नर्मदा के पानी से बचाएँगे एशिया के डेट्रायट को


पीथमपुर में भूजल बुरी तरह प्रदूषित होता जा रहा है। यहाँ कुछ औद्योगिक इकाइयों के घातक रासायनिक पदार्थों के उपयोग करने से तथा उनके अवक्षेप और जहरीले पानी को सीधे जमीन में छोड़ दिये जाने से भूजल प्रदूषित हो गया है। हालात इतने बुरे हैं कि कुछ स्थानों पर तो भूजल के इस्तेमाल की सम्भावना ही खत्म हो चुकी है। कुछ ट्यूबवेल तो यहाँ सफेद पानी छोड़ते हैं। करीब आधा किमी त्रिज्या के क्षेत्र में सफेद पानी ही निकलता है। यह बदबू मारता है। इसकी जाँच में भी इसे प्रदूषित पाया गया है। अब नर्मदा के पानी से एशिया के डेट्रायट कहे जाने वाले पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र के उद्योगों को प्राण वायु दिये जाने की घोषणा हो चुकी है। करीब एक हजार से ज्यादा उद्योग इकाइयों वाले इस मध्य प्रदेश के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र के लिये बीते पाँच सालों से पानी के लिये तरस रहा है। अब इसके लिये राज्य सरकार ने 260 करोड़ रुपए की एक महती योजना को भी मंजूर कर दिया है, जिससे नर्मदा के पानी को उद्वहन कर पीथमपुर लाया जाएगा। इससे यहाँ बनने जा रहे एशिया के सबसे बड़े ऑटो टेस्टिंग ट्रेक नेटट्रिप को भी पानी मिल सकेगा। पर्यावरणविद इसका विरोध कर रहे हैं।

राज्य सरकार ने नर्मदा लिफ्ट योजना से अब पीथमपुर को पानी की आपूर्ति की योजना को हरी झंडी दे दी है। इस योजना को आगामी 25 साल तक की सम्भावनाओं को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है तथा इससे पीथमपुर के लिये 90 एमएलडी पानी की आपूर्ति हो सकेगी। फिलहाल जहाँ इसके लिये हर दिन 25 एमएलडी पानी की जरूरत होती है, वहाँ इसे मात्र 12 एमएलडी पानी ही मिल पा रहा है।

उद्योग बताते हैं कि उन्हें 8 एमएलडी पानी ही मिल पाता है, 5 एमएलडी वे रिसाइकिल करते हैं और 5 एमएलडी के लिये टैंकरों पर निर्भर करते हैं। यहाँ पहले से सैकड़ों उद्योग स्थापित हैं। लेकिन पानी की कमी से कई उद्योगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पीथमपुर के उद्योगों और भविष्य में यहाँ आ रहे कई बड़े प्रोजेक्ट को देखते हुए राज्य सरकार ने नर्मदा के पानी को यहाँ तक लाने के प्रस्ताव को मंजूर किया है।

पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र की सुविधाओं के लिये राज्य सरकार हर साल करोड़ों रुपए खर्च करती है, वहीं सरकार को भी यहाँ के उद्योगों से हर साल करोड़ों के राजस्व की प्राप्ति होती है लेकिन पानी की कमी से यहाँ के उद्योग प्रभावित हो रहे थे। 28 मार्च 2014 को पानी की कमी के स्थायी विकल्प के रूप में 90 एमएलडी नर्मदा पानी को पीथमपुर लाने के लिये एकेवीएन और डीएमआईसी ने 306 करोड़ की लागत की योजना का प्रस्ताव किया था। दो सालों तक इसमें कुछ भी नहीं हुआ। कहा जाता है कि इससे पहले नर्मदा क्षिप्रा लिंक के पानी से सिंहस्थ की प्राथमिकता होने से इस पर यथोचित कार्रवाई नहीं हो सकी।

1983 में यहाँ औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया गया। लेकिन तब से ही इसके बुनियादी विकास पर कम ही ध्यान दिया गया। जबकि इसे 2041 के प्रस्तावित मास्टर प्लान के लिये विकसित किया जाना है। यह दिल्ली-मुम्बई इंडस्ट्रियल कॉरीडोर (डीएमआईसी) के निवेश क्षेत्र से भी जुड़ा है। यहाँ पानी के साथ टीही तक रेलवे लाइन, इन्दौर मनमाड रेलवे लाइन के लिंक करने और इन्दौर से अन्तरराष्ट्रीय एयर कार्गो शुरू करने से इसके विकास को पर लग सकते हैं। लेकिन पानी का आसपास ऐसा कोई बड़ा संसाधन नहीं होने से नर्मदा का पानी लाना पड़ रहा है।

