पानी फ्री में आता है, इसलिए चिंता नहीं। खाद, बीज डालकर मेहनत करने के बाद जब दाना वापस नहीं आता तो भगवान को कोसने की जगह खेतों से होकर भगवान के दिए जा रहे अमृत को जाने ही क्यों देते हैं। मप्र के देवास जिले में धरती माता की गोद को फिर से जल के जरिए फिर हराभरा करने वाले आदिवासी आयुक्त उमाकांत उमराव ने जब यह सीधी सी बात किसानों से कही तो उन्होंने हाथ खड़े कर ऐसा होने से रोकने के लिए हामी भरी। यह दृश्य था अपना तालाब अभियान व पानी पुनरुत्थान तहत कजली मेला के मुख्य पंडाल पर देश भर से पानी बचाने के लिए काम करने वाले जलयोद्धाओं व किसानों के सामने का। इस दौरान अपने खेत पर तालाब खोदने वाले किसानों को नीली पगड़ी पहनाने के साथ ही जिला प्रशासन द्वारा प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया।
आदिवासी आयुक्त ने कहा कि इतिहास बताता है कि कभी बुंदेलखंड और विदर्भ देश के सर्वाधिक अमीर स्थानों में थे, इसका कारण यह है कि जहां पर समृद्धि होगी, वहीं पर युद्ध भी होंगे और अब हमारी नासमझी के कारण खेतों से नाले, नालियों और नदियों से अमृत बहा जा रहा है। जिलाधिकारी अनुज कुमार झा ने कहा कि यहां पर किसान खरीफ की फसल नहीं ले पाता। इसका कारण वर्षा जल का संरक्षण सही रूप में नहीं हो रहा है। उन्होंने हार्डीकल्चर का काम करने के लिए जिले के तमाम किसानों और सरकारी तौर पर श्रीनगर में किए गए प्रयास की चर्चा करते हुए उन्हें बधाई दी। इस दौरान जलसंरक्षण के लिए काम करने वाले पुष्पेन्द्र भाई ने कहा कि जल युद्ध वास्तव में विचार युद्ध के जरिए जीता जा सकता है।
बरबई के किसान बृजपाल सिंह ने कहा कि वर्ष 2005 में उन्होंने बोरिंग फेल होने के बाद तालाब का निर्माण किया था। यह निर्माण मित्रों की मदद से हुआ था। लेकिन आज इस तालाब का आकार काफी बढ़ चुका है और गांव व आसपास के किसान भी अपना खुद का तालाब खोदकर जलसंचयन का काम कर रहे हैं।
इस दौरान वाटर कीपर एलायंस अमेरिका की इंडिया हेड मीनाक्षी अरोड़ा, इंडिया वाटर पोर्टल के संपादक केसर भाई व अमिता, गांधी शांति प्रतिष्ठान के प्रभात झा, हाइड्रोलाजिस्ट व जियोलाजिस्ट बिजेन्द्र, विनीत व प्रवीण, लखनऊ के एमवी सिंह, बीरबल सिंह, बांदा के अशोक अवस्थी के साथ ही सैकड़ों की संख्या में किसान शामिल रहे।
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