ग्रीन ट्रिब्यूनल के सामने जल संसाधन के इंजीनियर इन चीफ ने स्वीकारा 120 करोड़ के खर्चे का अनुमान। वाटर लिफ्टिंग पर खर्च होगी 6 मेगावाट बिजली 11 किलोमीटर लंबी नई नहर भी बनानी पड़ेगी।
सतना। पवित्र स्थल चित्रकूट की पुण्य सलिला मंदाकिनी को बजरिए बरगी दायीं तट नहर नर्मदा जल से रिचार्ज करने के मामले में राज्य सरकार के जल संसाधन विभाग ने हाथ उठा दिए हैं। इसी मामले की सुनवाई कर रही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के सामने सोमवार को पेश हुए जल संसाधन के इंजीनियर इन चीफ ने कहा कि बरगी डैम की दायीं तट नहर से चित्रकूट की मंदाकिनी नदी को रिचार्ज कर पाना संभव नहीं है।
चीफ इंजीनियर ने इस मामले में कई व्यावहारिक बाधाएं गिनाई हैं। मंदाकिनी उद्धार के मामले में आरटीआई एक्टिविस्ट और एडवोकेट नित्यानंद मिश्रा की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान ग्रीन ट्रिब्यूनल के सामने सरकार का पक्ष रखते हुए उन्होंने बताया कि नर्मदा जल से मंदाकिनी को रिचार्ज करने की योजना पर 120 करोड़ के शुरुआती खर्चे का अनुमान है। वाटर लिफ्टिंग पर कम से कम 6 मेगावाट बिजली का खर्च बढ़ेगा। लगभग 11 किलोमीटर लंबी नई नहर भी बनानी पड़ेगी।
जल संसाधन के इंजीनियर इन चीफ ने कहा कि बरगी दायीं तट नहर का पानी मंदाकिनी में छोड़ कर उसे सदानीरा बनाने की इस कार्ययोजना पर सवा सौ करोड़ से भी ज्यादा रकम के खर्चे के बाद भी जल आपूर्ति संभव नहीं होगी। उन्होंने बताया कि खासकर गर्मी के मई-जून माह में जब मंदाकिनी को सूखने से बचाने के लिए पानी की सख्त जरुरत होगी तब दायीं तट नहर में जलापूर्ति नहीं रहेगी क्योंकि यह वह वक्त होगा जब खेती के लिए पानी की जरुरत नहीं होगी।
नहरों में पानी नहीं होगा। इंजीनियर इन चीफ ने कहा कि गर्मी के मई-जून महीनों में अकेले मंदाकिनी के लिए नहरों में पानी छोड़ना संभव नहीं होगा। गौरतलब है, नर्मदा जल से मंदाकिनी को रिचार्ज करने के मामले में ग्रीन ट्रिब्यूनल ने राज्य शासन के जल संसाधन विभाग के इंजीनियर इन चीफ को डीटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) के साथ तलब किया था।
नर्मदा जल से मंदाकिनी को रिचार्ज करने के मामले में सरकारी लाचारी पर सख्त प्रतिवाद करते हुए अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा ने अपने तर्क में कहा कि यदि यह संभव नहीं है तो जलसंसाधन विभाग को दूसरे विकल्पों पर भी अविलंब विचार करना चाहिए। उन्होंने झूरी नदी पर डैम बनाने जैसे विकल्प भी सुझाए। प्रकरण की सुनवाई के दौरान नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के जस्टिस दलिप सिंह और एक्सपर्ट मेंबर पीएस राव ने जल संसाधन के इंजीनियर इन चीफ को निर्देशित किया कि वे मंदाकिनी के कैचमेंट एरिया में बारिश के पानी के भंडारण के लिए डैम या बांध बना कर जल का ऐसा प्रबंधन सुनिश्चित करें कि मंदाकिनी बारहोमास सदानीरा रहे।
ट्रिब्यूनल ने इस मामले में इंजीनियर इन चीफ को इस आशय की साफ हिदायत दी कि वे अगली पेशी से पहले स्थल निरीक्षण और भौतिक सत्यापन पर आधारित रिपोर्ट पेश करें। इस मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल अब 2 अगस्त को सुनवाई करेगा। ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा कि डैम या बांध बनाने की कार्ययोजना में जल संसाधन विभाग को चाहिए कि वह वन विभाग एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्वीकृति जरुर ले ले।
