एस.के. कलंकार, सेंधवालगातार गिरते जा रहे भूमिगत जलस्तर के उत्थान हेतु पूरे विश्व में भरसक प्रयास किये जा रहे हैं। इनमें तालाबों का निर्माण, ग्रामीण क्षेत्रों में जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन कार्य एवं शहरी क्षेत्रों में छत का पानी जमीन में उतारना व सोख्ता गड्ढ़ों का निर्माण प्रमुख हैं।
भूमि की सतह के नीचे से जल प्राप्ति के दो स्रोत हैं। एक कुआं एवं दूसरा नलकूप। कुएँ से प्राप्त होने वाला जल कड़ी चट्टान की ऊपरी सतह, मुरूम व मिट्टी से है, जबकि नलकूप से प्राप्त होने वाला जल कड़ी चट्टान में अधिक गहराई से आता है। प्राकृतिक रूप से भूमिगत जल भंडार के होने वाले पुनर्भरण की तुलना में दोहन की मात्रा अधिक है। कुएँ का सतह तक तो यानी कड़ी चट्टान के ऊपर आसानी से पुनर्भरण हो जाता है, लेकिन बहुत कम जल नलकूपों की गहराई तक प्रवेश कर पाता है। गहराई में पानी की कमी होने से भूमि की ऊपरी सतह का पानी लगातार नीचे उतरते रहने से कुएँ जल्द ही सूखने लगते हैं, और न ही गहराई वाला जल भंडार पूरी तरह से भर पाता है। जल पुनर्भरण के कृत्रिम उपायों में तालाब निर्माण तो बहुत महंगा साधन है ही मगर जल ग्रहण क्षेत्र प्रबंधन कार्य भी काफी खर्चीला उपाय है। आवश्यकता है मितव्ययिता एवं अधिक कारगर तकनीक की। वर्षा का अधिकांश जल बहकर समुद्र में चला जाता है। उसी बहकर जाने वाले जल को नलकूप पुनर्भरण की पारम्परिक तकनीक में कुछ संशोधन कर बड़े पैमाने पर पुनर्भरण का कार्य बड़वानी जिले के निवाली ग्राम के आस-पास किया गया है। उसके निम्न परिणाम प्राप्त हुए हैः-
1. कुओं के जलस्तर में पुर्ववर्ती वर्षों की अपेक्षा जलस्तर ऊपर उठा चार वर्ष से पूर्णतया शुष्क, चालीस फीट गहरे व नब्बे वर्ष पुराने कुएँ में पहली बार जलस्तर जमीन से छः फीट गहराई तक ऊपर उठा।
2. एक नलकूप द्वारा पुणर्भरण से आसपास के 500-600 एकड़ क्षेत्र में 500 फीट गहरे वर्षों से शुष्क अथवा निम्न स्तरय 10 नलकूपों में जलस्तर जमीन से 5-6 फीट गहराई तक आ गया एवं एक नलकूप से जमीन से डेढ़ फीट ऊंचे केसिंग पाईप से अपने आप 15 दिन तक एक हार्स पावर से अधिक का पानी बहता (ओवरफ्लो) रहा है।
3. पुनर्भरण के कारण रिक्त भूमिगत जल भंडार से विस्थापित हवा, नाले, कुएँ, नलकूपों व खेतों में तीव्र गति से बाहर आती हुई पायी गई। खेत में जमीन से हवा बाहर आने की घटना पुनर्भरण क्षेत्र से करीब 20 कि.मी. दूर मटली ग्राम में पायी गई।
गुमड़िया नाले किनारे स्थित कालूसिंग बर्डे के नलकूप से सर्वाधिक जल भूमिगत हुआ है। एक मोटी गणनानुसार 500 घनमीटर प्रतिदिन की दर से 2 अगस्त से 2 नवम्बर के बीच करीब 45000 घन मीटर पानी भूमिगत हुआ है। नलकूप पर मात्र 1000 रूपये व्यय हुए हैं 45000 घनमीटर जलधारण के तालाब निर्माण पर करीब 15 लाख रुपये लागत आती है व तालाब से अतिअल्प जल नलकूप की गहराई तक जा पाता है।
पुनर्भरण के इस कार्य हेतु वे नलकूप जो कभी पर्याप्त पानी देते थे या दे रहे हैं वे उपयोगी साबित हुए हैं। नलकूप पुनर्भरण हेतु निम्न तरीके उपयोगी हैं :-
