17 फरवरी को नर्मदा जयंती मनाई जाएगी। इस दिन नर्मदा नदी के घाटों पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु स्नान और परिक्रमा करने आते हैं। नर्मदा में स्नान करने से जीवन में सुख-शांति और गृह शांति मिलती है।
माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी को नर्मदा जयंती मनाई जाती है। नर्मदा का उद्गम विंध्य पर्वत पर अमरकंटक नामक स्थान पर माना जाता है। पौराणिक कथानुसार नर्मदा राजा पुरुकुत्स की पत्नी थी और उनका त्रसद्दस्यु नाम का पुत्र था। नर्मदा को भगवान शिव की पुत्री के रूप में भी जाना जाता है, इसलिए इसे शांकरी भी कहा जाता है। लोक कल्याण के लिए भगवान शंकर तपस्या करने के लिए मैकाल पर्वत पर पहुंचे उनके पसीने की बूंदों से इस पर्वत पर एक कुंड का निर्माण हुआ। इसी कुंड में एक बालिका उत्पन्न हुई, जो शांकरी कहलाई। इस बार नर्मदा जयंती 17 फरवरी को मनाई जाएगी। शिव के आदेशानुसार वह एक नदी के रूप में देश के एक बड़े भूभाग में रव (आवाज) करती हुई प्रवाहित होने लगी। रव करने के कारण इनका एक नाम रेवा भी प्रसिद्ध हुआ। मैकाल पर्वत पर उत्पन्न होने के कारण वह मैकाल सुता भी कहलाई।
एक अन्य मत के अनुसार चंद्रवंश के राजा हिरण्यतेजा को पित्रों का तर्पण करते हुए यह अहसास हुआ कि उनके पितृ अतृप्त हैं। उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की तथा उनसे वरदान स्वरूप नर्मदा को पृथ्वी पर अवतरित करवाया। नर्मदा का जल पित्रों को तर्पण के लिए परम पवित्र है। नर्मदा द्वारा वर मांगने पर उन्होंने नर्मदा के हर पत्थर को शिवलिंग सदृश पूजने का आशीर्वाद दिया। यह वर भी दिया कि तुमको देखने मात्र से ही मनुष्य पुण्य प्राप्त करेगा। नर्मदा उत्पत्ति कथा में विभिन्नता होने के बावजूद सभी कथाओं में उसे शिव से ही उत्पन्न माना जाता है। इसलिए उसे आद्यशक्ति के रूप में भी पूजा जाता है। अमरकंटक से प्रकट होकर तथा लगभग 1200 किमी का सफर तय कर नर्मदा गुजरात के खंबात में अरब सागर में मिलती है।
नर्मदा का जल शंकर के श्चेद से उत्पन्न हुआ है। यह इतना पवित्र है कि किसी भी दोष का शमन करने का सामर्थ्य रखता है। मनुष्य की कुंडली में स्थित उग्र ग्रह को शांत करने की इसमें शक्ति है। मंगल, शनि राहु, केतु के दोष तो इस जल के स्नान मात्र से दूर हो जाते हैं। विशेषकर शनिश्चरी अमावस्या के दिन इसके स्नान से कई बाहरी हानिकारक शक्तियों से बचने की शक्ति मिलती है। जन्म कुंडली में यदि सर्प या नाग दोष हो तो अमावस्या के दिन इसके जल में चांदी से निर्मित नाग का संस्कार कर विसर्जन करने से इस दोष से शांति मिलेगी। भगवान शंकर से उत्पन्न होने के कारण नर्मदा आद्यशक्ति की शक्तियों से पूर्ण है। अतः इसमें स्नान करने एवं दर्शन करने से सूर्य के समान धैर्य एवं गुरू के समान धार्मिकता मिलती है।
नर्मदा विश्व की एक मात्र ऐसी नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है, क्योंकि इसके हर घाट पर पवित्रता का वास है तथा इसके घाटों पर महर्षि मार्कंडेय, अगत्स्य, महर्षि कपि एवं कई ऋषि-मुनियों ने तपस्या की। शंकराचार्यों ने भी इसकी महिमा का गुणगान किया है। मान्यता के अनुसार इसके घाट पर ही आदि गुरु शंकराचार्य ने मंडन मिश्र को शास्त्रार्थ में पराजित किया था।
बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर ममलेश्वर तीर्थ इसके तट पर ही स्थित हैं। इसके अलावा भृगुक्षेत्र, शंखोद्वार, धूतताप, कोटिश्वर, ब्रह्मतीर्थ, भास्करतीर्थ, गौतमेश्वर नर्मदा के किनारे बसे हैं। चंद्र द्वारा तपस्या करने के कारण सोमेश्वर तीर्थ आदि पचपन तीर्थ भी इसके घाटों पर स्थित हैं।
