नमामि गंगे परियोजना के 65 प्रोजेक्ट 132 गांव और 15 शहरों में चल रहे हैं

गंगा को अविरल बनाने के लिए लाई गई है नमामि गंगे।
गंगा को अविरल बनाने के लिए लाई गई है नमामि गंगे।

विश्व की महानमत श्रृंखला हिमालय। नैसर्गिक सौंदर्य ही परिपूर्ण नहीं, आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण। इसी भव्य हिमालय की गोद में बसा है उत्तराखंड और यहीं है जीवनदायिनी गंगा का उद्गम स्थल। हिमालय के 25 किमी. लंबे गोमुख ग्लेशियर से शुरू होती है गंगा की जीवन यात्रा। अपनी पांच धाराओं भागीरथी, मंदाकिनी, धौलीगंगा, पिंडर और अलकनंदा को खुद में समेटते हुए राज्य में हरिद्वार तक 405 किलोमीटर का सफर तय करती है।

गोमुख से लेकर हरिद्वार के सफर के दौरान गंगा को अपने किनारे बसे 15 शहरों और 132 गांवों से जूझना पड़ रहा है। रोजाना ही इनसे निकलने वाले टनों कूड़ा-करकट से लेकर करोड़ों लीटर सीवरेज ने गंगा का आंचल मैला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। गंगा को इस मुश्किल से निकालकर उसे साफ सुथरा करने को लांच की गई नमामि गंगे परियोजना। इसके तहत 2017 से उत्तराखंड में गंगा की निर्मलता के लिए कोशिशें शुरू हुई और वर्तमान में 65 प्रोजेक्ट किए गए हैं। धर्मनगरी  हरिद्वार में गंगा में गिरने वाले नालों और सीवरेज की गंदगी जाने से रोकने को सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के कार्य सबसे अधिक हैं। 

ये शहर हैं शामिल

बद्रीनाथ, जोशीमठ, गोपेश्वर, नंदप्रयाग, गोचर, कीर्तिनगर, मुनि की रेती, टिहरी, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, श्रीनगर, ऋषिकेश व हरिद्वार। इन शहरों में 132 एमएलडी क्षमता के एसटीपी, 59 नालों की टैपिंग, 70 से ज्यादा स्नान घाट, विभिन्न स्थानों पर श्मशान घाट, स्नान घाटों का सौंदर्यीकरण समेत कई कार्य होने हैं। इनमें से कुछ हो चुके हैं, जबकि कुछ प्रगति पर हैं। 

ये हैं प्रमुख प्रोजेक्ट

  • गंगा से लगे शहरों में एसटीपी का निर्माण।
  • गंगा में गिरने वाले गंदे नालों की टैपिंग।
  • गंगा किनारे के पुराने घाटों का जीर्णोद्धार।
  • स्नान घाट व श्मशान घाटों का निर्माण।
  • गंगा व उसकी सहायक नदियोें के किनारे पौधरोपण।
  • विशेष मशीनों से सतह की सफाई।
  • विभिन्न संगठनों व संस्थाओं की मदद से जनजागरुकता।
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