वर्षाजल संचयन धरती के जल के स्तर को सुधारने के लिये एक सफल उपाय साबित हुआ है। नोएडा प्राधिकरण के मुख्य वास्तुकार और शहर योजनाकार विनय देवपुजारी का कहना है कि शहर के 2,432 हेक्टेयर ज़मीन में तकरीबन 74 करोड़ घनमीटर वर्षाजल का संचयन किया जा सकता है। इस पानी का उपयोग भूजल को रिचार्ज करने और उसकी गुणवत्ता बढ़ाने में किया जा सकता है। इस विकेन्द्रित समाधान की ओर बढ़ते हुए पाइपों पर आने वाला खर्च तेजी से कम किया जा सकता है। नोएडा को भारी पानी को हल्का करने के लिये गंगा जल को मिलाने की बजाय वर्षाजल के संचयन के बारे में सोचना चाहिए।
औद्योगिक केन्द्र नोएडा हर दिन भारी पानी को हल्का करने के लिये उसमें 4.8 करोड़ लीटर पानी मिलाता है ताकि उसके नागरिक उसका इस्तेमाल कर सकें। यह पानी दिल्ली के एक और उपनगर गाज़ियाबाद के मसूरी डासना में गंग नहर से निकालकर तकरीबन 22 किलोमीटर दूरी तक ले जाया जाता है।
भारत सरकार के कंसल्टेंसी करने वाले एक उपक्रम मेसर्स वापकोस (वाटर एंड पावर कंसल्टेंसी सर्विसेज (इंडिया लिमिटेड) के अनुसार शहर में प्रतिदिन निकाले जाने वाले 22.2 करोड़ लीटर पानी को उपयोग लायक बनाने हेतु उसमें 8.4 करोड़ लीटर गंगाजल चाहिए। इस गंगाजल के शहर में आगमन को नोएडा शहर के लोग शुद्धता का प्रतीक मानकर आनन्दित होते हैं। लेकिन इस परियोजना पर आने वाली भारी लागत हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या प्राधिकरण की तरफ से किये गए यह प्रयास भविष्य में व्यावहारिक हैं।
आवासीय इलाकों के तीव्र विस्तार के साथ नोएडा को गंगा से और पानी मिलने वाला है और यह 200 करोड़ का लागत से एक और शोधन संयंत्र लगाने जा रहा है। नोएडा प्राधिकरण न सिर्फ पाइपों और जल शोधन संयंत्रों जैसे ढाँचागत कार्यों पर सीधे खर्च करेगा बल्कि सिंचाई विभाग को 60 करोड़ रुपए भी देगा। यह धन लाइनिंग के काम में खर्च किया जाएगा ताकि रिसाव न हो और नहर से पानी काटकर ले जाने पर किसान प्रभावित न हों।
नोएडा के 2021 के मास्टर प्लान का मसविदा कहता है कि 2021 के अन्त तक पानी की माँग 55.3 करोड़ लीटर प्रतिदिन हो जाएगी। इस पानी को हल्का करने के लिये 30.2 करोड़ गंगाजल की आवश्यकता रहेगी। इसका मतलब यह है कि नोएडा आज जितने गंगाजल का उपभोग करता है उसे तब इसके तीन गुना गंगाजल की आवश्यकता रहेगी।
इस बीच गंगा में प्रदूषण का स्तर बढ़ने के साथ उसके जल के शोधन की लागत भी बढ़ जाएगी। इस समय जब भी मसूरी और डासना के पानी की सप्लाई बन्द होगी नोएडा का निवासियों को भारी पानी से काम चलाना पड़ेगा। जहाँ प्राधिकरण चाहता है कि वह नागरिकों की समस्या का हल करने के लिये निर्बाध रूप से पानी की आपूर्ति करे वहीं यह सवाल भी उठता है कि क्यों नोएडा अपने पानी को उपयोगी बनाने के लिये सिर्फ खर्चीले तरीके पर विचार कर रहा है।
