निगरानी गुणवत्ता की

देश के समस्त जल संसाधनों का वर्गीकरण उनके अभिहीत सर्वोत्तम उपयोग के अनुसार किया गया था और ‘जल उपयोग मानचित्र’ तैयार किया गया था। जिन स्थानों पर पानी की गुणवत्ता निर्धारित मानक से भिन्न है, उन जल निकायों अथवा उनके भागों की पहचान के लिए उनकी गुणवत्ता को मापना महत्वपूर्ण समझा गया।

पानी की गुणवत्ता की निगरानी एक महत्वपूर्ण कार्य है जिससे इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि किस प्रकार के और किस सीमा तक प्रदूषण नियन्त्रण की आवश्यकता है। पहले से मौजूद प्रदूषण नियन्त्रण उपाय कितने कारगर रहे हैं, इसका भी पता चलता है। इससे पानी की गुणवत्ता की प्रवृत्तियों का भी पता चलता है और प्रदूषण नियन्त्रण उपायों की प्राथमिकता भी तय की जाती है।

भारत के प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड जलीय संसाधनों की शुद्धता की बहाली और सन्धारण के लिए उत्तरदायी हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि पानी की गुणवत्ता अपेक्षित स्तर पर बनी रहे, प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड को नियमित रूप से पानी की गुणवत्ता पर नजर बनाए रखने की जरूरत है।

उद्देश्य


पानी की गुणवत्ता की निगरानी निम्नलिखित मुख्य उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए की जाती है :

1. प्रदूषण नियन्त्रण रणनीतियाँ और उनकी प्राथमिकताओं के निर्धारण की युक्तिसंगत योजना तैयार करने के लिए,
2. विभिन्न जलीय निकायों अथवा उनके किसी भाग में आवश्यक प्रदूषण नियन्त्रण की प्रकृति और सीमा के आकलन के लिए,
3. पहले से मौजूद प्रदूषण नियन्त्रण उपायों की प्रभाविकता का मूल्याँकन करने के लिए,
4. समय-समय पर जलीय गुणवत्ता प्रवृत्ति का मूल्याँकन करने हेतु- किसी जलीय निकाय की समावेशिक क्षमता का मूल्याँकन करने तथा उससे प्रदूषण नियन्त्रण की लागत को कम करने के लिए,
5. विभिन्न प्रदूषकों के पर्यावरणीय नियति को समझने के लिए,
6. विभिन्न उपयोगों हेतु पानी की दुरुस्ती का मूल्याँकन करने के लिए।

राष्ट्रीय जल गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क


केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने देशभर में नदियों पर निगरानी केन्द्रों की स्थापना की है।

इस नेटवर्क में 1,700 केन्द्र हैं जो 27 राज्यों और 6 केन्द्रशासित प्रदेशों में फैले हुए हैं। सतही जल पर तिमाही आधार पर निगरानी की जाती है और भूजल के मामले में अर्द्धवार्षिक आधार पर। निगरानी नेटवर्क में 353 नदियाँ (979 केन्द्र), 107 झीलें (117 केन्द्र), 9 जलाशय, 44 तालाब, 15 संकरी खाड़ियाँ/समुद्री जल, 14 नहरें (44 केन्द्र), 18 नाले और 491 कुएँ शामिल हैं। जल नमूनों का विश्लेषण 28 मानकों पर किया जाता है। इनमें मैदानी अवलोकन के अलावा आसपास के जल नमूनों का भौतिक-रासायनिक और कीटाणु वैज्ञानिक मानक शामिल है। इसके अलावा, कुछ चुनिन्दा नमूनों में 28 धातुओं के पुट और 28 कीटनाशकों का भी विश्लेषण किया जाता है। कुछ विशिष्ट स्थानों में जैव-निगरानी भी की जाती है।

 