1. यदि नलकूप नदी व नाले के अतिनिकट है तो नलकूप के ईर्द-गिर्द 4 से 5 फीट व्यास का गड्ढा नाले के तल से एक फीट गहरा खोद कर व नाले के तल से केसिंग पाईप तक नाली खोद कर नाले के प्रवाह को केसिंग पाईप तक लाया जावे। पानी को छानने हेतु नाले में गड्ढे के निकट छोटे पत्थर की दीवाल के बाहर नाले की ओर गिट्टी और मोटी रेत डालकर इस तरह ऊँचा फिल्टर बनाया जाये। जिससे बाढ़ का डोला पानी सीधा प्रवेश न कर सके। केसिंग पाईप को नाला तल लेवल पर काट कर एक टी लगाकर ऊपर की ओर पुनः केसिंग पाईप का टुकड़ा लगा दिया जावे। जिससे कि मोटर ऊपर से डाली जा सके व टी के द्वारा पानी नलकूप में जा सके। इस तरीके में व्यय रू.500 या मौके की स्थिति अनुसार अधिक हो सकता है। नाले के जलस्तर को ऊँचा उठाने हेतु प्रवाह के नीचे की ओर पत्थर का अथवा बोरी बांध बनाना उचित होगा।
2. यदि नलकूप नाले से कुछ ऊंचाई व दूरी पर है तो प्रवाह के ऊपर की ओर जहां से नहर या नाली बनाकर पानी नलकूप तक लाया जा सके, ऐसे स्थान पर बोरी बांध बनाकर अथवा पूर्ववर्ती निर्मित स्टापडेम से नाली बनाकर नलकूप तक लाया जावे। नलकूप के ईर्द-गिर्द 3-4 फीट व्यास का 2 फीट गहरा गड्डा खोदा जावे। केसिंग पाईप को नीचे इस तरह कांटे ताकि नाली से आने वाला पानी नलकूप में गिर सके। नाली में छोटे पत्थर के पीछे मिट्टी व रेत डालकर फिल्टर निर्मित किया जावे। इस विधि में उपयोग में आने वाली सामग्री स्थानीय है व श्रम कृषक स्वयं कर सकता है इसलिए व्यय शून्य है।
3. यदि नलकूप किसी कुऐं के निकट है व वर्षा ऋतु में कुएँ का जलस्तर काफी ऊपर आ जाता है तो मोटर द्वारा कुएं से नलकूप में पानी भरें। नलकूप के अंदर डिलेवरी पाईप कुएँ के जलस्तर से 10-15 फीट नीचे हो तो मोटर बंद करने के बाद भी सायफन विधि से कुएं का पानी लगातार नलकूप में जाता रहेगा। चूँकि साधन कृषकों के पास उपलब्ध होने से विधि की लागत भी शून्य है।
4. यदि नलकूप नाले से अधिक दूरी पर है एवं वर्षा ऋतु में आस-पास के क्षेत्र में कुओं का जलस्तर काफी उपर आ जाता है। तो ऐसी स्थिति में नलकूप के ईद-गिर्द 8-10 फीट व्यास का कुआँ खोदा जावें व कुऐं के जलस्तर से नीचे के लेबल पर केसिंग पाईप को काट देने से कुएं का पानी नलकूप में जाने लगेगा। इसके साथ ही कूप चार्जिंग की इंदौरविधि भी जोड़ दी जावे। इस विधि में लागत रू. 5000 या अधिक हो सकती है।
5. कूप चार्जिंग इंदौर विधि के अनुसार आसपास की पहाड़ी एवं खेतों का पानी बहकर जाता हो उसे बडिंग व नालियों के द्वारा गाईड करें व नलकूप से निकटतक दूरी पर 5x5x5 फीट का गड्ढ़ा कर नीचे तीन फीट पत्थर छः इंच गिट्टी एवं एक फीट रेत की परत द्वारा फिल्टर निर्माण करें। फिल्टर के निचले लेवल से नलकूप के केसिंग पाईप में ही लगाकर पाईप द्वारा संयुक्त करें। इस विधि में व्यय रु. 2000/- अथवा पाईप लाईन की लंबाई अनुसार अधिक हो सकता है।
क्र. 1 व 2 की विधि शहरी क्षेत्र में जहां गटरे व अन्य रासायनिक प्रदूषण हो, न अपनाएं। जल प्रदूषण को कम करने हेतु रासायनिक खाद के बजाय जैविक खाद का उपयोग करना उचित होगा। नलकूप की पुनर्भरण क्षमता नाले के प्रवाह व भू-गर्भीय संरचना पर निर्भर करती है। नलकूप का पुनर्भरण क्षेत्र समय के साथ-साथ फैलता जायेगा। मुख्य बात हैं नालों से बहकर जाने वाले पानी को नलकूप में उतारना।
बड़े जतन के बाद पानी की एक बूंद जमीन के अंदर पहुंच पाती है, इसलिये हमें पानी की एक-एक बूंद बचाने की कोशिश करना चाहिये।