ग्रीन ट्रिब्यूनल ने चित्रकूट में मंदाकिनी नदी के तट पर चिन्हित किए गए तकरीबन 29 पक्के अतिक्रमणों को बलपूर्वक हटाए जाने की सख्त हिदायत भी दी है। इस मामले इससे पहले ट्रिब्यूनल ने चित्रकूट नगर पंचायत के मुख्यकार्यपालन अधिकारी को पुलिस की मदद से अतिक्रमण हटाए जाने के आदेश दिए थे। नगर पंचायत के अधिकारी इस मामले में पुलिस फोर्स की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने की आड़ लेकर तब पीछे हट गए थे।
ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर कलेक्टर ने मझगवां एसडीएम को निर्देशित किया है कि मंदाकिनी नदी को अतिक्रमण मुक्त करने के लिए वह जरुरी पुलिस बल का प्रबंध सुनिश्चित कराएं। कलेक्टर ने इस मामले में सात दिन की मोहलत दी है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने चित्रकूट की मंदाकिनी नदी पर स्थित सबसे व्यस्ततम रामघाट पर हर किसी की निजी गंगा आरती पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। ट्रिब्यूनल ने इस मामले में रोज शाम को सिर्फ एक गंगा आरती की अनुमति दी है। गौरतलब है, हर किसी की निजी गंगा आरती से मंदाकिनी नदी में प्रदूषण फैलता है।
ट्रिब्यूनल ने चित्रकूट नगर पंचायत के सीएमओ को यह भी सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं कि रोज महाआरती के दौरान शाम को रामघाट पर चित्रकूट नगर पंचायत नदी में नाव लगा कर इस बात की निगरानी कराए कि कोई प्रदूषण न फैलने पाए। निगरानी के बाद भी यदि कोई पूजन सामाग्री का मंदाकिनी में विसर्जन कर देता है तो उसे नाव के जरिए फौरन साफ कराया जाए।
मोक्षदायिनी मंदाकिनी को जीवन देने के मानवीय मूल्यों के सामने 120 करोड़ का कोई मोल नहीं है। लाखों लाख हिंदू आस्था की प्रतीक मां मंदाकिनी दो राज्यों के बीच लाखों गिरिजन, हरिजन और आदिवासियों के बीच जीवन रेखा भी है। सरकार को सतही सोच से ऊपर उठ कर नर्मदा-क्षिप्रा लिंक की तरह कार्ययोजना बनानी चाहिए।
नित्यानंद मिश्रा, एडवोकेट और आरटीआई एक्टिविस्ट
सतना। पवित्र स्थल चित्रकूट की पुण्य सलिला मंदाकिनी को बजरिए बरगी दायीं तट नहर नर्मदा जल से रिचार्ज करने के मामले में राज्य सरकार के जल संसाधन विभाग ने हाथ उठा दिए हैं। इसी मामले की सुनवाई कर रही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के सामने सोमवार को पेश हुए जल संसाधन के इंजीनियर इन चीफ ने कहा कि बरगी डैम की दायीं तट नहर से चित्रकूट की मंदाकिनी नदी को रिचार्ज कर पाना संभव नहीं है।
चीफ इंजीनियर ने इस मामले में कई व्यावहारिक बाधाएं गिनाई हैं। मंदाकिनी उद्धार के मामले में आरटीआई एक्टिविस्ट और एडवोकेट नित्यानंद मिश्रा की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान ग्रीन ट्रिब्यूनल के सामने सरकार का पक्ष रखते हुए उन्होंने बताया कि नर्मदा जल से मंदाकिनी को रिचार्ज करने की योजना पर 120 करोड़ के शुरुआती खर्चे का अनुमान है। वाटर लिफ्टिंग पर कम से कम 6 मेगावाट बिजली का खर्च बढ़ेगा। लगभग 11 किलोमीटर लंबी नई नहर भी बनानी पड़ेगी।
फिर भी नहीं मिलेगा पानी
जल संसाधन के इंजीनियर इन चीफ ने कहा कि बरगी दायीं तट नहर का पानी मंदाकिनी में छोड़ कर उसे सदानीरा बनाने की इस कार्ययोजना पर सवा सौ करोड़ से भी ज्यादा रकम के खर्चे के बाद भी जल आपूर्ति संभव नहीं होगी। उन्होंने बताया कि खासकर गर्मी के मई-जून माह में जब मंदाकिनी को सूखने से बचाने के लिए पानी की सख्त जरुरत होगी तब दायीं तट नहर में जलापूर्ति नहीं रहेगी क्योंकि यह वह वक्त होगा जब खेती के लिए पानी की जरुरत नहीं होगी।
नहरों में पानी नहीं होगा। इंजीनियर इन चीफ ने कहा कि गर्मी के मई-जून महीनों में अकेले मंदाकिनी के लिए नहरों में पानी छोड़ना संभव नहीं होगा। गौरतलब है, नर्मदा जल से मंदाकिनी को रिचार्ज करने के मामले में ग्रीन ट्रिब्यूनल ने राज्य शासन के जल संसाधन विभाग के इंजीनियर इन चीफ को डीटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) के साथ तलब किया था।