सर्वोत्तम उपयोगों हेतु प्राथमिक जल गुणवत्ता मानक

सर्वोत्तम उपयोग

वर्ग

मानक

पेयजल स्रोत-बिना पारम्परिक उपचार के, परन्तु कीटनाशक दवा डालने के बाद

1. कुल कोलिफार्म अवयव एमपीएन/100 मिली 50 या उससे कम होना चाहिए।

2. पीएच 6.5 और 8.5 के बीच

3. घुला हुआ ऑक्सीजन 6 मिग्रा प्रतिलीटर या अधिक

4. जैव रासायनिक ऑक्सीजन माँग 2 मिग्रा प्रतिलीटर या कम

खुले में स्नान

1. कुल कोलिफार्म अवयव एमपीएन/100 मिली 500 या उससे कम होना चाहिए।

2. पीएच 6.5 और 8.5 के बीच

3. घुला हुआ ऑक्सीजन 5 मिग्रा प्रतिलीटर या अधिक

4. जैव रासायनिक ऑक्सीजन माँग 3 मिग्रा प्रतिलीटर या कम

 

पेयजल स्रोत- कीटनाशक दवा के साथ पारम्परिक उपचार

1. कुल कोलिफार्म अवयव एमपीएन/100 मिली 5,000 या कम होना चाहिए।

2. पीएच 6 और 9 के बीच

3. घुलित ऑक्सीजन 4 मिग्रा प्रतिलीटर या कम

वन्य जीवन, मत्स्यपालन का प्रसार

1. पीएच 6.5 से 8.5 के बीच

2. घुला हुआ ऑक्सीजन 4 मिग्रा प्रतिलीटर अधिक

3. मुक्त अमोनिया (जैसे N) 1.2 मिग्रा/

सिंचाई औद्योगिक प्रशीतन, नियन्त्रित कचरना निपटान

1. पीएच 6.0 और 8.5 के बीच

2. विद्युतीय चालन-क्षमता 2,250 माइक्रो ओम्स प्रति सेमी से कम

3. सोडियम अवशोषण अनुपात 26 से कम

4. बोरॉन 2 मिग्रा प्रतिलीटर से कम

 



भारत में जल गुणवत्ता प्रबन्धन की अवधारणा


भारत में जल गुणवत्ता प्रबन्धन जल (प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण) अधिनियम, 1974 के प्रावधान के तहत किया जाता है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण के जरिए राष्ट्रीय जल संसाधनों की शुद्धता को बहाल करना और उसे बनाए रखना है। अधिनियम में शुद्धता के स्तर की कोई परिभाषा नहींं दी गई है।

केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने मानव उपयोग के संरक्षण के संदर्भ में शुद्धता को परिभाषित करने का प्रयास किया है और इस प्रकार, देश के विभिन्न जल निकायों की गुणवत्ता की पहचान के लिए जल के मानवीय उपयोग को ही आधार बनाया है।

समस्त प्राकृतिक जल निकायों का मौलिक (शुद्ध) स्तर बनाए रखना अथवा उसको बहाल करना एक महत्वाकांक्षा ही कहा जा सकता है। इस तरह के लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रदूषण नियन्त्रण गतिविधियाँ विकास गतिविधियों में बाधक हो सकती हैं और लागत भी बूते से बाहर हो सकती है। चूँकि प्राकृतिक जल निकायों का विभिन्न प्रतिस्पर्धी और परस्पर विरोधी माँगों के लिए इस्तेमाल होता है इसलिए इस उद्देश्य का अर्थ प्राकृतिक जल निकायों अथवा उनके किसी हिस्से में आवश्यक गुणवत्ता को बहाल करना और उसे बनाए रखना है।

इस प्रकार, ‘अभिहीत सर्वोत्तम उपयोग’ (डीबीयू) की अवधारणा का विकास (देखें तालिका-1) हुआ। इस अवधारणा के अनुसार, जल निकायों के विभिन्न उपयोगों में से जिसमें पानी की सर्वोत्तम गुणवत्ता की माँग होती है, उसे अभिहीत सर्वोत्तम उपयोग कहा जाता है। उस जल निकाय को उसी प्रकार नामित कर दिया जाता है। विभिन्न उपयोगों के लिए जल गुणवत्ता के मानकों का निर्धारण किया गया है।