प्रस्ताव के मुताबिक नर्मदा क्षिप्रा लिंक से सिमरोल गाँव के पास से 18 किमी तक पानी को पाइपलाइन के जरिए पीथमपुर ले जाया जाएगा। पाइपलाइन के जरिए पीथमपुर के उद्योगों को 90 एमएलडी पानी पहुँचाने के लिये परियोजना विकसित करने तथा अगले तीन सालों तक उसकी पूरी देखरेख का काम लार्सन एंड टुब्रो समूह करेगा औद्योगिक विकास केन्द्र निगम इन्दौर ने इसके लिये निविदाएँ आमंत्रित की थी। इसके लिये 310 करोड़ की सम्भावित लागत रखी थी लेकिन एलएनटी ने इस कीमत से 91 करोड़ कम 219 करोड़ में ही काम करने पर सहमति जताई है।

अक्टूबर में दस्तावेजी औपचारिकताओं के बाद नवम्बर से काम शुरू हो सकेगा। इसमें 55.39 करोड़ रुपए डीएमआईसी और 57.65 करोड़ रुपए एकेवीएन देगा। जबकि बाकी राशि के लिये डीएमआईसी ऋण देगा। राऊ के पास वाटर ट्रीटमेंट प्लांट भी लगाया जाएगा। पर्यावरणविद बताते हैं कि इससे नर्मदा नदी के पानी में कमी आ सकती है। वहीं पीने के पानी को उद्योगों को देने पर भी विरोध है। नदी तंत्र भी इससे प्रभावित हो सकता है। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार नर्मदा पर ज्यादा-से-ज्यादा निर्भर होती जा रही है, जो ठीक नहीं है। इसके लिये अन्य विकल्पों और संसाधनों पर भी फोकस करना होगा।

अगले दो सालों में यह योजना बनकर तैयार होने की बात कही जा रही है। इस पर काम करने वाली कम्पनी ही पाइप लाइन का रख-रखाव भी करेगी। यह भी गौरतलब है कि पीथमपुर में तेजी से नए उद्योग आ रहे हैं।

अभी यहाँ ब्रिजस्टोन, आयशर, फोर्ड मोटर, महिन्द्रा, ल्यूपिन, इंडोरामा, स्टील ट्यूब मान और मेटलमेन जैसी नामी कम्पनियाँ हैं। आने वाली कम्पनियों में मुख्य रूप से बाबा रामदेव के पतंजलि ग्रुप, अनिल अंबानी का डिफेंस पार्क व डाटा सेंटर पार्क, सूरत की डायमंड इंडस्ट्री। मदरसन सूवी, माइक्रोमैक्स, अजंता फार्मा, क्रिकेट सेमीकंडक्टर सहित कई बड़े उद्योग समूहों के प्रोजेक्ट शामिल हैं। एकेवीएन का मानना है कि इस सिस्टम के लगने से पीथमपुर में उद्योगों की 50 सालों की समस्या दूर हो सकेगी।

उद्योगपतियों में यहाँ पानी की कीमत को लेकर भी खासा आक्रोश है। बताया जाता है कि बीते पाँच सालों में यहाँ ढाई गुना से ज्यादा पानी की कीमत बधाई जा चुकी है। पानी की किल्लत के कारण महंगा पानी खरीदने को मजबूर होना पड़ता है। 2005 में बनी सहमति के आधार पर 14 रुपए प्रति हजार लीटर शुल्क तय किया गया लेकिन 2011 में इसे सीधे बढ़ाकर 14 से 22 रुपए कर दिया गया। इससे भी आगे इस साल अप्रैल 2016 में इसे और बढ़ाकर 34.61 रुपए कर दिया गया।

उद्योगपतियों ने इसका विरोध भी किया लेकिन किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। महंगे पानी से उद्योगों के मुनाफे और उत्पादन पर भी असर पड़ रहा है।

आसपास के राज्यों में पानी की यह दर सबसे ज्यादा है। करीब दोगुनी। महाराष्ट्र में एक हजार लीटर पानी की दर महज 18 रुपए, गुजरात में 25.5 और राजस्थान में 28 रुपए ही है। दिक्कत यह भी है कि फार्मा इंडस्ट्री को अच्छे मानक स्तर का पानी चाहिए होता है, लेकिन निजी टैंकर के पानी की गुणवत्ता बहुत खराब होती है। कई बार तो टैंकर के पानी का 30 फीसदी ही काम आ पाता है। पानी के अनियोजित उपयोग और पानी की कमी से निर्यात पर भी असर हुआ है।

