जयपुर. सरकार एक तरफ जहां नरेगा से लोगों को बड़ी संख्या में रोजगार देने का दावा कर रही है, वहीं नरेगा श्रमिकों को दो-दो, तीन-तीन और चार-चार रुपए की मजदूरी भी मिली है। इस रकम में परिवार चलाना तो दूर, एक कप चाय भी नहीं मिल सकती। सरकार की जानकारी में आने के बाद भी मामले में अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। नरेगा श्रमिकों के पक्ष में आवाज उठाने वाले संगठन सूचना एवं रोजगार का अधिकार अभियान की ओर से किए गए 2009-10 के सैंपल सर्वे में यह खुलासा हुआ है। सर्वे के अनुसार जैसलमेर जिले की सम पंचायत समिति की दव पंचायत में दो रुपए, सवाई माधोपुर जिले की खंडार पंचायत समिति की अक्षयगढ़ पंचायत में तीन रुपए और धौलपुर जिले की बसेड़ी पंचायत समिति की आंगई पंचायत में चार-चार रुपए मजदूरी मिली है।
जैसलमेर जिले की सम पंचायत समिति के दव ग्राम पंचायत में संपर्क सड़क का काम। मस्टर रोल नं. 1188182, 192, 202, 212, 222, 232, 242, 252, 262, 272,282, 292, 302, 312, 322, 332, 342 में 146 श्रमिकों के मिली दो रुपए की मजदूरी।
सवाई माधोपुर जिले की खंडार पंचायत समिति की अक्षयगढ़ पंचायत में ग्रेवल सड़क का काम। मस्टररोल नं. 240600 से 240634 तक में 332 श्रमिकों को मिली तीन-तीन रुपए की मजदूरी।
धौलपुर जिले की बसेड़ी पंचायत समिति की आंगई पंचायत में तालाब गहरा कराने का काम। मस्टररोल नं. 241767 से 241769 तक 29 श्रमिकों को मिले चार- चार रुपए की मजदूरी।
क्या हैं कारण
न्यारी नपती, न्यारी रेट का नियम लागू नहीं करने के कारण सब श्रमिकों की एक ही माप करने के कारण मजदूरी कम आई है। इस प्रणाली में टास्क आधारित गणना से काम की नपाई करने वाले और काम लेने वाले (मेट आदि) के नकारे पन के कारण भी मजदूरी का आकलन कम हो पाता है। भ्रष्टाचार में सहयोग नहीं करने वालों को इसी प्रकार प्रताड़ित कर कम मजदूरी दी जाती है।
मॉनिटरिंग के बावजूद ये हालात नरेगा के परियोजना निदेशक रामनिवास मेहता का कहना है कि इस तरह के मामले सामने आने के बाद राज्य सरकार ने 31 अगस्त, 2010 को आदेश निकाल कर कार्यस्थल पर रोजाना नाप करने और श्रमिक को जानकारी देने की व्यवस्था कर दी है।
पहले पखवाड़े के हिसाब से नाप होता था। अब यदि किसी दिन किसी समूह का काम 70 प्रतिशत से काम होता है तो मेट इसकी जानकारी ग्राम सेवक रोजगार सहायक को देगा, जो आगे बीडीओ तक जानकारी पहुंचाएंगे। इसकी नियमित मॉनिटरिंग होने की व्यवस्था कर दी गई है।
दो, तीन या चार रुपए में तो चाय का प्याला भी नहीं मिल पाता है, ऐसे में दिनभर काम करने पर भी अगर इतनी कम मजदूरी बनाई जाती है तो यह अमानवीय है और इसके मापने का तरीका न्यारी नपती, न्यारी रेट का सिद्धांत लागू किया जाना चाहिए।
मुकेश गोस्वामी, सामाजिक कार्यकर्ता
/articles/naraegaa-saramaikaon-kao-dao-taina-aura-caara-raupae-kai-majadauurai