देश के समस्त जल संसाधनों का वर्गीकरण उनके अभिहीत सर्वोत्तम उपयोग के अनुसार किया गया था और ‘जल उपयोग मानचित्र’ तैयार किया गया था। जिन स्थानों पर पानी की गुणवत्ता निर्धारित मानक से भिन्न है, उन जल निकायों अथवा उनके भागों की पहचान के लिए उनकी गुणवत्ता को मापना महत्वपूर्ण समझा गया। इससे भारत का जल गुणवत्ता मानचित्र तैयार करने में मदद मिलेगी।

यह सोचा गया था कि जिन जल निकायों में सुधार (बहाली) की आवश्यकता है, उनकी पहचान के लिए उनके जल उपयोग मानचित्र के ऊपर जल गुणवत्ता मानचित्र को चस्पा कर दिया जाए। इसके बाद, जल गुणवत्ता निगरानी के व्यापक नेटवर्क के जरिए जलीय गुणवत्ता का पता लगाया जाता है। अनेक जल निकायों के प्रदूषित भागों को चिन्हित किया गया ताकि उनकी गुणवत्ता में सुधार के लिए उपयुक्त कदम उठाए जा सकें।

वर्तमान में गंगा कार्य योजना और राष्ट्रीय नदी कार्ययोजनाओं सहित जल गुणवत्ता प्रबन्धन की प्रायः सभी नीतियाँ और के विभिन्न भागों में सामूहिक स्नान के तमाम अवसरों के मद्देनजर, स्नान के लिए जल की गुणवत्ता के मानकों पर विशेष जोर दिया गया है। (देखें तालिका-2)

जलीय गुणवत्ता एक दृष्टि में


देश की 353 बड़ी, मध्यम और लघु नदी कछारों में पानी की गुणवत्ता पर नजर रखी जाती है। इन नदियों के पानी की गुणवत्ता का मूल्याँकन जल-गुणवत्ता मानकों के आधार पर किया जाता है जिसको देखकर जल की गुणवत्ता को सुधारने के प्रयास किए जाते हैं। चिन्हित प्रदूषित नदियों/उनके हिस्सों का विवरण नीचे दिया गया है:

 

स्नान के लिए प्राथमिक जल गुणवत्ता मानक

मानक

औचित्य

1. विष्ठा कोलिफॉर्म एमपीएन/ 100 मिली : 500 (वांछित) 2500 (अधिकतम स्वीकार्य)

क. मल-जल का कम संदूषण सुनिश्चित करने हेतु फीकल कोलिफॉर्म और फीकल स्ट्रेप्टो कोक्साई पर विचार किया जाता है, क्योंकि उनसे कीटाणु जनित रोग प्रसार होता है।

2. फीकल स्ट्रेप्टो कोक्साई एमपीएन/100 मिली : 100 (वांछित) 500 (अधिकतम स्वीकार्य)

मौसमी परिवर्तन, बहाव की स्थितियों में परिवर्तन आदि जैसे पर्यावरणीय स्थितयों में उतार-चढ़ाव की गुंजाइस के लिए वांछित और स्वीकार्य सीमाओं का सुझाव दिया जाता है।

4. घुला हुआ ऑक्सीजन : 5 मिग्रा प्रतिलीटर या अधिक

5 मिग्रा/ली. सान्द्रता का न्यूनतम घुलित ऑक्सीजन उसकी खपत वाले जैविक प्रदूषण से तुरन्त मुक्ति सुनिश्चित करता है, जोकि तलहट से हानिकारक गैसों के उत्पादन को रोकने के लिए आवश्यक है।

