नहर नदी कुएँ सब प्यासे

काश मेघ तुम जल्दी आते।

भ्रूणांकुर कोखों में झुलसे
बांझ रह गई अनगिन क्यारी
अबके भी रह गई इसी से
कितनी कृषक सुताएँ क्वाँरी

कई हज़ार वृद्ध कंधों पर
ऋण का बोझा और बढ़ गया
जीवन सरिता में दर्दों के
जल का स्तर कुछ और चढ़ गया

पहले आते तो कुछ माथे
चावल चढ़ने से खिल जाते।
काश मेघ तुम जल्दी आते।

बिखर गये अरमान सलौने
डाक्टर या अ$फसर बनने के
अम्मा के हँस बतियाने के
बापू के तनकर चलने के

कई देहरियाँ रही तरसती
पायल की छम-छम के स्वर को
कितने आँगन रहे टेरते
गीतों के मधुरिम निर्झर को

तीस दिवस पहले आते तो
क्यों खुदकशी सपन कर जाते।
काश मेघ तुम जल्दी आते।

चारे के अभाव में पन्नी
खाकर कजरी आज मर गई
सात दिनों से गायब लाजो
कुनबे को बेलाज कर गई

खटिया डाल गली में दादा
ऐसी निंदिया रात सो गये
पूरा गांव जगाकर हारा
किन ख्वाबों में आज खो गये

उनकी बिथा-कथा सुन पाते
काश कभी तुम आते-जाते।
काश मेघ तुम जल्दी आते।।

ऐसा कहर कहत ने ढाया
नहर, नदी कूएँ सब प्यासे
कंठ कोयलों तक के सूखे
आकर देवे कौन दिलासे

इतना सोचा नहीं जनम भर
राम परीक्षा लेंगे ऐसी
फूटा करम लिखा था जिसने
जाने जली कलम थी कैसी

इससे तो बेहतर था हम पर
एटम बम आकर गिर जाते।
काश मेघ तुम जल्दी आते।।

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Post By: RuralWater
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