तो फिर डैम बनाएं
नर्मदा जल से मंदाकिनी को रिचार्ज करने के मामले में सरकारी लाचारी पर सख्त प्रतिवाद करते हुए अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा ने अपने तर्क में कहा कि यदि यह संभव नहीं है तो जलसंसाधन विभाग को दूसरे विकल्पों पर भी अविलंब विचार करना चाहिए। उन्होंने झूरी नदी पर डैम बनाने जैसे विकल्प भी सुझाए। प्रकरण की सुनवाई के दौरान नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के जस्टिस दलिप सिंह और एक्सपर्ट मेंबर पीएस राव ने जल संसाधन के इंजीनियर इन चीफ को निर्देशित किया कि वे मंदाकिनी के कैचमेंट एरिया में बारिश के पानी के भंडारण के लिए डैम या बांध बना कर जल का ऐसा प्रबंधन सुनिश्चित करें कि मंदाकिनी बारहोमास सदानीरा रहे।
ट्रिब्यूनल ने इस मामले में इंजीनियर इन चीफ को इस आशय की साफ हिदायत दी कि वे अगली पेशी से पहले स्थल निरीक्षण और भौतिक सत्यापन पर आधारित रिपोर्ट पेश करें। इस मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल अब 2 अगस्त को सुनवाई करेगा। ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा कि डैम या बांध बनाने की कार्ययोजना में जल संसाधन विभाग को चाहिए कि वह वन विभाग एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्वीकृति जरुर ले ले।
बलपूर्वक गिराएं अतिक्रमण
ग्रीन ट्रिब्यूनल ने चित्रकूट में मंदाकिनी नदी के तट पर चिन्हित किए गए तकरीबन 29 पक्के अतिक्रमणों को बलपूर्वक हटाए जाने की सख्त हिदायत भी दी है। इस मामले इससे पहले ट्रिब्यूनल ने चित्रकूट नगर पंचायत के मुख्यकार्यपालन अधिकारी को पुलिस की मदद से अतिक्रमण हटाए जाने के आदेश दिए थे। नगर पंचायत के अधिकारी इस मामले में पुलिस फोर्स की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने की आड़ लेकर तब पीछे हट गए थे।
ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर कलेक्टर ने मझगवां एसडीएम को निर्देशित किया है कि मंदाकिनी नदी को अतिक्रमण मुक्त करने के लिए वह जरुरी पुलिस बल का प्रबंध सुनिश्चित कराएं। कलेक्टर ने इस मामले में सात दिन की मोहलत दी है।
रामघाट पर सिर्फ महाआरती की अनुमति
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने चित्रकूट की मंदाकिनी नदी पर स्थित सबसे व्यस्ततम रामघाट पर हर किसी की निजी गंगा आरती पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। ट्रिब्यूनल ने इस मामले में रोज शाम को सिर्फ एक गंगा आरती की अनुमति दी है। गौरतलब है, हर किसी की निजी गंगा आरती से मंदाकिनी नदी में प्रदूषण फैलता है।
ट्रिब्यूनल ने चित्रकूट नगर पंचायत के सीएमओ को यह भी सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं कि रोज महाआरती के दौरान शाम को रामघाट पर चित्रकूट नगर पंचायत नदी में नाव लगा कर इस बात की निगरानी कराए कि कोई प्रदूषण न फैलने पाए। निगरानी के बाद भी यदि कोई पूजन सामाग्री का मंदाकिनी में विसर्जन कर देता है तो उसे नाव के जरिए फौरन साफ कराया जाए।
इनका कहना है
मोक्षदायिनी मंदाकिनी को जीवन देने के मानवीय मूल्यों के सामने 120 करोड़ का कोई मोल नहीं है। लाखों लाख हिंदू आस्था की प्रतीक मां मंदाकिनी दो राज्यों के बीच लाखों गिरिजन, हरिजन और आदिवासियों के बीच जीवन रेखा भी है। सरकार को सतही सोच से ऊपर उठ कर नर्मदा-क्षिप्रा लिंक की तरह कार्ययोजना बनानी चाहिए।
नित्यानंद मिश्रा, एडवोकेट और आरटीआई एक्टिविस्ट
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