5. जैव रासायनिक ऑक्सीजन माँग 3 दिन, 27 डिग्री सेंटीग्रेड : 3 मिग्रा प्रतिलीटर या कम

पानी की 3 मिग्रा/ली. या कम की जैव-रासायनिक ऑक्सीजन माँग ऑक्सीजन की माँग करने वाले प्रदूषकों से पर्याप्त छुटकारा दिलाते हैं और हानिकारक गैसों का उत्पादन रोकते हैं।

 



आन्ध्र प्रदेश : मुसी नदी-हैदराबाद से रंगा रेड्डी तक, नक्कावागू नदी-मेदक में मंजिरा नदी-गौड़ीचरला के साथ-साथ नकावागू में कृष्णा नदी-वड़ेपल्ली में (मुसी नदी के साथ-साथ), गोदावरी नदी-राजामुंदरी शिला और मनेर नदी-वारंगल में।
असम : भरालू नदी-गुवाहाटी जिला, कलोंग नदी-नौगाँव शिला में (इलंगाबील तालाब)
दिल्ली : यमुना नदी-वशीराबाद से ओखला और आगे।
गुजरात : साबरमती नदी-अहमदाबाद से वौथा तक, आमलाखाड़ी नदी-अंकलेश्वर, भौगावो नदी-सुरेन्द्रनगर शिला, दमनगंगा नदी-वापी से समुद्र में संगम तक, खारी नदी-लाली गाँव (अहमदाबाद) तापी नदी-रैंदेर पुल से सूरत तक, किम नदी-सूरत जिला।
हरियाणा : घघ्घर नदी-समूचे राज्य में मर्कंडा नदी-काला अम्ब से नारायण गढ़ तक, पश्चिमी यमुना नहर-यमुनानगर, गुड़गाँव नहर-दिल्ली तक।
मध्य प्रदेश : खान नदी पूरे इन्दौर मेंचंबल नदी-नागदा, क्षिप्रा नदी-उज्जैन से चम्बल के संगम तक, बेतवा नदी-मण्डीदीप से विदिशा।
महाराष्ट्र : भीमा नदी-पुणे (विट्ठलवाड़ी) से तकली, गोदावरी नदी-नासिक से पैठन तक, मुला एवं मुठा नदी-पुणे शहर, पावना नदी-पुणे-सांगवी गाँव, इंद्रायणी नदी-अलंदी से भीमा के संगम तक, कोयना नदी-कराड़ मीठी नदी-मुंबई तक का हिस्सा, कुम्डलिका नदी-आरे खुर्द से रोहा शहर, तापी नदी-मध्य प्रदेश सीमा से भुसावल तक, गिर्ना नदी-माले गाँव से जलगाँव, नीरा नदी-जुबिलेंट आॅर्गनोसिस पुणे तक, वेनगंगा नदी-अष्टि, वर्धा नदी-पूरे राजुरा गाँव में भीमा नदी-नरसिंहपुर, कृष्णा नदी-धोम बाँध से कोल्हापुर, पूर्णा नदी-अंदुरा गाँव, नीरा नदी-पूरे पुलगाँव में चंद्रभागा नदी-पूरे पठरपुर शहर में वेन्ना नदी-वार्ये, सतारा, कालू नदी-अटाले गाँव से उल्हास के संगम तक, कन्हन नदी-नागपुर, कोलार नदी-पूरे काम्प्टी में उल्हास नदी-मोहाने पंचगंगा नदी-कोल्हापुर, पाताल गंगा नदी-खोपोली से इस्तुरैन क्षेत्र तक और रंगाबली नदी-पूरे नागपुर में।