वर्षाजल संचयन धरती के जल के स्तर को सुधारने के लिये एक सफल उपाय साबित हुआ है। नोएडा प्राधिकरण के मुख्य वास्तुकार और शहर योजनाकार विनय देवपुजारी का कहना है कि शहर के 2,432 हेक्टेयर ज़मीन में तकरीबन 74 करोड़ घनमीटर वर्षाजल का संचयन किया जा सकता है। इस पानी का उपयोग भूजल को रिचार्ज करने और उसकी गुणवत्ता बढ़ाने में किया जा सकता है। इस विकेन्द्रित समाधान की ओर बढ़ते हुए पाइपों पर आने वाला खर्च तेजी से कम किया जा सकता है।
नोएडा की भावी योजना है कि भूजल का प्रयोग बन्द कर दिया जाये और घरेलू उद्देश्य के लिये पूरी तरह से गंगाजल पर निर्भर हो जाया जाये। उसकी यह भी योजना है कि बेकार जल को शोधन के बाद रिहायशी इलाकों में निजी लानों की सिंचाई और औद्योगिक व फार्म हाउसों की सिंचाई के लिये इस्तेमाल किया जाए। बेकार जल को शोधित करके इस्तेमाल करने का विचार अच्छा है क्योंकि मास्टर प्लान 2021 के अनुसार शहर भविष्य में 28.8 करोड़ लीटर प्रतिदिन बेकार जल निकालेगा। सन् 2031 तक सीवेज का उत्पादन 41.4 करोड़ लीटर प्रतिदिन होने की उम्मीद है।
लेकिन शहर क्यों भूजल का इस्तेमाल बन्द करके पूरी तरह गंगाजल पर निर्भर होना चाहता है यह समझना कठिन है। नोएडा में वर्षा के जल के संचयन की भारी क्षमता है। हमें यह समझना होगा कि भूजल तो फिर बढ़ जाएगा बस उसके लिये भूजल के रिचार्ज की व्यवस्था करनी होगी ताकि सालाना भूजल का कर्षण नियंत्रित हो सके। नोएडा को शहर के भूजल के रिचार्ज के लिये अपने सतह के ऊपर के जलाशयों को भी बचाना होगा। यह नोएडा की जल समस्या का ज्यादा स्थायी समाधान होगा।
सुष्मिता सेनगुप्ता वाटर प्रोग्राम की डिपुटी प्रोग्राम मैनेजर हैं। वे जियोलॉजिस्ट हैं और वाटर मैनेजमेंट व सफाई से सम्बन्धित मुद्दों की नीतियों पर काम करती हैं।
औद्योगिक केन्द्र नोएडा हर दिन भारी पानी को हल्का करने के लिये उसमें 4.8 करोड़ लीटर पानी मिलाता है ताकि उसके नागरिक उसका इस्तेमाल कर सकें। यह पानी दिल्ली के एक और उपनगर गाज़ियाबाद के मसूरी डासना में गंग नहर से निकालकर तकरीबन 22 किलोमीटर दूरी तक ले जाया जाता है।
भारत सरकार के कंसल्टेंसी करने वाले एक उपक्रम मेसर्स वापकोस (वाटर एंड पावर कंसल्टेंसी सर्विसेज (इंडिया लिमिटेड) के अनुसार शहर में प्रतिदिन निकाले जाने वाले 22.2 करोड़ लीटर पानी को उपयोग लायक बनाने हेतु उसमें 8.4 करोड़ लीटर गंगाजल चाहिए। इस गंगाजल के शहर में आगमन को नोएडा शहर के लोग शुद्धता का प्रतीक मानकर आनन्दित होते हैं। लेकिन इस परियोजना पर आने वाली भारी लागत हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या प्राधिकरण की तरफ से किये गए यह प्रयास भविष्य में व्यावहारिक हैं।
आवासीय इलाकों के तीव्र विस्तार के साथ नोएडा को गंगा से और पानी मिलने वाला है और यह 200 करोड़ का लागत से एक और शोधन संयंत्र लगाने जा रहा है। नोएडा प्राधिकरण न सिर्फ पाइपों और जल शोधन संयंत्रों जैसे ढाँचागत कार्यों पर सीधे खर्च करेगा बल्कि सिंचाई विभाग को 60 करोड़ रुपए भी देगा। यह धन लाइनिंग के काम में खर्च किया जाएगा ताकि रिसाव न हो और नहर से पानी काटकर ले जाने पर किसान प्रभावित न हों।