स्कंद पुराण के अनुसार नर्मदा प्रलय काल में भी स्थाई रहती है एवं मत्स्य पुराण के अनुसार नर्मदा के दर्शन मात्र से पवित्रता आती है। इसकी गणना देश की पांच बड़ी एवं सात पवित्र नदियों में होती है। गंगा, यमुना, सरस्वती एवं नर्मदा को ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद के सदृश्य समझा जाता है। महर्षि मार्कंडेय के अनुसार इसके दोनों तटों पर 60 लाख 8 हजार तीर्थ हैं एवं इसका कंकर-कंकर भगवान शंकर का रूप है। इसमें स्नान, आचमन करने से पुण्य तो मिलता ही है, केवल इसके दर्शन से भी पुण्य लाभ होता है।
दांपत्य जीवन में खुशहाली न हो या विवाह में देरी हो रही हो तो नर्मदा का स्नान इस समस्या का निदान करता है। इस नदी में स्नान कर गीले वस्त्रों से शिव-पार्वती का पूजन कर पार्वतीजी को लगा सिंदूर स्त्री या पुरुष अपने मस्तक पर धारण करें, तो शिव-पार्वती के वरदान से विवाह संबंधी समस्या से निजात मिलती है।
नर्मदा के हर पत्थर को शिवलिंग के समान पूजनीय माना गया है। किसी भी शिवालय की स्थापना होने पर उसमें नर्मदा से लाया हुआ शिवलिंग ही स्थापित किया जाता है। नर्मदा के पत्थर प्राकृतिक रूप से ही शिवलिंग का रूप धारण किए हुए हैं। किसी-किसी पत्थर में तो प्राकृतिक रूप से की आकृति बनी रहती है। नर्मदा के लाए पत्थरों को शिवलिंग के रूप में पूजन के लिए प्राण प्रतिष्ठा नहीं करनी होती।
बरनर, बंजर, तवा, छोटा तवा, दक्षिण तटीय हिरण, तिंदोली, कलार।
नर्मदा तीन राज्यों को लाभान्वित करती है। मध्य प्रदेश के विंध्यांचल से निकली यह नदी अपनी लंबाई का कुल 80 प्रतिशत भाग लगभग 1080 किमी मध्य प्रदेश में बहती है तथा 150 लाख एकड़ कृषि भूमि को सिंचित करती है। इसके जलग्रहण का क्षेत्र कोई 99000 वर्ग किमी है।
माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी को नर्मदा जयंती मनाई जाती है। नर्मदा का उद्गम विंध्य पर्वत पर अमरकंटक नामक स्थान पर माना जाता है। पौराणिक कथानुसार नर्मदा राजा पुरुकुत्स की पत्नी थी और उनका त्रसद्दस्यु नाम का पुत्र था। नर्मदा को भगवान शिव की पुत्री के रूप में भी जाना जाता है, इसलिए इसे शांकरी भी कहा जाता है। लोक कल्याण के लिए भगवान शंकर तपस्या करने के लिए मैकाल पर्वत पर पहुंचे उनके पसीने की बूंदों से इस पर्वत पर एक कुंड का निर्माण हुआ। इसी कुंड में एक बालिका उत्पन्न हुई, जो शांकरी कहलाई। इस बार नर्मदा जयंती 17 फरवरी को मनाई जाएगी। शिव के आदेशानुसार वह एक नदी के रूप में देश के एक बड़े भूभाग में रव (आवाज) करती हुई प्रवाहित होने लगी। रव करने के कारण इनका एक नाम रेवा भी प्रसिद्ध हुआ। मैकाल पर्वत पर उत्पन्न होने के कारण वह मैकाल सुता भी कहलाई।
शिव से हुई उत्पत्ति
एक अन्य मत के अनुसार चंद्रवंश के राजा हिरण्यतेजा को पित्रों का तर्पण करते हुए यह अहसास हुआ कि उनके पितृ अतृप्त हैं। उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की तथा उनसे वरदान स्वरूप नर्मदा को पृथ्वी पर अवतरित करवाया। नर्मदा का जल पित्रों को तर्पण के लिए परम पवित्र है। नर्मदा द्वारा वर मांगने पर उन्होंने नर्मदा के हर पत्थर को शिवलिंग सदृश पूजने का आशीर्वाद दिया। यह वर भी दिया कि तुमको देखने मात्र से ही मनुष्य पुण्य प्राप्त करेगा। नर्मदा उत्पत्ति कथा में विभिन्नता होने के बावजूद सभी कथाओं में उसे शिव से ही उत्पन्न माना जाता है। इसलिए उसे आद्यशक्ति के रूप में भी पूजा जाता है। अमरकंटक से प्रकट होकर तथा लगभग 1200 किमी का सफर तय कर नर्मदा गुजरात के खंबात में अरब सागर में मिलती है।
स्नान से मिलती है ग्रह शांति