पंजाब : सतलज नदी-शेनिथ पेपर मिल से हरि के पुल, अमृतसर तक, घग्घर नदी-मुबारकपुर से सार्दूलगढ़ (पूरे पंजाब में)।
तमिलनाडु : अड्यार नदी-पूरे चेन्नई मेंकूवुम नदी-पूरे चेन्नई में वैगई नदी-पूरे मदुरई में तंबीरापरनी नदी-पूरे अंबासमुदम में, कावेरी नदी-त्रिचिरापल्ली से ग्रांड अनईकट, भवानी नदी-भवानी सागर एवं भवानी, नोयल नदी-पूरे कोयंबटूर, तिरुपुर और पल्यानाकोट्टी।
उत्तर प्रदेश : यमुना नदी-कोसी कलां से जुहिका, हिंडन नदी-सहारनपुर से यमुना के संगम तक, काली नदी (पश्चिम)- मुजफ्फरनगर से हिंडन के संगम तक, काली नदी (पूर्व)- मेरठ से कन्नौज तक बागड़ नदी गजरौला, गंगा नदी-कन्नौज ऊपरी धारा से वाराणसी तक, गोमती नदी-लखनऊ से जौनपुर तक, रामगंगा नदी-मुरादाबाद से कन्नौज तक।
कर्नाटक : भद्रा नदी-भद्रावती से तुंगा के संगम तक, तुंगा नदी-शिमोगा, तुंगभद्रा नदी-हरिहर से हरलाहल्ली पुल एवं उलनूर, लक्ष्मणतीर्थ नदी-हुंसूर शहर, काली नदी-पूरे डंडेली शहर में कृष्णा नदी-उगरखुर्द बराज की सीमा तक।

मणिपुर : नम्बुल नदी-हिरणगोइथांग एवं हम्प पुल में- राजस्थान: जोजरी नदी-पूरे जोधपुर में बांदी नदी-पूरे पाली में बेरेच नदी-उदयपुर, चम्बल नदी-कोटा शहर में

उत्तराखण्ड : कोसी नदी-काशीपुर, ढेला एवं किच्छा नदी-काशीपुर, बहल्ला नदी-काशीपुर।
झारखण्ड : सुवर्ण रेखा नदी-रांची (टाटी सिलवाल)
छत्तीसगढ़ : अरपा नदी-बिलासपुर, शिवनाथ नदी-पूरे राजनोंद-गाँव में।
मेघालय : खरखला नदी-पूरे सुतंगा खिलेरी में उमट्रन्न् नदी-पूरे बिर्नीहाट पूर्व में।
हिमाचल प्रदेश : मरकंडा नदी-पाँवटा साहिब में।
उड़ीसा : कठजोड़ी नदी-पूरे कटक में।
पुदुचेरी : अरासलार नदी-पूरे कराईकल में।
प. बंगाल : दामोदर नदी-पूरे आसनसोल में।

जल गुणवत्ता प्रवृत्ति


पिछले दशक के दौरान जलीय गुणवत्ता की निगरानी से जो नतीजे मिले हैं, उनसे संकेत मिलता है कि जलीय निकायों में जैविक और कीटाणुवाही सन्दूषण ख़तरनाक रूप से जारी है। इसका मुख्य कारण देश के शहरी क्षेत्रों में घरों से निस्तारित होने वाला अनुपचारित घरेलू गन्दा पानी है। अधिकांश नगरीय संस्थाएँ बड़ी मात्रा में जलीय निकायों में जाकर मिलने वाले नगरपालिका से उत्सर्जित मल-जल का उपचार करने में असमर्थ हैं। दूसरे, जिन जल निकायों में यह गन्दा पानी जाकर मिलता है उनके तनुकरण (पतला करने) की पर्याप्त क्षमता उनमें नहींं है। अतएव, आॅक्सीजन की माँग और कीटाणु जनित प्रदूषण दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। जलवाही रोगों का यही मुख्य कारण है।

जलीय गुणवत्ता की निगरानी के नतीजों का विश्लेषण आॅक्सीजन की खपत वाले तत्वों (जैव रासायनिक माँग) और रोगवाही कीटाणुओं (कुल कोलिफार्म और विष्ठा वाला कोलिफार्म) के संदर्भ में किया गया। इस विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि जलीय गुणवत्ता का क्रमिक ह्रास हो रहा है।