पीथमपुर के इनलैंड कंटेनर डिपो की जानकारी कहती है कि हर साल 30 से 32 हजार कंटेनर सामान का निर्यात होता है पर बीते 10 सालों में इसमें कोई बढ़ोत्तरी दर्ज नहीं कि गई है। दुखद है कि अब भी देश के कुल निर्यात का महज दो फीसदी ही मध्य प्रदेश से हो पाता है।

यह भी दुखद है कि पीथमपुर में भूजल बुरी तरह प्रदूषित होता जा रहा है। यहाँ कुछ औद्योगिक इकाइयों के घातक रासायनिक पदार्थों के उपयोग करने से तथा उनके अवक्षेप और जहरीले पानी को सीधे जमीन में छोड़ दिये जाने से भूजल प्रदूषित हो गया है। हालात इतने बुरे हैं कि कुछ स्थानों पर तो भूजल के इस्तेमाल की सम्भावना ही खत्म हो चुकी है।

कुछ ट्यूबवेल तो यहाँ सफेद पानी छोड़ते हैं। करीब आधा किमी त्रिज्या के क्षेत्र में सफेद पानी ही निकलता है। यह बदबू मारता है। इसकी जाँच में भी इसे प्रदूषित पाया गया है। इस वजह से यहाँ रहने वाली करीब सवा लाख की आबादी के पीने के पानी पर भी संकट गहराता जा रहा है।

कभी न सूखने वाला यहाँ का कारम बाँध व संजय जलाशय भी अब गर्मियों के साथ ही सूख जाता है। नगरपालिका की सवा लाख आबादी के अलावा उद्योगों के लिये पानी का संकट है। संजय जलाशय पर ही नगरपालिका और सैकड़ों उद्योगों व उनमें काम करने वाले 25 हजार श्रमिकों का पानी निर्भर है। तालाब सूखने पर उद्योग जगत पूरी तरह से टैंकर के भरोसे हो जाता है।

नगरपालिका ने बीते साल बमुश्किल नगरवासियों की समस्या को देखते हुए तालाब में जेसीबी व पोकलेन मशीन द्वारा पानी को एक जगह एकत्रित कर वहाँ से सम्पवेल तक पानी पहुँचाया। इस तरह कुछ दिन जलसंकट को टाला गया, नगर के 31 वार्डों में लगभग सौ से अधिक ट्यूबवेल हैं और सैकड़ों हैण्डपम्प भी पर ये भी गर्मियों में सूख जाते हैं।

नगरपालिका ने मुख्यमंत्री पेयजल योजना से वार्डों में पानी देने के लिये 28 करोड़ लागत से पूरी योजना बनाई थी परन्तु उस योजना के लिये पानी कहाँ से आएगा इस बिन्दु पर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। संजय जलाशय के पास एक बड़ी टंकी व सम्पवेल इंटकवेल आदि का निर्माण किया गया। लेकिन ये तभी उपयोगी हैं जबकि गहरीकरण नहीं हुआ है।

लगभग एक करोड़ रुपए की राशि से संजय जलाशय के गहरीकरण की योजना थी। परिषद ने इसे पारित करते हुए कलेक्टर के माध्यम से सिंचाई विभाग धार को लिखित में सूचना देकर तालाब गहरीकरण के लिये अनुमति चाही थी। लेकिन सिंचाई विभाग ने तालाब के गहरीकरण की अनुमति नहीं दी।

पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष गौतम कोठारी बताते हैं- 'एकेवीएन को मालूम था कि पानी खत्म हो जाएगा। फिर भी उन्होंने उद्योगों को विश्वास में नहीं लिया। इस बार गर्मियों में पूरा पीथमपुर उद्योग टैंकर के पानी के भरोसे है। स्थिति यह है कि तीन से चार गुना कीमत तक चुकानी पड़ती है। उद्योगों को टैंकर संचालित करने वाले कांट्रेक्टरों से अनुबन्ध करना पड़ा है। अब तो हालत यह है कि सिर्फ गर्मियों में ही नहीं, उद्योगों को पूरे साल टैंकरों से पानी खरीदना पड़ रहा है। यहाँ 30 सालों से उद्योग चलाने वालों को भी पानी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। अब नए उद्योग आ जाने से यह समस्या और भी बढ़ेगी।'

औद्योगिक विकास केन्द्र निगम इन्दौर के प्रबन्ध निदेशक कुमार पुरुषोत्तम बताते हैं- '2018 में पीथमपुर में कोई जल संकट नहीं होगा। पानी की समस्या स्थायी हल करना हमारी प्राथमिकता है। कागजी काम होते ही जल्दी काम शुरू हो जाएगा। पानी के रेट इसलिये बढ़ रहे हैं कि इसकी लागत बढ़ती जा रही है।’

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Post By: RuralWater
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