निर्मल जल की धारा

नन्हीं निर्मल जल की धारा
जब धरा से फूट निकलती है
बच बाधाओं से कुछ सकुचाती
निज श्रम से मार्ग बनाती है
कोई साथ नहीं कुछ ज्ञात नहीं
सब कुछ ही तो अन्जाना है
उत्साहित हो अपने बल पर
आगे ही आगे बढ़ते जाना है
संकल्प लिए दृढ़ निष्ठा से
उठती गिरती कल कल करती
कहीं उछल कूद कर गाती सी
चट्टानों से भी टकरा जाती
उसके कृत से आकर्षित हो
कुछ और नन्हीं जल धाराएं
मिल जाती हैं उसमें आकर
हटती जातीं सब बाधाएं
फिर यौवन सा आ जाता है
परिवर्तन रूप दिखाता है
नन्हीं धारा बनती जल नद
मार्ग स्वयं बन जाता है
गर्जन कर बलखाती आगे बढ़
संताप धरा का हरती है
बनती सबकी जीवन धारा
उपकार सभी का करती है
निस्पृह हो बहती जाती
कलुषित तन मन को स्वच्छ बना
ग्रामों नगरों को लांघ चली
कहीं जलप्लावन कहीं सर्जना
रोके से भी न रुके कभी
आतुर है प्रिय अंक समाने को
वो सागर भी उत्साहित है
प्रियतमा को गले लगाने को !!

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