जलीय गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क का सुदृढ़ीकरण


योजना आयोग ने सीपीसीबी के जलीय गुणवत्ता नेटवर्क को सुदृढ़ बनाने का निर्णय लिया है और ग्यारहवीं योजनावधि में जलीय गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम के तहत 2,500 निगरानी केन्द्र स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। राष्ट्रीय जल गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम के अन्तर्गत मौजूदा नेटवर्क अपर्याप्त है और देश के सभी जल निकायों को कवर नहींं करता। दो केन्द्रों के बीच औसत दूरी 55 किलोमीटर की है।

बढ़ती जनसंख्या और शहरी क्षेत्रों के विस्तार को देखते हुए और केन्द्रों की स्थापना आवश्यक हो गई है।

प्रदूषित नदी क्षेत्रों की पहचान


देशकी नदियों के पानी की गुणवत्ता का विश्लेषण किया जाता है और जिन निगरानी केन्द्रों में जलीय गुणवत्ता में मानक स्तर से कमी पाई जाती है उनको जोख़िम के लिहाज से प्रदूषित स्थान के रूप में चिन्हित किया जाता है। नदी का कितना हिस्सा प्रदूषित है, इसकी प्राथमिकता जोख़िम पर निर्भर होती है। जोख़िम की परिभाषा इस प्रकार की गई है:

जोख़िम = मानक के उल्लंघन की आवृत्ति × परिणाम (आकार)।

उल्लंघन की मात्रा (स्तर) का निर्धारण पारम्परिक उपचार वाले पेयजल स्रोत हेतु जलीय गुणवत्ता मानक के सन्दर्भ में किया जाता है। निरन्तर क्रम में आने वाले प्रदूषित स्थलों को प्रदूषित नदी क्षेत्र कहा जाता है।

पहली प्राथमिकता के लिए मानक


1. 30 मिग्रा/ली. बीओडी सान्द्रता से अधिक के निगरानी स्थलों पर विचार किया गया है क्योंकि इसे मल-जल उपचार संयन्त्रों का मानक माना जाता है और यह नदियों में बिना द्रवित हुए दिखाई देता है। (बीओडी हेतु मानक से अधिक निस्तार करने वाले नदी स्थल बनाम स्वच्छ जल स्रोत)।
2. सभी अवसरों पर 6 मिग्रा/ली. सान्द्रता के बीओडी से अधिक के सभी निगरानी स्थल।
3. 3 मिग्रा/ली. बीओडी से अधिक वाले निगरानी स्थल अपेक्षित जल गुणवत्ता मानक को पूरा नहीं करते परन्तु वे जलीय निकायों में घुलित ऑक्सीजन के स्तर को प्रभावित नहीं करते। यदि जलीय निकाय में बीओडी 6 मिग्रा/ली. से अधिक हो जाता है तो घुलित ऑक्सीजन अपेक्षित स्तर से नीचे चला जाता है।
4. 5 मिग्रा/ली. तक बीओडी स्तर वाले कच्चे पानी में क्लोरीनीकरण से जटिल रसायन नहीं बनते। अतः 6 मिग्रा/ली. से अधिक के बीओडी वाले जलीय निकायों को प्रदूषित माना जाता है और उसके निदान की कार्रवाई के लिए उनको चिन्हित किया जाता है।
5. चिन्हित क्षेत्रों की सूची संलग्न है।

दूसरी प्राथमिकता हेतु मानक


1. 20-30 मिग्रा/ली. बीओडी वाले स्थलों की निगरानी।
2. 6 मिग्रा/ली. सांद्रता के बीओडी से अधिक वाले सभी स्थलों की सभीअवसरों पर निगरानी।
3. चिन्हित क्षेत्रों की सूची ऊपर दी गई है।