नर्मदा का जल शंकर के श्चेद से उत्पन्न हुआ है। यह इतना पवित्र है कि किसी भी दोष का शमन करने का सामर्थ्य रखता है। मनुष्य की कुंडली में स्थित उग्र ग्रह को शांत करने की इसमें शक्ति है। मंगल, शनि राहु, केतु के दोष तो इस जल के स्नान मात्र से दूर हो जाते हैं। विशेषकर शनिश्चरी अमावस्या के दिन इसके स्नान से कई बाहरी हानिकारक शक्तियों से बचने की शक्ति मिलती है। जन्म कुंडली में यदि सर्प या नाग दोष हो तो अमावस्या के दिन इसके जल में चांदी से निर्मित नाग का संस्कार कर विसर्जन करने से इस दोष से शांति मिलेगी। भगवान शंकर से उत्पन्न होने के कारण नर्मदा आद्यशक्ति की शक्तियों से पूर्ण है। अतः इसमें स्नान करने एवं दर्शन करने से सूर्य के समान धैर्य एवं गुरू के समान धार्मिकता मिलती है।
हर घाट पर है पवित्रता का वास
नर्मदा विश्व की एक मात्र ऐसी नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है, क्योंकि इसके हर घाट पर पवित्रता का वास है तथा इसके घाटों पर महर्षि मार्कंडेय, अगत्स्य, महर्षि कपि एवं कई ऋषि-मुनियों ने तपस्या की। शंकराचार्यों ने भी इसकी महिमा का गुणगान किया है। मान्यता के अनुसार इसके घाट पर ही आदि गुरु शंकराचार्य ने मंडन मिश्र को शास्त्रार्थ में पराजित किया था।
नर्मदा किनारे के मुख्य तीर्थ
बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर ममलेश्वर तीर्थ इसके तट पर ही स्थित हैं। इसके अलावा भृगुक्षेत्र, शंखोद्वार, धूतताप, कोटिश्वर, ब्रह्मतीर्थ, भास्करतीर्थ, गौतमेश्वर नर्मदा के किनारे बसे हैं। चंद्र द्वारा तपस्या करने के कारण सोमेश्वर तीर्थ आदि पचपन तीर्थ भी इसके घाटों पर स्थित हैं।
60 लाख से अधिक तीर्थ
स्कंद पुराण के अनुसार नर्मदा प्रलय काल में भी स्थाई रहती है एवं मत्स्य पुराण के अनुसार नर्मदा के दर्शन मात्र से पवित्रता आती है। इसकी गणना देश की पांच बड़ी एवं सात पवित्र नदियों में होती है। गंगा, यमुना, सरस्वती एवं नर्मदा को ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद के सदृश्य समझा जाता है। महर्षि मार्कंडेय के अनुसार इसके दोनों तटों पर 60 लाख 8 हजार तीर्थ हैं एवं इसका कंकर-कंकर भगवान शंकर का रूप है। इसमें स्नान, आचमन करने से पुण्य तो मिलता ही है, केवल इसके दर्शन से भी पुण्य लाभ होता है।
जीवन में खुशहाली
दांपत्य जीवन में खुशहाली न हो या विवाह में देरी हो रही हो तो नर्मदा का स्नान इस समस्या का निदान करता है। इस नदी में स्नान कर गीले वस्त्रों से शिव-पार्वती का पूजन कर पार्वतीजी को लगा सिंदूर स्त्री या पुरुष अपने मस्तक पर धारण करें, तो शिव-पार्वती के वरदान से विवाह संबंधी समस्या से निजात मिलती है।
हर पत्थर पूजनीय
नर्मदा के हर पत्थर को शिवलिंग के समान पूजनीय माना गया है। किसी भी शिवालय की स्थापना होने पर उसमें नर्मदा से लाया हुआ शिवलिंग ही स्थापित किया जाता है। नर्मदा के पत्थर प्राकृतिक रूप से ही शिवलिंग का रूप धारण किए हुए हैं। किसी-किसी पत्थर में तो प्राकृतिक रूप से की आकृति बनी रहती है। नर्मदा के लाए पत्थरों को शिवलिंग के रूप में पूजन के लिए प्राण प्रतिष्ठा नहीं करनी होती।
नर्मदा की सहायक नदियां
बरनर, बंजर, तवा, छोटा तवा, दक्षिण तटीय हिरण, तिंदोली, कलार।
मध्य प्रदेश के लिए लाभकारी
नर्मदा तीन राज्यों को लाभान्वित करती है। मध्य प्रदेश के विंध्यांचल से निकली यह नदी अपनी लंबाई का कुल 80 प्रतिशत भाग लगभग 1080 किमी मध्य प्रदेश में बहती है तथा 150 लाख एकड़ कृषि भूमि को सिंचित करती है। इसके जलग्रहण का क्षेत्र कोई 99000 वर्ग किमी है।
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