नित्तै खेती दुसरे गाय। नाहीं देखै तेकर जाय।।
घर बैठल जो बनवै बात। देह में बस्त्र न पेट में भात।।
भावार्थ- जो किसान रोज खेती का कार्य नहीं करता और हर दूसरे दिन गाय को नहीं देखता, उसकी दोनों चीजें बर्बाद हो जाती हैं। यदि घर में बैठे-बैठे सिर्फ बातें करता रहता है तो उसके देह पर न तो वस्त्र रहता है और न ही पेट में भात अर्थात् वह गरीब हो जाता है।
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