तीसरी प्राथमिकता हेतु मानक


1. 10-20 मिग्रा/ली. बीओडी वाले स्थलों की निगरानी।
2. 6 मिग्रा/ली. सांद्रता की बीओडी से अधिक के सभी स्थलों की सभी अवसरोंपर निगरानी।
3. चिन्हित क्षेत्रों की सूची ऊपर दी जा चुकी है।

चौथी प्राथमिकता हेतु मानक


1. 6-10 मिग्रा/ली बीओडी वाले स्थलों की निगरानी।
2. चिन्हित क्षेत्रों की सूची ऊपर दी गई है।

पाँचवीं प्राथमिकता हेतु मानक


1. 3-6 मिग्रा/ली बीओडी वाले स्थलों की निगरानी।
2. 3 मिग्रा/ली. बीओडी की अपेक्षित जलीय गुणवत्ता से अधिक वाले स्थल।
3. चिन्हित क्षेत्रों की सूची ऊपर वर्णित है।

निष्कर्ष


प्राथमिकता के आधार पर नदी क्षेत्रों की संख्या नीचे दी गई है:

 

प्राथमिकता

क्षेत्र की संख्या

पहली प्राथमिकता

35

दूसरी प्राथमिकता

15

तीसरी प्राथमिकता

26

चौथी प्राथमिकता

38

पाँचवीं प्राथमिकता

36

योग

150

 



जलीय गुणवत्ता सुधार में समस्याएँ


1. नदियों के ऊपरी क्षेत्रों में सिंचाई के बाँध बने होते हैं,जिसके कारण लम्बी दूरी तक बहाव नगण्य हो जाता है।
2. सूखे मौसम में होने वाला बहाव नहरों की ओर मोड़ दिया जाता है।
3. गिरते भू-जलस्तर के कारण पुनर्जनित प्रवाह में कमी आई है।
4. जनसंख्या में तेजी से हो रही वृद्धि और मल-जल प्रणालियों के विकाससे नदियों में दूषित जल अधिक मात्रा में आ रहा है।
5. विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत निर्मित मल जल उपचार संयन्त्र अपनीनिर्धारित क्षमता से काम नहीं कर रहे हैं। वे या तो क्षमता से कम अथवा क्षमता से अधिक काम कर रहे हैं।
6. एसटीपीजे के लिए समर्पित विद्युत उपलब्ध नहीं है।

जलीय गुणवत्ता में सुधार की रणनीति


1. सभी मौजूदा मल-जल पम्पिंग स्टेशनों और मल-जल उपचार संयन्त्रों कानवीकरण किया जाए।
2. उन सभी शहरों में नये मल-जल उपचार संयन्त्र लगाए जाएँ जो नदियोंमें मल-जल गिराते हैं ताकि उत्पादन और उपचार के बीच की खाई को पाटा जा सके।
3. जिन नालों को अभी इस प्रणाली में शामिल नहीं किया गया है, उनको बीच में ही रोककर मल-जल उपचार संयन्त्रों की ओर मोड़ देना चाहिए।
4. परिसम्पत्तियों का स्वामित्व राज्यों के लोक स्वास्थ्य विभागों केहाथ में होना चाहिए।
5. नदी प्रवाह में संवर्धन किया जाए।
6. कम प्रवाह के मद्देनजर मल-जल उपचार और औद्योगिक रासायनिक प्रवाह केलिए मानकों को कठोर बनाना होगा।
7. ग्रामीण क्षेत्रों में या तो पाइपों के जरिए सतही पानी पहुँचानेअथवा स्थल पर ही उपचार की उन्नत प्रौद्योगिकी की सम्भावनाएँ तलाशनी होंगी ताकि स्रोत ही पर पानी के संदूषण का पता लग सके।

लेखकद्वयमें से प्रथम केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के अध्यक्ष तथा द्वितीय वैज्ञानिक ‘डी’ हैं।
ई-मेल : ccb.cpcb@nic.in, scrmb.cpcb@nic.in

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