नैनीताल की झील बाहरी हिमालय में मेन बाउन्ड्री थ्रस्ट के करीब स्थित प्रकृति की दुर्लभ रचना है। सात ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं से घिरे नैनीताल की भू-आकृति कटोरानुमा है। नैनीताल, पट्टी / परगना छःखाता के अन्तर्गत आता है। छःखाता शब्द संस्कृत का अपभ्रंश है। छःखाता का भावार्थ है- 60 झीलों वाला क्षेत्र। जिसमें से नैनीताल, भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल, मलुवाताल, खुर्पाताल, सरियाताल और बरसाती झील सूखाताल आदि शामिल है। नैनीताल का भौगोलिक क्षेत्रफल 11.73 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ पहाड़ियों के बीच समुद्र सतह से 1938 मीटर की ऊँचाई पर एक भव्य झील स्थित है। एक दौर में इस झील की लंबाई करीब 1,433 मीटर और चौड़ाई करीब 465 मीटर गहराई 28.3 मीटर और झील की परिधि 3,621 मीटर थी। तालाब की सतह का क्षेत्रफल 487.639 मीटर था। झील का क्षेत्रफल 120.5 एकड़ था। तालाब के पानी का रंग नीला-हरा था। पानी एकदम साफ-सुथरा पीने योग्य था। बरसात और पहाड़ियों में स्थित सदाबहार झरने तालाब को सदैव पानी से भरा रखते थे।
नैनीताल के उत्तर में 2,611 मीटर ऊँची चोटी नैना पीक है। इससे आगे 2.270 मीटर ऊँची आलमा पहाड़ी है। पूर्वी छोर में 2,267 मीटर ऊँची शेर-का-डांडा पहाड़ी है। पश्चिम में 2,273 मीटर ऊँची देवपाटा पहाड़ी है, इसे कैमल्स बैक भी कहते हैं। दक्षिण में 2,235 मीटर ऊँची अयारपाटा पहाड़ी है। इसके अतिरिक्त हांडी-भांडी 2,139 मीटर और 2,292 मीटर ऊँची टिफन टॉप पहाड़ियां हैं।
यहाँ की जलवायु समशीतोष्ण है। यहाँ गर्मियों में अधिकतम औसत तापमान 26.7 डिग्री सेंटीग्रेट तथा औसत न्यूनतम तापमान 10.6 डिग्री सेंटीग्रेट रहता है। जाड़ों में यहाँ का औसत तापमान 16.6 डिग्री सेंटीग्रेट तथा न्यूनतम 2.8 डिग्री सेंटीग्रेट रहता है। ठंड के दिनों बर्फ गिरने पर यहाँ का तापमान कभी ऋण (-) 4 डिग्री सेंन्टीग्रेट से नीचे चला जाता है। आर्द्रता सौ प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक रहती है।
नैनीताल में वर्षा का औसत 90 से 120 इंच तक आंका गया है। यहाँ मानसून के अलावा अन्य ऋतुओं में भी वर्षा होती है। जाड़ों में हिमपात भी होता है। नगर की वायु दिशा चक्रवातीय एवं प्रति चक्रवातीय है। यहाँ की जलवायु को प्रभावित करने में झील महत्वपूर्ण कारक है। गर्मियों के मौसम में भी ठंडी हवा के झोंके यहाँ की जलवायु की प्रमुख विशेषता है।
झील की उत्पत्ति
इतनी ऊँचाई पर तालाब की मौजूदगी को लेकर वैज्ञानिकों के अलग-अलग मत है। भू-गर्भ विज्ञानी एच.एफ. बलैण्डफोर्ड ने 1877 और डब्ल्यू थिओबॉल्ड ने 1880 में कहा था कि यह झील ग्लेशियर की वजह से बनी। तर्क था कि ग्लेशियर का को पानी भू-स्खलन के बाद यहाँ भर गया था। जबकि डॉ. बेल ने इस थ्योरी नकारते हुए तालाब की उत्पत्ति की वजह भू-स्खलन बताया। नैनीताल में हुए 1880 के भू-स्खलन के बाद भू-गर्भ विज्ञानी आर. डी. ओल्डहम ने भू-स्लखन की थ्योरी की हिमायत की। कहा कि ऐसा संभव हो सकता है कि भू-स्खलन की वजह से यह झील अस्तित्व में आई हो। जबकि डब्ल्यू बाल्कर नेमिस्टर ने भू-वैज्ञानिक मिस्टर थिओबॉल्ड के हवाले से लिखा है कि नैनीताल जिले में मौजूद तालाबों के बनने का तरीका तकरीबन एक सा है। ये सभी झीलें ग्लेशियर की देन हैं। इन तालाबों के स्थायित्व की वजह ग्लेशियरों के कारण बने पत्थरों का ढांचा है।