नोएडा के 2021 के मास्टर प्लान का मसविदा कहता है कि 2021 के अन्त तक पानी की माँग 55.3 करोड़ लीटर प्रतिदिन हो जाएगी। इस पानी को हल्का करने के लिये 30.2 करोड़ गंगाजल की आवश्यकता रहेगी। इसका मतलब यह है कि नोएडा आज जितने गंगाजल का उपभोग करता है उसे तब इसके तीन गुना गंगाजल की आवश्यकता रहेगी।
इस बीच गंगा में प्रदूषण का स्तर बढ़ने के साथ उसके जल के शोधन की लागत भी बढ़ जाएगी। इस समय जब भी मसूरी और डासना के पानी की सप्लाई बन्द होगी नोएडा का निवासियों को भारी पानी से काम चलाना पड़ेगा। जहाँ प्राधिकरण चाहता है कि वह नागरिकों की समस्या का हल करने के लिये निर्बाध रूप से पानी की आपूर्ति करे वहीं यह सवाल भी उठता है कि क्यों नोएडा अपने पानी को उपयोगी बनाने के लिये सिर्फ खर्चीले तरीके पर विचार कर रहा है।
वर्षाजल संचयन धरती के जल के स्तर को सुधारने के लिये एक सफल उपाय साबित हुआ है। नोएडा प्राधिकरण के मुख्य वास्तुकार और शहर योजनाकार विनय देवपुजारी का कहना है कि शहर के 2,432 हेक्टेयर ज़मीन में तकरीबन 74 करोड़ घनमीटर वर्षाजल का संचयन किया जा सकता है। इस पानी का उपयोग भूजल को रिचार्ज करने और उसकी गुणवत्ता बढ़ाने में किया जा सकता है। इस विकेन्द्रित समाधान की ओर बढ़ते हुए पाइपों पर आने वाला खर्च तेजी से कम किया जा सकता है।
नोएडा की भावी योजना है कि भूजल का प्रयोग बन्द कर दिया जाये और घरेलू उद्देश्य के लिये पूरी तरह से गंगाजल पर निर्भर हो जाया जाये। उसकी यह भी योजना है कि बेकार जल को शोधन के बाद रिहायशी इलाकों में निजी लानों की सिंचाई और औद्योगिक व फार्म हाउसों की सिंचाई के लिये इस्तेमाल किया जाए। बेकार जल को शोधित करके इस्तेमाल करने का विचार अच्छा है क्योंकि मास्टर प्लान 2021 के अनुसार शहर भविष्य में 28.8 करोड़ लीटर प्रतिदिन बेकार जल निकालेगा। सन् 2031 तक सीवेज का उत्पादन 41.4 करोड़ लीटर प्रतिदिन होने की उम्मीद है।
लेकिन शहर क्यों भूजल का इस्तेमाल बन्द करके पूरी तरह गंगाजल पर निर्भर होना चाहता है यह समझना कठिन है। नोएडा में वर्षा के जल के संचयन की भारी क्षमता है। हमें यह समझना होगा कि भूजल तो फिर बढ़ जाएगा बस उसके लिये भूजल के रिचार्ज की व्यवस्था करनी होगी ताकि सालाना भूजल का कर्षण नियंत्रित हो सके। नोएडा को शहर के भूजल के रिचार्ज के लिये अपने सतह के ऊपर के जलाशयों को भी बचाना होगा। यह नोएडा की जल समस्या का ज्यादा स्थायी समाधान होगा।
सुष्मिता सेनगुप्ता वाटर प्रोग्राम की डिपुटी प्रोग्राम मैनेजर हैं। वे जियोलॉजिस्ट हैं और वाटर मैनेजमेंट व सफाई से सम्बन्धित मुद्दों की नीतियों पर काम करती हैं।
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Post By: RuralWater