लेखक श्री एस. के. कलंकार इंजीनियर, नलकूप द्वारा जलपुनर्भरण विधि का सफल क्रियान्वयन तथा जिला स्तरीय जलग्रहण क्षेत्र प्रंबधन की तकनीकी समिति एवं सलाहकार समिति में सदस्य मनोनीत।
भूमि की सतह के नीचे से जल प्राप्ति के दो स्रोत हैं। एक कुआं एवं दूसरा नलकूप। कुएँ से प्राप्त होने वाला जल कड़ी चट्टान की ऊपरी सतह, मुरूम व मिट्टी से है, जबकि नलकूप से प्राप्त होने वाला जल कड़ी चट्टान में अधिक गहराई से आता है। प्राकृतिक रूप से भूमिगत जल भंडार के होने वाले पुनर्भरण की तुलना में दोहन की मात्रा अधिक है। कुएँ का सतह तक तो यानी कड़ी चट्टान के ऊपर आसानी से पुनर्भरण हो जाता है, लेकिन बहुत कम जल नलकूपों की गहराई तक प्रवेश कर पाता है। गहराई में पानी की कमी होने से भूमि की ऊपरी सतह का पानी लगातार नीचे उतरते रहने से कुएँ जल्द ही सूखने लगते हैं, और न ही गहराई वाला जल भंडार पूरी तरह से भर पाता है। जल पुनर्भरण के कृत्रिम उपायों में तालाब निर्माण तो बहुत महंगा साधन है ही मगर जल ग्रहण क्षेत्र प्रबंधन कार्य भी काफी खर्चीला उपाय है। आवश्यकता है मितव्ययिता एवं अधिक कारगर तकनीक की। वर्षा का अधिकांश जल बहकर समुद्र में चला जाता है। उसी बहकर जाने वाले जल को नलकूप पुनर्भरण की पारम्परिक तकनीक में कुछ संशोधन कर बड़े पैमाने पर पुनर्भरण का कार्य बड़वानी जिले के निवाली ग्राम के आस-पास किया गया है। उसके निम्न परिणाम प्राप्त हुए हैः-
1. कुओं के जलस्तर में पुर्ववर्ती वर्षों की अपेक्षा जलस्तर ऊपर उठा चार वर्ष से पूर्णतया शुष्क, चालीस फीट गहरे व नब्बे वर्ष पुराने कुएँ में पहली बार जलस्तर जमीन से छः फीट गहराई तक ऊपर उठा।
2. एक नलकूप द्वारा पुणर्भरण से आसपास के 500-600 एकड़ क्षेत्र में 500 फीट गहरे वर्षों से शुष्क अथवा निम्न स्तरय 10 नलकूपों में जलस्तर जमीन से 5-6 फीट गहराई तक आ गया एवं एक नलकूप से जमीन से डेढ़ फीट ऊंचे केसिंग पाईप से अपने आप 15 दिन तक एक हार्स पावर से अधिक का पानी बहता (ओवरफ्लो) रहा है।
3. पुनर्भरण के कारण रिक्त भूमिगत जल भंडार से विस्थापित हवा, नाले, कुएँ, नलकूपों व खेतों में तीव्र गति से बाहर आती हुई पायी गई। खेत में जमीन से हवा बाहर आने की घटना पुनर्भरण क्षेत्र से करीब 20 कि.मी. दूर मटली ग्राम में पायी गई।
गुमड़िया नाले किनारे स्थित कालूसिंग बर्डे के नलकूप से सर्वाधिक जल भूमिगत हुआ है। एक मोटी गणनानुसार 500 घनमीटर प्रतिदिन की दर से 2 अगस्त से 2 नवम्बर के बीच करीब 45000 घन मीटर पानी भूमिगत हुआ है। नलकूप पर मात्र 1000 रूपये व्यय हुए हैं 45000 घनमीटर जलधारण के तालाब निर्माण पर करीब 15 लाख रुपये लागत आती है व तालाब से अतिअल्प जल नलकूप की गहराई तक जा पाता है।
पुनर्भरण के इस कार्य हेतु वे नलकूप जो कभी पर्याप्त पानी देते थे या दे रहे हैं वे उपयोगी साबित हुए हैं। नलकूप पुनर्भरण हेतु निम्न तरीके उपयोगी हैं :-
1. यदि नलकूप नदी व नाले के अतिनिकट है तो नलकूप के ईर्द-गिर्द 4 से 5 फीट व्यास का गड्ढा नाले के तल से एक फीट गहरा खोद कर व नाले के तल से केसिंग पाईप तक नाली खोद कर नाले के प्रवाह को केसिंग पाईप तक लाया जावे। पानी को छानने हेतु नाले में गड्ढे के निकट छोटे पत्थर की दीवाल के बाहर नाले की ओर गिट्टी और मोटी रेत डालकर इस तरह ऊँचा फिल्टर बनाया जाये। जिससे बाढ़ का डोला पानी सीधा प्रवेश न कर सके। केसिंग पाईप को नाला तल लेवल पर काट कर एक टी लगाकर ऊपर की ओर पुनः केसिंग पाईप का टुकड़ा लगा दिया जावे। जिससे कि मोटर ऊपर से डाली जा सके व टी के द्वारा पानी नलकूप में जा सके। इस तरीके में व्यय रू.500 या मौके की स्थिति अनुसार अधिक हो सकता है। नाले के जलस्तर को ऊँचा उठाने हेतु प्रवाह के नीचे की ओर पत्थर का अथवा बोरी बांध बनाना उचित होगा।
