकी कदम उठाए जा रहे हैं।
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