ताजा शोधों से यह बात भी उभर कर सामने आई है कि टेक्टॉनिक प्लेटों के खिसकने से भू-स्खलन या भूकंप की वजह से भी तालाब की उत्पत्ति संभव हो सकती है। एक मत यह भी है कि यहाँ से एक नदी गुजरती थी। टेक्टॉनिक प्लेटों के खिसकने से भू-स्खलन या भूकंप की वजह से अयारपाटा और आलमा की पहाड़ियां ऊपर को उठी। नदी का पानी ठहरने से तालाब का जन्म हो गया। प्रसिद्ध भू-गर्भ विज्ञानी पद्मभूषण प्रो. खड्ग सिंह वल्दिया, नैनी झील की उत्पत्ति की वजह 'नैनीताल भ्रंश' को मानते हैं। प्रो. वल्दिया के अनुसार बलियानाले से नैनापीक पहाड़ी के बीच एक अंश (दरार) गुजर रही है, जिसकी लम्बाई करीब 14-15 किलोमीटर है। यह भ्रंश बलियानाले से होता हुआ दक्षिण पूर्व में तल्लीताल बस अड्डे से डी.एस.बी. परिसर को छूता हुआ परदाधारा, ए.टी.आई. होते हुए उत्तर पश्चिम में देवपाटा तथा नैनी शिखर के बीच 'छिना' पार तक जाता है। प्रो. वल्दिया के अनुसार 'नैनीताल भ्रंश' पर जो विवर्तनिक हलचलें हुई, उनके कारण शेर-का-डांडा और नैनी शिखर वाली श्रेणी कुछ ऊपर उठी और अयारपाटा-देवपाटा वाली श्रेणी कुछ धंस गयी और साथ ही पश्चिमोत्तर की ओर कुछ झुक भी गयी, 'टिल्ट' हो गयी। परिणामस्वरूप इन दो पर्वतों के बीच बहने वाली सरिता का प्रवाह अवरूद्ध हो गया, वह बंध गई और बना नैनी सरोवर या नैनीताल) वैज्ञानिकों के अनुसार नैनीताल में पाए जाने वाले पत्थर 2,300 से 2,800 लाख वर्ष पुराने हैं। इन पत्थरों को क्रोल कहा जाता है।
1) पेड़-पौधे एवं वनस्पति
यहाँ चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष अधिक संख्या में है। पया, उदेश, उतीश, खर्सु, रियांज, तिलौज, फणियोंट, पटगलिया, लौथ, बुरांश तथा बाँस की अनेक प्रजातियां हैं। पहले अयारपाटा में अयार का घना जंगल था, संभवतः इसी कारण इस पहाड़ी का नाम अयारपाटा पड़ा। इसके अलावा सुरई, चीड़, अंगू, चमखिड़क, देवदार, पुतली, चिनार जैसी अनेक प्रजातियों के पेड़-पौधे एवं वनस्पतियां पाई जाती हैं। यहाँ उप हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाली औषधीय जड़ी-बूटियां भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। इनमें अनेक स्थानिक प्रजातियां भी हैं। एक दौर में टांकी के क्षेत्र में बुरांश के पेड़ों की भरमार थी, इसे 'बुरांश का डांडा' भी कहा जाता था।
(2) वन्य जीव एवं जंतु
यहाँ काला गिद्ध, भूरा-पीला गिद्ध, स्लेटी-भूरा गिद्ध, सफेद पीठ वाला गिद्ध और दाढ़ी वाला गिद्ध समेत गिद्धों की छह प्रजातियां पाई जाती हैं। बाज की पाँच प्रजातियां हैं। जंगली बिल्ली, भालू, बाघ, गुलदार, सांभर, सराऊँ, साही, उड़न गिलहरी, घुरड़, काकड़, गीदड़ और लोमड़ी आदि वन्य जीव हैं। यहाँ विविध प्रजातियों के पक्षी हैं, जिनमें कोक्लास, चीड़ फीजंट, रेड जंगल फाउल, रफस बैलीड निल्तावा, वरडीटर, फ्लाई केचर, अल्ट्रा मरीन फ्लाई कैचर, पल्मबस रेड स्टार्ट, ब्लू विश्लिंग थ्रश (कलचुनिया), बार टेल्ड ट्री क्रीपर, चेस्टनट बेल्लिड नथैच, ओरिएण्टल वाइट आई, वाइट थ्रोटेड लाफिंग थ्रश, रस्टी चीक्ड सिमिटार वैब्लर, हिमालयन बुलबुल, ब्लैक लोरेड टिट, ग्रीन बैक्ड टिट, ग्रेट बारबेट (न्योली) एवं किंग फिशर आदि प्रजातियां शामिल हैं। इधर कुछ समय से नैनीताल में अनेक नई प्रजातियों की रंग-बिरंगी चिड़ियों के झुण्ड भी दिखाई देने लगे हैं। अब नैनीताल के सभी वन क्षेत्रों में कांकड़ और घुरड़ आसानी से देखे जा सकते हैं। नैनीताल के झील में एक दौर में महासीर, हिल ट्राउड, चीन से लाई गई मिरर कार्प और स्थानिक प्रजाति की कार्प मछलियां पाई जाती थीं। जिनका वजन 28 से 35 पाउंड तक होता था।
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