2. यदि नलकूप नाले से कुछ ऊंचाई व दूरी पर है तो प्रवाह के ऊपर की ओर जहां से नहर या नाली बनाकर पानी नलकूप तक लाया जा सके, ऐसे स्थान पर बोरी बांध बनाकर अथवा पूर्ववर्ती निर्मित स्टापडेम से नाली बनाकर नलकूप तक लाया जावे। नलकूप के ईर्द-गिर्द 3-4 फीट व्यास का 2 फीट गहरा गड्डा खोदा जावे। केसिंग पाईप को नीचे इस तरह कांटे ताकि नाली से आने वाला पानी नलकूप में गिर सके। नाली में छोटे पत्थर के पीछे मिट्टी व रेत डालकर फिल्टर निर्मित किया जावे। इस विधि में उपयोग में आने वाली सामग्री स्थानीय है व श्रम कृषक स्वयं कर सकता है इसलिए व्यय शून्य है।
3. यदि नलकूप किसी कुऐं के निकट है व वर्षा ऋतु में कुएँ का जलस्तर काफी ऊपर आ जाता है तो मोटर द्वारा कुएं से नलकूप में पानी भरें। नलकूप के अंदर डिलेवरी पाईप कुएँ के जलस्तर से 10-15 फीट नीचे हो तो मोटर बंद करने के बाद भी सायफन विधि से कुएं का पानी लगातार नलकूप में जाता रहेगा। चूँकि साधन कृषकों के पास उपलब्ध होने से विधि की लागत भी शून्य है।
4. यदि नलकूप नाले से अधिक दूरी पर है एवं वर्षा ऋतु में आस-पास के क्षेत्र में कुओं का जलस्तर काफी उपर आ जाता है। तो ऐसी स्थिति में नलकूप के ईद-गिर्द 8-10 फीट व्यास का कुआँ खोदा जावें व कुऐं के जलस्तर से नीचे के लेबल पर केसिंग पाईप को काट देने से कुएं का पानी नलकूप में जाने लगेगा। इसके साथ ही कूप चार्जिंग की इंदौरविधि भी जोड़ दी जावे। इस विधि में लागत रू. 5000 या अधिक हो सकती है।
5. कूप चार्जिंग इंदौर विधि के अनुसार आसपास की पहाड़ी एवं खेतों का पानी बहकर जाता हो उसे बडिंग व नालियों के द्वारा गाईड करें व नलकूप से निकटतक दूरी पर 5x5x5 फीट का गड्ढ़ा कर नीचे तीन फीट पत्थर छः इंच गिट्टी एवं एक फीट रेत की परत द्वारा फिल्टर निर्माण करें। फिल्टर के निचले लेवल से नलकूप के केसिंग पाईप में ही लगाकर पाईप द्वारा संयुक्त करें। इस विधि में व्यय रु. 2000/- अथवा पाईप लाईन की लंबाई अनुसार अधिक हो सकता है।
क्र. 1 व 2 की विधि शहरी क्षेत्र में जहां गटरे व अन्य रासायनिक प्रदूषण हो, न अपनाएं। जल प्रदूषण को कम करने हेतु रासायनिक खाद के बजाय जैविक खाद का उपयोग करना उचित होगा। नलकूप की पुनर्भरण क्षमता नाले के प्रवाह व भू-गर्भीय संरचना पर निर्भर करती है। नलकूप का पुनर्भरण क्षेत्र समय के साथ-साथ फैलता जायेगा। मुख्य बात हैं नालों से बहकर जाने वाले पानी को नलकूप में उतारना।
बड़े जतन के बाद पानी की एक बूंद जमीन के अंदर पहुंच पाती है, इसलिये हमें पानी की एक-एक बूंद बचाने की कोशिश करना चाहिये।
लेखक श्री एस. के. कलंकार इंजीनियर, नलकूप द्वारा जलपुनर्भरण विधि का सफल क्रियान्वयन तथा जिला स्तरीय जलग्रहण क्षेत्र प्रंबधन की तकनीकी समिति एवं सलाहकार समिति में सदस्य मनोनीत।
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